Durga Bhabhi Biography in Hindi : इस लेख में हम आपको दुर्गा देवी वोहरा (दुर्गा भाभी) की जीवनी यानी जीवन परिचय और दुर्गा भाभी का स्वतंत्रता आंदोलन में
दुर्गा देवी वोहरा / दुर्गा भाभी की जीवनी - Durga Bhabhi Biography in Hindi
नाम | दुर्गा देवी वोहरा |
जन्म | |
मृत्यु | |
पति | |
बच्चे |
दुर्गावती देवी जिन्हें 'दुर्गा भाभी' (7 अक्टूबर 1907 - 15 अक्टूबर 1999) के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह उन कुछ महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं जिन्होंने सत्तारूढ़ ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया। वह भगत सिंह के साथ ट्रेन यात्रा में जाने के लिए जानी जाती हैं, जिसमें उन्होंने सॉन्डर्स की हत्या भगत सिंह की भेष बदलकर भागने में मदद की थी। चूंकि वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, इसलिए एचएसआरए के अन्य सदस्यों ने उन्हें भाभी (बड़े भाई की पत्नी) के रूप में संदर्भित किया और भारतीय क्रांतिकारियों में "दुर्गा भाभी" के रूप में लोकप्रिय हो गईं।
दर्गा देवी का विवाह भगवती चरण वोहरा के साथ हुआ था। विवाह के समय दोनों की आयु लगभग 13 वर्ष और 10 वर्ष ही थी। छोटी आयु में विवाह के बाद दोनों ने अपने आपको ऐसा ढाल लिया था कि उनमें एक दूसरे को भली-भाँति समझने, आपस में तादात्म्य बिठाने तथा सुख दुःख में सदैव साथ रहने का भाव पैदा हो गया था। विवाह के समय दुर्गा देवी कम पढ़ी लिखी थीं। भगवती चरण ने उनकी आगे पढ़ाई की व्यवस्था की। भगवती चरण वोहरा क्रांतिकारी विचारों के थे, इसलिए दुर्गा देवी को लग गया था कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होकर गृहस्थ जीवन का निर्वाह करना होगा और वैसा विचार कर कार्य करने लगी। वैवाहिक जीवन के फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम शचीन्द्र रखा गया। आगे चलकर भगवती भाई क्रांतिकारी कार्यों में संलग्न हो गए और इसलिए सभी क्रांतिकारियों का आना जाना सतत लगा रहता था। क्रांतिकारी लोग उन्हें 'दुर्गा भाभी' कहते थे।
लाहौर में सांडर्स की हत्या हो चुकी थी। भगतसिंह और राजगुरु को लाहौर से बाहर भेजना था। सुखदेव दुर्गा भाभी के पास पहुँचे और पूछा भाभी कुछ पैसे हैं आपके पास । दुर्गा ने कहा हाँ हैं। मुझे पैसों की आवश्यकता है । दुर्गा भाभी ने कहा "तो पूछ क्यों रहे हो, पैसे इसी काम के लिए हैं।" साथ ही सुखदेव ने कहा कि यदि आपको किसी के साथ बाहर भेजा जाए तो पार्टी के काम के लिए जा सकोगी क्या? अगर पहचान के होंगे तो मुझे कोई कठिनाई नहीं। अभी मैं उनके नाम नहीं बता सकता। अगर पार्टी के आदमी हैं तो पूछने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। साथ में शची भी जाएगा।
मार्ग में संकट भी आ सकता है। ऐसे में आप और बच्चा दोनों मुसीबत में फंस जायेंगे। परीक्षा क्यों ले रहे हो सुखदेव! उनकी सहधर्मिणी होने के नाते यह मेरा धर्म है और मैं भी तो अब पार्टी के कार्य में संलग्न हूँ।
