अस्तित्ववादी विचारधारा की प्रमुख विशेषताएं बताइए। अस्तित्ववाद के प्रमुख लक्षण / आधार बताइए। अस्तित्ववाद की पांच विशेषताएं लिखिए। अस्तित्ववादी विचारक स
अस्तित्ववादी विचारधारा की प्रमुख विशेषताएं बताइए।
- अस्तित्ववाद के प्रमुख लक्षण / आधार बताइए।
- अस्तित्ववाद की पांच विशेषताएं लिखिए।
अस्तित्ववाद की प्रमुख विशेषताएं
- व्यक्ति की प्रमुखता
- व्यक्ति की यान्त्रिक व्याख्या का विरोध
- अलगाव तथा निराशा में अस्तित्व की खोज
- मानवतावादी दर्शन
- व्यक्ति को अन्तर्विरोधों से युक्त मानना
व्यक्ति की प्रमुखता - अस्तित्ववादी विचारक समग्र जगत से सम्बन्धित वैचारिक व्यवस्था के केन्द्र व्यक्ति के अस्तित्व को समझने का प्रयास करते हैं। उनके लिए व्यक्ति का अस्तित्व प्रमुख है। विचारों से उसे समझना अपर्याप्त होता है, क्योंकि उसे विचारों में नहीं बाँधा जा सकता है। कर्म तथा चयन का महत्त्व उसके कर्ता की दृष्टि से आँका जाना चाहिए न कि पर्यवेक्षक की दृष्टि से है।
अस्तित्ववादी के अनुसार, सार अथवा तत्व तथा अस्तित्व के मध्य विधेयक रेखा खींची जानी चाहिए जबकि सार या तत्त्व वस्तओं के शद्ध रूप को दर्शाता है जिस पर अमूत ढग स विचार किया जा सकता है। अस्तित्व का सम्बन्ध मानव के वास्तविक व्यवहार अथवा अनुभव अर्थात ठोस परिघटना से है।
व्यक्ति की यान्त्रिक व्याख्या का विरोध - अस्तित्ववाद की एक विशेषता यह है कि यह उन सभी सिद्धांतों का विरोध तथा खण्डन करता है जो मनुष्य को एक वस्तु मानते है तथा मनुष्य को व्यावहारिक रूप से कुछ क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का योग मानते हैं। दार्शनिक क्षेत्र में अस्तित्ववाद व्यक्ति की यान्त्रिकी अथवा मेकेनिकल तथा प्रकृतिवादी अथवा नेचुरलिस्टिक व्याख्या स्वीकार नहीं करता। सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से अस्तित्ववाद सामाजिक संगठन के सभी प्रतिमानों का विरोध करता है जिसमें सार्वजनिक मनोवृत्ति व्यक्ति की स्वतः स्फूर्ति अथवा अद्वितीयता ही उसकी स्वतन्त्रता का एकमात्र लक्षण है। सामाजिक संगठन चाहे पूँजीवादी हो, प्रजातन्त्रात्मक हो अथवा तानाशाही हो, सभी में ही सार्वजनिक संगठन चाहे मनोवृत्ति अथवा सामूहिक मन व्यक्ति को स्वचालित अनुरूपता हेतु विवश कर देता है तथा व्यक्ति की स्वतः स्फूर्ति तथा अद्वितीयता नष्ट हो जाती है।
अलगाव तथा निराशा में अस्तित्व की खोज - अस्तित्ववाद के उद्भव का कारण है व्यक्ति के मन में व्याप्त निराशा तथा कुण्ठा जिससे वह अपने आपको समाज तथा राज्य व्यवस्था से विछिन्न महसूस करता है।
मानवतावादी दर्शन - अस्तित्ववाद मानवतावादी दर्शन है। अस्तित्ववादियों ने मानव की स्थिति में से ही मानव के मूल्यों को खोज निकालने का प्रयत्न किया है। इसका ध्येय प्रत्येक व्यक्ति में यह चेतना जाग्रत करना है कि वह क्या है उसके अस्तित्व के क्या उत्तरदायित्व है।
व्यक्ति को अन्तर्विरोधों से युक्त मानना - अस्तित्ववाद व्यक्ति को अनेकार्थक भानता है, मानव परिस्थितियों को वह तनावों तथा अन्तर्विरोधों से भरपूर मानता है, इन अन्तर्विरोधों को विज्ञान, तर्क, दर्शन, व्यवस्थित चिन्तन आदि से दूर नहीं किया जा सकता।
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