राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों का अनुरक्षण और उसमें परिवर्तन किया जाता है। समाजीकरण के माध्यम से व्यक्तियों को रा
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा बताइये।
- राजनीतिक समाजीकरण की अवधारणा को समझाइए।
- राजनीतिक समाजीकरण का निष्कर्ष बताइये।
- राजनीतिक समाजशास्त्र उपागम की व्याख्या कीजिये।
- 'राजनीतिक समाजीकरण' का अर्थ, परिभाषा सहित मूल्यांकन कीजिये।
- राजनीतिक समाजीकरण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ
राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों का अनुरक्षण और उसमें परिवर्तन किया जाता है। समाजीकरण के माध्यम से व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृतियों में शामिल किया जाता है तभी राजनीतिक वस्तुओं के प्रति अभिविन्यास का निर्माण किया जाता है। दूसरे शब्दों में, समाजीकरण उस शिक्षण प्रक्रिया की ओर निर्देश करता है, जिसके द्वारा सुसंचालित राजनीतिक व्यवस्था के लिए स्वीकार्य मानकों और व्यवहारों को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक सम्प्रेषित किया जाता है। राजनीतिक समाजीकरण का उद्देश्य व्यक्तियों का इस तरीके से प्रशिक्षण और विकास करना है कि वे राजनीतिक समुदाय के सुकार्यकारी सदस्य बन सकें।
राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया सामान्यतया आकस्मिक अथवा अदृश्य रूप से कार्य करती है। इसका अर्थ यह है कि यह शान्त और सौम्य रूप से संचालित होती है कि कई बार लोगों को इसके संचालन की खबर भी नहीं होती है।
राजनीतिक समाजीकरण की संकल्पनाओं में प्रधान बल एक पीढ़ी तक राजनीतिक मूल्यों के सम्प्रेषण पर दिया जाता है। किसी सामाजिक अथवा राजनीतिक व्यवस्था की स्थिरता इस तथ्य के कारण इसके सदस्यों के राजनीतिक समाजीकरण पर निर्भर करती है कि एक अच्छा कार्यकारी नागरिक मानकों को अंगीकार कर ले और उन्हें भावी पीढ़ियों को सम्प्रेषित करे। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में नागरिकों को शिक्षित कर इस बात का अभ्यस्त बनाया जाता है कि वे परिवर्तन करने के लिए संवैधानिक उपायों को स्वीकार कर लें, बजाय इसके कि इन मामलों को सड़कों पर ले जायें या हिंसात्मक उथल-पथल की अवस्थाएँ पैदा करें।
सरल शब्दों में कहा जाये तो राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसा विचार है जो राजनीतिक स्थायित्व (Political Stabilization) के लक्ष्य को प्राप्त करने की अपेक्षा करता है। राबर्ट सीगल के शब्दों में, "राजनीतिक समाजीकरण का उद्देश्य ऐसे व्यक्तियों का प्रशिक्षण और विकास करना है जिससे वे राजनीतिक समाज के अच्छे कार्यकारी सदस्य बन सकें। राजनीतिक समाजीकरण व्यक्तियों के मन में मूल्यों, मानकों और अभिविन्यासों का विकास करता है जिसमें राजनीतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास की भावना हो और वे अपने आपको अच्छे कार्यकारी नागरिक के रूप में बनाये रखें तथा अपने उत्तराधिकारियों के मन पर अमिट छाप छोड़ सकें।"
राजनीतिक समाजीकरण की परिभाषा
सीगल के शब्दों में, "राजनीतिक समाजीकरण से अभिप्राय सीख की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रचलित राजनीतिक व्यवस्था द्वारा स्वीकृत राजनीतिक आदर्श एवं व्यवहार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होते हैं।"
लेंगटन के शब्दों में "राजनीतिक समाजीकरण वह तरीका है जिसके द्वारा समाज राजनीतिक संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करता है।"
डेविड ईस्टन के शब्दों में "किसी प्रकार से एक प्रौढ़ पीढ़ी युवा पीढ़ी को अपने जैसे प्रौढ़ प्रतिरूप adult-image) में डालती है यही समाजीकरण है।"
