भारत में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? प्रधानमन्त्री के कार्य और शक्तियाँ का वर्णन कीजिये। संसदीय शासन-प्रणाली के अन्तर्गत मंत्रिपरिषद
भारत में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? प्रधानमन्त्री के कार्य और शक्तियाँ का वर्णन कीजिये।
- भारत के प्रधानमन्त्री की शक्तियों तथा कार्य की विवेचना कीजिए।
- भारत के प्रधानमन्त्री की शक्तियों तथा पद के महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसके धिकारों एवं कर्तव्यों का उल्लेख कीजिये।
- भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति, उसकी शक्तियाँ तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
प्रधानमन्त्री का महत्व
संसदीय शासन-प्रणाली के अन्तर्गत मंत्रिपरिषद ही व्यावहारिक रूप से कार्यपालिका की प्रधान होती है। चूंकि प्रधानमन्त्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है, अतः प्रधानमन्त्री का पद बहुत महत्वपूर्ण होता है। भारत में भी संसदीय शासन-प्रणाली है, अतः इस देश में प्रधानमन्त्री के पद का अत्यधिक महत्व है। ब्रिटिश प्रधानमन्त्री के विषय में लॉर्ड माले ने कहा था कि "प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल के वृत्त-खण्ड का मुख्य प्रस्तर है। इसी प्रकार रैम्जे म्योर . का यह कथन है कि, “प्रधानमन्त्री राज्य रूपी जहाज का चालक चक्र हैजो भारतीय प्रधानमन्त्री कि स्थिति का सही चित्रण करता है। भारत में राष्ट्रपति केवल वैधानिक प्रधान होता है।
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार, "राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन में सहायता एवं परामर्श देने के लिये एक मन्त्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमन्त्री होगा।' संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और वह प्रधानमन्त्री के परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करेगा।' परन्तु संविधान इस सम्बन्ध में मौन है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री का चयन कैसे करेगा। व्यवहार में लोकसभा में जिस दल का स्पष्ट बहुमत होगा, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जायेगा। परन्तु जब लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हुआ हो तब राष्ट्रपति स्व-विवेक से उसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त करेगा, जिसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त हो।
प्रधानमन्त्री के कार्य और शक्तियाँ
प्रधानमन्त्री के कार्यों एवं अधिकारों के अध्ययन से इसकी वास्तविक स्थिति का आभास मिल जाता है। प्रधानमन्त्री के कार्य एवं अधिकार इस प्रकार हैं -
- मन्त्रिपरिषद का कार्य-संचालन
- लोकसभा का नेता
- राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल के बीच सम्बन्ध स्थापित कर्ता
- मन्त्रिपरिषद का निर्माण
- मन्त्रियों में विभागों का बंटवारा और परिवर्तन
- अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में रत का प्रतिनिधित्व
- शासन का प्रमुख प्रवक्ता
- उपाधियाँ प्रदान करना
मन्त्रिपरिषद का कार्य संचालन - प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठकों का सभापतित्व और मन्त्रिमण्डल की समस्त कार्यवाही का संचालन करता है। मन्त्रिपरिषद की बैठक में उन्हीं विषयों पर विचार किया जाता है, जिन्हें प्रधानमन्त्री 'एजेण्डा' में रखे। यद्यपि मन्त्रिपरिषद में विभिन्न बातों का निर्णय पारस्परिक सहमति के आधार पर किया जाता है लेकिन व्यवहार में सामान्यतया प्रधानमन्त्री का परामर्श ही निर्णायक होता है।
लोकसभा का नेता - प्रधानमन्त्री संसद का मुख्यतया लोकसभा का नेता होता है और कानून निर्माण के समस्त कार्य में प्रधानमन्त्री ही नेतृत्व प्रदान करता है। वार्षिक बजट सहित सभी सरकारी विधेयक उसके निर्देशानुसार ही तैयार किये जाते हैं। लोकसभा में व्यवस्था रखने में वह अध्यक्ष की सहायता करता है। इस सम्बन्ध में उसकी एक अन्य महत्वपूर्ण शक्ति लोकसभा को भंग करने की है।
राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल के बीच सम्बन्ध स्थापित कर्ता - सार्वजनिक महत्व के मामलों पर राष्ट के प्रधान से केवल प्रधानमन्त्री के माध्यम से ही सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है, वही राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल के निश्चयों से परिचित कराता है और वही राष्ट्रपति के परामर्श को मन्त्रिमण्डल तक पहँचाता है।
