परम्परागत राजनीतिक सिद्धांत की आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत से तुलना कीजिए। परम्परावादी एवं आधुनिक राजनीति सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए। परम्परावादी एवं
परम्परागत राजनीतिक सिद्धांत की आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत से तुलना कीजिए।
- परम्परावादी एवं आधुनिक राजनीति सिद्धांत में अंतर स्पष्ट कीजिए।
- परम्परावादी एवं आधुनिक राजनीति सिद्धांत में अंतर की व्याख्या कीजिए।
परम्परागत तथा आधुनिक राजनीति विज्ञान में अंतर
- विषय-वस्त के संबंध में अन्तर
- क्षेत्र के संबंध में अंतर
- मूल्यों के संबंध में अंतर
- उद्देश्यों के संबंध में अंतर
- प्रकृति में अन्तर
- पद्धतियों तथा दृष्टिकोणों में अंतर
विषय-वस्त के संबंध में अंतर - परम्परावादी राजनीति वैज्ञानिक और आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक, राजनीति विज्ञान की परिभाषा एवं विषय-वस्तु के संबंध में एक-दूसरे से असहमत हैं। जहाँ तक परम्परागत राजनीति-शास्त्र में राज्य तथा उसकी सरकार को ही राजनीति-शास्त्र की विषय-वस्तु माना जाता रहा है वहीं दूसरी तरफ आधुनिक राजनीति विज्ञान में मनुष्य के समस्त राजनीतिक व्यवहार को राजनीति विज्ञान के अध्ययन का विषय-वस्तु स्वीकार किया जाता है। कुछ आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक राजनीति विज्ञान को शक्ति और सत्ता का विज्ञान (Science of Power and Authority) भी मानते हैं।
क्षेत्र के संबंध में अंतर - परम्परावादियों और आधुनिक राजनीति वैज्ञानिकों में राज्य के क्षेत्र के संबंध में भी परस्पर अन्तर पाया जाता है। परम्परागत राजनीति-शास्त्र में राजनीतिक संस्थाओं विशेषकर राज्य, सरकार, कानून आदि कानूनी तथा ऐतिहासिक अध्ययन पर ही बल दिया जाता है। इन संस्थाओं के भूतकालीन (Past), वर्तमान (Present) तथा भविष्य (Future) के स्वरूप के अध्ययन को ही राजनीति-शास्त्र की मुख्य अभिरुचि माना जाता है। दूसरे शब्दों में, हम यूं भी कह सकते हैं कि परम्परावादियों द्वारा सम्पूर्ण अध्ययन संस्थाओं के रूप में किया जाता है। आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक संस्थाओं (Institutions) का नहीं बल्कि प्रक्रियाओं ;तवबमे मेद्ध का अध्ययन भी करते हैं। अब आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक विधानपालिका (Legislature) का अध्ययन करने के स्थान पर इस बात का अध्ययन करते हैं कि कानून कौन बनाता है, कानून बनाने का निर्णय कौन लेता है, कानून बनाने की असली प्रक्रिया क्या है अर्थात राजनीतिक अध्ययन में मनुष्य के सभी राजनीतिक समूहों, संगठनों, हित समूहों तथा सभी औपचारिक तथा अनौपचारिक राजनीतिक संगठनों के कार्यों का अध्ययन शामिल है।
मूल्यों के संबंध में अंतर - परम्परावादी और आधुनिक राजनीति में एक और अन्तर मूल्यों के संबंध में है। परम्परागत राजनीतिक अध्ययन में मूल्यों के अध्ययन को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस विचार को रखने वालों का विश्वास है कि आदर्शों, श्रेष्ठता, नैतिकता तथा मूल्यों के अध्ययन को राजनीतिक अध्ययन में विशेष स्थान प्राप्त है। दूसरी ओर, व्यवहारवादियों ने मूल्य-तटस्थता (Value-Neutrality) का दावा किया। उन्होंने राजनीतिक अध्ययन में सच्चाई तक पहुँचने के लिए केवल तथ्यों (Facts) के अध्ययन को ही जरूरी माना है। दूसरे शब्दों में, व्यवहारवादी राजनीति वैज्ञानिकों ने मूल्यों के अध्ययन को कोई स्थान नहीं देना चाहा। लेकिन अब फिर वर्तमान समय (उत्तर-व्यवहारवाद) में अधिकतर राजनीतिक वैज्ञानिक तथ्यों (Facts) के साथ-साथ मूल्यों (Values) के अध्ययन को भी राजनीतिक अध्ययन में स्वीकार करने लग पड़े हैं।
