राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित लघु उत्तरीय संविधान में राज्यपाल पद की व्यवस्था क्यों की गयी है ? राज्यपाल की
राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय
- संविधान में राज्यपाल पद की व्यवस्था क्यों की गयी है ?
- राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ?
- राज्यपाल पद की पदावधि बताइये।
- राज्यपाल के लिए कौन-सी योग्यतायें निर्धारित हैं ?
- राज्यपाल की कार्यपालिका शक्तियों पर टिप्पणी कीजिए।
- राज्यपाल की विधायी शक्तियों पर प्रकाश डालिए।
- राज्यपाल की वित्तीय शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
- राज्यपाल की न्यायिक शक्तियों पर टिप्पणी कीजिए।
- राज्यपाल एवं राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति की तुलना कीजिए।
- राज्यपाल की अध्यादेश शक्ति पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- राज्यपाल द्वारा किन पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती है ?
- राज्यपाल राज्य विधानमंडल का अभिन्न अंग है। टिप्पणी कीजिए।
राज्यपाल
भारत में केन्द्र के समान ही राज्यों में भी संसदीय शासन की व्यवस्था की गयी है। फलतः राज्यो में राज्यपाल का वही स्थान है जैसे कि केन्द्र में राष्ट्रपति का होता है। संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल नियुक्त किये जाने की व्यवस्था की गयी है, किन्तु साथ ही एक ही व्यक्ति संविधान के अनुसार एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
राज्य की कार्यपालिका शक्ति (अनुच्छेद 154) उसी प्रकार राज्यपाल में निहित होती है जिस प्रकार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। चूंकि राज्यपाल राज्य का औपचारिक (नाममात्र) का प्रधान होता है, इसलिए वह मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है। मुख्यमंत्री के नेतत्व में राज्य मंत्रिपरिषद उसी प्रकार कार्य करती है जिस प्रकार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद कार्यकारिणी है।
राज्यपाल की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति करता है, इसीलिए राज्यपाल को राष्ट्रपति का अभिकर्ता (Agent) तथा केन्द्रीय सरकार का प्रतिनिधि कहा जाता है।
राज्यपाल की पदावधि
संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्यपाल की पदावधि का उल्लेख किया गया है, जिसके अंतर्गत राज्यपाल पद ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष के लिए नियुक्त किया जाता है, लेकिन राष्ट्रपति 5 वर्ष के पूर्व भी पद से हटा सकता है। संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा। हालांकि 5 वर्ष से पूर्व भी राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा पद त्याग कर सकता है।
राज्यपाल पद के लिए योग्यतायें
संविधान के अनुच्छेद 157 में राज्यपाल पद के लिए कुछ अर्हतायें (योग्यतायें) निर्धारित की गयी हैं, जो निम्न प्रकार हैं -
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- वह केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
- वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
राज्यपाल की शक्तियाँ एवं कार्य
राज्यपाल की शक्तियों एवं कार्यों का अध्ययन निम्नप्रकार किया जा सकता है
- कार्यपालिका शक्तियाँ
- विधायी शक्तियाँ
- वित्तीय शक्तियाँ
- न्यायिक शक्तियाँ
1. कार्यपालिका शक्तियाँ - संविधान के अनुच्छेद 154 के अनुसार, राज्य कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ राज्यपाल में निहित हैं, जिसका प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों एवं उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी न्यायालयों के न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है। वह मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है तथा उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
2. विधायी शक्तियाँ - राज्यपाल राज्य विधानमंडल का उसी प्रकार अभिन्न अंग होता है, जैसे राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है। राज्यपाल को अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्य विधायिका का सत्र बुलाने, सत्रावसान करने तथा विधानसभा को भंग करने का अधिकार प्राप्त है। राज्यपाल की अन्य विधायी शक्ति राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करने के संबंध में है। उसे यह अधिकार है कि वह अपना परामर्श दे, विधेयक पर अपनी स्वीकृति न दे। विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा दे अथवा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित कर दे।
3. वित्तीय शक्तियाँ - राज्यपाल राज्य के वित्त मंत्री के माध्यम से राज्य विधानसभा में वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) पेश कराता है। कोई भी धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बिना राज्य विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
4. न्यायिक शक्तियाँ - राज्यपाल को किसी दोष सिद्ध व्यक्ति के दंड को क्षमा करने, उसका अविलंबन करने, माफ करने या दंड के आदेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण का अधिकार है। राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग उसी सीमा तक कर सकता है. जहाँ तक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।
राज्यपाल को यद्यपि मृत्युदंड को क्षमा करने की शक्ति प्राप्त नहीं है, किन्तु वह निलम्बन, परिहार या लघकरण कर सकता है। राज्यपाल अपने इस अधिकार का प्रयोग उसी स्थिति में कर सकता है जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन न हो। यदि राज्यपाल फिर भी करता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे अवैध घोषित कर सकता है जैसा कि उसने 'के० एम० नानावती बनाम बंबई राज्य, 1961' के वाद में किया था।
निष्कर्ष - उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष होने के नाते राज्यपाल व्यापक शक्तियों का प्रयोग करता है। वास्तव में, अपनी इन शक्तियों के प्रयोग में राज्यपाल राज्य के संवैधानिक अध्यक्ष एवं केन्द्र के अभिकर्ता के रूप में दोहरी भूमिका का निर्वाह करता है।
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