समाजीकरण के प्रमुख अभिकरणों की विवेचना कीजिए। परिवार या कुटुम्ब, औपचारिक शिक्षा संस्थाएँ, अनौपचारिक संस्थाएँ, जनसंचार के साधन, राजनीतिक दल।
समाजीकरण के प्रमुख अभिकरणों की विवेचना कीजिए।
- राजनीतिक समाजीकरण के अभिकरण कौन से हैं ?
- राजनीतिक समाजीकरण के स्रोत बताइये।
राजनीतिक समाजीकरण के प्रमुख अभिकरण
- परिवार या कुटुम्ब,
- औपचारिक शिक्षा संस्थाएँ,
- अनौपचारिक संस्थाएँ,
- जनसंचार के साधन,
- राजनीतिक दल।
यह स्वाभाविक ही है कि समाजीकरण की संस्थाओं में सर्वप्रथम स्थान परिवार एवं कुटुम्ब को ही प्राप्त हो सकता है। यहीं से व्यक्ति सन्तोष एवं विरोध की भावनाएँ ग्रहण करता है। आदेश एवं आज्ञा के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करता है। श्रद्धा की भावना ग्रहण करता है, राजनीतिक मूल्यों का निर्माण करता है। रॉबर्ट लेन कुटुम्ब में तीन रीतियों का वर्णन करते हैं जिनके द्वारा एक बच्चा ज्ञान प्राप्त करता है
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सिद्धान्तीकरण।
- बच्चे का एक विशेष सामाजिक परिस्थिति से सम्पर्क।
- बच्चे की मनोवृत्ति का उद्देश्यपूर्ण निर्माण।
व्यक्ति की राजनीतिक शिक्षा में दूसरे स्थान पर औपचारिक शिक्षा संस्थाएँ हैं। अतीत से यह विश्वास किया जाता है कि शिक्षा संस्थाएँ व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार के निर्माण के एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आमण्ड एवं वर्बा यह विश्वास करते हैं कि जितनी अधिक एक व्यक्ति की शिक्षा होगी उतना ही अधिक उसे राजनीतिक ज्ञान होगा और राजनीतिक एवं सरकारी प्रक्रिया को समझ पायेगा तथा राजनीतिक वस्तुओं के सम्बन्ध में उसके उतने ही अधिक विचार होंगे। राजनीति में वह सक्रिय होगा, राजनीतिक क्रियाओं को प्रभावित करने की क्षमता होगी और सामाजिक वातावरण में विश्वास होगा। यही कारण है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उच्च शिक्षा की संस्थाएँ व्यक्ति को राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में परोक्ष अनुभव प्रदान करके विशेष सहायता करती हैं जिसके माध्यम से राजनीतिक पद्धति में वह सरलता से अपना स्थान ग्रहण कर लेता है। यह शिक्षा संस्थाएँ राजनीतिक पद्धति में स्थापित व्यवहारों को स्पष्ट कर देती हैं। मायरन विनर भारत में विश्वविद्यालयों की समाजीकरण की क्रिया में भूमिका का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि "अगर विश्वविद्यालयों के अधिकारी विद्यार्थियों की शिकायतों को दूर करने का सन्तोषजनक मार्ग निकाल लें तो विश्वविद्यालयों में अनुशासनहीनता की समस्या तो दूर हो ही जायेगी, वह देश को ऐसे अभिजन भी देंगे जो पद्धति के स्थायित्व को प्रभावित करेंगे और देश को उन्नति की ओर ले जायेंगे।"
इस राजनीतिक शिक्षा में तीसरा स्थान अनौपचारिक संस्थाओं का है जहाँ व्यक्ति कार्य करता है, मनोरंजन के लिए जाता है या सामूहिक रूप से राजनीतिक क्रियाओं में भाग लेता हैं और चौथा स्थान जन संचार साधनों का है जिनके माध्यम से वह अपने राजनैतिक विचार बनाता है, सूचनाएँ ग्रहण करता है और राजनीति में गतिशील होने का प्रयत्न करता है।
राजनीतिक दल भी समाजीकरण के अभिकरण हैं। सर्व सत्तावादी राज-व्यवस्थाओं के राजनीतिक दलों का प्रमुख कार्य पुरातन मूल्यों एवं मान्यताओं को स्थापित करना होता है। जनतन्त्रात्मक देशों व राजव्यवस्थाओं में यद्यपि राजनीतिक दलों का प्रधान कार्य मतदाताओं को मतदान के प्रति प्रशिक्षित करना है, फिर भी इनमें नए मूल्यों को प्रस्थापित करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। नवोदित राष्ट्रों में राज-संस्कृति के सर्जन एवं परिवर्तन में सामाजिक दलों का बहुत अधिक महत्व है। इन देशों में अन्य संस्थाओं के अविकसित स्वरूप के कारण राजनीतिक दल केवल निर्वाचकीय उपादान ही बनकर नहीं रह जाते हैं बल्कि वे ढेर सारे दूसरे कार्यों का सम्पादन या निष्पादन करते हैं, जैसे जनता एवं शासन के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना, राजनीतिक सूचनाओं का प्रसार करना, विभिन्न समुदायों में एकता स्थापित करना तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसार कर राजनीतिक समाजीकरण के एजेण्ट के रूप में सकारात्मक भूमिका निभाना।
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