भौगोलिक विविधता का अर्थ है भूगोल संबंधी विविध होने या असमानता का भाव। भारत के निवासियों, उनकी समाज-व्यवस्था, सभ्यता और संस्कृति की विविधता एवं एकता को
भौगोलिक विविधता क्या है ? भारत को कितने भौगोलिक क्षेत्र में बांटा गया है ?
भौगोलिक विविधता का अर्थ है भूगोल संबंधी विविध होने या असमानता का भाव। भारत के निवासियों, उनकी समाज-व्यवस्था, सभ्यता और संस्कृति की विविधता एवं एकता को जानने से पूर्व उनकी भौगोलिक पृष्ठभूमि को जान लेना आवश्यक है क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां मानव के धर्म, दर्शन, कला, सभ्यता, संस्कृति, संस्थाओं, आदि सभी पक्षों को प्रभावित करती है।
भारत एशिया, महाद्वीप का एक भाग है, जो उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। इसकी मुख्य भूमि 8°4' से 37°6' उत्तरी अक्षांश तथा 68°7' से 97°25' पूर्वी देशान्तर के बीच फैली हुई है। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किलोमीटर है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। भारत की स्थलीय सीमा 15,200 किलोमीटर है और समुद्र तट 7,516.6 किलोमीटर । क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का 40वां भाग है तथा विस्तार की दृष्टि से संसार में भारत का सातवां स्थान है। भारत की प्राकृतिक सीमाएं इसे अन्य देशों से पृथक् करती हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत फैला हुआ है, जो इसे चीन, तिब्बत और एशिया के शेष भागों से पृथक् करता है। दक्षिण में तीन ओर समुद्र इसके चरण धोता है। उत्तर में चीन, नेपाल और भूटान एवं पूर्व में म्यांमार (बर्मा) और पश्चिम बंगाल के पूर्व में बांग्लादेश स्थित है तथा उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से इसकी सीमा जुड़ी हुई है। मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य भारत को श्रीलंका से अलग करते हैं। इस प्रकार उत्तर में विशाल पर्वत-श्रेणियों और दक्षिण में अथाह समुद्र ने भारत भूमि की विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा की है। भारत की भौगोलिक सीमाओं ने यहां की समाज-व्यवस्था और लोगों को विश्व के अन्य समाजों से भिन्न बनाया है। इस देश के निवासियों की वेश-भूषा, भाषा, धर्म, दर्शन, ज्ञान, कला, विधि-विधान, सभ्यता एवं संस्कृति की अपनी मौलिकता है, जिसका विकास अधिकांशतः इसी धरती पर हुआ है। भारतीयों की विलक्षणताका विश्व में एक विशिष्ट स्थान है। भारत की भौगोलिक स्थिति ने इसे एक स्वतन्त्र सांस्कृतिक क्षेत्र बनाये रखा और समस्त ऐतिहासिक युग में इसे विदेशी संस्कृतियों और विजातीय प्रभावों से मुक्त रखा।
इस देश का एक अन्य नाम 'हिन्दुस्तान' व 'इण्डिया' भी हैं। चूंकि यहां सिन्तु नदी बहती है, अतः उसी के आधार पर इस क्षेत्र को 'सिन्धु का प्रदेश' कहा गया। फारस निवासी 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे, अतः उन्होंने सिन्धु का उच्चारण 'हिन्दु' किया और उसी आधार पर सिन्धु प्रदेश 'हिन्दुस्तान' कहलाया और यहां के निवासियों को 'हिन्दू' कहा गया। प्राचीन ग्रीक लोग सिन्धु नदी को 'इण्डस' और इसके समीपवर्ती क्षेत्र को 'इण्डिया' कहते थे। इसलिए भारत को 'इण्डिया' भी कहा जाता है।
