भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है ? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये। प्रत्येक लिखित ग्रन्थ या संविधान की एक
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है ? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
- किसी संविधान या ग्रन्थ की प्रस्तावना का क्या अर्थ है ?
- प्रस्तावना के महत्वपूर्ण उद्देश्य बताइए।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना क्या है ? लिखिए।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका
प्रत्येक लिखित ग्रन्थ या संविधान की एक प्रस्तावना अर्थात् भूमिका होती है जो उस ग्रन्थ अथवा संविधान के प्रायोजन एव अर्थ को स्पष्ट करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। यदि ग्रन्थ के या संविधान के किसी बिन्दु पर भ्रम या अस्पष्टता की स्थिति उत्पन्न होती है तो उस जटिलता की स्थिति को उसकी प्रस्तावना के द्वारा ही स्पष्ट किया जा सकता है।
प्रस्तावना के उद्देश्य
किसी भी संविधान की प्रस्तावना के तीन महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हैं.
1. संविधान के स्रोतों का ज्ञान - प्रस्तावना के द्वारा किसी भी संविधान के मूल स्रोतों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। संविधान का निर्माण किस प्रकार किया गया उसके निर्माण में किसका सहयोग रहा, कहाँ-कहाँ से प्रेरणा प्राप्त हुई यद्यपि भारतीय संविधान के निर्माण में भारतीय जनता ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया, किन्तु परोक्ष रूप में इसके निर्माण में जनता का योगदान रहा है।
2. संविधान के उद्देश्यों का ज्ञान - संविधान की प्रस्तावना के द्वारा संविधान के उद्देश्यों का भी पता लगता हैं। न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुत्व और राष्ट्रीय एकता एवं अक्षुण्ता हमारे संविधान के घोषित उद्देश्य एवं लक्ष्य हैं।
3. संविधान के आधार का ज्ञान - किसी संहिता या ग्रन्थ की प्रस्तावना से उसके आधारों का भी पता चलता है। अर्थात् वह ग्रन्थ किन आधारों को ध्यान में रख कर लिखा गया है। भारतीय संविधान का आधार भी संविधान की प्रस्तावना से पता चलता है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान को ठीक से समझने के लिए उसकी प्रस्तावना को जानना आवश्यक है भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निम्नलिखित तथ्यपूर्ण वाक्यों का समावेश किया गया है -
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ-निरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धता बढाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26-11-1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत दो हजार छह) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
संविधान की प्रस्तावना का महत्व
संविधान की प्रस्तावना के शब्दों, उनके अर्थों व उद्देश्यों से प्रस्तावना की महत्ता स्वतः सिद्ध हो जाती है। निःसन्देह प्रस्तावना संविधान का अभिन्न महत्वपूर्ण अंग है। यह संविधान के दृष्टिकोण को व्यक्त करने का सशक्त साधन है।
यह प्रस्तावना न केवल इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें शासन की समस्त शक्तियों का स्रोत तथा आधार जनता को बताया गया है वरन् यह निर्धारित समय पर वयस्क मताधिकार के द्वारा किसी भी सरकार को पदच्युत या सत्तासीन कर सकती है। यह प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों और उद्देश्यों को भी स्पष्ट करती है। श्री पायली के शब्दों में “भारतीय संविधान की प्रस्तावना आज तक अंकित इस प्रकार के प्रलेखों में सबसे उत्तम है, विचार आदर्श एवं अभिव्यक्ति में हमारे संविधान की प्रस्तावना अनुपम है। यह संविधान की आत्मा है। 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा इसमें समाजवाद तथा धर्मनिरपेक्षता की विशेषता को जोड़ा गया है भारतीय संविधान की प्रस्तावना का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसके अन्तर्गत उदारवाद तथा समाजवाद दोनों का मिश्रण है।
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