राज्य व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के सम्बन्धों पर टिप्पणी लिखिए। विधि निर्माण एवं नेतृत्व के सम्बन्ध में राज्य व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के सम्बन्
राज्य व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के सम्बन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
- विधि निर्माण एवं नेतृत्व के सम्बन्ध में राज्य व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के सम्बन्धों को बताइये।
- विधानसभा तथा मंत्रिपरिषद दोनों एक-दूसरे को किस प्रकार शक्तिहीन कर सकते हैं ?
राज्य व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के सम्बन्ध
- विधि निर्माण एवं नेतृत्व के सम्बन्ध में
- निरीक्षण एवं नियन्त्रण के सम्बन्ध में
- विधानसभा भंग करने तथा मंत्रिपरिषद को अपदस्थ करने के सम्बन्ध में
विधि निर्माण एवं नेतृत्व, के सम्बन्ध में - मंत्रीगण व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं, वे उसकी बैठकों में भाग लेते हैं। विधि निर्माण सम्बन्धी प्रस्ताव सामान्यतया मंत्रिपरिषद के सदस्यों द्वारा ही प्रस्तुत किए जाते हैं। धन विधेयक तो सम्बन्धित मंत्रियों के अतिरिक्त कोई साधारण सदस्य सदन में नहीं रख सकता। मंत्रिपरिषद के प्रस्तावों विधेयकों और बजट आदि को औपचारिक वाद-विवाद के बाद विधानमण्डल स्वीकार कर लेता है।
निरीक्षण एवं नियन्त्रण - व्यवस्थापिका मंत्रिपरिषद की गतिविधियों और कृत्यों का अनेक प्रकार से निरीक्षण एवं नियन्त्रण करती है। विधानसभा या विधानपरिषद के अध्यक्ष के माध्यम से सदस्यों द्वारा मंत्रियों से शासन की नीतियों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछकर. ध्यानाकर्षण (Call-Attention) तथा स्थगन (Adjournment) प्रस्ताव के माध्यम से मंत्रिपरिषद की आलोचना कर सकते हैं। विधानसभा निम्न साधनों द्वारा मंत्रिपरिषद द्वारा निरीक्षण एवं नियन्त्रण करती है :
- मंत्रियों से प्रश्न व पूरक प्रश्न पूँछकर,
- स्थगन (Adjournment) तथा निन्दा का प्रस्ताव पारित करके,
- मंत्रियों द्वारा रखे गए विधेयक को अस्वीकार करके,
- मंत्रियों द्वारा विरोध के बावजूद भी किसी गैर सरकारी विधेयक तथ्य प्रस्ताव को पारित करके,
- मंत्रियों के वेतन तथा भत्तों में कटौती करके,
- सरकार के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके,
- सरकार द्वारा किसी अनुदान की माँग के सन्दर्भ में कटौती प्रस्ताव को स्वीकृत करके।
विधानसभा भंग करने तथा मंत्रिपरिषद को अपदस्थ करने के सम्बन्ध में - विधानसभा अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके मंत्रिपरिषद को अपदस्थ कर सकती है, परन्तु इसी के समानान्तर विधानसभा को भंग करने के सन्दर्भ में मुख्यमंत्री राज्यपाल को परामर्श दे सकता है और विधानसभा को भंग कराकर नई विधानसभा का गठन चुनाव के द्वारा किया जाता है। प्रत्येक सदस्य चुनाव से घबराता है क्योंकि चुनाव का अर्थ धन तथा समय की बर्वादी तो है ही, इस बात की भी कोई निश्चितता नहीं होती कि वह सदस्य दुबारा चुनाव में जीत ही जाये। अतः सामान्यतया विधानसभा सरकार के विरुद्ध अविश्वास . प्रस्ताव पारित करने से घबराती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होते हैं। दोनों का ही अपना अलग-अलग अस्तित्व और महत्व होता है। दोनों के पास अपनी-अपनी शक्तियाँ होती हैं जिनका वे समय-समय पर प्रयोग भी करते रहते हैं। सामान्यतया मंत्रिपरिषद उसी दल की बनती है जिसका कि सदन में बहुमत होता है, किन्तु जब सदन में किसी एक दल का बहुमत न हो और सदन की स्थिति त्रिशंक हो, तथा एक से अधिक दलों से मिलकर सरकार तथा मंत्रिपरिषद का निर्माण हआ हो तब व्यवस्थापिका की स्थिति शक्तियों एवं अधिकार महत्वपूर्ण हो जाते हैं, किन्तु सामान्य स्थिति में जबकि एक दल का बहुमत हो तो मंत्रिपरिषद ही व्यवस्थापिका का नेतृत्व करती है।
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