सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक तथा मौलिक अधिकारों का रक्षक है स्पष्ट कीजिए. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को यह उत्तरदा
सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक तथा मौलिक अधिकारों का रक्षक है स्पष्ट कीजिए
सर्वोच्च न्यायालय - मौलिक अधिकारों का रक्षक
भारतीय संविधान में नागरिकों को जो मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, उनमें स्वतन्त्रता का अधिकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 30 तथा 32 से 35 के मध्य मूल अधिकारों की व्याख्या की गई है। उपरोक्त अनुच्छेदों के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताओं का उल्लेख किया गया है, जो प्रत्येक नागरिक के व्यक्तित्व के स्वतन्त्र विकास के लिए आवश्यक है। संविधान के इन अनुच्छेदों का अध्ययन करने तथा निवारक निरोध (Preventive Detention) अधिनियम तथा कार्यपालिका एवं संसद द्वारा मूल अधिकारों पर लगाए गये प्रतिबन्धों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय नागरिकों को जो मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, वे अमर्यादित नहीं हैं उन पर कानून द्वारा आरोपित सीमाएँ हैं तथापि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को यह उत्तरदायित्व सौपा गया है कि यदि कोई व्यक्ति संसद अथवा कार्यपालिका द्वारा मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने पर उसकी शरण लेता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करे। यह देखे कि संसद अथवा कार्यपालिका का यह कार्य संविधान की समीक्षाओं के अन्तर्गत है अथवा नहीं। यदि यह कार्य संविधान की समीक्षाओं से बाहर है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे अधिकार से परे घोषित कर सकता है।
अगस्त 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा था कि प्राइवेट संस्थाओं कालेजों में जहाँ प्रोफेशन कोर्सेस की पढ़ाई होती है वहाँ प्रवेश में आरक्षण की व्यवस्था को लागू करना आवश्यक नहीं है। जिस पर राज्य तथा केन्द्र सरकार तथा कछ जन प्रतिनिधियों ने सर्वोच्च न्यायालय की कडी आलोचना की जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख करते हुए यहाँ तक कह डाला कि न्यायालय बन्द कर दीजिए फिर मनमानी करें। जिसे बुद्धिजीवी वर्ग ने बड़ी ही गम्भीरता से लिया है। निश्चित रूप से सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में कार्यरत है।
सर्वोच्च न्यायालय - संविधान का संरक्षक
भारत में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वह संविधान का रक्षक तथा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक भी है। वह संसद द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को अवैध घोषित कर सकता है जो असंवैधानिक हो। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय संविधान की सम्प्रभुता की रक्षा करता है। इसे हम निम्न तथ्यों से समझ सकते हे -
- भारतीय सविधान के अनुसार संविधान की व्याख्या का अंतिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है। अर्थात अगर सविधान के किसी प्रावधान को लेकर कोई विवाद हो तो सुप्रीम कोर्ट जो व्याख्या बताएगा वहीं मान्य होगी।
- यदि कार्यपालिका कोई ऐसा संशोधन करे जो सविधान के किसी भाग को नष्ट करने करे या मूलभूत ढांचे को परिवर्तित करे तो सुप्रीमकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 13, 32 व 226 के अनुसार न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है। यदि उपरोक्त संशोधन संवैधानिक नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट उसे असवेधानिक घोषित करके निरस्त कर सकता है ।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारो की रक्षा करता है। मौलिक अधिकारो का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति अनुच्छेद 32 के तहत सीधा सुप्रीम कोर्ट की शरण ले सकता है और अगर अनुचित हनन हो तो सुप्रीम कोर्ट का यह कर्त्तव्य है की वह उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करे।
- सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले (1923) में आधारभूत ढांचा का सिद्धांत दिया जिसमे उसने कहा कि अनुच्छेद 368 के अनुसार संसद के संशोधन सम्बन्धी अधिकार उसे सविधान की मूल ढाँचे को बदलने कि शक्ति नहीं प्रदान करते। 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा किए 39वे सविधान संशोधन के एक प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था ओर कहा था कि यह प्रावधान संसद कि संशोधन की शक्ति से बाहर है, क्योंकि यह सविधान के मूल आधार पर चोट करता है।
उपरोक्त प्रावधानों के कारण सुप्रीम कोर्ट को संविधान का रक्षक माना गया है।
सम्बंधित प्रश्न :
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