सहकारी संघवाद का अर्थ तथा परिभाषा बताइये। सहकारी संघवाद संघीय व्यवस्था का वह प्रारूप है जिसमें संघ व राज्यों के मध्य परस्पर सम्बन्धों का निर्धारण परस्
सहकारी संघवाद का अर्थ तथा परिभाषा बताइये।
- सहकारी संघवाद किसे कहते हैं
- सहकारी संघवाद की परिभाषा बताइये
- सहकारी संघवाद पर निबंध
सहकारी संघवाद का अर्थ
सहकारी संघवाद -सहकारी संघवाद संघीय व्यवस्था का वह प्रारूप है जिसमें संघ व राज्यों के मध्य परस्पर सम्बन्धों का निर्धारण परस्पर सहयोग व समन्वय के आधार पर होता है। उदाहरणास्वरूप भारतीय संघवाद' का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें न तो राज्य कमजोर है और न ही संघ निरंकुश या अत्यधिक शक्तिशाली।
वस्तुतः 'सहकारी संघवाद' के अन्तर्गत 'राज्य-स्वायतता' का 'राष्ट्रीय एकता-अखण्डता' व राष्ट्रीय हितों के अनुकूल उचित सामन्जस्य बैठाने का प्रयास किया जाता है। 'संघवाद' के इस प्रारूप में सामाजिक, आर्थिक विकास के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु 'संघ' व राज्य' दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और परस्पर सहयोग व समन्वय के बिना संवैधानिक उद्देश्यों के अनुरूप विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना सम्भव नहीं हो पाता। उदाहरणार्थ : भारत में राज्यों को केन्द्र अनुदान, सहायता दिया जाना तथा राज्यों द्वारा केन्द्र को राजस्व वसूल कर दिया जाना परस्पर निर्भरता का स्पष्ट उदाहरण है। 'सहकारी संघवाद' ही अपने विकृत रूप में बाजारी संघवाद' कहलाता है।
संघीय संविधान, राष्ट्रीय प्रभुता तथा राज्य-प्रभुता के दावों के बीच, जो ऊपरी दृष्टि से विरोधी जान पड़ती हैं, सामंजस्य पैदा करने का प्रयत्न करता है। संविधान के अन्तरंग में ही कुछ ऐसे उपबन्ध होते हैं जो सामंजस्य के तौर-तरीकों पर प्रकाश डालते हैं। केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों के बीच सामंजस्यपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करने वाली संघ प्रणाली को ‘सहकारी संघवाद’ की संज्ञा दी जाती है। इस व्यवस्था में संघीय सरकार शक्तशाली तो होती है, किन्तु राज्य सरकारें भी अपने क्षेत्रों में कमजोर नहीं होती; साथ ही, दोनों ही सरकारों की एक दूसरे पर निर्भ रता इस व्यवस्था का मुख्य लक्षण होती है।
संघवाद का बुनियादी तत्व है शक्तियों का विभाजन, किन्तु सहकारी संघवाद में शक्तियों के विभाजन के उपरान्त भी केन्द्र एवं राज्यों के बीच अन्तःक्षेत्रीय सहयोग पर बल दिया जाता है। यह सहयोग केन्द्रीय एवं प्रादेशिक सरकारों के बीच ही नहीं अपितु विभिन्न प्रादेशिक सरकारों तथा असंख्य राजनीतिक संस्थाओं के मध्य भी दिखलायी देता है। अमरीका, आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा भारत की संघीय व्यवस्थाओं के अध्ययन से यह तथ्य उभरता है कि संघ व्यवस्था में सहकारिता का लक्षण सन्निहित है। आस्ट्रेलियाई संघ प्रणाली पर विचार करते हुए हम अन्तः प्रान्तीय सम्मेलन, प्रधान मन्त्रियों के सम्मेलन तथा ॠण-परिषद के वाणिज्यिक सम्मेलन का उल्लेख कर सकते हैं। इसी प्रकार कनाडा मे डोमीनियन प्रोविंशियल सम्मेलन, अमरीका में गवर्नरों के सम्मेलन, भारत में राज्यपालों, मुख्य सचिवों तथा क्षेत्रीय परिषदों के सम्मेलन केन्द्रीय तथा प्रादेशिक सरकारों के आपसी सहयोग के माध्यम हैं।
भारत की संवैधानिक व्यवस्था यह मानकर सहकारी संघवाद के आधार पर खड़ी है कि संघ की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारें एक दूसरे पर आश्रित होंगी। उन्हें पुराने संघीय प्रतिमान से सम्बद्ध नियत क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान नहीं की गयी है। संविधान में ही अनेक ऐसे साधन व्यवस्थित किये गये हैं जिनसे विभिन्न राज्य सरकारों में परस्पर तथा केन्द्रीय और राज्य सरकारों में अन्तःक्रिया की प्रक्रिया सम्पन्न हो सके। योजना आयोग, वित्त आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, अन्तःराज्यीय परिषद आदि उच्चस्तरीय स्थायी एवं तदर्थ निकायों की स्थापना की कल्पना की गई है ताकि संघीय और राज्य सरकार के सहयोग से विभिन्न और परस्पर विरोधी हितों मे समाधान किया जा सके।
आज की जटिल परिस्थितियों मे जहाँ एक ओर कई संघों मे स्वायत्तता एवं पृथकता की भावनाएं उभर रही हैं वहाँ पारस्परिकता की आकांक्षा एवं सह-अस्तित्व की भावना ही संघीय व्यवस्थाओं को टूटने से बचा सकती है।
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