खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आंदोलन पर एक लेख लिखिए। 'खिलाफत आन्दोलन' 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मुस्लिम समुदाय द्वारा किया गया एक महत
खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आंदोलन पर एक लेख लिखिए।
- खिलाफत आन्दोलन क्या था ?
- खिलाफत आन्दोलन का जन्म किन कारणों से हुआ?
- खिलाफत आन्दोलन की प्रमुख माँगें क्या थी?
- खिलाफत आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
'खिलाफत आन्दोलन' 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मुस्लिम समुदाय द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था। खिलाफत आन्दोलन की भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के इतिहास में एक अहम भूमिका रही। महात्मा गाँधी द्वारा खिलाफत आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित करके हिन्दू-मस्लिम एकता स्थापित करने का प्रयास भी किया गया था। परन्तु खिलाफत आन्दोलन अपने उद्देश्यों की पर्ति में सफल न हो सका।
खिलाफत आन्दोलन के अभिप्राय एवं इसके उदभव व विकास को निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत समझा जा सकता है -
- खिलाफत आन्दोलन से अभिप्राय - खिलाफत आन्दोलन प्रथम विश्व युद्धकालीन परिस्थितियों मे धार्मिक कारणों से किया गया आन्दोलन था। 1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ। इस युद्ध में तुर्की के सुल्तान 'अब्दुल हमीद द्वितीय' ने जर्मनी का साथ दिया। इस प्रकार तुर्की को अंग्रेजों (इंग्लैण्ड) के विरुद्ध युद्ध करना था। तुकी के सुल्तान द्वारा जर्मनी का साथ दिए जाने के कारण भारतीय मुसलमानों में गम्भीर असमन्जस की स्थिति उत्पन्न हो गयी कि वे अंग्रेजों का साथ दें या अपने धर्म गुरु (खलीफा) का। फांस ने तुर्की का समर्थक का 14 नवम्बर, 1914 ई. को रुस, इंग्लैण्ड व फ्रांस ने तुर्की का समर्थक होने से अंग्रेजों के समक्ष एक विकट समस्या थी। अतः अंग्रेजों द्वारा भारतीय मुसलमानों को आश्वस्त किया गया कि वे तुर्की की अखण्डता व धार्मिक स्थलों की रक्षा करेंगे। फलस्वरूप भारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों का सहयोग किया परन्तु विजय प्राप्ति के साथ ही अंग्रेजों ने तुर्की को छिन्न-भिन्न कर दिया। यह भारतीय मुसलमानों के साथ एक बड़ा विश्वासघात था। अंग्रेजों के इस व्यवहार के कारण क्षुब्ध भारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों के विरुद्ध जो आन्दोलन चलाया उसे ही 'खिलाफत आन्दोलन' कहा जाता है।
- खिलाफत आन्दोलन का उदभव एवं विकास - तुर्की की पराजय के बाद सेवर्स की सन्धि यद्यपि 1920 ई. में हुई थी, किन्तु भारतीय मुसलमानों को 1918 ई. से ही अंग्रेजों की नीयत का पता चलने लगा था। 1918 ई. में इंग्लैण्ड के द्वारा प्रेरित किए जाने पर अरबों ने भी 'खलीफा' के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। अतः दिसम्बर, 1918 ई. में दिल्ली में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में मक्का के 'शरीफ हुसैन' की कटु आलोचना की गई। इस अधिवेशन में यह भी माँग की गई कि मुस्लिम राष्ट्रों की अखण्डता को अक्षुण्ण रखा जाए तथा इस्लाम के पवित्र एवं धार्मिक स्थलों को खलीफा को लौटाया जाए। इसी आक्रोश व क्षुब्धता के माहौल में सितम्बर 1919 ई. में 'अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी' की स्थापना की गयी। इस कमेटी द्वारा विधिवत् रूप से 'खिलाफत आन्दोलन' को जन्म दिया गया।
खिलाफत आन्दोलनकारियों की निम्नलिखित प्रमुख माँगें थीं -
