राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।

राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए। वर्तमान समय में राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का महत्व बहुत बढ़ गया है। यद्यपि मानव किसी-न-कि

राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।

र्तमान समय में राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का महत्व बहुत बढ़ गया है। यद्यपि मानव किसी-न-किसी रूप से राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना तथा उसका अध्ययन प्रारम्भ से ही करता आ रहा है। अरस्त ने सर्वप्रथम 'राजनीति' को विज्ञान का नाम दिया। अरस्तु के बाद अनेकों विचारकों ने राजनीतिक संस्थाओं एवं व्यवस्था का अध्ययन किया। सिसरो, मैकियावेली, मिल तथा मार्क्स ने राजनीतिक व्यवस्थाओं का सामान्य विश्लेषण किया तथा उनके प्रकारों का वर्गीकरण कर, उनके विकास के स्तरों व विभिन्न अवस्थाओं का विस्तृत अध्ययन किया और प्रचलित व अतीतकालीन राजनीतिक व्यवस्था के विभिन्न रूपों का निरीक्षण व परीक्षण कर राजनीतिक संस्थाओं की व्यवस्था विशेष में श्रेष्ठता व उपयोगिता का उल्लेख किया।

राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियाँ

  1. राजनीतिशास्त्र शक्ति का अध्ययन है
  2. मूल्यों के महत्व में कमी
  3. राजनीतिशास्त्र नीति-निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन है
  4. समस्याओं और संघर्षों का अध्ययन
  5. वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित अध्ययन
  6. व्यावहारिक दृष्टिकोण
  7. सामाजिक संपर्क उन्मुख अध्ययन

(1) राजनीतिशास्त्र शक्ति का अध्ययन है - राजनीति विज्ञान में शक्ति एवं सत्ता के मध्य सम्बन्ध रहता है, इसलिए राजनीतिशास्त्र में मुख्यतः शक्ति का ही अध्ययन होता है। दोनों के विचारों का मुख्य आधार मनोविज्ञान है। कैटलिन ने राज्य के स्थान पर व्यक्ति के राजनीतिक क्रियाकलापों के अध्ययन पर बल दिया है और राजनीति को प्रभुत्व तथा नियन्त्रण (Dominance and Control) के लिए किया जाने वाला संघर्ष माना है। संघर्ष का मूल कारण मानव की यह इच्छा है कि दूसरे लोग उसके अस्तित्व को स्वीकार करें। 1962 में 'सिस्टेमेटिक पॉलिटिक्स' शीर्षक से कैटलिन की पुरानी पुस्तक का जो संशोधित संस्करण निकला, उसमें कैटलिन के विचार अधिक स्पष्ट और परिष्कृत हैं।

कैटलिन ने 'शक्ति' (Power) को इच्छाओं के संघर्ष और नियन्त्रण-प्रक्रिया का आलम्बन मानते हुए सभी राजनीतिक कार्यों की कुँजी बताया है। अपने विचार को स्पष्ट करते हए उसने लिखा है - “समाज में नियन्त्रण जो कुछ करना है, नियन्त्रण भावना के कारण जो भी कार्य किए जाते हैं, नियन्त्रण-भावना पर आधारित सम्बन्धों की इच्छाओं के कारण समाज में जिस ढांचे और जिन इच्छाओं का निर्माण होता है, उन सबसे राजनीतिशास्त्र का सम्बन्ध है।"

