राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के परम्परागत स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य-तीनों का अध्य
राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के परम्परागत स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
राज्य का सर्वांगीण और सर्वकालीन अध्ययन
राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य-तीनों का अध्ययन किया जाता है। सभी राजनीतिक संस्थाएँ क्रमिक विकास का परिणाम हैं। राज्य का वर्तमान स्वरूप ऐतिहासिक विकास की उपज है। राजनीति शास्त्र राज्य की उत्पत्ति, राज्य की वर्तमान स्थिति तक पहुँचाने की विभिन्न अवस्थाओं, विभिन्न युगों और देशों के राज्य तथा शासन के स्वरूपों के विकास आदि का अध्ययन करता है। राजनीतिक विचारधारा (Political Thought) के विकास, राजनीतिक विकास (Political Development) के सिद्धान्त और नियम भी राजनीतिशास्त्र की विषय-सामग्री हैं। राज्य का वर्तमान स्वरूप, संगठन, औचित्य, उद्देश्य, कार्यक्षेत्र आदि भी राजनीति शास्त्र की अध्ययन सामग्री है। यह शास्त्र राज्य के भावी स्वरूप का भी अध्ययन और विश्लेषण करता है। राज्य के तात्कालिक स्वरूप और संगठन से मनुष्य की तृप्ति नहीं होती। अतः प्रारम्भ से ही वह आदर्श राज्य का स्वप्न लेता रहा है। प्लेटो, अरस्तू, मूर आदि ने आदर्श राज्य का चित्र खींचा और वर्तमान विचारक भी राज्य के स्वरूप, उद्देश्य तथा कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में अनेक नवीन विचार हमारे सम्मुख प्रस्तुत करते रहे हैं।
सरकार का अध्ययन - सरकार वह उपकरण है जो राज्य के स्वरूप की क्रियात्मक अभिव्यक्ति करता है। राजनीतिशास्त्र में सरकार के विभिन्न अंगों, उनके संगठन, कार्यक्षेत्र, उन अंगों में पारस्परिक सम्बन्ध, राजनीतिक दल, जनमत, स्थानीय शासन आदि का विशेष अध्ययन किया जाता है।
मनुष्य, अन्तर्राष्ट्रीय विधि आदि का अध्ययन - राजनीतिशास्त्र राज्य और सरकार के सर्वागीण अध्ययन के साथ मानव तत्व और आधुनिक वातावरण का भी अध्ययन करता है। यह मानव अधिकारों, राज्य के प्रति उसके कर्तव्यों, व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर प्रकाश डालता है। व्यक्ति के वे क्रियाकलापों जिनका सम्बन्ध राज्य और शास्त्र से है, इस शास्त्र की अध्ययन सामग्री है। इसके अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय विधि और सम्बन्धों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा आदि का अध्ययन भी सम्मिलित है।
राज्य के विषय-क्षेत्र के बारे में उपरोक्त विचार परम्परागत रूप में चले आ रहे हैं। इन्हें सुगठित रूप में व्यक्त करते हुए प्रो० फेयरली ने लिखा है - "राजनीति-शास्त्र राज्य के अन्तर्गत शासन और कानून की अधीनता में संगठित, मानव-जीवन से सम्बन्धित हैं। इसमें राज्यों के संगठन, उनके क्रिया-कलापों, राजनीतिक संगठनों और क्रियाओं से सम्बन्धित सिद्धान्तों तथा विचारों का अध्ययन किया जाता है। यह राजनीतिक सत्ता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के सामञ्जस्य की समस्या पर विचार करता है। राज्य द्वारा नियन्त्रित मनुष्यों के आपसी सम्बन्धों और मनुष्य तथा राज्य के सम्बन्धों पर यह प्रकाश डालता है। जिन अभिकरणों द्वारा राज्य के कार्यों का निर्धारण, अभिव्यंजन और क्रियान्वयन होता है, उनके बीच शासन-सत्ता का विभाजन होता है, उनका भी और राष्ट्रीय जीवन की समस्या का भी इसमें अध्ययन होता है।" 1948 में यूनेस्को के एक सम्मेलन में राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र पर विचार किया गया था। तद्नुसार राजनीतिशास्त्र का विषय-क्षेत्र मोटे रूप में चार शाखाओं में विभाजनीय है -
- राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory) - इसमें राजनीतिक विचारों का इतिहास तथा राजनीतिक सिद्धान्त या विचारधारा सम्मिलित है।
- राजनीतिक संस्थाएँ (Political Institutions) - इसमें संविधान, राष्ट्रीय सरकार, लोक शासन, सरकार के सामाजिक एवं आर्थिक कार्य. राजनीतिक संस्थाएँ आदि शामिल हैं।
- राजनीतिक दल (Political Parties) - इसमें राजनीतिक दलों, समुदाय, जनमत, सरकार एवं प्रशासन में जनता के योगदान आदि का अध्ययन निहित है।
- अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (International Relations)- इसमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय प्रशासन तथा अन्तर्राष्ट्रीय विधि सम्मिलित हैं।
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