दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख लक्षण बताइये ? दबाव समूह विशेष हितों के साथ जुड़े हुए ऐसे शक्ति संगठन होते हैं जो अपने सदस्यों के हितों क
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख लक्षण बताइये ?
दबाव समूह की परिभाषा
दबाव समूह विशेष हितों के साथ जुड़े हुए ऐसे शक्ति संगठन होते हैं जो अपने सदस्यों के हितों की रक्षा हेतु सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करने की चेष्टा करते रहते हैं। दबाव समूह की कुछ परिभाषाएँ निम्न हैं
ओडीगार्ड के अनुसार, "दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिसके एक अथवा अधिक सामान्य उद्देश्य या स्वार्थ होते हैं और जो घटनाओं के क्रम को, विशेष रूप से सार्वजनिक नीति के निर्माण और प्रशासनिक कार्यों को इसलिए प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं कि वे अपने हितों की रक्षा एवं वृद्धि कर सकें।"
मायरन वीनर के शब्दों में, "हित या दबाव समूहों से हमारा तात्पर्य शासन के ढाँचे के बाहर स्वैच्छिक रूप से संगठित ऐसे समूहों से होता है जो प्रशासनिक अधिकारियों की नामजदगी और नियुक्ति, विधि-निर्माण और सार्वजनिक नीति के क्रियान्वयन को प्रभावित करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।"
प्रो० मदन गोपाल गुप्ता के अनुसार, "दबाव समूह वास्तव में एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा सामान्य हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। इस अर्थ में ऐसा कोई भी सामाजिक समूह जो प्रशासकीय और विधायी दोनों ही प्रकार के निर्णयकर्ताओं को, सरकार पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण प्राप्त करने की चेष्टा किये बिना ही प्रभावित करना चाहता है, दबाव समूह कहलायेगा।"
सीधे-सादे शब्दों में इन दबाव गुटों को सार्वजनिक नीति को प्रभावित करने के उद्देश्य से निर्मित 'गैर-सरकारी समह' कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक, व्यवसायी, वाणिज्यिक, श्रमिक और अन्य वर्गों के समूह विधि-निर्माण और प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं जिनसे कि वे अपने हितों में कानून बनवा सकें या अपने हितों को हानि पहुँचाने वाले विधेयकों को वापस लेने के लिए अथवा उनमें आवश्यक परिवर्तन करवाने के लिए प्रयत्न कर सकें तथा प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित कर सकें। इस प्रकार दबाव समूह अपने सदस्यों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक, विशेषतया उनके आर्थिक एवं व्यावसायिक हितों की रक्षा तथा वृद्धि में संलग्न रहते हैं।
दबाव समूह के दो लक्षण
दबाव समूह के लक्षण : दबाव समूह के सम्बन्ध में दिये गये विचारों के आधार पर दबाव समूह के निम्नलिखित लक्षण होते
(1) सीमित उद्देश्य-दबाव समूह के एक या विशेष कछ निश्चित लक्ष्य होते हैं और दबाव समह के द्वारा अपनी गतिविधियाँ सामान्यतया इस विशेष लक्ष्य तक सीमित रखी जाती हैं।
(2) औपचारिक या अनौपचारिक रूप से संगठित-दबाव समूह के लिए राजनीतिक दल की तरह औपचारिक रूप से संगठित होना आवश्यक नहीं है, ये अर्द्ध-औपचारिक रूप में संगठित हो सकते हैं, या पूर्णतया अनौपचारिक संगठन भी हो सकते हैं, जिन्हें सामान्यतया असंगठित कहा जाता है।
(3) सीमित एवं परस्पर व्यापी सदस्यता-दबाव समूहों का सामान्यतया वीय हितों से सम्बन्ध होता है और स्वाभाविक रूप से इनकी सदस्यता सीमित ही होती है। अखिल भारतीय टेड यनियन कांग्रेस (INTUC) की सदस्यता मात्र श्रमिक वर्ग को और वाणिज्य मण्डल की सदस्यता मात्र व्यापारिक वर्ग को ही प्राप्त रहती है।
दबाव समूह की सदस्यता परस्पर व्यापी भी होती है। एक व्यक्ति एक ही समय पर अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है। उदाहरण के लिए वह जातिगत समूहों, उपभोक्ता समूहों, मोहल्ला संघ और शिक्षक संघ या श्रमिक संघ का सदस्य हो सकता है।
(4) संवैधानिक और असंवैधानिक साधनों का प्रयोग-विशेष हितों की पूर्ति ही सबसे प्रमुख लक्ष्य होने के कारण दबाव समूह के द्वारा आवश्यकतानुसार उचित और अनुचित, संवैधानिक तथा असंवैधानिक सभी प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