लॉसवैल 'शक्ति' की अवधारणा का दूसरा प्रमुख प्रणेता है। उसने शक्ति-सिद्धांत का विश्लेषण करते हुए इसे राजनीतिशास्त्र का मूल माना है और कहा है - “एक अनुभववादी व्यवस्था के रूप में राजनीतिशास्त्र शक्ति की रूप-रचना तथा उपभोग का अध्ययन है।" समाज में कतिपय मूल्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की चेष्टा करता है और इस प्रभाव-चेष्टा में 'शक्ति' का भाव निहित रहता है। इस प्रकार राजनीतिशास्त्र प्रभाव तथा प्रभावी (Influence and Influencial) का अध्ययन है। राजनीति शास्त्र भी अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति एक नीति विज्ञान है और सामाजिक नीति ऐसी होनी चाहिए जिसके द्वारा वे परिस्थितियाँ बनाई जा सकें जिनमें कि समाज के मूल्यों को शक्ति के साथ समायोजित किया जा सके। शक्ति-सम्बन्धी प्रक्रिया सामाजिक प्रक्रिया से भिन्न न होकर सम्पूर्ण सामाजिक प्रक्रिया या राजनीतिक पहलू मात्र है। राजनीति-शास्त्र अमूर्त संस्थाओं या संगठनों का अध्ययन नहीं करता, यह व्यक्ति को उसके पूर्ण रूप में देखता है तथा अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। इसमें व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं हितों के एक पक्ष मात्र को नहीं देखा जाता वरन् उसके समस्त पहलुओं के साथ पूर्ण व्यक्तित्व का अध्ययन किया जाता है। यह उन सभी तत्वों का ज्ञान प्राप्त करता है तथा उनका मूल्यांकन करता है जो नीति सम्बन्धी लक्ष्यों के पूर्ण होने में अवरोध का कार्य करते हैं। वर्तमान राजनीति में शक्ति की राजनीति का अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बन चुका है शक्ति के उत्तरदायित्वपूर्ण प्रयोग एवं अनुत्तरदायित्वपूर्ण प्रयोग के बीच पर्याप्त अन्तर होता है। शक्ति का दुरुपयोग राजनीति के लिये इतना साधारण बन चुका है कि इन दोनों शब्दों को परस्पर मान लिया गया है। श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ वही माना जाता है जो शक्ति को अधिक से अधिक हानिप्रद तरीके से प्रयुक्त कर सके। विश्व के राष्ट्रों को भी शक्ति के आधार पर ही तीन श्रेणियों - महान् शक्तियाँ, मध्य शक्तियाँ और छोटी शक्तियाँ - आदि के आधार पर विभाजित किया गया है।

(2) मूल्यों के महत्व में कमी (A Value Free of Study) - आधुनिक राजनीतिशास्त्र अपने अध्ययन के दृष्टिकोण के मूल्यों को कम महत्व प्रदान करता है। प्रारम्भ में राजनीतिक संस्थाओं तथा उनकी प्रक्रिया का अध्ययन करते समय उनके औचित्य व अनौचित्य पर अधिक बल दिया जाता था, किन्तु आजकल उनकी मूल्य रहित व्याख्या पर अधिक बल दिया जाता है।

मूल्यों के विषय में दो प्रकार के विचारक हैं। कुछ का विचार है कि जब तक राजनीतिक अध्ययन वस्तुगत नहीं होता तब वह वैज्ञानिक तो हो ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में हर सम्भव प्रयास द्वारा उसे वस्तुगत की ओर मोड़ना चाहिये। दूसरी ओर वे विचारक हैं जो इस विश्वास से युक्त हैं कि राजनीतिशास्त्र का अध्ययन मूल्यों से पृथक् हो ही नहीं सकता। इनका कहना है कि एक अध्ययनकर्ता अपने हितों, मूल्यों एवं उत्सुकता के आधार पर ही अध्ययन के विषयों को चुनता है। इस चयन में वह उन्हीं बातों पर स्थान देता है जो कि उसकी दृष्टि में अधि क रुचिकर हैं। इनका यह भी तर्क है कि वस्तुगत विश्लेषण को महत्वपूर्ण मानने वाले भी सत्य के मूल्य की उपयुक्तता में विश्वास करते हैं। यह कहा जाता है कि वस्तुगतता, तटस्थता एवं वैज्ञानिक विकास के लिये क्षमता एवं अवसर कुछ राजनीतिक एवं सामाजिक पूर्व आवश्यकताओं के बिना असम्भव होते हैं। राबर्ट डहल का कहना है कि एक वैज्ञानिक को व्यावहारिक विश्व को अपनी समझ के अनुसार व्याख्या करने के लिये यह पूर्ण आवश्यकता होगी कि सम्बन्धित शासन उसकी परीक्षा की स्वतन्त्रता को सहन करें या कम से कम उसे समर्पित करें।

