जॉन लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धांत का परीक्षण कीजिए। जॉन लॉक के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए समाज की स्थापना होती
जॉन लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धांत का परीक्षण कीजिए।
जॉन लॉक (1632-1704) जॉन-लॉक ने अपने सामाजिक समझौते की व्याख्या निम्न प्रकार की है - जॉन लॉक के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए समाज की स्थापना होती है। व्यक्ति ने अपने समस्त अधिकार समाज को नहीं दिए, बल्कि जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा का भार समाज को सौंपा है। जो कोई इन अधिकारों का उल्लंघन करेगा, समाज उसको दण्ड देगा।" दूसरा समझौता शासक तथा जनता के मध्य हुआ। दूसरे समझौते (राजनीतिक समझौते) के आधार पर सरकार बनाई गई, जिसे कुछ अधिकार सौंपे गए।
मानव स्वभाव और प्राकृतिक अवस्था- जॉन लॉक के विचार से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसमें सदैव ही प्रेम, सहानुभूति, सहयोग और दया की भावनाएँ विद्यमान हैं। मानव स्वभाव की इस सामाजिकता के कारण प्राकृतिक अवस्था संघर्ष की अवस्था नहीं हो सकती थी। वह मनुष्य की ऐसी अवस्था थी कि जहाँ सब समान थे और प्राकृतिक नियमों के अधीन जो उचित समझते थे, करने के लिए स्वतन्त्र थे। प्राकृतिक अवस्था में कुछ प्राकृतिक नियम भी थे जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था और इस प्रकार के प्राकृतिक नियमों में सबसे प्रमुख नियम यह था कि "तुम दूसरों के प्रति वैसा ही बर्ताव करो जिसकी तुम दूसरों से अपने प्रति आशा करते हो" (Do unto others as you want others to do unto you)
इस प्रकार लॉक के अनुसार, मनुष्य का प्राकृतिक जीवन "शत्रुता, नीचता, बलात्कार अथवा मनुष्य के आपसी नाश का जीवन न होकर सुख-शान्ति, आपसी सहयोग और रक्षा का जीवन था।" इस अवस्था में मनुष्य तीन अधिकारों का उपभोग करता था और साथ-ही-साथ दूसरे लोगों के इन अधिकारों का भी सम्मान करता था। तर्कशास्त्र के नियमों के अधीन प्रत्येक मनुष्य जीवन, सम्पत्ति तथा स्वतन्त्रता के अधिकार का उपभोग इस प्रकार करता था कि दूसरों के अधिकारों को आँच न आये। इस प्रकार मनुष्य ऐसी अवस्था में रहता था, जहाँ उसके पास अधिकार भी थे और इसके साथ-साथ वह कर्तव्यों का भी पालन करता था। वह अवस्था नैतिकता और सामाजिकता से पूर्ण थी। डनिंग के अनुसार, 'लॉक द्वारा कल्पित प्राकृतिक अवस्था राज्य से पूर्व की थी, समाज से पूर्व नहीं। यह अवस्था परस्पर पाशविक संघर्ष की अवस्था नहीं थी, इसमें शान्ति और विवेक का आधिक्य था।'
सामाजिक समझौते के कारण - विचारणीय प्रश्न यह है कि व्यक्ति शान्ति, सद्इच्छा और सहयोग की एक स्वर्गिक अवस्था को त्यागने के लिए क्यों तैयार हुए ? इस सम्बन्ध में लॉक ने कहा है कि "यद्यपि प्राकृतिक अवस्था श्रेष्ठ थी, लेकिन इस अवस्था में व्यक्तियों को कुछ ऐसी असुविधाएँ अनुभव हुईं, जिनके कारण व्यक्तियों ने इस अवस्था का त्याग करना ही उचित समझा। इस अवस्था में प्रमुख रूप से तीन असुविधाएँ अनुभव की गयीं-प्रथम, प्राकृतिक नियम स्पष्ट नहीं थे। द्वितीय, इन नियमों की व्याख्या करने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश नहीं थे। तृतीय, इन नियमों को लागू करने के लिए कोई शक्तिशाली सत्ता नहीं थी। इन असुविधाओं को दूर करने के लिए ही राज्य के निर्माण का निश्चय किया गया था।"
समझौता - हॉब्स के सिद्धान्त के अन्तर्गत राज्य का निर्माण करने के लिए केवल एक ही समझौता किया गया है परन्तु लॉक के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि दो समझौते किये गये जिनमें पहला सामाजिक और दूसरा राजनीतिक। पहले समझौते द्वारा प्राकृतिक अवस्था का अन्त करके समाज की स्थापना की गयी। इसमें प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक दूसरे व्यक्ति से समाज की स्थापना और प्राकृतिक अधिकारों को प्राकृतिक नियमों के अनुसार मनवाने के लिए समझौता करता है। इस समझौते के बाद, एक समूह के रूप में व्यक्तियों द्वारा दूसरा समझौता किया गया, जिसे राजनीतिक समझौता कहा जा सकता है। इस समझौते द्वारा पहले समझौते की शर्तों को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सरकार की स्थापना की गयी। यह समझौता एक प्रकार से शासक और शासितों के मध्य है, जिसमें समाज के द्वारा शासक को कानून बनाने, उनकी व्याख्या करने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया जाता है। परन्तु शासक की शक्ति पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया है कि उसके द्वारा निर्मित कानून प्राकृतिक नियमों के अनुकूल और अनुरूप होंगे। इस प्रकार शासक के द्वारा अपने प्रजाजनों के जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की रक्षा की गारण्टी दी गयी है।
नवीन राज्य का स्वरूप-लॉक के समझौता सिद्धान्त के अन्तर्गत सरकार को स्वयं एक लक्ष्य नहीं वरन् लक्ष्य प्राप्ति का साधन मात्र माना गया है और लक्ष्य है शान्ति तथा व्यवस्था स्थापित रखना और जन-कल्याण करना। स्वयं लॉक के शब्दों में, "जनता द्वारा शासक को प्रदत्त कानून निर्माण का अधिकार सर्वोच्च अधिकार है किन्तु यह निरंकुश नहीं है। इसका प्रयोग जनता के हितार्थ ही होना चाहिए जिसके लिए यह प्रदान किया जाता है।" इस प्रकार लॉक इस विचार का प्रतिपादन करता है कि यदि सरकार अपने उद्देश्य में असफल हो जाती है तो समाज को इस प्रकार की सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर उसके स्थान पर दूसरी सरकार स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है। लॉक ने शासक को भी समझौते का एक पक्ष मानकर शासक के अधिकारों को सीमित कर दिया है और इस तरह उसने गौरवपूर्ण क्रान्ति को न्यायोचित ठहराया है तथा सीमित संवैधानिक राजतन्त्र का पक्ष ग्रहण किया है।
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