भारत की जलवायु में भी भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। जहाँ उष्ण, शीतोष्ण और शीत तीनों प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं यदि एक ओर लद्दाख में हड्डियों तक को कंपा देने वाली सर्दी है, तो दूसरी ओर झुलसा देने वाली राजस्थान के रेगिस्तान की गर्मी भी है। कोंकण और कारोमण्डल तट पर नमी और गर्मी, मालाबार की आर्द जलवायु और मालवा की समशीतोष्ण जलवायु भी है। जहाँ एक ओर असम, बंगाल, हिमाचल के दक्षिणपूर्वी ढाल तथा मालाबार तट पर वर्ष में 100 से.मी. से अधिक वर्षा होती है, वहाँ दूसरी ओर कच्छ, राजस्थान व पंजाब के दक्षिणी भाग में 5 से.मी. से भी कम वर्षा होती है।
भौगोलिक दृष्टि से भारत के पांच प्राकृतिक भाग हैं : उत्तर का पर्वतीय प्रदेश, गंगा–सिन्धु का मैदान, दक्षिण का पठार, राजस्थान का मरुस्थल तथा समुद्रतटीय मैदान।
1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश - उत्तर में कश्मीर से नेफा तक 1,600 मील लम्बी एवं 150 से 200 मील चौड़ी हिमालय पर्वतमालाएं फैली हुई हैं। इसमें अनेक दर्रे, ऊंची चोटियां एवं घाटियां हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर 'एवरेस्ट' (29,002 फीट) यहीं स्थित है। हिमालय पर्वत श्रेणियों ने सदैव ही बाह्य आक्रमणकारियों से देश की रक्षा की है। इस क्षेत्र में अनेक धार्मिक, दार्शनिक, प्राकृतिक एवं स्वास्थ्यवर्धक स्थल हैं जहां प्रति वर्ष हजारों पर्यटक एवं तीर्थयात्री जाते हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ और ऋषिकेश यहां के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल हैं। यह क्षेत्र भगवान शिव की तपोभूमि है। अल्मोड़ा, कश्मीर, नैनीताल, मंसूरी, दार्जिलिंग एवं अनेक अन्य नयनाभिराम स्थानों से यह क्षेत्र परिपूर्ण है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण इस क्षेत्र में बर्फ जमी रहती है और यह वर्षभर बहने वाली अनेक नदियों का उद्गम स्थल भी है। गंगा, यमुना, सरयू, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु नामक नदियों की यह जन्मभूमि है। पवित्र कैलाश पर्वत, मानसरोवर झील एवं अल्मोड़ा जैसे रमणीक स्थल इसी क्षेत्र में हैं।
यह क्षेत्र अनेक प्रकार की कीमती लकड़ी, जड़ी-बूटियां, फल, खाद्य-पदार्थ और जीवन की हजारों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुएं प्रदान करता है। इस क्षेत्र में हिन्दुओं के अतिरिक्त नागा, अका, गारो, मिकिर, अबोट आदि अनेक जनजातियां रहती हैं। इस क्षेत्र में स्थित दरों के द्वारा भारत का विदेशों से सम्पर्क एवं व्यापार होता रहा है, ये भारत के प्रवेश-द्वार हैं।
2) गंगा-सिन्धु का मैदान - हिमालय से लेकर दक्षिणी पठार के बीच का मैदानी भाग उत्तर का बड़ा मैदान कहलाता है जो गंगा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र तथा सतलज नदियों के कारण अत्यधिक उपजाऊ है। यही कारण है कि बाहा आक्रमणकारी इसे अपने अधिकार में करने के लिए लालायित रहे। यह मैदान 2,400 किमी लम्बा और 240 से 320 किमी चौड़ा है और इसका क्षेत्रफल लगभग 3,00,000 वर्गमील है। देश की लगभग 40% जनसंख्या इसी क्षेत्र में निवास करती है और यहां का जन-घनत्व भी ऊंचा है। यह क्षेत्र भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का उद्भव-स्थल एवं बाहा संस्कृतियों का संगम-स्थल रहा है। हरिद्वार, प्रयाग और वाराणसी जैसे पवित्र तीर्थ स्थल यहां स्थित हैं। राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी क्षेत्र में अनेक वैभवशाली साम्राज्यों का उदय हुआ एवं विशाल नगरों की स्थापना हुई। इस क्षेत्र में कृषि की प्रधानता है। यह क्षेत्र भारत की सभ्यता व संस्कृति का उद्गम स्थल रहा है।