(3) राजनीतिशास्त्र नीति-निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन है - अनेक आधुनिक लेखकों का आग्रह है कि राजनीतिशास्त्र में अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु नीति-निर्माण प्रक्रिया होना चाहिए। राजनीतिशास्त्र का एक प्रमुख कारण स्पष्टतः नीति-निर्माण कार्य सेसम्बन्धित है। इसमें उन अनेक अभिकरणों और साधनों का अध्ययन किया जाता है जो कि नीति स्थापित करते हैं। इस दष्टि से राजनीतिशास्त्र व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के सभी प्रशासकीय कार्यों तथा मतदाताओं का अध्ययन करता है। इसमें राजनीतिक दलों के संगठन, प्रक्रिया, सरकारी क्रियाओं के विभिन्न परिणामों आदि पर विचार किया जाता है। राज्य की विविध संस्थाएँ क्या नीति अपनाएँ और उन नीतियों को किस प्रकार क्रियान्वित किया जाए, इस सम्बन्ध में राजनीतिशास्त्र विस्तार से विवेचन करता है। नीति-निर्माण-प्रक्रिया के अध्ययन पर आग्रह का विचार निःसन्देह उपयोगी है, तथापि इस दृष्टिकोण में एक बड़ी कमी यह रह जाती है कि बात का पता लगाने का प्रयत्न नहीं किया जाता कि जिस समस्या के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा रहा है, समाज के सन्दर्भ में उसका महत्व छया है और समाज पर क्या प्रतिक्रिया होगी। कुल मिलाकर नीति-निर्माण की प्रक्रिया राजीन का एक सीमित रूप है और केवल उसी के अध्ययन से हम महत्वपूर्ण राजनीति का पालन नहीं कर सकते।

(4) समस्याओं और संघर्षों का अध्ययन - कुछ विद्वानों के मतानुसार राजनीति शास्त्र समस्याओं और संघर्षों का अध्ययन है। समाज में मल्य और साधन सीमित हैं, अतः उनके वितरण के प्रश्न पर विवाद और संघर्ष उत्पन्न होते रहते हैं, मत-वैभिय चलता रहता है। जहाँ कहीं समस्या उत्पन्न होती है, वहीं तनाव की राजनीति शरू हो जाती है। तनाव की यह राजनीति न केवल राजनीति दलों बल्कि विभिन्न व्यक्तियों और समूहों तक फैल जाती है। समाज में जो कुछ उपलब्ध और प्राप्य है, उसके वितरण की समस्याओं को लेकर व्यक्तियों, समूहों, दलों, शासन, सभी क्षेत्रों में अभिनेता राजनीतिक मंच पर उदय और विलीन होते रहते हैं। वितरण सम्बन्धी संघर्ष की राजनीति चलती ही रहती है और उसी आधार पर प्रो० डायक ने सार्वजनिक समस्याओं पर परस्पर विरोधी मतों और इच्छाओं वाले पात्रों के संघर्ष को राजनीति कहा है। पीटर ओडीगार्ड का मत कुछ भिन्न है। तद्नुसार सभी संघर्ष तब तक राजनीति नहीं माने जा सकते जब तक कि उनका उद्देश्य यह न हो कि संघर्ष के बाह्य तत्वों पर नियन्त्रण किया जाए।