पीटर मर्कल ने राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को एक प्रकार की सामाजिक प्रक्रिया या स्वाभाविक अध्ययन माना है। उनके अनुसार, "किसी राज्य-व्यवस्था के सदस्यों द्वारा राजनीतिक दृष्टिकोण एवं व्यवहार की प्रतिकृति को विकसित करने से सम्बद्ध वैज्ञानिक अध्ययन को राजनीतिक समाजीकरण क अध्ययन कहा जाता है।"
आमण्ड एवं पॉवेल राजनीतिक समाजीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया मानते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति राजनीतिक संस्कृति में प्रवेश करता है। राजनीतिक वस्तुओं के प्रति ज्ञान प्राप्त करता है, अपने प्रतिमानों, अभिकांक्षाओं का निर्माण करता है, अपने व्यवहार की रीति निर्धारित करता है अर्थात् वह राजनीतिक मंस्कृति एवं पद्धति का अंग बनता है, उनका मत है कि यह अवधारणा आधुनिक युग में इसलिए विशेष महत्व रखती है कि इसके माध्यम से राजनीतिक स्थायित्वता एवं विकास को सरलता से समझा जा सकता है। आधुनिक युग में नये गन्यों के उदय के कारणवश, संचार साधनों में निरन्तर विकास के कारणवश, तकनीकी खाजों के परिणामस्वरूप सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्रियाओं पर प्रभाव के कारणवश राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में विशेष स्थान रखती है।
राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया बन जाती है क्योंकि यह नागरिकों के दृष्टिकोण से सम्बन्ध रखती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य आने वाली राजनीतिक पद्धति को मान्य प्रतिमान एवं व्यवहार के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त होता है। यह स्वाभाविक है कि यह ज्ञान आहिस्ता आहिस्ता बिना चेष्टा किये होता रहता है पर ज्ञान प्रयत्नों द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। आमण्ड एवं पविल इस प्रक्रिया को दो भागों में बाँटते हैं-स्पष्ट एवं अस्पष्ट (Manifest and Latent) । इनका मत है कि नागरिक राजनीतिक वस्तुओं के प्रति ज्ञान केवल राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेते समय ही प्राप्त नहीं करने बल्कि उस काल में भी वह ज्ञान प्राप्त करते हैं जबकि वह राजनीतिक प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे होते। प्राय: नागरिकों की राजनीतिक संस्कृति के अधिकांश भाग का निर्माण अप्रत्यक्ष रूप में ही होता है-पर मनुष्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव भी पड़ते हैं जो सम्भवतः उतना ही महत्व रखते हैं, जितना कि अप्रत्यक्ष। सूक्ष्म में, यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नागरिक राजनीतिक पद्धति के उद्देश्यों मानकों और उसके व्यवहार के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करता है। इसी के माध्यम से वह अपने उद्देश्यों माँगों, अभिलाषाओं का निर्माण करता है, अपने व्यवहार की नीति बनाता है अर्थात राजनीतिक संस्कृति में प्रवेश करता है,राजनीतिक पद्धति में अपना स्थान खोजता है और अपना योगदान देता है।
राजनीतिक समाजीकरण का निष्कर्ष
राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया राजनीतिक समाजीकरण से सम्बद्ध अनुसन्धान को संगठित एवं व्यवस्थित करने के यद्यपि अनेक सम्प्रत्यात्मक आधार प्रस्तुत किये गये हैं परन्तु फिर भी आज तक कोई सर्वमान्य प्रारूप विकसित नहीं हो पाया है।