3) दक्षिण का पठार - भारत का दक्षिणी भाग प्रायद्वीप है जो एक पठारी प्रदेश है तथा तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। उत्तर के बड़े मैदान से विन्ध्या एवं सतपुड़ा की पर्वतश्रेणियों द्वारा यह भाग अलग हो जाता है। इसका आकार एक त्रिभुज के समान है। यह भाग देश का प्राचीनतम भाग है और अनेक प्रकार की बहुमूल्य धातुओं से परिपूर्ण है। इस क्षेत्र में भी घने जंगल हैं तथा यहां भारत ही नहीं विश्व की प्राचीनतम् जनजातियां जैसे ईरूला, कदार, चेंचू, माला-पान्त्रम, आदि रहती हैं। बहुपति विवाही टोडा एवं कोटा तथा मातृसत्तात्मक नायर भी इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। भारत के मूल निवासी द्रविड़ों का मुख्य निवास यही है, अतः यहां द्रविड़ संस्कृति की प्रधानता पायी जाती है। प्राचीन समय में यहां पल्लव, चोल, चालुक्य, आदि साम्राज्य स्थापित हुए। यह मराठों की भी कर्मभूमि रहा है।
4) राजस्थान का मरुस्थल - गंगा की घाटी के पश्चिम की ओर एक शुष्क रेतीला भाग है, जो थार के मरुस्थल के नाम से जाना जाता है। रेगिस्तान के कारण ही सिन्ध से उत्तर की ओर विदेशियों के आक्रमण विफल होते रहे हैं। सोमनाथ से वापस जाते समय महमूद गजनवी की विजय-वाहिनी इसी मरुभूमि में लगभग लुप्त हो गयी। धरातल में पानी के अभाव और वर्षा की कमी के कारण यह क्षेत्र बहुत कम उपजाऊ है। यह क्षेत्र रणबांकुरे राजपूत राजाओं द्वारा शासित रहा है जो अपनी आन-बान-शान और बलिदान के लिए जगप्रसिद्ध हैं। यहां की जौहर एवं सती प्रथाएं इतिहास में अनूठा उदाहरण पेश करती हैं। यहां के निवासियों की संस्कृति, प्रथाएं, वेश-भूषा एवं खान-पान देश के अन्य भागों से भिन्न हैं तथा यहां की जलवायु में अत्यधिक विषमता पायी जाती है।
5) समुद्रतटीय मैदान - दक्षिणी पठारी प्रदेश के पूरब और पश्चिम में समुद्रतटीय मैदान स्थित है। पश्चिम के समुद्रतटीय भाग को कोंकण तथा मालाबार कहते हैं। यह भाग पूर्वी तट की अपेक्षा कम चौड़ा है। इसकी औसत चौड़ाई 65 किलोमीटर है। पूर्व मैदानी भाग को तमिलनाडु तथा आन्ध्र-उड़ीसा तट भी कहते हैं। पूर्व एवं पश्चिमी समुद्रतटीय प्रदेशों में भारत के प्रसिद्ध बन्दरगाह; जैसे मुम्बई, सूरत, सोपारा, कालीकट, कोच्चि, गोआ, चेन्नई, विशाखापट्टनम आदि स्थित हैं। दक्षिणी पठारी भाग का ढाल पूर्व की ओर होने से दक्षिण की सभी नदियां पूर्वी समुद्र तट से होकर समुद्र में गिरती हैं। अतः अनेक स्थानों पर यह भाग नदियों द्वारा खण्डित कर दिया गया है। समुद्रतटीय बन्दरगाहों ने प्राचीन काल से ही भारत का व्यापारिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक सम्पर्क विभिन्न देशों; जैसे म्यांमार, स्याम, हिन्द-चीन, जावा, सुमात्रा, अरब, ईरान एवं फारस की खाड़ी के प्रदेशों से बनाये रखा है। हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल रामेश्वरम् भी यहीं स्थित है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत की भौगोलिक रचना विविधता लिये हुए है। प्रत्येक भौगोलिक खण्ड की अपनी भाषा, संस्कृति, वेश-भूषा, कृषि, व्यापार आदि से सम्बन्धित विशिष्ट विशेषताएं हैं। भौगोलिक क्षेत्र ने यहां के निवासियों के जीवन और संस्कृति को अत्यधिक प्रभावित किया है ओर उसे विशिष्ट रूप प्रदान किया ले।
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