राजनीति शास्त्र के अध्ययन की पर्यवेक्षणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिए। पर्यवेक्षणात्मक पद्धति का उपयोग प्रायः प्राकृतिक विज्ञानों में किया जाता है। इस पद
राजनीति शास्त्र के अध्ययन की पर्यवेक्षणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिए।
राजनीति शास्त्र की निरीक्षणात्मक / पर्यवेक्षणात्मक पद्धति
पर्यवेक्षणात्मक पद्धति का उपयोग प्रायः प्राकृतिक विज्ञानों में किया जाता है। इस पद्धति में घटनाओं का निकटता से पर्यवेक्षण अथवा निरीक्षण किया जाता है तथा उसके पश्चात् तथ्यों का पता लगाया जाता है। राजनीति का विद्यार्थी शासन के कार्यो, मतदाताओं के राजनीतिक व्यवहार, शासकों की क्रिया-प्रतिक्रियाओं को देखकर, उनके भाषण सुनकर तथा लोगों की प्रतिक्रियाएं देखकर, प्रत्यक्ष अनुभव करके परिणाम निकालता है।
लावेल (Lowell) का कथन है कि, “राजनीति पर्यवेक्षणात्मक विज्ञान है. प्रयोगात्मक नहीं। राजनीतिक संस्थाओं की वास्तविक कार्य-विधि का प्रयोगशाला पुस्तकालय नहीं, वरन् राजनीतिक जीवन सम्बन्धी बाहरी संसार है। यह पर्यवेक्षणात्मक पद्धति ही अनुसंधान की सच्ची पद्धति है।"
यह एक प्राचीन ढंग है। सब से प्रथम इसका उपयोग प्लेटो तथा अरस्तू ने किया था। जेम्स ब्राइस ने अपने ग्रन्थों 'अमरीकी राष्ट्रमण्डल' और 'आधनिक लोकतन्त्र' की रचनाओं में इसी पद्धति को अपनाया है। अपने ग्रन्थों की रचना से पहले ब्राइस ने सम्बन्धित देशों का भ्रमण किया, वहाँ के राष्ट्रीय नेताओं से बातें कीं, सरकारों की कार्य-विधि का निरीक्षण किया और तब निष्कर्ष निकाले। ऐसे पर्यवेक्षण तथा निष्कर्षों का सम्बन्ध वास्तविकताओं से होता है।
पर्यवेक्षणात्मक पद्धति की सीमाएँ
यह पद्धति इतनी आसान नहीं है, जितनी दिखाई देती है। सभी शोधकर्ता ब्राइस की तरह इतने साधन सम्पन्न नहीं हो सकते। सभी को वे सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो सकती जो केवल विशिष्ट व्यक्तियों को ही प्राप्त होती हैं। साधारण शोधकर्ता की न तो राजनीतिज्ञों तक पहँच हो सकती है और न ही वे हर शोधकर्ता अथवा राजवैज्ञानिक से बातचीत का अवसर प्राप्त करते हैं। वर्तमान का अध्ययन तो जैसे-तैसे इस पद्धति द्वारा किया जा सकता है, किन्तु अतीत की संस्थाओं का अध्ययन इस पद्धति द्वारा निश्चय ही नहीं किया जा सकता। इसमें एक कठिनाई और है। किसी अन्य देश की संस्कृति विदेशियों की समझ में पूरी तरह आ जाती है, यह कहना गलत है। कितने ही विदेशी विद्वानों ने भारतीय संस्कृति का अध्ययन करके लिखा है, किन्तु क्या उनका यह ओर ले जाना है। उत्तर -व्यवहारवादियों ने पुराने व्यवहारवादियों की कठोरतम यथार्थवादिता को ठकरा कर जीवन के लिए महान उपयोगी मूल्यों को पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न किया है। आधुनिक युग में इसके समर्थक हैं : ब्रट्रैण्ड रसेल, लियो स्ट्रास, डि डुबैनल, वागलिन आदि। उनके अनुसार मानव का ऐन्द्रिक (Sensory) ज्ञान भौतिकवादी, वस्तुपरक और वासनात्मक है। व्यवहारवादी दृष्टिकोण से जिन पद्धतियों को अपना कर जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह यथार्थ भले ही हो, पर अपूर्ण, इन्द्रियपरक, संकुचित तथा अधः पतनोन्मुख ही होगा। इन समस्याओं के हल के लिए उच्चतर ज्ञान की आवश्यकता होती है। व्यवहारवादी क्रान्ति के बाद राजनीति विज्ञान मूल्य-निरपेक्षता की ओर बढ़ चला था तो आर्नल्ड बैश्ट ने इसे बीसवीं शताब्दी के राजनीतिक सिद्धान्त की एक बड़ी ‘दुखान्त घटना' (Tragedy) कहा है। राजनीति और राजनीतिक घटनाएँ सोद्देश्य होती हैं। इनके उद्देश्यों और मूल्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। दार्शनिक दृष्टिकोण द्वारा विविध राजनीतिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, संरचनाओं, संस्थाओं आदि के पीछे छुपे सत्यों, आदर्शों, मूल्यों अथवा उद्देश्यों को देखा जाता है।
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