(5) वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित अध्ययन (Scientific and Systematic Study) - आधुनिक युग में व्यवस्थित और वैज्ञानिक पद्धति पर बल दिया जाता है, क्योंकि इसमें कार्य-कारण व क्रिया-प्रतिक्रिया का सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है। विश्लेषण के सामान्य नियमों के प्रयोग से परिकल्पनाओं की सत्यता को आँका जाता है और निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिससे विस्तृत सामान्यीकरण प्राप्त किया जा सके। मैक्राडिल तथा ब्राउन के अनुसार, विवरण मात्र से न तो राजनीतिक संस्थाओं की सही प्रकृति समझना सम्भव है और न ही राजनीतिक समस्याओं का समाधान हो सकता है। इसलिये राजनीति का अध्ययन विवरणात्मक के स्थान पर समस्या समाधानात्मक, व्याख्यात्मक अथवा विश्लेषणात्मक ढंग से किया जाने लगा है। नवीन दृष्टिकोण में परिकल्पनायें की जाती हैं, परीक्षण किये जाते हैं और आँकड़ों को एकत्रित कर उनका विश्लेषण विस्तृत सामान्यीकरण करने के उद्देश्य से तुलनात्मक ढंग से किया जाता है। विश्लेषणात्मक मार्ग में एक राजनीतिक व्यवस्था की परिभाषा करने का प्रयत्न करता है। विश्लेषणात्मक पद्धति द्वारा हम परिकल्पनाओं की जाँच कर सकते हैं और जाँच के आधार पर उन परिकल्पनाओं को स्वीकार, संशोधित या खण्डित कर सकते हैं।

(6) व्यावहारिक दृष्टिकोण (Behavioural Approach) - आधुनिक युग में . राजनीति शास्त्र के अध्ययन के लिये नवीन मान्यताओं, नवीन अध्ययन प्रणाली, व्यवहारिक दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं। इन व्यवहारवादी विचारकों में डेविड ईस्टन एवं लासवैल मुख्य हैं। व्यवहारवादी मुख्यतः निम्न बातों पर बल देते हैं -

  1. यह इस बात पर बल देता है कि क्या वास्तव में है ? न कि क्या होना चाहिये: अर्थात् यह परिस्थितियों के यथार्थवादी पहलू पर बल देता है।
  2. राजनीति के अध्ययन में हमें केवल औपचारिक संगठनों का अध्ययन नहीं करना चाहिये, बल्कि उस पर मनुष्य के प्रभाव तथा व्यवहार का अध्ययन करना चाहिये।
  3. अनसंधानात्मक कार्य व्यवस्थित तथा सिद्धांत के घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होना चाहिये।
  4. व्यवहारवादी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि डाटा एकत्रित करने के लिये विश्वसनीय सत्रों का सहारा लेना चाहिए।
  5. इस प्रकार व्यावहारिक समस्याओं के अध्ययन के लिये नये दृष्टिकोण मानव के व्यवहार के अध्ययन पर बल देते हैं।

(7) सामाजिक संपर्क उन्मुख अध्ययन (Social Contact Oriented Study) - आधुनिक दृष्टिकोण रखने वाले लेखकों की धारणा है कि राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन सामाजिक शक्तियों की अन्तःक्रिया के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। इस कारण अब लेखक सामाजिक संस्थाओं, शक्तियों और परम्परागत बन्धनों का भी अध्ययन राजनीतिक दृष्टिकोण से करने लगे हैं। उदाहरण के लिये, 20वीं शताब्दी तक सम्प्रभता की जो परिभाषा दी जाती थी, वह केवल कानूनी ही थी, क्योंकि यह परिभाषा राजनीतिक संस्थाओं की कानूनी व्यवस्था के सन्दर्भ में ही दी जाती थी तथा सामाजिक रीतियों, मान्यताओं, रीति-रिवाज एवं परम्पराओं आदि को व इसके प्रभाव को कोई महत्व नहीं दिया गया है। परन्तु व्यवहार में इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सामाजिक माँगों और दबावों का भी सम्प्रभुता की वास्तविकता पर प्रभाव पड़ता है। इसलिये सम्प्रभुता की यह परिभाषा कि सम्प्रभुता राज्य की सर्वोच्च शक्ति है, उचित प्रतीत नहीं होती, वरन् इसके स्थान पर यह कहना उचित होगा कि सम्प्रभुता राजनीतिक समाज की सर्वोच्च शक्ति और जो राज्य के नागरिकों में निहित रहती है। इसलिये नवीन पद्धति में राजनीतिक प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं को सामाजिक पर्यावरण के सन्दर्भ में ही समझने का प्रयास प्रमुख बन गया है।