- तुर्की के सुल्तान और खलीफा की धार्मिक प्रतिष्ठा व लौकिक प्रतिष्ठा को बनाए रखा जाए। इसका अर्थ यह था कि मुसलमान न्यायविदों द्वारा वर्णित पवित्र स्थलों के प्रति जिनके अन्तर्गत 'पैलेस्टाइन', 'मेसोपोटामिया' और 'अरब के, खलीफा अपने कर्तव्यों का निर्बाध रूप से पालन कर सके।
- मुस्लिम राष्ट्रों की सम्प्रभुता की रक्षा का आश्वासन दिया जाए।
ब्रिटिश शासन द्वारा उपर्युक्त माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अत: दिन-प्रतिदिन भारतीय मुसलमानों का आक्रोश बढ़ता चला गया। इस सन्दर्भ में मुहम्मद अली के वक्तव्य का उल्लेख विशेष रूप से किया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि - "विश्वभर के मुसलमानों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्था 'खिलाफत' है और तुर्की के प्रति उनकी निष्ठा धार्मिक है। तुर्की साम्राज्य के अन्त का अर्थ होगा मुसलमानों की अन्तर्राष्ट्रीय एकता के प्रतीक 'खिलाफत' का अन्त।"
इस प्रकार मुहम्मद अली ने भारतीय मुसलमानों को भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया क्योंकि उनका विचार था कि पराधीन भारत तुर्की व खलीफा की सहायता करने में समर्थ नहीं है।
इसी समय गाँधी जी द्वारा 'रॉलेट एक्ट' के विरोध में आन्दोलन की घोषणा की गयी। गाँधी जी ने 'खिलाफत' को राष्ट्रीय आन्दोलन व हिन्दू-मुस्लिम एकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए इसका समर्थन किया। उन्होंने कांग्रेस पर भी दबाव डाला कि वह 'खिलाफत आन्दोलन' में सहयोग प्रदान करे। इसी प्रकार उन्होंने भारत के 2.3 करोड़ हिन्दुओं से भारत के 7 करोड़ मुसलमानों की सहायतार्थ आगे आने का आह्वान किया।
दिसम्बर 1919 ई. में गाँधी जी व अन्य कांग्रेसी नेताओं ने खिलाफत आन्दोलनकारियों से वार्ता की। इस बैठक में मुस्लिमों की समस्या पर विचार किया गया। इसमें पारित प्रस्ताव के अनुसार 19 जनवरी 1920 ई को डॉ. अंसारी की अध्यक्षता में एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन वायसराय चेम्सफोर्ड से मिला, किन्तु वायसराय ने इस प्रतिनिधिमण्डल मुहम्मद अली के नेतृत्व में इंग्लैण्ड गया, किन्तु इसे भी विशेष सफलता नहीं मिली।
20 फरवरी, 1920 ई. को कलकत्ता में एक खिलाफत सम्मेलन आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की। इस सम्मेलन के आधार पर महात्मा गाँधी ने 10 मार्च, -1920 ई. को एक घोषणा पत्र जारी करके यह घोषणा कि की वह अंग्रेज शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन छेडेंगे। इसके साथ ही 10 मार्च, 1920 ई. को सम्पूर्ण भारत में 'काला दिवस' मनाया गया। 20 मई 1920 ई. को खिलाफत समिति त कांग्रेस द्वारा तीन उद्देश्यों पर सहमति व्यक्त की गयी.
- पंजाब की शिकायतों को दूर करना,
- खिलाफत सम्बन्धी अन्यायों को दूर करना,
- स्वराज्य की स्थापना।
1 अगस्त, 1920 ई. को असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। खिलाफत इसी का एक अंश बन गया। आन्दोलन को काफी सफलता मिल रही थी परन्त इसी बीच 1922 ई. में 'चौरी-चौरा' प्रकरण के चलते गाँधी जी द्वारा आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया। इससे खिलाफत को गहरा धक्का लगा। यह लगभग समाप्त-प्राय हो गया। इसी समय तुर्की की घटनाओं ने भी इस आन्दोलन को निर्बल बना दिया। तुर्की में युवा तुर्क आन्दोलन को सफलता मिली और तुर्की को 1923 ई. में गणतन्त्र बना दिया गया। 'खलीफा' का पद केवल आध्यात्मिक ही रह गया। 3 मार्च, 1924 ई. को 'खलीफा' का पद ही समाप्त कर दिया गया। इसके साथ ही खिलाफत का प्रश्न ही महत्वहीन हो गया।
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