भारत में राष्ट्रवाद की भावना पनपने में किन कारकों का योगदान था ? भारतीय इतिहास लेखकों ने भारतीय राष्ट्रवाद के उत्थान को अंग्रेजी प्रशासन के द्वारा बना
Bharat mein Rashtravad ka Uday avam Vikas : इस लेख में भारत में राष्ट्रवाद की भावना का उदय कैसे हुआ तथा राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का वर्णन किया गया है।
भारत में राष्ट्रवाद की भावना पनपने में किन कारकों का योगदान था ?
- भारत में राष्ट्रीयता की भावना और स्वदेश प्रेम के जाग्रत होने के क्या कारण थे?
- भारतीय राष्ट्रवाद के विकास के प्रमुख कारण क्या थे ? अंग्रेजों ने अप्रत्यक्ष रूप से क्या योगदान दिया ?
- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय जागरण के कारकों पर प्रकाश डालिए।
- भारतीय नवजागरण के विकास के दो कारणों की विवेचना कीजिए।
- भारतीय नवजागरण के कारणों की विवेचना कीजिए।
- भारतीय पुनर्जागरण का उदय अनेक कारणों से हुआ।' टिप्पणी कीजिए।
- "उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में राष्ट्रीय जागरण धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारणों के संयोग का परिणाम था' क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने दृष्टिकोण के समर्थन में तर्क देते हैं। इस कथन का विवेचन कीजिए।
- उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में राष्ट्रवाद के उत्थान तथा विकास के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रीय भावना के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
भारत में राष्ट्रवाद की भावना के उदय में सहायक कारक
परम्परागत भारतीय इतिहास लेखकों ने भारतीय राष्ट्रवाद के उत्थान को अंग्रेजी प्रशासन के द्वारा बनाई गई संस्थाओं. अवसरों तथा साधनों द्वारा उत्पादित प्रेरणा के फलस्वरूप भारतीय अनुक्रिय परिणाम बताया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि भारतीय राष्ट्रवाद कुछ सीमा तक उपनिवेशवादी नीतियों तथा कुछ सीमा तक उस नीति की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही उभरकर सामने आया।
- आधुनिक समाचार-पत्रों का उभरना - भारत में राज का प्रभाव आधुनिक समाचार-पत्रों का उभरना था। यूरोपीय लोगों ने ही भारत में मुद्रणालय स्थापित किया। समाचार-पत्र और सस्ता साहित्य प्रकाशित करना शुरू किया। धीरे-धीरे भारतीय भाषा में समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगे थे। ये समाचार-पत्र पाश्चात्य तरीके से विकसित थे। जबकि इन समाचार-पत्रों को बहुत से साम्राज्यवादी शासकों ने गोकना चाहा फिर भी भारतीय समाचार-पत्र बहुत विकसित हुए। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय स्वामियों द्वारा चलाये गये अंग्रेजी तथा भारतीय भाषाओं में समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 1877 तक भारतीय भाषा समाचार पत्रों की संख्या 169 तक पहुंच गई थी और उनकी प्रचलन संख्या एक लाख तक पहुंच गई थी।
- समाज तथा धार्मिक सुधार आन्दोलनों का प्रगतिशील रूप - 19वीं शताब्दी के शिक्षित भारतीयों ने प्राप्त पश्चात्य दर्शन व विज्ञान के प्रकाश में अपने धार्मिक विश्वासों, रीति-रिवाजों और सामाजिक प्रथाओं का पुनः परीक्षण करना प्रारम्भ किया। इसके परिणामस्वरूप, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आदि अस्तित्व में आये जिन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार किया। उसी प्रकार मुसलमानों, सिक्खों और पारसियों में भी सुधारवादी संस्थाएं बनीं।
