परंपरागत चिंतन यथार्थ राजनीति के विश्लेषण में असमर्थ सिद्ध हुआ है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए। डेविड ईस्टन ने तर्क दिया कि कार्ल मार्क्स और जॉन स्टुआर
परंपरागत चिंतन यथार्थ राजनीति के विश्लेषण में असमर्थ सिद्ध हुआ है। संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
डेविड ईस्टन ने तर्क दिया कि कार्ल मार्क्स और जॉन स्टुआर्ट मिल के बाद कोई महान् दार्शनिक पैदा नहीं हुआ; अतः पराश्रितों की तरह एक शताब्दी पुराने विचारों के साथ चिपके रहने से क्या फायदा! ईस्टन ने लिखा कि अर्थशास्त्रवेत्ताओं और समाजवैज्ञानिकों ने तो मनुष्यों के यथार्थ व्यवहार का व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया है, परन्तु राजनीति-वैज्ञानिक इस मामले में पिछड़े रहे हैं। इन्होंने फासिज्म (फासिस्टवाद) और कम्युनिज्म (साम्यवाद) के उदय और अस्तित्व की व्याख्या देने के लिये उपयुक्त अनुसंधान-उपकरण भी विकसित नहीं किये हैं। फिर, दूसरे विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान अर्थशास्त्रवेत्ताओं, समाजवैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने तो निर्णयन-प्रक्रिया क्मबपेपवद.पदह च्तवबमेद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई है, परन्तु राजनीति-वैज्ञानिकों को किसी ने पूछा ही नहीं।
अतः ईस्टन ने राजनीति-वैज्ञानिकों को यह सलाह दी कि उन्हें अन्य सामाजिक वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान (Behavioural Political Science) का निर्माण करना चाहिये ताकि उन्हें भी निर्णयन-प्रक्रिया में अपना उपयुक्त स्थान प्राप्त हो सके।
ईस्टन ने तर्क दिया कि परंपरागत राजनीतिक-सिद्धान्त के अन्तर्गत मूल्यों (Values) के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया है, परन्तु आधुनिक राजनीति विज्ञान में मूल्यों के विश्लेषण की कोई जरूरत नहीं है। मूल्य तो व्यक्तिगत या समहगत अधिमान्यताओं (Individual or Group Preferences) का संकेत देते हैं जो किन्हीं विशेष सामाजिक परिस्थितियों में जन्म लेती हैं, और उन्हीं परिस्थितियों के साथ जुड़ी होती हैं। समकालीन समाज अपने लिये उपयुक्त मान्यतायें स्वयं विकसित कर लेगा; राजनीतिक-वैज्ञानिकों को केवल राजनीतिक व्यवहार (Political Behaviour) के क्षेत्र में कार्य-कारण सिद्धान्त (Causal Theory) के निर्माण में अपना योग देना चाहिये।
कुछ भी हो, ईस्टन ने डेढ़ दशक बाद अपना दृष्टिकोण बदल दिया। 1969 में अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन के अध्यक्षीय व्याख्यान के अन्तर्गत ईस्टन ने राजनीति विज्ञान की व्यवहारवादी क्रांति को एक नया मोड़ देते हुए 'उत्तर - व्यवहारवादी क्रांति' (Postbehavioural Revolution) की घोषणा कर दी। वस्तुतः ईस्टन ने राजनीति विज्ञान को एक शुद्ध विज्ञान (Pure Science) से ऊपर उठाकर अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science) का रूप देने की माँग की, और वैज्ञानिक अनुसंधान को समकालीन समाज की विकट समस्याओं के समाधान में लगाने पर बल दिया। मतलब यह है कि अब ईस्टन ने समकालीन समाज पर छाए हुए संकट को पहचाना और उसके निवारण के लिये राजनीति-सिद्धान्त के पुनरुत्थान की आवश्यकता अनुभव की।
संक्षेप में, उत्तर-व्यवहारवाद का आंदोलन है जिसके अन्तर्गत व्यवहारवाद की उपलब्धियों को समेकित करके मानव-मूल्यों (Human Values) के साथ जोड़ा जाता है और मानव जीवन के साध्यों (Ends) की सिद्धि के लिये प्रयुक्त किया जाता है। इसके प्रभाव से आधुनिक सिद्धान्तकारों के मन में परंपरागत राजनीति-चिन्तन के प्रति फिर से अभिरुचि पैदा हो गई है।
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