" सारांशतः राजनीतिक विज्ञान राज्य, समाज, सरकार और व्यक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों का एक क्रमबद्ध और संश्लिष्ट अध्ययन है। इसमें राज्य और सरकार के साथ ही एक राजनीतिक इकाई के रूप में मानव-जाति का अध्ययन किया जाता है। समकालीन राजनीतिक विचारों (Contemporary Political Thinkers) के अनुसार राजनीतिक प्रक्रिया, राजनीतिक व्यवहार, सामदायिक जीवन के विविध राजनीतिक पक्ष आदि राजनीति विज्ञान की अध्ययन सामग्री हैं। कैटलिन के मतानुसार राजनीतिक विज्ञान का विषय संगठित मानव समाज से सम्बन्धित है, किन्तु मुख्यतः वह सामुदायिक जीवन के राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन करता है। लॉसवैल, मेरियम, मैक्स वेबर, वाटकिन्स, मॉर्गेन्थो आदि विद्वान् शक्ति की राजनीति में केन्द्रीय अवधारणा अथवा संकल्पना मानते हैं। रॉब्सन के अनुसार शक्ति एक ऐसी आधारभूत संकल्पना है जो राजनीति विज्ञान के सभी विभागों को एक सूत्र में पिरो देती है। कुछ समकालीन विचारक अब राजनीति विज्ञान में नीति सम्बन्धी पक्ष पर अधिक बल देने लगे हैं और इसीलिए विगत कुछ काल से नीति निर्धारण की प्रक्रिया विशेष का अध्ययन होने लगा है। प्राचीन और अर्वाचीन परिभाषाओं एवं व्याख्याओं के प्रकाश में व्यापक रूप में राजनीति विज्ञान को हम राज्य और राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन कर सकते हैं।