- इतिहास के शोध का प्रभाव - सस्सन, मैक्समूलर, सर विलियम जोन्स, मोनियर तथा रॉथ जैसे प्रमुख विदेशी इतिहासकारों के प्राचीन भारतीय इतिहास में शोध करने से भारत की समद्ध सांस्कृतिक परम्परा का ज्ञान प्राप्त होने लगा। इस क्षेत्र में विशेष रूप से कनिंघम जैसे पुरातत्वविदों की खुदाइयों ने भारत की महानता व गौरव का यह चित्र प्रस्तुत किया जो रोम तथा यूनान की प्राचीन सभ्यताओं से किसी भी पक्ष में कम गौरवशाली नहीं था। इन यूरोपीय विद्वानों ने वेदों तथा उपनिषदों की साहित्यिक श्रेष्ठता और मानव मन के सुन्दर विश्लेषण के लिए उनका गुणगान किया।
- आधुनिक शिक्षा का प्रचलन - आधुनिक शिक्षा प्रणाली के माध्यम से आधुनिक पाश्चात्य विचारों का ज्ञान हुआ जिससे भारतीय राजनीतिक सोच को एक नया आयाम प्राप्त हुआ। जब सन 1895 में सर चार्ल्स ई. ट्रेविलियन, टी. बी. मैकाले और लार्ड विलियम बैंटिंक ने अंग्रेजी शिक्षा को प्रारम्भ किया तो वह अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय था।
- तीव्र परिवहन तथा संचार साधनों का विकास - वास्तव में परिवहन के तीव्र साधनों की योजनाएँ प्रशासनिक सुविधाएँ, सैनिक रक्षा के उद्देश्य, आर्थिक व्यापन और व्यापारिक शोषण की बातों को ध्यान में रखते हुए बनी। पक्के मार्गों का निर्माण किया गया जिससे प्रान्तों को एक-दूसरे से मिलाया गया और ग्रामीण प्रदेशों को बड़े-बड़े नगरों से जोड़ा गया।
- भारत में शान्ति तथा प्रशासनिक एकता की स्थापना - 18वीं शताब्दी की अव्यवस्था के पश्चात् अंग्रेजों ने यहाँ शान्ति तथा प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित कर ली थी। प्रायः अंग्रेजी विद्वान इस तथ्य पर गर्व करते हैं कि अंग्रेजों द्वारा भारत में पहली बार इतनी दीर्घकालीन शान्ति स्थापित की गई थी। इसी प्रकार एक सुव्यवस्थित और शक्तिशाली सरकार का गठन हुआ। एडवर्ड बेवन के अनुसार, "ब्रिटिशराज एक प्रकार का एक ऐसा लोहे का ढांचा था जिसने भारत के क्षतिग्रस्त शरीर को ऐसे समय तक जकड़कर बांधे रखा जब तक कि विस्थापित हड्डियाँ तथा आन्तरिक परिवर्तन से टूटे हुए तन्तु धीरे-धीरे जुड़ नहीं गये और रोगी ने पुनः अपनी आन्तरिक एकता तथा सम्बद्धता प्राप्त न
- समकालीन यूरोपीय आन्दोलनों का प्रभाव - समकालीन समस्त यूरोपीय देशों तथा दक्षिणी अफ्रीका को प्रभावित कर रही राष्ट्रवाद की तेज लहरों ने भारतीय राष्ट्रवाद को भी चेतना प्रदान की। अनेक राष्ट्रीय राज्य स्पेन तथा पुर्तगाल के दक्षिणी अमेरिका के साम्राज्यों के खण्डहरों पर स्थापित हो रहे थे। भारतीयों के मनोभावों को यूरोप में यूनान तथा इटली के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम ने और आयरलैण्ड के स्वतंत्रता संग्राम ने अत्यधिक प्रभावित किया। सुरेन्द्र बनर्जी तथा लाला लाजपत राय ने मेजिनी तथा उसके द्वारा आरम्भ किये गये तरुण इटली आन्दोलन पर तथा गैरीबाल्डी और कार्बोनारी आन्दोलनों पर व्याख्या दिये गये लेख लिखे। इस यूरोपीय राष्ट्रवाद ने उभरते हुए भारतीय राष्ट्रवाद को प्रभावित किया।
- जातिवाद - 1857 का विद्रोह शासकों तथा शास्ति' लोगों के बीच जातिवाद के कारण हुआ। इंग्लैंड की सुप्रसिद्ध व्यंग पत्रिका, 'पंच' अपने व्यंग्य चित्रों में भारतीयों को 'उपमानव जीव' के रूप में प्रदर्शित करती थी जो आधा गोरिल्ला तथा आधा हाशी था और जो वरिष्ठ पाश्विक शक्ति द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है। ऐंग्लो-इंडियन नौकरशाही ने भारतीयों के प्रति एक दर्प तथा घृणापूर्ण रुख अपनाना आरम्भ कर दिया था। .
