भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये। लोकसभा अध्यक्ष को 'स्पीकर' उपनाम से सम्बोधित किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष का
भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
भारतीय लोकसभा अध्यक्ष : स्थिति, शक्तियाँ तथा कार्य
भारत में ब्रिटेन की भाँति संसदीय लोकतन्त्र अपनाया गया है। संसदीय शासन प्रणाली में द्विसदनीय व्यवस्थापिका (विधायिका) होती है। भारत में विधायिका अर्थात् 'संसद' के ये दो सदन क्रमशः 'लोकसभा' और 'राज्यसभा' हैं। लोकसभा संसद का निम्न सदन है, इसे लोक सदन भी कहते हैं। इसका गठन जनप्रतिनिधियों से मिलकर होता है। भारत में लोकसभा नीति निर्माण व शासन, प्रशासन की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण सदन है। लोकसभा के विविध कार्यों के सम्पादन एवं व्यवस्था बनाए रखने की दृष्टि से 'लोकसभा अध्यक्ष का पद होता है।
लोकसभा अध्यक्ष को 'स्पीकर' उपनाम से सम्बोधित किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष का पद अत्यधिक महत्वपूर्ण और सम्मान का पद है। भारतीय संसद में "लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों और कार्यों का उल्लेख निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है.
भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति
लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति का विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति सदन की शक्ति, प्रतिष्ठा व गौरव के प्रतीक की है। जैसा कि श्री एम. एन. कौल लिखते हैं कि - "यद्यपि साधारणतया लोकसभा अध्यक्ष केवल अध्यक्षता करता निगरानी करता तथा विवादों को नियन्त्रित करता है, लेकिन उसकी स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि किसी भी संकट में उसकी शक्तियाँ राजनीतिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं - प्रश्नों, संशोधनों इत्यादि के प्रस्तावों को स्वीकृति देना तथा कार्यविधि के नियमों को कड़ाई से लागू करना। ये शक्तियाँ साधारण प्रतीत होती हैं, परन्तु संकट की स्थिति में उसकी शक्तियाँ तथा संसद पर उसका प्रभाव अत्यधिक होता है
इसी प्रकार सुश्री माया दुबे लिखती हैं कि - "यद्यपि भारतीय स्पीकर का पद ब्रिटिश स्पीकर के नमूने पर आधारित है, परन्तु भारतीय स्पीकर की शक्तियाँ इंग्लैण्ड के स्पीकर की तुलना में बहुत ज्यादा हैंr इस प्रकार यह दृष्टिगोचर होता है कि भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति लोकसभा के सर्वोच्च कार्याधिकारी, निगरानी कर्ता व नियन्त्रक की है। इसके साथ-साथ वह लोकसभा के सदस्यों के लिए एक श्रेष्ठ सम्माननीय व्यक्तित्व भी होता है और एक आदर्श प्रेरणास्रोत के रूप में भी कार्य करता है। लोकसभा अध्यक्ष के पद की श्रेष्ठता की बात करें तो यह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद के समान है। चूँकि संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा के सदस्य स्वयं में से ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं, अतः ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष को सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों की स्वीकार्यता व सम्मान प्राप्त होता है।
तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति अमेरिका और इंग्लैण्ड के अपने समकक्षों के मध्य की है। इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय लोकसभा अध्यक्ष ब्रिटिश स्पीकर की भाँति अपने राजनीतिक दल व राजनीतिक जीवन से विरत नहीं होता है परन्तु वह अमेरिकी समकक्ष की भाँति अपने राजनीतिक दल के प्रति पक्षपात व पूर्वाग्रह से भी दूर रहता है। इस प्रकार भारत में लोकसभा अध्यक्ष यद्यपि एक राजनीतिक व्यक्ति ही होता है, जो प्रथमतया लोकसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर सदन में आता है, तथापि वह पद ग्रहण करने के साथ ही दलगत राजनीति से पृथक होकर अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। वह सदन में सभी दलों को समान अवसर प्रदान करता है और निष्पक्षतापूर्वक सदन की कार्यवाहियों का संचालन करता है।
भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ व कार्य
भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों व कार्यों का विस्तृत उल्लेख 'संसदीय प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के नियम' 1950 में किया गया है। इसके अनुसार लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियाँ व कार्य निम्नलिखित हैं -
- सदन में वाद-विवाद व अभिभाषणों की समयावधि तय करना
- सदन का कार्यक्रम निश्चित करना
- सदन में प्रश्नों के भाग्य का निर्धारण करना,
- कार्य स्थगन प्रस्ताव पर अनुमति प्रदान करना,
- विधेयकों का गजट में प्रकाशन कराना,
- सदन की विभिन्न समितियों में सक्रिय सहभागिता,
- संसद और राष्ट्रपति के मध्य की कड़ी,
- सदन में शान्ति व्यवस्था बनाए रखना,
- सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा,
- धन विधेयकों का निर्धारण
1. सदन में वाद-विवाद व अभिभाषणों की समयावधि तय करना - लोकसभा अध्यक्ष को यह अनन्य अधिकार प्राप्त है कि वह सदन में विभिन्न सदस्यों के मध्य वाद-विवाद के समय का निर्धारण सदन के नेता के साथ परामर्श करके तथा साथ ही साथ वह सदन वह विभिन्न अभिभाषणों तथा राष्ट्रपति के उद्घाटन भाषण के प्रतिउत्तर में दिये जाने वाले भाषणों के समय की अवधि भी निश्चित करता है।
2. सदन का कार्यक्रम निश्चित करना - लोकसभा अध्यक्ष को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह सदन में कार्यक्रम को निश्चित करे। लोकसभा अध्यक्ष नेता सदन से परामर्श करके सदन के विविध कार्यक्रमों का निर्धारण करता है। सदन की कार्यवाही इसी पूर्व निश्चित कार्यक्रम के क्रमानुसार संचालित होती है।
3. सदन में प्रश्नों के भाग्य का निर्धारण करना - लोकसभा अध्यक्ष को सदन में यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह विभिन्न सदस्यों द्वारा उठाये जाने वाले प्रश्नों के भाग्य का निर्धारण करे। लोकसभा अध्यक्ष ही प्रश्नों की जाँच करके यह तय करता है कि कौन सा प्रश्न सदन की नियमावली के तहत चर्चा हेतु स्वीकार किये जाने योग्य है अथवा नहीं। लोकसभा अध्यक्ष नियमावली के विरुद्ध उठाये जाने वाले प्रश्नों को अस्वीकार कर देता है। ऐसे प्रश्नों पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती।
4. कार्य स्थगन प्रस्ताव पर अनुमति प्रदान करना - लोकसभा के अन्दर किसी भी सार्वजनिक महत्व के विषय पर सदस्यों द्वारा लाये जाने वाले कार्य स्थगन प्रस्ताव को स्वीकृत अथवा अस्वीकत करना लोकसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार होता है। लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना कार्य स्थगन प्रस्तात सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
5. विधेयकों का गजट में प्रकाशन कराना - लोकसभा अध्यक्ष कई विधेयकों को गजट में प्रकाशित कराता है। यदि उसकी अनुमति एवं आज्ञा से काई भी विधेयक गजट में प्रकाशित हो जाता है तो उसे सदन में प्रस्तुत करने हेतु किसी प्रस्ताव की आवश्यकता नहीं होती।
6. सदन की विभिन्न समितियों में सक्रिय सहभागिता - लोकसभा अध्यक्ष सदन की 'नियम समिति की अध्यक्षता करता है। इसी प्रकार सदन कई महत्वपूर्ण समितियों 'लोकलेखा समिति, 'प्राक्कलन समिति, प्रवर समिति इत्यादि के अध्यक्षों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा ही की जाती है। इसके अतिरिक्त 'विशेषाधिकार समिति', 'शासकीय अश्वासन समिति', 'याचिका समिति', 'नियम समिति' और सदन समिति के सदस्यों की नियुक्ति भी लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा की जाती है। इस प्रकार लोकसभा अध्यक्ष की विभिन्न समितियों में सक्रिय सहभागिता होती है। इन समितियों के सदस्य व अध्यक्ष किसी भी विषय पर परामर्श वांछित होने पर लोकसभा अध्यक्ष से ही परामर्श प्राप्त करते हैं।
7. संसद और राष्ट्रपति के मध्य की कड़ी - लोकसभा अध्यक्ष संसद के प्रतिनिधि के तौर पर सदन व राष्ट्रपति के मध्य होने वाले वांछित समस्त पत्र-व्यवहारों को भी सम्पादित करता है। इस प्रकार के समस्त पत्र-व्यवहार लोकसभा अध्यक्ष द्वारा ही किये जाते हैं। .
8. सदन में शान्ति व्यवस्था बनाए रखना - सदन में शान्ति व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व भी लोकसभा अध्यक्ष का होता है। सदन के किसी भी सदस्य द्वारा अमर्यादित आचरण करने पर लोकसभा अध्यक्ष उसे सदन से बाहर भेज सकता है तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही भी कर सकता है। आज्ञा की अवज्ञा व नियमित रूप से अव्यवस्था फैलाने वाले सदस्यों की सदस्यता को निलम्बित करने का अधिकार भी लोकसभा अध्यक्ष को प्राप्त होता है।
9. सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा - लोकसभा अध्यक्ष को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह कार्यपालिका व शासन की अन्य इकाइयों एवं विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक संगठनों, व्यक्तियों व समूहों से सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करे। इस हेतु वह विशेषाधिकार समिति के माध्यम से रिपोर्ट मंगाकर कार्यवाही कर सकता है।
10. धन विधेयकों का निर्धारण - लोकसभा अध्यक्ष को यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह सदन में प्रस्तुत होने वाले किसी विधेयक के धन विधेयक होने अथवा न होने का निर्धारण करे। इस सम्बन्ध में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय ही अन्तिम एवं सर्वमान्य होता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट है कि भारतीय लोकसभा अध्यक्ष का पद सम्मान व महत्व का पद है। अपने अधिकारों व कार्यों के परिप्रेक्ष्य में इसे भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का अहम अंग माना जा सकता है।
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