किसका कथन है कि शक्ति नहीं वरन इच्छा ही राज्य का आधार है? ग्रीन के राज्य सम्बन्धी विचार ग्रीन एक महान् विचारक थे और कथन "शक्ति नहीं, इच्छा राज्य का आध
"शक्ति नहीं, इच्छा राज्य का आधार है।"इस कथन की व्याख्या कीजिए।
किसका कथन है कि शक्ति नहीं वरन इच्छा ही राज्य का आधार है?
थॉमस हिल ग्रीन के राज्य सम्बन्धी विचार ग्रीन एक महान् विचारक थे और कथन "शक्ति नहीं, इच्छा राज्य का आधार है" इन्हीं के द्वारा प्रतिपादित किया गया। थॉमस हिल ग्रीन अंग्रेजी आदर्शवाद का महान् विचारक था। वह प्लेटो, अरस्तू, रूसो, हीगल आदि के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित था।
राज्य का आधार शक्ति नहीं इच्छा है- थॉमस हिल ग्रीन का मत है कि मानव जीवन की अभिव्यक्ति के लिए राज्य अनिवार्य है। उनका मत है कि केवल राज्य की शक्ति ही नागरिकों को राजा की आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य नहीं करती वरन् वे तो अपने अधिकारों की स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए जनहित की भावना से प्रेरित होकर राज्य की आज्ञाओं का पालन करते हैं। इस प्रकार राजाज्ञा मानव इच्छा का आदेश मात्र है किसी बाह्य दबाव के कारण नहीं। ग्रीन राज्य का मानवता की नैतिक संस्था मानता है ग्रीन के अनुसार व्यक्ति की इच्छा दो प्रकार की होती है
- स्वार्थी इच्छा
- नि:स्वार्थी इच्छा
(1) स्वार्थी इच्छा-स्वार्थी इच्छा में व्यक्ति केवल अपने भले अथवा हित के विषय में सोचता है वह दूसरे के हितों का ध्यान नहीं रखता है।
(2) नि:स्वार्थी इच्छा-नि:स्वार्थी इच्छा में सम्पूर्ण समाज की हित पर निहित होता है। इच्छा राज्य का आधार होती है, सामान्य इच्छा सम्पूर्ण समाज की इच्छा पर आधारित होती है इसलिए उसमें प्रत्येक व्यक्ति का हित होता है।
ग्रीन के कथन की पुष्टि-ग्रीन के इस कथन की निम्न आधारों पर पुष्टि की जाती है
- यदि राज्य का आधार शक्ति होता तो सेना तथा पुलिस बल राज्य की आज्ञाओं का पालन न करती।
- यदि राज्य का आधार दण्ड का भय होता तो व्यक्ति स्वेच्छा से राज्य के कानूनों का पालन नहीं करता यह इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि समाज का अधिकांश भाग स्वेच्छा से राज्य के कानूनों का पालन करता है।
- यदि राज्य का आधार शक्ति होता तो यह कभी का समाप्त हो गया होता वस्तुतः शक्ति व राज्य अस्थायी तत्व हैं।
- जिन देशों में राज्य शक्ति पर आधारित होता है। वहाँ शक्ति व निरंकुशता का शासन समाप्त हो गया है। राज्य का आधार इच्छा है शक्ति नहीं। प्रजातन्त्र एवं जनता की प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का समर्थन किया जाता है।
- राज्य के नागरिकों में पाई जाने वाली सहयोग न्याय व ईमानदारी की भावना भी यह स्पष्ट करती है कि राज्य का आधार इच्छा है बल नहीं।
राज्य के कार्यों को समझाइए
थॉमस हिल ग्रीन ग्रीन ने इसके निम्नलिखित राज्य के कार्य बताए, हैं जो इस प्रकार हैं: ग्रीन के अनुसार, व्यक्ति अपने नैतिक विकास की इच्छा ही राज्य का आधार है। उनका मत है कि राज्य का कर्त्तव्य उन सभी परिस्थितियों की व्यवस्था करना है जिनके अन्तर्गत व्यक्ति का नैतिक विकास हो सके परन्तु राज्य आन्तरिक दृष्टि से हस्तक्षेप करके उसे नैतिक होने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। राज्य केवल नैतिक वातावरण की व्यवस्था कर सकता है। ग्रीन ने राज्य के कार्य को दो भागों में विभक्त किया है
- सकारात्मक कार्य
- निषेधात्मक कार्य।
(1) सकारात्मक कार्य - इनके अन्तर्गत राज्य को चाहिए कि वह अपने नागरिकों के विकास के लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था करे। राज्य को मद्य, निषेध लागू करना चाहिए क्योंकि मद्यपान सामान्य इच्छा
और हित के विरुद्ध है। राज्य को अपने क्षेत्र में अज्ञानता और बर्बरता का उन्मूलन करना चाहिए। राज्य का यह भी दायित्व है कि वह व्यक्तिगत सम्पत्ति की सुरक्षा करे क्योंकि व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए सम्पत्ति आवश्यक है। ग्रीन का मत है कि राज्य का कर्त्तव्य है कि स्वतन्त्र व्यापार नीति का अनुसरण करे नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का प्रबन्ध करे और श्रमिकों के हितार्थ कानूनों का निर्माण करे।।
(2) निषेधात्मक कार्य - ग्रीन का यह मत है कि कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें राज्य को नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के कार्यों में एक यह है कि राज्य को चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को नैतिकता के विरुद्ध करने के लिए बाध्य न करे। सकारात्मक कार्यों का भी अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करते हए ग्रीन ने कहा बल राज्य के निषेधात्मक कार्यों पर ही है। वह नकारात्मक कार्यों का समर्थन इसलिए करता है क्योंकि उसका यह विचार है कि राज्य अपने सकारात्मक कार्यों के द्वारा व्यक्ति को नैतिक नहीं बना सकता है क्योंकि नैतिकता ही व्यक्ति की अात्मा का विषय है।
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