सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये। सम्बन्धित लघु उत्तरीय न्यायिक समीक्षा के अधिकार से ...
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय
- न्यायिक समीक्षा के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
- सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग कैसे करता है ?
- वह अनुच्छेद कौन से हैं, जो न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान करते हैं ?
- न्यायिक समीक्षा के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
- भारत में न्यायिक पुनरावलोकन पर टिप्पणी लिखिये।
- न्यायिक समीक्षा की आलोचना किस आधार पर की जाती है ?
- क्या न्यायालय किसी संसदीय कानून की समीक्षा कर सकता है ?
- न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ बताइये।
न्यायिक समीक्षा के अधिकार से अभिप्राय
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त अनेक अधिकारों में से एक अधिकार न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) का भी अधिकार है, जो अमेरिकी संविधान से प्रभावित है, यद्यपि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय की तुलना में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की यह शक्ति अत्यन्त सीमित है, किन्तु फिर भी इस शक्ति ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय को अत्यधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण बना दिया है।
न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) सर्वोच्च न्यायालय की वह शक्ति है, जिसके आधार पर न्यायालय संसद द्वारा पारित कानूनों एवं सरकार के आदेशों की संवैधानिक वैधता की जांच करता है तथा यदि वे संविधान के प्रतिकूल हैं तो उन्हें अवैध घोषित करता है। सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा पारित कानूनों तथा सरकार द्वारा जारी किये गये आदेशों की वैधता की जांच दो आधार पर करता है.
- संसद ने जो 'कानून' बनाया अथवा सरकार ने जो आदेश जारी किया उसका उसे अधिकार था या नहीं।
- संसद द्वारा बनाया गया कानून तथा सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश कहीं मौलिक अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं करता है।
न्यायिक समीक्षा की न्यायालय की शक्ति
यद्यपि संविधान का कोई भी अनुच्छेद प्रत्यक्ष रूप से सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति नहीं प्रदान करता है, किन्तु अनेक ऐसे अनुच्छेद हैं जो न्यायालय को आंशिक रूप से यह अधिकार प्रदान करते हैं। यह अनुच्छेद निम्न हैं -
- अनुच्छेद 13 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति
- अनुच्छेद 246 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति
- अनच्छेद 32 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति
- अनुच्छेद 131-132 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति
- अनुच्छेद 368 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति
अनुच्छेद 13 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति - अनुच्छेद 13 में कहा गया है कि, 'राज्य ऐसा कोई कानून नहीं बनायेगा जो इस भाग (मौलिक अधिकारों का भाग - 3) द्वारा दिये गये अधिकारों को कम करता है या छीनता हो और इस खंड का उल्लंघन करने वाला कोई भी कानून उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगा।
अनुच्छेद 246 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति - संविधान का अनुच्छेद 246 संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु का वर्णन करता है अर्थात इसमें केन्द्र एवं राज्यों की सरकारों की विधायी सीमा का उल्लेख किया गया है।
अनच्छेद 32 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति - अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार वर्णित है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है वह अपने अधिकार को पनः प्राप्त करने के लिए न्यायालय में याचिका दायर करता है तो न्यायालय यह देखता है कि क्या कोई कानून या आदेश नागरिक के अधिकार का अतिक्रमण करता है।
अनुच्छेद 131-132 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति - संविधान के अनुच्छेद 131 में सर्वोच्च न्यायालय की आरम्भिक अधिकारिता तथा अनुच्छेद 132 संवैधानिक मामले में न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता का उल्लेख किया गया है। स्पष्ट है कि ये दोनों अनुच्छेद सर्वोच्च न्यायालय को केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बनाये गये कानूनों की समीक्षा करने का अधिकार देते हैं।
अनुच्छेद 368 द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति - संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान का संशोधन करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। यदि संसद द्वारा अनुच्छेद 368 में विहित प्रक्रिया का अतिक्रमण करते हुए कोई कानून बनाया जाता है तो न्यायालय ऐसे कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अनुच्छेद 368 भी न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान करता है।
निष्कर्ष - उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि यद्यपि संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की प्रत्यक्षतः न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त नहीं है। किन्तु इस आधार पर न्यायालय की इस शक्ति को एक गौण शक्ति नहीं माना जा सकता। 1787 में लिखे गये अमरीकी संविधान में भी स्पष्ट रूप से न्यायिक समीक्षा के अधिकार का उल्लेख नहीं किया गया था। सर्वप्रथम न्यायमूर्ति मार्शल ने ‘मारबरी बनाम मेडीशन 1803 के वाद में न्यायिक समीक्षा की शक्ति का सृजन किया था और धीरे-धीरे न्यायालय ने इतनी अधिक शक्ति ग्रहण कर ली कि अमेरिकी - न्यायाधीश कहने लगे कि संविधान वही है जो न्यायाधीश कहते हैं।
न्यायिक समीक्षा का महत्व
यद्यपि न्यायिक समीक्षा की शक्ति के कारण भारतीय न्यायपालिका की अनेक आधारों पर कटु आलोचना की गयी है। न्यायिक समीक्षा के महत्व को निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है.
- केन्द्र एवं राज्यों के मध्य समय-समय पर उठने वाले विवादों का समाधान कर सर्वोच्च न्यायालय ने भारत की संघात्मक व्यवस्था को बनाये रखने तथा सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
- नागरिकों के मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं की रक्षा कर सर्वोच्च न्यायालय ने आम जनता के न्यायपालिका के प्रति विश्वास को बनाये रखा है।
- संसद द्वारा बनाये गये असंवैधानिक कानूनों एवं सरकार द्वारा जारी किये अवैधानिक आदेशों को समय-समय पर निरस्त कर न्यायालय ने संविधान की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
- निचली अदालतों द्वारा किये गये अविवेकपूर्ण निर्णयों की समीक्षा कर न्यायालय ने न्याय के उच्च मानदंडों को बनाये रखा है।
सम्बंधित प्रश्न :
- सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- किस आधार पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर महाभियोग लगाया जा सकता है ?
- न्यायिक सक्रियतावाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक तथा मौलिक अधिकारों का रक्षक है स्पष्ट कीजिए
- सामाजिक न्याय क्या है? सामाजिक न्याय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- अनुच्छेद 352 का वर्णन कीजिये तथा इसके प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
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