COMMENTS

Name

10 line essay,445,10 Lines in Gujarati,2,Aapka Bunty,3,Aarti Sangrah,3,Aayog,3,Agyeya,4,Akbar Birbal,1,Antar,170,anuched lekhan,58,article,17,asprishyata,1,Bahu ki Vida,1,Bengali Essays,135,Bengali Letters,20,bengali stories,12,best hindi poem,13,Bhagat ki Gat,2,Bhagwati Charan Varma,3,Bhishma Shahni,6,Bhor ka Tara,1,Biography,141,Biology,88,Boodhi Kaki,1,Buddhapath,2,Chandradhar Sharma Guleri,2,charitra chitran,298,chemistry,1,chhand,1,Chief ki Daawat,3,Chini Feriwala,3,chitralekha,6,Chota jadugar,3,Civics,32,Claim Kahani,2,Countries,10,Dairy Lekhan,1,Daroga Amichand,2,Demography,10,deshbhkati poem,3,Dharmaveer Bharti,10,Dharmveer Bharti,1,Diary Lekhan,8,Do Bailon ki Katha,1,Dushyant Kumar,1,Economics,29,education,1,Eidgah Kahani,5,essay,960,Essay on Animals,3,festival poems,4,French Essays,1,funny hindi poem,1,funny hindi story,3,Gaban,12,Geography,44,German essays,1,Godan,8,grammar,19,gujarati,30,Gujarati Nibandh,214,gujarati patra,20,Guliki Banno,3,Gulli Danda Kahani,1,Haar ki Jeet,2,Harishankar Parsai,2,harm,1,hindi grammar,14,hindi motivational story,2,hindi poem for kids,3,hindi poems,54,hindi rhyms,3,hindi short poems,8,hindi stories with moral,15,History,42,Information,897,Jagdish Chandra Mathur,1,Jahirat Lekhan,1,jainendra Kumar,2,jatak story,1,Jayshankar Prasad,6,Jeep par Sawar Illian,3,jivan parichay,148,Kafan,8,Kahani,31,Kamleshwar,8,kannada,98,Kashinath Singh,2,Kathavastu,33,kavita in hindi,41,Kedarnath Agrawal,1,Khoyi Hui Dishayen,3,kriya,1,Kya Pooja Kya Archan Re Kavita,1,literature,9,long essay,426,Madhur madhur mere deepak jal,1,Mahadevi Varma,7,Mahanagar Ki Maithili,1,Mahashudra,1,Main Haar Gayi,2,Maithilisharan Gupt,1,Majboori Kahani,3,malayalam,139,malayalam essay,112,malayalam letter,10,malayalam speech,36,malayalam words,1,Management,1,Mannu Bhandari,7,Marathi Kathapurti Lekhan,3,Marathi Nibandh,261,Marathi Patra,25,Marathi Samvad,13,marathi vritant lekhan,3,Mohan Rakesh,2,Mohandas Naimishrai,1,Monuments,1,MOTHERS DAY POEM,22,Muhavare,138,Nagarjuna,1,Names,2,Narendra Sharma,1,Nasha Kahani,6,NCERT,27,Neeli Jheel,2,nibandh,963,nursery rhymes,10,odia essay,60,odia letters,86,Panch Parmeshwar,10,panchtantra,26,Parinde Kahani,1,Paryayvachi Shabd,229,patra,241,Physics,2,Poos ki Raat,9,Portuguese Essays,1,pratyay,186,Premchand,65,Punjab,28,Punjabi Essays,72,Punjabi Letters,13,Punjabi Poems,9,Raja Nirbansiya,4,Rajendra yadav,3,Rakh Kahani,2,Ramesh Bakshi,1,Ramvriksh Benipuri,1,Rani Ma ka Chabutra,1,ras,1,Report,6,Roj Kahani,2,Russian Essays,1,Sadgati Kahani,1,samvad lekhan,195,Samvad yojna,1,Samvidhanvad,1,Sandesh Lekhan,3,sangya,1,Sanjeev,2,sanskrit biography,4,Sanskrit Dialogue Writing,5,sanskrit essay,270,sanskrit grammar,157,sanskrit patra,30,Sanskrit Poem,3,sanskrit story,2,Sanskrit words,26,Sara Akash Upanyas,7,Saransh,71,sarvnam,1,Savitri Number 2,2,Shankar Puntambekar,1,Sharad Joshi,3,Sharandata,1,Shatranj Ke Khiladi,1,short essay,65,slogan,3,sociology,8,Solutions,3,spanish essays,1,speech,6,Striling-Pulling,25,Subhadra Kumari Chauhan,1,Subhan Khan,1,Suchana Lekhan,13,Sudarshan,2,Sudha Arora,1,Sukh Kahani,2,suktiparak nibandh,20,Suryakant Tripathi Nirala,1,Swarg aur Prithvi,3,tamil,16,Tasveer Kahani,1,telugu,66,Telugu Stories,65,uddeshya,15,upsarg,67,UPSC Essays,100,Usne Kaha Tha,2,Vinod Rastogi,1,Vipathga,2,visheshan,2,Vrutant lekhan,5,Wahi ki Wahi Baat,1,Wangchoo,2,words,44,Yahi Sach Hai kahani,2,Yashpal,5,Yoddha Kahani,2,Zaheer Qureshi,1,कहानी लेखन,18,कहानी सारांश,56,तेनालीराम,4,नाटक,51,मेरी माँ,7,लोककथा,15,शिकायती पत्र,1,सूचना लेखन,1,हजारी प्रसाद द्विवेदी जी,9,हिंदी कहानी,110,
ltr
item
HindiVyakran: राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
राजनीतिक सिद्धांत की समकालीन प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए। वर्तमान समय में राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का महत्व बहुत बढ़ गया है। यद्यपि मानव किसी-न-कि
HindiVyakran
https://www.hindivyakran.com/2022/02/rajnitik-siddhant-ki-samkalin-pravrittiyon-ka-vivechan-kijiye.html
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/2022/02/rajnitik-siddhant-ki-samkalin-pravrittiyon-ka-vivechan-kijiye.html
true
736603553334411621
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content