उद्देश्यों के संबंध में अंतर - उद्देश्यों के संबंध में परम्परागत तथा आधुनिक राजनीति में काफी महत्वपूर्ण अन्तर पाया जाता है। परम्परागत राजनीति वैज्ञानिक इस विचार को मानते हैं कि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन प्रदान करना है तथा व्यक्ति के श्रेष्ठ जीवन के लिये श्रेष्ठ राजनीतिक संस्थाओं का संगठन करना है। लेकिन आधनिक राजनीति वैज्ञानिकों के अनुसार राजनीति विज्ञान का उद्देश्य मनुष्य की राजनीतिक क्रियाओं का स्पष्ट तथा सच्चा अध्ययन करना ही है। लेकिन फिर आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक (उत्तर व्यवहारवादी) राजनीतिक अध्ययन में मनुष्य के विरोधों की हल करने की प्रक्रिया को भी शामिल करते हैं।
प्रकृति में अन्तर - राजनीति विज्ञान की प्रकृति के संबंध में भी दोनों में अन्तर है। परम्परागत राजनीति-शास्त्र में विभिन्न विचारक राजनीति विज्ञान की प्रकृति के संबंध में एकमत नहीं थे। प्राचीन काल में कुछ विचारक राजनीति विज्ञान को कला और कुछ इसे विज्ञान ही मानते थे। इतना ही नहीं, ऐसे विचारकों की भी संख्या कम नहीं थी जो राजनीति विज्ञान को एक कला और विज्ञान भी मानते थे। आधुनिक राजनीति विज्ञान का प्रयास राजनीति को एक विशद्ध विज्ञान बनाना है। व्यवहारवादी इस बात पर भी बल देते हैं कि राजनीति विज्ञान में भी दसरे प्राकतिक विज्ञानों की तरह बिल्कुल सही सिद्धांत बनाए जाने चाहिएँ, बिल्कुल सही निष्कर्ष निकालने चाहिए और बिल्कुल सही भविष्यवाणियां की जानी चाहिएं।
पद्धतियों तथा दृष्टिकोणों में अंतर - परम्परावादी राजनीति-शास्त्र में अध्ययन की जिन पद्धतियों का सहारा लिया जाता है, वे एकदम परानी हैं। परम्परागत राजनीति विज्ञान में दार्शनिक पद्धति (Philosophical Method), कानूनी पद्धति (Legal Approach), ऐतिहासिक पद्धति (Historical Approach), तुलनात्मक पद्धति (Comparative Approach) तथा पर्यवेक्षण पद्धति (Observative Approach) के आधार पर अध्ययन किया जाता है। परन्तु अब स्थिति नया रूप धारण कर चुकी है। आधुनिक राजनीति विज्ञान के व्यवहारवादियों ने वैज्ञानिक (Scientific) पद्धति पर बल दिया है।
व्यवहारवादी क्रान्ति के बाद कई नई पद्धतियों का विकास हुआ है, जैसे व्यवस्था प्रणाली, निर्णय-निर्माण प्रणाली, समूह प्रणाली, शक्ति दृष्टिकोण, संचारण प्रणाली आदि-आदि। इन सब प्रणालियों के आधार पर वर्तमान समय में राजनीति वैज्ञानिकों ने राजनीति के विभिन्न पहलुओं का गहन रूप में अध्ययन किया है।
इस विश्लेषण के बाद हमें पता चलता है कि परम्परागत तथा आधुनिक राजनीति विज्ञान में महत्वपूर्ण अन्तर होते हैं। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं लेना चाहिए कि दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि दोनों परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान, परस्पर पूरक हैं। आधुनिक राजनीति विज्ञान, परम्परागत राजनीति-शास्त्र की गतिशीलता तथा विकास का ही परिणाम है।
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