लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका क्या है ?

लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका : प्रारम्भ में दबाव समूहों को अनैतिक संगठन मानते हुए घृणा की दृष्टि से देखा जाता था, लोकतांत्रिक धारणा में दबाव समूहो

लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका क्या है ?

  1. दबाव समूह की विशेषताएं बताइए
  2. दबाव समूह की विवेचना कीजिए
  3. दबाव समूह के लक्षण बताइए

लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका : प्रारम्भ में दबाव समूहों को अनैतिक संगठन मानते हुए घृणा की दृष्टि से देखा जाता था, लोकतांत्रिक धारणा में दबाव समूहों का कोई विशेष स्थान नहीं था, परन्तु धीरे-धीरे दबाव समूह की स्थिति में परिवर्तन आया है। राजनीतिक व्यवस्था में अब दबाव समूहों के महत्व को समझा जाने लगा है और इसे राजनीतिक व्यवस्था के लिए अनिवार्य मान लिया गया, वर्तमान समय में लगभग सभी पक्षों द्वारा इसके अस्तित्व को अपना लिया गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूह केवल आवश्यक ही नहीं वरन् वांछनीय भी है।

दबाव समूह की विशेषताएं

दबाव समूहों के कार्य और उनकी विशेषताएं तथा महत्व निम्नलिखित हैं

1.शासन के लिए सूचनाएँ एकत्रित करने वाले संगठनों के रूप में दबाव समूह-प्रत्येक देश में सरकार तथा शासन के पास आवश्यक सूचनाएँ पर्याप्त रूप से होनी चाहिये। शासन की सूचनाओं के गैर-सरकारी स्त्रोत के रूप में दबाव समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दबाव समूह आँकड़े इकट्ठे करते हैं. तथा सरकार को अपनी समस्याओं से परिचित करवाते हैं।

2. जनतांत्रिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति के साधन-दबाव समूहों को प्रजातंत्र की अभिव्यक्ति का गठन माना जाता है। प्रजातंत्र की आवश्यकता के लिए जनमत तैयार करना आवश्यक है जिससे विशेष नीतियों का समर्थन अथवा विरोध कर सके। विभिन्न देशों में दबाव समूह विभिन्न तरीकों से अपनी बात मनवाने का प्रयास करता है। जनता को शिक्षित करना, आँकड़े इकट्ठे करना, निर्माताओं के पास सूचनाएँ पहुँचाना आदि अनेक कार्य करके अपने उद्देश्य की प्राप्ति करना आज प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का अंग बन गया है।

3. समाज और शासन में सन्तुलन स्थापित करना-दबाव समूह के अस्तित्व से एक लाभ यह है कि विभिन्न हितों के बीच संतुलन कायम रहता है।

4. व्यक्ति और सरकार के मध्य संचार के साधन-प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में दबाव समूह व्यक्तिगत हितों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं। दबाव समूह व्यक्ति और सरकार के बीच संचार साधन का काम करता है।

5. शासन को प्रभावित करने वाले संगठनों के रूप में दबाव समूह-दबाव समूहों का अस्तित्व वर्तमान समय में एक ऐसी संस्था के रूप में है जिनके पास संगठन की दृष्टि से काफी शक्ति होती है कि वह स्वार्थ या हित विशेष की रक्षा के लिए सरकारी मशीनरी पर उपयोगी व सफल प्रभाव डाल सके।

6. शासन की निरंकुशता को सीमित करना-प्रत्येक शासन व्यवस्था में केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है और समूची शक्तियाँ सरकार के हाथों में केन्द्रित होती जा रही हैं। दबाव समूह अपने साधनों द्वारा सरकारी निरंकुशता को सीमित करते हैं।

7. विधानमण्डल के पीछे विधान मण्डल का कार्य-दबाव समूह विधि निर्माण में विधेयकों की सहायता करते हैं। अपनी विशेषता तथा महत्व के कारण ये समूह विधि-निर्माणकर्ता समितियों के सदस्यों को आवश्यक परामर्श देता है। इनका परामर्श और सहायता दोनों ही इतनी उपयोगिता होती है कि इन्हें विधानमण्डल के पीछे विधानमण्डल कहा जाने लगा है।

वस्तुत:दबाव समूहों को लोकतांत्रिक व्यवस्था का दूसरा नाम दिया जाता है और इन्हें प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का प्राणवायु कहा जा सकता है। दबाव समूह के जो अवगुण बताये गये हैं, वह अधिकांश सैद्धान्तिक ही हैं, वस्तुतः दबाव समूहों को अप्रजातान्त्रिक, राष्ट्रीय हित में बाधक या सार्वजनिक हितों की उपेक्षा करने वाला संगठन नहीं माना जा सकता है। विभिन्न दबाव समूहों के बीच जो प्रतिस्पर्धा होती है उससे दबाव समूहों की संकीर्णता समाप्त होकर सार्वजनिक हित को ध्यान में रखने वाला व्यापक दृष्टिकोण तैयार होता है।

वास्तव में,दबाव समूह उस आधार का निर्माण करता है, जिसके बल पर लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता को प्राप्त किया जा सकता है। दबाव समूहों के बिना जनता और शासन के बीच सम्पर्क सूत्रों का अभाव हो जाएगा तथा यह स्थिति लोकतांत्रिक संस्कृति और राष्ट्रीय हित तथा एकता के लिए घातक होगी।

दबाव समूह ने राजनीतिक व्यवस्था की एक अनिवार्य स्थिति प्राप्त कर ली है और लॉवेल के शब्दों को कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाते हुए कहा जा सकता है कि "दबाव समूह अच्छे हैं या बुरे इस प्रसंग में सूचना एकत्र करना वैसा ही है जैसा इस सम्बन्ध में विचार करनाकि, हवाएँ और ज्वार-भाटे अच्छे होते हैं या बुरे।"

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