(5) राजनीति और प्रशासन में परोक्ष भूमिका-दबाव समूह का शासन पर अधिकार स्थापित करने का कोई लक्ष्य नहीं होता, इसलिए वे राजनीति और प्रशासन में प्रत्यक्ष भूमिका नहीं निभाते हैं। इस आधार पर कई बार ये समूह अपने आपको 'गैर-राजनीतिक और गैर-सरकारी संगठन' बताते हैं, लेकिन वस्तत: दबाव समह राजनीति और प्रशासन से अलग नहीं होते, वे परदे के पीछे रहकर राजनीति, राजनीतिक निर्णयों और प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करने की निरन्तर चेष्टा करते हैं। ये समूह चुनाव नहीं लड़ते और न ही चुनाव में औपचारिक रूप में उम्मीदवार खड़े करते हैं, किन्तु वे दलों द्वारा चुनाव में उम्मीदवारों के नामांकन को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों के समर्थक उम्मीदवारों को धनराशि देकर तथा अन्य प्रकार से सहयोग देते हैं। वे विधायक नहीं बनना चाहते, परन्तु विधायकों के मतों को प्रभावित करते हैं। वेशासन से बाहर रहकर प्रशासनिक अधिकारियों के निर्णयों को प्रभावित करते हैं। अपने हितों की रक्षा के लिए कभी तो उनके द्वारा निश्चित राजनीतिक वफादारी और कभी अस्थिर राजनीतिक वफादारियों का आश्रय लिया जाता है। इस प्रकार दबाव समूह 'राजनीतिक और गैर-राजनीतिक, इन दो स्थितियों के मध्य में स्थित होते हैं। हैरी एक्सटीन के अनुसार "दबाव समूहों की राजनीतिक गतिविधियों के आधार पर उनका रूप पूर्णतया अराजनीतिकृत समूह से कम तथा पूर्णतया राजनीतिकृत समूह से अधिक होता है, यह स्थिति वस्तुतः राजनीतिक और अराजनीतिक स्तरों के बीच की गतिविधियों की होती है।"प्रो० जोहरी के अनुसार, दबाव समूह राजनीति के साथ लुका-छिपी का खेल (Game of hide and seek) खेलते हैं, वे राजनीति में हैं भी और नहीं भी हैं। वस्तुतः दबाव समूहों की 'अराजनीतिक स्थिति की बात' मात्र सैद्धान्तिक और सतही स्थिति ही है। व्यवहार में दबाव समूह 'राजनीतिक क्रिया अभिमुखी' ही होते हैं। दबाव समूह बिना उत्तरदायित्व वहन किये सत्ता के संघर्ष और सत्ता के लाभों के लिए सचेष्ट रहते हैं, इस कारण कुछ आलोचकों द्वारा उन्हें अनुउत्तरदायी राजनीतिक दल' भी कहा जाता है।
(6) अनिश्चित कार्य-काल-दबाव समूह बनते और समाप्त होते रहते हैं। किसी हित विशेष की पूर्ति के लिये अस्तित्व में आने के कारण हित की पूर्ति के साथ ही इनका समाप्त हो जाना स्वाभाविक है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक समाज की प्रकृति परिवर्तनशील होती है, अत: एक विशेष दबाव समूह को स्थापना के कुछ समय बाद अनुपयोगी समझकर भी भंग किया जा सकता है।
(7) सर्वव्यापक प्रकृति-दबाव समूह सभी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं में पाये जाते हैं. यहाँ तक कि सर्वाधिकारवादी और स्वेच्छाचारी राज-व्यवस्थाओं में भी दबाव समूह होते हैं। इनकी सर्वव्यापकता को स्वीकार रहते हुए, रॉबर्ट सी० बोन लिखते हैं, "दबाव समूह सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं में, यहाँ तक कि सर्वाधिकारवादी राज्यों में भी पाये जाते हैं-केवल यह तथ्य कि दबाव समूह साम्यवादी राज्यों में भी होते हैं, इनकी सर्वव्यापकता का प्रमाण है।"
इस सर्वव्यापकता के बावजूद यह तथ्य है कि सर्वाधिकारवादी राज्यों में दबाव समहों की गतिविधियाँ बहुत सीमित होती हैं और सामान्यतया गुप्त रूप में सम्पादित होती हैं। लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में दबाव समूह खुले रूप में कार्य करते हैं और सामान्यतया उनकी गतिविधियों का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है।
दबाव समूहों का स्वरूप किसी देश विशेष की सामाजिक और राजनीतिक विकास की स्थिति के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। इनके विकास का एक क्रम होता है और ज्यों-ज्यों समाज अविकसित अवस्था से विकसित अवस्था की ओर बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों सामाजिक या साम्प्रदायिक (Communal) समूहों की तुलना में समुदायात्मक समूहों (Associational Groups) का विस्तार बढ़ता जाता है।
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