भारतीय संसद किस प्रकार मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण स्थापित करती हैं? मन्त्रिपरिषद् अत्यन्त प्रभावशाली होती है किन्तु संसद (लोकसभा) उसकी स्वच्छन्दता पर कई
भारतीय संसद किस प्रकार मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण स्थापित करती हैं?
उत्तर - भारतीय संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत निम्न सदन अर्थात लोकसभा जिसे लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है, का गठन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति के आधार पर चुने गये जनप्रतिनिधियों जिन्हें लोकसभा सदस्य अथवा सांसद कहा जाता है, से किया जाता है। चूंकि भारत में बहुदलीय प्रणाली है अतः यह सदस्य जनता के (निर्वाचन क्षेत्र के आधार पर) प्रतिनिधि और संसद सदस्य होने के साथ-साथ अपने दल के भी सदस्य होते हैं। लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में जिसे बहुमत प्राप्त होता है सत्ता में उसी की भागीदारी होती है। अतः लोकसभा में जिस दल के सदस्यों को बहुमत प्राप्त होता या जो दल लोकसभा में बहुमत प्राप्त होने का दावा प्रस्तुत करता है माननीय राष्ट्रपति इस दल के नेता (जिसे उस दल के लोकसभा सदस्य चुनते हैं) को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करके सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 में कहा गया है कि राष्ट्रपति को उनके कार्यों के सम्पादन में सहायता देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख प्रधामन्त्री होगा। प्रधामन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति उनको पद तथा गोपनीयता का शपथ दिलाकर करते हैं।
जहाँ तक मन्त्रिपरिषद की शक्तियों का प्रश्न है तो इस क्षेत्र में उसे कई महत्वपूर्ण अधिकार एवं शक्तियाँ प्राप्त हैं। मन्त्रिपरिषद ही सरकारी नीतियों को कार्यान्वित एवं निर्धारित करती है। राष्ट्रपति के अधिकारों का प्रयोग व्यावहारिक रूप से मन्त्रिपरिषद ही करती है। अध्यादेश जारी करने का अधिकार सैद्धान्तिक रूप से तो राष्ट्रपति का है किन्तु व्यावहारिक रूप से इसका प्रयोग मन्त्रिमण्डल ही करता है। देश की आर्थिक नीति निर्धारण, बजट निर्माण तथा इसे प्रस्तुत करने का दायित्व भी मन्त्रिपरिषद का ही होता है। मन्त्रिपरिषद ही देश के वैदेशिक सम्बन्धों पर नियंत्रण रखती है। विदेशों से किसी प्रकार की सन्धि या समझौता प्रधानमन्त्री, विदेशमन्त्री या मन्त्रिमण्डल के कोई मन्त्री के द्वारा ही किया जाता है जिसकी जानकारी यद्यपि राष्ट्रपति तथा संसद को दी जाती है। राज्यों के राज्यपालों की नियक्ति. उच्च न्ययालय तथा उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति, महाधिवक्ता, महालेखापरीक्षक तथा सेना के सेनाध्यक्षों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह से ही करते हैं।
संसद / लोकसभा द्वारा मन्त्रिपरिषद पर नियंत्रण
भारत की राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना की गयी है। संसदीय शासन व्यवस्था में संघीय कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद संसद के प्रति विशेषतः लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। मन्त्रिपरिषद केवल उसी समय तक अपने पद पर रह सकती है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। लोकसभा में बहुमत दल की सरकार होने के कारण यद्यपि मन्त्रिपरिषद् अत्यन्त प्रभावशाली होती है किन्तु संसद (लोकसभा) उसकी स्वच्छन्दता पर कई प्रकार से नियंत्रण स्थापित करती है।
- संसद/लोकसभा के सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीतियों के सम्बन्ध में व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न व पूरक प्रश्न कर तथा उनकी आलोचना करके लोकसभा का नियंत्रण स्थापित करते हैं।
- संसद सरकारी विधेयक को अस्वीकार करके मन्त्रिपरिषद पर नियंत्रण स्थापित करती है।
- संसद मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके नियंत्रण स्थापित करने का कार्य करती है।
- संसद / लोकसभा किसी सरकारी विधेयक में कोई ऐसा संसोधन करके जिससे सरकार सहमत नहीं, अपना विरोध जताकर मन्त्रिपरिषद पर नियंत्रण करती है।
- संसद काम रोको प्रस्ताव (Adjournment Motion) पास करके भी सरकारी नीतियों की त्रुटियों को उजागर करने का कार्य करती है।
- मन्त्रिपरिषद के किसी सदस्य द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में संसद विशेषाधिकार प्रस्ताव पारित करके मन्त्रिपरिषद को मुश्किल में डाल सकती है।
- अन्ततः लोकसभा द्वारा मन्त्रिपरिषद के ऊपर अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके मन्त्रिपरिषद को ही पदच्युत कर सकती है। अब तक लोकसभा छ: मन्त्रिपरिषदों के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर चुकी है।
- कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद पर नियंत्रण की शक्ति के अन्तर्गत ही लोकसभा संघीय लोकसेवा आयोग, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, भाषा आयोग व अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग इत्यादि के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदनों पर विचार करके निर्णय लेने का कार्य करती है।
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