लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर : लोक प्रशासन का वास्तविक उद्देश्य जन सेवा है। सामान्य परिस्थितियों में जन सेवा तथा किसी विशेष स्थिति में सम्बन्ध
लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में अंतर लोक प्रशासन तथा निजी प्रशासन में प्रमुख अंतर निम्न प्रकार हैं
लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर
- लोक प्रशासन का वास्तविक उद्देश्य जन सेवा है। सामान्य परिस्थितियों में जन सेवा तथा किसी विशेष स्थिति में सम्बन्धित समूहों की स्थिति को लोक प्रशासन को पूर्ण करना पड़ता है। दूसरी ओर निजी प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
- लोक प्रशासन मूलतः सरकारी नियमों-कानूनों का पालन यथाशक्ति से करते हैं। इसी कारण कई अवसरों पर लोक प्रशासन का संचालन करना कठिन प्रतीत होता है। निजी प्रशासन इस प्रकार के बन्धनों से मुक्त होता है हालाँकि कछ बाध्यकारी नियम प्रचलन में जरूर होते हैं परन्त निजी प्रशासन के आन्तरिक लचीलेपन से वे अपने कार्य को सही ढंग से कर सकते हैं।
- लोक प्रशासन में कर्मियों से हुई एक छोटी भूल भी कानून व विधि की दृष्टि से सही नहीं मानी जा सकती है। परन्तु निजी प्रशासन में इस प्रकार की भूल कोई मायने नहीं रखती है।
- लोक प्रशासन में किसी भी प्रकार के पक्षपात तथा भेदभाव होने पर जन-आन्दोलन की संभावना रहती है क्योंकि जनता तथा मीडिया को खोजी नजर इन पर रहती है परन्तु निजी प्रशासन में ये सभी बुराइयाँ बिना किसी रोक-टोक के चलती रहती हैं।
- ऊँचे सरकारी स्तर में लोक प्रशासन अत्यन्त कठिन तथा जटिल होता है। इन स्तरों पर अनेक प्रकार के दबावों तथा अड़चनों का सामना करना पड़ता है। अपने कार्य संचालन में लोक प्रशासन के अधिकारियों को अनेक प्रकार के व्यक्तियों से मिलना पड़ता है तथा विचार-विमर्श करना पड़ता है। इनमें किसी एक विभाग के कार्यों का विस्तार अनेक विभागों तक हो जाता है। इसके विपरीत, अधिकतर निजी प्रशासन सही ढंग से व्यवस्थित होता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप तथा दिशा-निर्देशों के कारण लोक प्रशासन का एक अलग स्वरूप बन जाता है तथा राजनीतिक उसका एक अंग बन जाती है। ऊँचे स्तर पर कार्य करने वाले प्रशासकों को राजनीतिज्ञों के साथ एक संतुलन कायम करना पड़ता है।
- वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में बाजार, निजी प्रशासन के लिए बाध्यकारी होता है।
- राज्य की संवैधानिक संप्रभुता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध के कारण लोक प्रशासन का स्तर, निजी प्रशासन से ऊँचा माना जाता है।
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