द्वितीय सदन किसे कहते हैं? द्वितीय सदन का महत्त्व बताइये। राज्यसभा को द्वितीय सदन कहा जाता जोकि भारतीय संसद का उच्च सदन है। लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था
द्वितीय सदन किसे कहते हैं?
राज्यसभा को द्वितीय सदन कहा जाता जोकि भारतीय संसद का उच्च सदन है। लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्थाओं में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की जाती है। इनमें 'द्वितीय सदन' उच्च व विशिष्ट योग्यता प्राप्त व्यक्तियों का सदन होता है। उदाहरणार्थ, भारत में 'राज्य सभा', ब्रिटिश-लार्ड सभा, अमेरिकी सीनेट इत्यादि। विश्व की एक तिहाई संसदें द्विसदनात्मक हैं। उच्च सदन निम्न सदन पर अंकुश लगाने का कार्य करता है। लोकसभा अनेक उपायों से सरकार को नियंत्रित व परिसीमित कर सकती है। संसदीय वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, विविध प्रस्ताव इनमें प्रमुख हैं। यद्यपि राज्य सभा मंत्री परिषद् के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती परन्तु विधेयकों एवं प्रस्तावों पर विचार-विर्मश एवं वाद-विवाद एवं प्रश्नोत्तर के द्वारा राज्य सभा भी मंत्री परिषद् के कार्यों की निगरानी एवं समीक्षा कर सकती है और सरकार को कठिनाइयों में डाल सकती है। यदि राज्य सभा में सरकार का बहुमत नहीं है तो राज्य सभा उसके लिए अनेक प्रकार की अड़चनें एक अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। परन्तु राज्य सभा में किसी प्रस्ताव या विधेयक पर सरकार की पराजय का अर्थ उसका पदत्याग नहीं होता। विधि, निर्माण, वित्त और सरकार पर नियंत्रण ये संसद के परम्परागत कार्य हैं। भारतीय संसद को इनके अतिरिक्त कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य भी सौंपें गये हैं। जिनका निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है-
- संविधान संशोधन
- कुछ उच्च पदाधिकारियों का निर्वाचन
- पदच्युति सम्बन्धी
- अनुमोदन संबंधी
- न्यायिक व्यवस्था संबंधी
इन कार्यों के सम्पादन में दोनों सदनों के अधिकार समान हैं। अर्थात् राज्य सभा भी लोक सभा के साथ-साथ विषयों में बराबर की भागीदार है। दोनों की सहमति से ही ये महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये जा सकते हैं। सदन दूसरे सदन में निर्णय को निषिद्ध कर निरस्त कर सकता है। इस विषयों में राज्य सभा की निर्णयकारी शक्ति दृष्टिगोचर होती है। ये राज्य सभा के प्रभावकारी व शक्तिशाली अंग होने के प्रमाण हैं।
द्वितीय सदन का महत्व
- विधि निर्माण में प्रथम सदन (लोक सदन) की त्रुटियों में सुधार की सम्भावनाएँ 'द्वितीय सदन' के कारण बढ़ जाती हैं।
- मन्त्रिमण्डलीय तानाशाही को रोकने में उपयोगी है।
- उच्च स्तरीय वाद-विवाद व विचार-विनिमय देखने को मिलता है।
- योग्य व प्रतिभावान विशिष्ट व्यक्तियों के ज्ञान का लाभ प्राप्त होता है।
- समाज के विभिन्न वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
- संघात्मक शासन' में संघ की निरंकुशता से राज्यों के हितों की सुरक्षा में सहायक है।
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