दूसरे दिन रात्रि को लगभग ग्यारह बजे दो लोगों के साथ सुखदेव दुर्गा भाभी के मकान पर आ गया। पहुँचकर दरवाजा बंद कर लिया। उसने पूछा "भाभी! आपने इनको पहचाना क्या।" भाभी ने दोनों को देखा, एक नाटे कद का सांवला सा और दूसरा अच्छी लम्बाई का गौर वर्ण का, बहुत कीमती सूट पहने, चमचमाते बूट और सिर पर फेल्ट हैट लगा रखा था। दुर्गा उनको पहचान न सकी। अब क्या था, भगतसिंह जोर से हँसा, तब दुर्गा भाभी ने कहा, अरे! भगतसिंह तुम हो। इस पर भगतसिंह ने कहा “जब तुम्हीं मुझे नहीं पहचान सी, तब पुलिस क्या पहचानेगी?" दूसरा व्यक्ति राजगुरु था।
सुबह होते ही बच्चे शचीन्द्र सहित तीनों लोग रेलवे स्टेशन पहुँच गए। भगतसिंह ने सूट के ऊपर चेस्टर पहन रखा था और बाहर की जेब में एक रिवाल्वर था और बच्चे को बाएँ हाथ में उठा रखा था, बच्चा भी फेल्ट हैट लगाए था, उससे उसका चेहरा थोड़ा ढका हुआ लग रहा था। राजगुरु नौकर के लिवास में था। दुर्गा भाभी ऊँची एड़ी के सैंडल पहने बड़े ठाट से चल रही थी, लगता था कि किसी उच्च अधिकारी की पत्नी हों, कंधे पर पर्स में एक रिवाल्वर रखा था और वे भगतसिंह के पीछे चल रही थी। साथ में नौकर के लिवास में राजगुरू चल रहा था। भगतसिंह और दुर्गा भाभी प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे और राजगुरु नौकर वाले डिब्बे में बैठा। लखनऊ पहुँचने पर योजना के अनुसार उतर कर राजगुरु आगरा के लिए खिसक गया। लखनऊ से ही सुशीला दीदी को तार कर दिया “भाई के साथ कलकत्ता आ रही हूँ- दुर्गावती।" भगवती चरण वोहरा और सुशीला दीदी उन्हें लेने कलकत्ता स्टेशन पहुँच गए। स्टेशन पर उतरते ही भगवती चरण ने उन्हें पहचान लिया, उनका लिवास देखकर एक बार वे लोग भी चक्कर में पड़ गए थे। भगवती चरण सहसा बोल पड़े "दुर्गे! हम लोगों का सच्चा विवाह तो आज हुआ है।" इस पर सुशीला दीदी ने चुटकी ली और पूछा "दस साल पहले क्या हुआ था।" वह तो गुड्डा-गुड्डी का विवाह था, जो हमारे माता-पिता ने किया था। अब लग रहा है कि यह एक क्रांतिकारी की पत्नी है। लेकिन वे लोग कलकत्ता सुरक्षित पहुँच गए थे। कुछ दिन भगतसिंह वहाँ रहे और दुर्गादेवी लाहौर लौट आईं।
दिल्ली असेम्बली पर बम विस्फोट की योजना बनी, योजना को अंजाम दिया भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने। दोनों को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास का दंड मिला।
चन्द्रशेखर आजाद ने उन लोगों को छुड़ाने का दायित्व दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी को दिया। उसके लिए बम इत्यादि भी बना लिए गए थे। एक जन 1930 को जेल पर आक्रमण करना था। बम ठीक बने हैं या नहीं इसके परीक्षण के लिए भगवती चरण वोहरा, विश्वनाथ वैशंपायन और सुखदेव राज रावी नदी के किनारे पहुँचे। 28 मई 1930 को परीक्षण करते समय बम भगवती चरण बोहरा के हाथ में ही फट गया, और उनकी मृत्यु हो गई। दुर्गा भाभी के लिए यह बहुत बड़ा आघात था। किन्तु वे विचलित नहीं हुईं। भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को छुड़ाने के लिए दुर्गा भाभी ने रणचंडी का रूप धारण कर लिया।