समाजीकरण की प्रक्रिया का सैद्धान्तिक अवधारणा' के रूप में विश्लेषण सर्वप्रथम मनोविज्ञान में एवं तत्पश्चात् समाजशास्त्र में किया गया। राजनीतिक अध्ययन में इसका समावेश बाद की घटना है। मनोविज्ञान में समाजीकरण को शैशवकाल की अर्जनात्मक एवं विकासात्मक प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में विश्लेषण किया गया। फ्रॉयड से लेकर कैरन हॉर्नी, हैरी स्टैक सुलीवान एवं एरिक फ्रॉम के विश्लेषण इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं। समाजशास्त्र में,समाजीकरण को मानसिक प्रक्रिया एवं व्यक्तिगत प्रक्रिया के बजाय एक सामाजिक प्रक्रिया माना गया, जिसे सिर्फ शैशवकाल तक सीमित नहीं समझा गया, अपितु एक जीवन पर्यन्त प्रक्रिया के रूप में विश्लेषित किया गया।
जार्जहरबर्ट मीड से लेकर रॉबर्ट मर्टन,टॉलकट पार्सन्स एवं हौरोविज के विश्लेषण इस सन्दर्भ में स्मरणीय हैं। व्यवहारवादी पार्सन्स एवं मर्टन ने राजनीतिक विश्लेषण को भी महत्वपूर्ण अंश में प्रभावित किया। पार्सन्स ने समाजीकरण को मूल रूप से एक अर्जन की अभिवृत्ति माना, जो सामाजिक-भूमि का वहन के लिए सन्दर्भिक शर्त है। मर्टन ने,समाजीकरण को पूर्ण रूप से मात्र सकारात्मक प्रक्रिया नहीं माना, अपितु 'प्रवेक्षित समाजीकरण' (Anticipatory Socialization) एवं 'अ-समाजीकरण' (ASocialization) की धारणायें विकसित कर, एक नये प्रकार का आयाम जोड़ा जाये।
राजनीतिशास्त्र में, समाजीकरण की अवधारणा में प्रथम व्यवस्थित विश्लेषण का श्रेय हर्बर्ट हाइमैन ने उन सभी सामाजिक प्रतिमानों का अर्जन, राजनीतिक-समाजीकरण माना, जो विभिन्न सामाजिक अभिकरणों की सहायता से, व्यक्ति के लिये सम्भव है।
हाइमैन ने राजनीतिक-समाजीकरण को एक स्वायत्त-प्रक्रिया न मानकर, उसे वृहत् समाजीकरण की एक उप-प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया। गोब्रियल आमण्ड ने राजनीतिक समाजीकरण को राजनीतिक संस्कृति (Political culture) के परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक मूल्य व्यवस्थाओं के प्रेरक (induction) का अपरिहार्य संयन्त्र माना। डेविस ईस्टन ने आर० डी० हैस के साथ, एक अध्ययन में, राजनीतिक समाजीकरण को तीन आधारभूत अभिवृत्तियों-ज्ञान, मूल्य, व्यवस्था एवं मनोवृत्ति-से प्रेरित प्रक्रिया के रूप में समझा। फ्रीमैन के अनुसार, राजनीतिक समाजीकरण, सामान्य समाजीकरण प्रक्रिया का एक निश्चित भाग है, जो राजनीतिक दृष्टि से सान्दर्भिक (Politically relevant) सामाजिक प्रतिमानों के अर्जन से सम्बन्धित है। लीवाइन ने राजनीतिक समाजीकरण को राजनीतिक व्यवस्था के सन्दर्भ में सांस्कृतिक परिवर्तन से सम्बद्ध प्रक्रिया के रूप में विश्लेषित किया।
सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त के समर्थकों (ईस्टन, हेस) ने राजनीतिक समाजीकरणको व्यवस्था के लिए समर्थन प्राप्त करने एवं उसे बनाये रखने का एक माध्यम बताया है। इस दृष्टिकोण में राजनीतिक समाजीकरण के अध्ययन से अभिप्राय राजनीतिक व्यवस्था के प्रत्येक स्तर पर समर्थन सम्बन्धी एवं विघटनकारी प्रभावों की व्याख्या करना है।
संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम के समर्थक विद्वान (पारसन्स, मिचेल, आमण्ड तथा वर्बा आदि) राजनीतिक समाजीकरण को व्यवस्थावादी विचारक के समान ही देखने का प्रयास करते हैं परन्तु समाजीकरण के महत्व की दृष्टि से इनका दृष्टिकोण थोड़ा-सा भिन्न है। ये विचारक राजनीतिक समाजीकरण को व्यवस्था के अस्तित्व को बनाये रखने में महत्वपूर्ण मानने के साथ-साथ इस बात पर भी बल देते हैं कि यह केवल राजनीतिक व्यवस्था के निवेशन (अर्थात् समर्थन, साधनों व माँगों) को ही प्रभावित नहीं करता अपितु इन निवेशनों को निर्णयात्मक निर्गतों में परिवर्तित करने में भी महत्वपूर्ण है।
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