संघात्मक शासन प्रणाली का अर्थ और विशेषताओं की विवेचना कीजिए संघात्मक शासन एक ऐसी प्रणाली है कि जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक ही प्रभुत्व शक्
संघात्मक शासन प्रणाली का अर्थ और विशेषताओं की विवेचना कीजिए
- संघात्मक शासन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए
- संघात्मक शासन के गुण दोषों की विवेचना कीजिए।
संघात्मक शासन व्यवस्था का अर्थ
जिन राज्यों में संविधान के द्वारा ही केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारों के बीच शक्ति विभाजन कर दिया जाता है और ऐसा प्रबन्ध कर दिया जाता है कि इन दोनों पक्षों में से कोई अकेला इस शक्ति-विभाजन में परिवर्तन न कर सके, उसे संघात्मक शासन कहते हैं |
डॉ. गार्नर कहते हैं कि "संघात्मक शासन एक ऐसी प्रणाली है कि जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक ही प्रभुत्व शक्ति के अधीन होती हैं । ये सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में जिसे संविधान अथवा संसार का कोई कानून निश्चित करता है, सर्वोच्च होती है।"
डायसी का कथन है कि "संघात्मक राज्य, एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ नहीं जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्य के अधिकारों में मेल स्थापित करना है।"
संघात्मक शासन व्यवस्था एकात्मक शासन व्यवस्था के विपरीत है । संघात्मक अंग्रेजी भाषा में फेडरल कहलाता है। फेडरल लैटिन भाषा के शब्द 'फोइडस' से बना है, जिसका तात्पर्य है संधि या समझौता। इस प्रकार संघात्मक शासन कुछ इकाइयों, जिन्हें राज्य कहा जाता है, किसी संधि पर आधारित व्यवस्था है। इस शासन व्यवस्था में केन्द्र के साथ-साथ इकाई राज्यों का बराबरी का महत्व होता है। यह शासन व्यवस्था उन्हीं राज्यों में प्रयुक्त होती है जहाँ भाषा, धर्म, जाति, वर्ग आदि अनेक तरह की भिन्नताएँ होती हैं ।
संघात्मक शासन व्यवस्था की विशेषताएँ
- संघात्मक शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण गुण यह होता है कि इसमें संविधान की सर्वोच्चतम होती है । इसके अभाव में इस शासन व्यवस्था की कल्पना भी नहीं की जा सकती । संविधान सरकार के सभी अगों न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का स्रोत होता है । इन सभी अगों के स्वरूप, संगठन एवं शक्तियों के बारे में संविधान में प्रावधान रहता है । संविधान उनके कार्यक्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण कर देता है और वे उनका उल्लंघन नहीं कर सकते ।
- संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र एवं राज्य इकाइयों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है। . यह विभाजन संविधान के द्वारा किया जाता है । प्रत्येक सरकार अपने-अपने क्षेत्र में सार्वभौम होती है और दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकती ।
- संघ व्यवस्था में संविधान कः लिखित होना अनिवार्य है । संघराज्य स्थापना एक जटिल संविदा होती है, जिसमें संघ में शामिल होने वाली इकाइयाँ कुछ शर्तों पर ही संघ में शामिल होती है। इन शों का लिखित होना अनिवार्य है अन्यथा संविधान की सर्वोपारिता को बनाए रखना सम्भव नहीं होगा ।
- संघ व्यवस्था में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता उनका एक अनिवार्य गुण है । संघीय संविधान में केन्द्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन रहता है । यह विभाजन एक लिखित संविधान द्वारा किया जाता है। अतएव यह आवश्यक है कि इस शक्ति विभाजन को बनाए रखा जाए और केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें एक-दूसरे के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप न करें ।
- संविधान को सर्वोच्चता को बनाये रखने के लिए संविधान का कठोर होना भी आवश्यक है । यदि संघ व्यवस्था में संविधान में परिवर्तन की प्रक्रिया कठोर नहीं होगी तो संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन कर संघ व्यवस्था की भावनाओं की हत्या की जा सकती है ।
संघात्मक शासन व्यवस्था के गुण
- संघ शासन व्यवस्था में छोटे-छोटे राज्यों को पूर्ण सुरक्षा एवं विकास की गारंटी मिलती है । अकेले छोटे राज्य न तो अपने को सुरक्षित रख पाते हैं और न ही आर्थिक उन्नति कर पाते हैं। जब अनेक छोटे-छोटे राज्य मिलकर एक संघ राज्य की स्थापना करते हैं तो वे एक शक्तिशाली राज्य में परिवर्तित हो जाते हैं।
- संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र की तानाशाही का कोई भय नहीं रहता । संविधान द्वारा राज्य की सरकारों की शक्तियों का स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है । केन्द्र इसका अतिक्रमण नहीं कर सकता है ।
- संघ शासन व्यवस्था में जहाँ एक ओर संविधान के द्वारा एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की जाती है वहीं दूसरी ओर इकाइयों को स्थानीय मामलों में पूर्ण स्वतन्त्रता मिलती है । वे अपने मामलों में किसी के भी अधीन नहीं होती । इसके लिए उन्हें संविधान गारंटी मिलती है ।
- संघात्मक शासन व्यवस्था का एक गुण यह भी है कि इसमें राजनीतिक शिक्षा के अधिक अवसर मिलते हैं। चूँकि इस शासन व्यवस्था का आधार विकेन्द्रीकण है अतः इसमें प्रशासनिक कार्यों में अधिकतर लोगों को जुड़ने का मौका मिलता है ।
- संघ शासन विभिन्न भाषा, धर्मों, रंगों, जातियों आदि में उचित सामंजस्य स्थापित कर लेता है और इस प्रकार विजातीय समाज को कुछ इस प्रकार बांधे रखता है जैसे मानों यह सजातीय समाज ही हो। अपनी कार्यप्रणाली ऐसी होती है जिसके कारण सभी विभिन्न वर्गों के मध्य अपनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति विश्वास की भावना का संचार होता है ।
संघात्मक शासन व्यवस्था के दोष
- संघ शासन में राज्यों द्वारा अपने स्वार्थ में संघ का विरोध करने और उससे टूटकर अलग हो जाने का भय बना रहता है जैसे आधुनक पूर्व 'सोवियत संघ' में हुआ ।
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में भी संघ शासन व्यवस्था एक कमजोर शासन व्यतरथा साबित होती है।
- शक्तियों के विभाजन के कारण केन्द्रीय शासन दुर्बल हो जाता है और राज्यों द्वारा संकट उत्पन्न करने पर दृढ़ नीतियों का पालन नहीं कर पाता।
- चूंकि संघात्मक राज्यों में संविधान की सर्वोच्चता होती है और इसको बनाए रखने के लिए इसका कठोर होना अनिवार्य होता है, अतः यह शासन व्यवस्था की आवश्यकताओं के साथ उचित तालमेल नहीं बैठा पाती ।
- इसमें केन्द्र और राज्य की सरकारें अलग-अलग होती हैं । उन पर दोनों ही विधानसभा अलग-अलग होती हैं और शासन के सभी अंग अलग-अलग होते है जिसके कारण खर्च दोहरा हो जाता है।
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