मन्त्रिपरिषद का निर्माण . अपना पद ग्रहण करने पर प्रधानमन्त्री का सर्वप्रथम कार्य मन्त्रिपरिषद का निर्माण करना होता है। अपने साथियों को चनने के सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री को पर्याप्त छूट रहती है। प्रधानमन्त्री ही निर्णय करता है कि मन्त्रिपरिषद में कितने मन्त्री हों। प्रधानमन्त्री यदि चाहे तो अपने राजनीतिक दल और संसद के बाहर के व्यक्तियों को भी मन्त्रिपरिषद में शामिल कर सकता है।
मन्त्रियों में विभागों का बंटवारा और परिवर्तन - मन्त्रियों में विभागों का बंटवारा करते समय भी प्रधानमन्त्री स्वविवेक के अनुसार ही कार्य करता है और प्रधानमन्त्री द्वारा किये गये अन्तिम विभागवितरण पर साधारणतया कोई आपत्ति नहीं की जाती है। उसका यह अधिकार और कर्तव्य है कि वह किसी ऐसे मन्त्री से त्यागपत्र देने के लिये कह दे, जिसकी उपस्थिति से मन्त्रिमण्डल की ईमानदारी, कार्यकुशलता या शासन की नीति पर आघात पहुँचा हो। सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के पालन हेतु प्रधानमन्त्री को इस प्रकार की शक्ति प्राप्त होना नितान्त आवश्यक है।
अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में रत का प्रतिनिधित्व - अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारतीय प्रधानमन्त्री का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चाहे विदेश विभा। प्रधानमन्त्री के हाथ में न हो. फिर भी अन्तिम रूप में विदेश नीति का निर्धारण प्रधानमन्त्री के द्वारा ही किया जाता है। वह महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श में भाग लेता है।
शासन का प्रमुख प्रवक्ता - संसद, देश तथा विदेश में प्रधानमन्त्री शासन की नीति का प्रमुख तथा अधिकृत प्रवक्ता होता है। पादे कभी संसद में किन्हीं दो मन्त्रियों के परस्पर विरोधी वक्तव्यों के कारण भ्रम और विवाद उत्पन्न हो तो प्रधानमन्त्री का वक्तव्य ही इस स्थिति को समाप्त कर सकता है।
उपाधियाँ प्रदान करना - भारतीय संविधान द्वारा राष्ट्रीय सेवा के उपलक्ष्य में भारत रत्न, पदम् विभूषण, पदम् भूषण और पदम् श्री आदि उपाधियाँ और सम्मान की जो व्यवस्था की गयी है, व्यवहार में वे उपाधियाँ प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही राष्ट्रपति द्वारा प्रदान की जाती हैं।
प्रधानमन्त्री एवं राष्ट्रपति के पारस्परिक सम्बन्ध
सैद्धान्तिक दृष्टि से राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है और मन्त्रिमण्डल राष्ट्रपति को सहायता एवं परामर्श देने वाली समिति है। राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। वह स्व-विवेकानुसार आचरण उसी समय कर सकता है, जब किसी दल का स्पष्ट बहुमत न हो। परन्तु व्यावहारिक स्थिति यह है कि राष्ट्रपति को प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल का परामर्श मानना होता है, क्योंकि भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था है तथा मन्त्रिण्डल संसद (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी है।
जिन बातों ने प्रधानमन्त्री को मन्त्रिपरिषद में बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थिति तथा मन्त्रिपरिषद पर लगभग पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया है वे इस प्रकार हैं -
- प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद का निर्माण बहुत अधिक सीमा तक स्व विवेक से ही करता है। वह ऐसे व्यक्तियों को भी मन्त्रिपरिषद में ले सकता है जिन्हें दल में कोई महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त न हो और देश में जिनका नाम बहुत थोड़े व्यक्ति जानते हों।
- मन्त्रिपरिषद के सदस्यों में विभागों का वितरण प्रधानमन्त्री के द्वारा ही किया जाता है।
- प्रधानमन्त्री मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन कर सकता है और उनसे त्यागपत्र की माँग कर सकता है। 1996 में नन्दा, 1969 में देसाई, 1980 में कमलापति त्रिपाठी, 1986 में अरुण सिंह, 1987 में विश्वनाथ प्रताप सिंह और 1990 में देवीलाल का त्यागपत्र प्रधानमन्त्री की शक्ति का परिचय देते हैं।
- प्रधानमन्त्री मन्त्रियों को उनके विभागीय कार्यों के सम्बन्ध में निर्देश दे सकता है और आवश्यक होने पर उनके कार्यों में हस्तक्षेप कर सकता है।
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