कल्याणी देवी शुक्ल का जीवन परिचय - Kalyani Devi Shukla Biography in HIndi: स्वातंत्र्य आंदोलन में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान
कल्याणी देवी शुक्ल का जीवन परिचय - Kalyani Devi Shukla Biography in HIndi
एक बार अच्छे कद-काठी वाले चंद्रशेखर आजाद धीर-गंभीर वैद्य मुक्ति नारायण शुक्ल से बात करते हुए कह रहे थे कि मेरे साथी कुंदनलाल ने आपकी बहुत तारीफ की है और आपको एक विश्वसनीय व्यक्ति बताया है। किन्तु एक बात है कि हमलोगों से संपर्क रखने के कारण आप पर भी संकट आ सकता है। बेकार में क्यों संकट मोल लेते हैं। शुक्ल जी ने कहा "देखिए पंडितजी, यदि हम इस रंग में न रंगे होते तो कुन्दनलाल जी हमें आपसे क्यों मिलवाते। हम आपके साथ कछ सहयोग करना चाहते हैं- आने वाले संकटों के लिए हम तैयार हैं।
आश्वस्त होने पर आजाद ने उनसे कहा कि हमें हथियार चाहिए। रियासतों से हथियार मिल जाते हैं- आप उनसे सम्पर्क साधिए। मिलने वाला व्यक्ति आपको संकेत शब्द बताएगा तो समझ लीजिए कि उसे हमने भेजा है। पहला संकेत शब्द "गोली" है उसके बाद आने वाला व्यक्ति आपको दूसरा संकेत शब्द बताएगा। अगर संकेत शब्द न बताए तो समझिए वह खुफिया विभाग का आदमी है।
कुछ दिनों के बाद एक महिला आई और उन्होंने संकेत शब्द "गोली" बता दिया । वैद्य जी आश्वस्त हुए और उन्हें अंदर ले गए। वे दुर्गा देवी थीं और पार्टी के लोग उन्हें दुर्गा भाभी कहते थे। उनके पति भगवती चरण वोहरा लाहोर में बम का परीक्षण करते हुए शहीद हो गए थे। पार्टी में अब दुर्गा भाभी काम करने लगी थीं। आजाद ने कुछ रिवाल्वर और कारतूस के लिए उन्हें वैद्य जी के पास भेजा था।
वैद्य जी की पत्नी श्रीमती कल्याणी देवी ने दुर्गा भाभी को राजस्थानी परिधान पहनने और राजस्थानी भाषा बोलने का प्रशिक्षण दिया। इसमें प्रवीणता प्राप्त करने के बाद जब वे जाने लगी तो मिठाई के कुछ टोकनों के नीचे हथियार ऊपर मिठाइयाँ रखकर उन्हें विदा किया। कल्याणी देवी और वैद्य जी उन्हें रेल के डिब्बे में बैठाने भी गये जिससे आबकारी विभाग वाले उनकी तलाशी न लें। कल्याणी देवी ने दुर्गा भाभी को घाघरे -[गड़े में सजाया था ताकि रत्ती भर भी किसी को संदेह न हो। जाते समय वैद्यजी को "तमंचा' संकेत शब्द बता दिया और वह सामान लेकर आजाद के पास पहुँच गयीं।
कुछ समय के बाद गौर वर्ण का एक व्यक्ति वैद्य जी के पास आया और उसने संकेत शब्द ' तमंचा' बताया। उसका नाम था विश्वनाथ वैशंपायन। उन्होंने कहा आजाद ने दो राइफलें मँगाई हैं। राइफल बेचने के लिए वैद्य जी ने किसी को पटाया और किसी निर्जन स्थान पर राइफलें देने की बात तय हुई। राइफल बेचेने वाला व्यक्ति खरीदने वाले का निशाना देखकर स्तब्ध रह गया और काफी कम दाम पर राइफलें बेच दीं।
अब समस्या उन्हें ले जाने की थी और उसका समाधान निकाला वैद्यजी की पत्नी श्रीमती कल्याणी देवी शुक्ल ने। वे बोलीं
"काहे घबरात हो ! हम चलिबे तुम्हारे संग और छोटी बिटिया हमारे संग जाई।।"
वैशंपायनजी सोचने लगे कि परदे में रहने वाली एक स्त्री इतना बड़ा जोखिम कैसे उठा सकती है। वैद्य जी ने अपनी पत्नी को हतोत्साहित करने के लिए कहा
"और अगर पुलिस ने तुझको पकड़ लिया तो"
श्रीमती कल्याणी देवी ने तत्परता से उत्तर दिया"तो हमहूँ लाला के संगे जेल जइबे, और का होई।।"
वैद्य जी अपनी पत्नी की सूझबूझ और साहस देखकर आश्चर्य चकित हुए। दो नए ट्रंक और एक टिफिन खरीदा गया। ट्रंकों के अंदर राइफलें और उनके ऊपर श्रीमती कल्याणी देवी तथा उनकी बिटिया के कपड़े रखे गए। टिफिन के हर डिब्बे में नीचे गोलियाँ और ऊपर कलाकंद के टुकड़े रखे गए।
स्टेशन पर आबकारी विभाग के लोगों ने पूछा कि आप लोग कहीं बाहर जा रहे हैं। वैद्य जी ने परेशानी जताते हुए कहा
"का बताई, भैया! ई ससुर हमार भैया हैं। कानपुर से पढ़ाई छोड़कर भाग आए हैं। अब फिर समझाए- बुझाए के भेज रहिन। उनके संग उनकी भौजाई (कल्याणी देवी) और बिटिया भी जाई रहिन।।"
बिना किसी शंका के जब वे लोग गाड़ी के डिब्बे में बैठे गए तो कल्याणी देवी ने वैशंपायन को छेड़ते हुए कहा- "लाला, इतनी गारी कबहूँ ना खाए हुइहौ।"
श्रीमती कल्याणी देवी और उनकी बिटिया के कारण वैशंपायन की कानपुर तक की यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हुई। पूरा विवरण सुनने के बाद आजाद ने भी कल्याणी देवी की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
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