बम्बई के गर्वनर मि. हेली' को मारने का निश्चय किया गया और इस निमित्त कुछ साथियों को लेकर बम्बई आ पहुँची। उनके साथियों में थे पृथ्वीसिंह और सुखदेव राज। मि. हेली शाम के समय अपने बंगले के सामने बैठकर लोगों से मिलते थे। दुर्गा भाभी पारसी महिला के वेश में उनसे मिलेंगी और पृथ्वी सिंह और सुखदेवराज उनके सहयोगी रहेंगे। पुत्र शचीन्द्र को अपने एक शुभ चिंतक श्री गणेश रघुनाथ वैशंपायन के घर छोड़ दिया था। किन्तु दर्भाग्य से हेली बंगले में नहीं मिला। अन्य स्थानों पर भी तलाशा गया किन्तु वह कहीं नहीं मिला और उसे मारने की योजना निष्फल रही। गवर्नमेंट हाउस लेमिंग्टन रोड पर एक पलिस स्टेशन था। वहाँ एक गाड़ी आकर रुकी जिसमें एक महिला और गोरे अफसर थे। क्रांतिकारियों को लगा कि यह उन्हें गिरफ्तार करने आई है। पृथ्वीसिंह ने आदेश दिया- "शूट"। यह सुनते ही दुर्गा भाभी ने महिला को छोड़ सब पर गोलियाँ दाग दी। गोरे लोग गाड़ी की ओट लेकर जमीन पर लेट गए। गोलियों की आवाज सुनकर और भी गोरे लोग पुलिस स्टेशन से बाहर आ गए और क्रांतिकारी अपने ठिकाने पर पहुँच गए। किन्तु क्रांतिकारियों की गोली से एक गोरा अधिकारी घायल हो गया था और एक महिला के पैर में भी गोली लगी थी।
पृथ्वीसिंह एक साधु के वेश में नौसारी पहुँच गए और दुर्गा भाभी अपने बच्चे को तलाशकर अपने साथ कानपुर ले गई। जब दुर्गा भाभी चन्द्रशेखर आजाद के सामने आई तो वे काफी क्षुब्ध थे और उन्हें प्रताड़ित करना चाह रहे थे किन्तु शीघ्र ही वे शांत हो गए।
उन पर एक आघात और हुआ। उनके पति की मृत्यु के उपरांत चन्द्रशेखर आजाद ने इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश सैनिकों के साथ युद्ध करते हुए स्वयं को एक गोली मार ली और उनका प्राणान्त हो गया। अब दुर्गा भाभी आश्रय विहीन हो गई। वे इधर-उधर भटकती रहीं और कहीं अधिक चिंता उन्हें अपने पुत्र की थी। वे कहीं रही और पुत्र कहीं और रहता।
लाहौर पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें छह महीने नजरबंद रखा गया। उसके बाद भी लाहौर में ही तीन साल तक नजरबंद रखा गया और नजरबंदी समाप्त होने पर उन्हें मुक्त कर दिया गया।
अंत में वे गाजियाबाद पहुँच गयीं और वहाँ प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापन कार्य में लग गयीं और सफल अध्यापिका के रूप में उनका यश हुआ। बाद में दिल्ली आ गयीं और कांग्रेस में कार्य करने लगी। उनके तप, त्याग और लगन को देखते हुए उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। स्वाधीन भारत में लखनऊ को अपना स्थायी निवास बनाया और नन्हें-मुन्नों को राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत करने के लिए मांटेसरी विद्यालय खोला और अपनी सारी शक्ति उसमें लगा दी।
सबसे अन्त में अपने अवकाश प्राप्त पुत्र शचीन्द्र के साथ राजनगर, गाजियाबाद में रहने लगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक स्वयंसेवक ने शाल उढ़ाकर वहीं उनका अभिनंदन किया। आवाज में वही कड़क थी किन्तु नेत्र-ज्योति काफी क्षीण हो गई थी। बाद में उनका निधन हो गया। राष्ट्र के लिए समर्पित दुर्गा भाभी सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
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