सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए। 14 से 16 फरवरी 1930 ई. को कांग्रेस कार्यकारिण
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निर्णय कांग्रेस द्वारा कब और क्यों किया गया ?
- 'दण्डी यात्रा' पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विस्तृत कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ
14 से 16 फरवरी 1930 ई. को कांग्रेस कार्यकारिणी की एक बैठक साबरमती में आयोजित की गई। इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने के सम्पूर्ण अधिकार दे दिये गये।
यद्यपि कांग्रेस की कार्यकारिणी ने गाँधी जी को आन्दोलन प्रारम्भ करने के सम्पूर्ण अधिकार दे दिये थे, तथापि शान्ति और समझौते में विश्वास करने वाले गाँधी जी ने वायसराय को आन्दोलन प्रारम्भ करने से पूर्व एक अवसर और दिया। उन्होंने एक पत्र लिखकर गवर्नर जनरल को अवगत कराया कि यदि सरकार पत्र में उल्लिखित शर्तों को मान ले तो उसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम नहीं सुनना पड़ेगा।
पत्र में उल्लिखित शर्ते निम्नप्रकार थीं -
- भारत में पूर्ण नशाबन्दी लागू की जाए।
- मुद्रा विनिमय में एक रुपया एक शिलिंग चार पेंस के बराबर माना जाए।
- मालगुजारी आधी कर दी जाए और उसे विधानमण्डल के नियन्त्रण में रखा जाए।
- नमक पर लगने वाला 'कर' बन्द किया जाये।
- सैनिक व्यय में कमी की जाये और प्रारम्भ में इसे आधा कर दिया जाये।
- बड़े-बड़े अधिकारियों के वेतन कम से कम आधे कर दिये जायें।
- विदेशी वस्त्रों पर तट कर लगाया जाए ताकि देशी उद्योगों को संरक्षण प्राप्त हो।
- तटीय व्यापार संरक्षण कानून पारित किया जाये।
- हत्या या हत्या की चेष्टा में दण्डित व्यक्तियों को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाये एवं सभी मुकदमें वापस ले लिये जायें
- खुफिया पुलिस तोड़ दी जाये या उसे जन नियन्त्रण में रखा जाये।
- आत्मरक्षा के लिये आम नागरिकों को बन्दूक इत्यादि हथियारों के लाइसेंस दिये जायें।
शासन द्वारा गाँधी जी की उपर्युक्त माँगों की उपेक्षा की गयी। सरकार ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी भी प्रारम्भ कर दी। गाँधी जी ने पुनः एक पत्र अपने मित्र रेनाल्ड्स के हाथों वायसराय को भेजा । इसका उत्तर वायसराय ने बहुत ही निराशाजनक दिया और उल्टे गाँधी जी को ही सावधान करते हुए कहा कि - "मुझे दुःख है कि गाँधी जी वह रास्ता अपना रहे हैं जिसमें कानून और सार्वजनिक शान्ति भंग होना स्वाभाविक है।" इसके प्रत्युत्तर में गाँधी जी ने कहा कि - "मैने घुटने टेककर रोटी माँगी थी परन्त मुझे उसके स्थान पर पत्थर मिले। ब्रिटिश राष्ट्र केवल शक्ति के सामने झुकता है, इसीलिए वायसराय के पत्र से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। मैं उन ब्रिटिश कानूनों का कार्य समझता हूँ और मैं उस शोकमय शान्ति को भंग करना चाहता हूँ जो राष्ट्र के दिल को कष्ट दे रही है।" इस प्रकार गाँधी जी और वायसराय की वार्ता विफल होने के फलस्वरूप गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निर्णय किया गया।
दांडी मार्च
शासन द्वारा माँगे ठुकराये जाने के उपरान्त गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निर्णय किया और इसका प्रारम्भ ऐतिहासिक दांडी मार्च / यात्रा द्वारा किया गया! गाँधी जी के नेतृत्व में 11 मार्च, 1930 ई. को साबरमती के मैदान में 75 हजार व्यक्तियों ने एकत्रित होकर प्रण किया कि जब तक स्वाधीनता नहीं मिल जाती तब तक न तो हम स्वयं चैन लेंगे और न सरकार को चैन लेने देंगे। गाँधी जी ने इनमें से 79 कार्यकत्ताओं का चयन किया और साबरमती आश्रम से दांडी तट तक पैदल यात्रा करके नमक कानून को तोड़ने की योजना बनायी। 12 मार्च, 1930 ई. को गाँधी जी व उनके द्वारा चयनित 79 कार्यकर्ता साबरमती आश्रम से पैदल ही 200 मील की यात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा में कुल 24 दिन का समय लगा और जैसे-जैसे यात्रा एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बढ़ती गयी वैसे-वैसे लोगों का हुजूम इनके साथ होता चला गया। अन्ततः 5 अप्रैल, 1930 ई. को गाँधी जी और उनके साथ हजारों लोगों का हुजूम दांडी तट पर पहुँचा। अगले दिन 6 अप्रैल, 1930 ई. को प्रार्थना के उपरान्त दांडी के समुद्र तट पर गाँधी जी ने स्वयं अपने हाथ से नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून की अवज्ञा की। इस प्रकार विधिवत् रूप से सविनय अवज्ञा आन्दोलन का श्रीगणेश हो गया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम
6 अप्रैल, 1930 ई. को गाँधी जी द्वारा स्वयं ब्रिटिश सरकार के अनुचित नमक कानून की अवज्ञा के पश्चात् सविनय अवज्ञा आन्दोलन के निम्नलिखित व्यापक कार्यक्रम निर्धारित किये गये -
- गाँव-गाँव में नमक कानून को तोड़कर नमक बनाया जाना चाहिए।
- महिलाओं द्वारा शराब, अफीम और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना दिया जाना चाहिए।
- विदेशी वस्त्रों का प्रयोग बन्द करके सार्वजनिक रूप से विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जानी चाहिए।
- हिन्दुओं को अस्पृश्यता का त्याग करना चाहिए।
- विद्यार्थियों द्वारा सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया जाना चाहिए।
- सरकारी कर्मचारियों को नौकरियों से त्याग पत्र देने चाहिए। 4 मई को महात्माजी की गिरफ्तारी के बाद 'करबन्दी' को भी आन्दोलन के कार्यक्रम में सम्मिलित कर लिया गया।
इस प्रकार व्यापक कार्यक्रम के साथ सविनय भावना आन्दोलन तेजी से प्रारम्भ हो गया। गाँधी जी दारा नमक कानून की आवज्ञा के साथ ही यह आन्दोलन तेजी से सम्पूर्ण देश में फैल गया। महात्मा गाँधी के आह्वान पर महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर इस आन्दोलन में भाग लिया। आन्दोलन प्रारम्भ होने के एक माह के भीतर ही 200 पटेल और पटवारियों के अतिरिक्त, अनेक सरकारी कर्मचारियों ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिये। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन काफी हद तक अप्रत्याशित सफलता आर्जित करते हए तेजी से आगे बढ़ रहा था परन्तु ब्रिटिश सरकार ने गोलमेज वार्ताओं के रूप में कटनीतिक चालबाजी करते हुए आन्दोलन को शिथिल कर दिया और अन्ततः यह आन्दोलन भी बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गया।
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