कुमारी प्रीतिलता वादेदार की जीवनी - Pritilata Waddedar Biography in hindi: प्रीतिलता का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (बांग्लादेश) में स्थित
कुमारी प्रीतिलता वादेदार की जीवनी - Pritilata Waddedar Biography in hindi
प्रीतिलता का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (बांग्लादेश) में स्थित चटगाँव के एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसमें लड़कियों को उच्च शिक्षा देना ठीक नहीं माना जाता था। इसके विपरीत उसके भाइयों को पढ़ाने के लिए घर पर भी अध्यापक को रखा गया था। अध्यापक द्वारा घर पर पढ़ाते समय वह बैठकर सुना करती थी। ऐसे पाठ सुन-सुनकर ही वह पढ़ाई में मेधावी हो गई। उन्होने सन् 1928 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। इसके बाद सन् 1929 में उन्होने ढाका के इडेन कॉलेज में प्रवेश लिया और इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं।और कुशाग्रता में अपने भाइयों को भी पीछे छोड़ दिया। इसके कारण ही उसे पढ़ने की अनुमति हुई। उसने मैट्रिक की परीक्षा और उपरांत स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रीतिलता वादेदार स्नातक होने के बाद चटगाँव के नंदन कानन हाई स्कूल में प्रधानाध्यापिका हो गई। उसी दौरान क्रांतिकारियों ने चटगाँव शस्त्रागार कांड को अंजाम दिया था और उन पर तथा उनके परिवार जनों पर हो रहे अत्याचारों ने उन्हें विचलित करके रख दिया था।
अब क्या था? क्रांति की ज्वाला उनके दिले में भड़क उठी और गुपचुप रूप से क्रांति क्रियाकलापों में संलग्न हो गयीं और शीघ्र ही घर-बार छोड़कर वह "इंडियन रिपब्लिकन आर्मी" की सक्रिय महिला सैनिक बन गयीं।
जब रामकृष्ण विश्वास को फाँसी का आदेश हुआ और वे जेल में थे तब प्रीतिलता वादेदार उनकी रिश्तेदार बन गयीं और इसी बहाने जेल जाकर उनसे मुलाकात करती रहीं। उनके नेता थे सूर्यसेन और उनके साथ ही 14 सितंबर 1932 में घलघाट में पुलिस ने घेरकर उन्हें पकड़ना चाहा और इस मुठभेड़ में दो क्रांतिकारी निर्मल सेन और अपूर्व सेन मारे गये। किन्तु सूर्य सेन और प्रीतिलता वादेदार किसी तरह बचकर भाग निकले।
अब प्रीतिलता का दिल भी शहादत देने के लिए अधीर हो रहा था। चटगाँव के यूरोपियन क्लब पर आक्रमण करने का जिम्मा शैलेश्वर चक्रवर्ती को सौंपा गया किन्तु वे इसमें सफल नहीं हो सके। उनकी निष्क्रियता को देखते हुए प्रीतिलता ने उस योजना को अंजाम देने का जिम्मा स्वयं अपने ऊपर ले लिया।
24 सितंबर 1932 को रात्रि साढ़े दस बजे का समय- यूरोपियन क्लब के चालीस सदस्य आमोद-प्रमोद और मौजमस्ती में झूम रहे थे। उसी समय क्रांतिकारियों का दल वहाँ पहुँचा जिसका नेतृत्व प्रीतिलता वादेदार कर रहीं थीं। देखते- देखते ही खुली खिड़की से एक बम फेंका गया- धमाका हुआ और मौज मस्ती में झूम रहे लोग भयकंपित हो गये। इसके बाद ही दो बम और फेंके गये और गोलियों की बौछार होने लगी। कोहराम मच गया, लोग डर से इधर-उधर भागने लगे- एक अंग्रेज वृद्ध की तुरंत मृत्यु हो गई और अन्य अनेक लोग घायल हो गए- वातावरण चीखों और कराहों से गूंज रहा था। क्रांतिकारी दल कुछ देर वहाँ धूम-धड़ाका करता रहा फिर भाग कर नौ दो ग्यारह हो गया। पुलिस किसी भी क्रांतिकारी को उस समय पकड़ न सकी लेकिन बारह घायल लोगों को उसने अस्पताल पहुंचाया। क्रांतिकारियों की खोज में उन्हें एक लाश मिली- वह एक महिला की लाश थी जो सैनिक वर्दी पहने हुए थी और वह थी प्रीतिलता वादेदार की लाश। प्रीतिलता के शरीर में एक गोली लगी। वे घायल अवस्था में भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम सायनाइड खा लिया। शायद प्रीतिलता को यह लगा कि इस कांड में जितने लोग मरने चाहिए थे- वे नहीं मरे और इसी सदमे के कारण जहर खाकर उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। धन्य है यह भावना और धन्य है प्रीतिलता वादेदार जिसने भारत की स्वाधीनता के लिए स्वयं को न्यौछावर कर दिया।
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