- आर्थिक शोषण - भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंग्रेजी शासन का बहुत विनाशकारी प्रभाव पड़ा। पं. जवाहरलाल के अनुसार, "भारतीय अर्थव्यवस्था - - . . उस उच्च स्थिति तक पहुंच चुकी थी। जैली की औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व होनी चाहिए थी' परन्तु "विदेशी राजनीतिक प्रभुत्व . . . . ने इस अर्थव्यवस्था का शीघ्र ही विनाश कर दिया और उसके बदले में कोई अनुकूल तथा रचनात्मक तत्व कुछ भी नहीं दिया।
- इल्बर्ट बिल का विवाद - इल्बर्ट बिल पर विवाद हुआ जिसे लेकर दोनों पक्षों में उत्तेजना फैल गई और बहुत दिनों तक इसका अन्त नहीं हुआ। रिपन की सरकार ने "जाति भेद पर आधारित न्यायिक असमर्थताएँ" समाप्त करने का प्रयत्न किया। इल्बर्ट बिल ने जनपद सेवा के भारतीय जिला तथा सत्र न्यायाधीशों को वही शक्तियाँ तथा अधिकार देने का प्रयत्न किया जो कि उनके यरोपीय साथियों को मिले हुए थे। यूरोपीय लोगों की प्रतिक्रिया इतनी कटु थी कि वाइसराय को यह अधिनियम बदलना पड़ा। भारतीयों की इस झगड़े में आंखें खुल गई। उन्होंने देखा कि जहाँ यूरोपीय लोगों के विशेषाधिकार का प्रश्न है उन्हें न्याय नहीं मिल सकता।
- लार्ड लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियाँ - लार्ड लिटन की समीप दृष्टि वाली नीतियों ने भी राष्ट्र भावना को जगाने का कार्य किया। आई.सी.एस. में भर्ती होने की आयु 21 से घटाकर 19 कर दी गई ताकि भारतीय शिक्षित युवक परीक्षा ही न दे सकें। 1877 में भीषण अकाल के समय दिल्ली में एक भव्यशाली दरबार लगाकर लाखों रुपया नष्ट करना एक ऐसा कार्य था जिस पर एक कलकत्ता के समाचार पत्र लेखक ने लिखा, "नीरों वंशी बजा रहा था जब रोम जल रहा था।
- मध्यमवर्गीय बुद्धिजीवियों का उत्थान - अंग्रेजों की नई प्रक्रिया जो प्रशासनिक तथा आर्थिक क्षेत्र से सम्बन्धित थी, उससे एक नई मध्यमवर्गीय नागरिकों की श्रेणी का जन्म हआ। इस नई श्रेणी ने तत्परता के साथ अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया क्योंकि इससे नियुक्तियाँ प्राप्त करने में सविधा हो जाती थी। इससे अन्य लोगों से सम्मान भी मिलता था। इस नई श्रेणी का समाज में उच्च स्थान होने के कारण यह अग्रणी हो गई।
- अंग्रेजी राज्य का प्रभाव - अंग्रेजी औपनिवेशिक शासकों ने भारत में अपनी पकड मजबत भारत के आर्थिक शोषण के लिए राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक तथा बौद्धिक सभी क्षेत्रों में आधुनिक पद्धतियों का प्रयोग किया। औपनिवेशिक प्रशासन में आधुनिकीकरण की थोड़ी बहुत मात्रा आवश्यक ही थी और इस आधुनिकीकरण ने, यद्यपि यह कुछ विकृत ही थी, कुछ न कुछ प्रभाव उत्पन्न किए और एक प्रभाव था भारतीय राष्ट्रवाद का उदय।
- भारत की राजनीतिक एकता - साम्राज्यवादी इंग्लैण्ड ने हिमालय से कन्याकुमारी तक और बंगाल से दर्रा खैवर तक सम्पूर्ण भारत पर जीत हासिल कर ली। उन्होंने मौर्यो या मुगलों से भी बड़ा राज्य स्थापित कर लिया। भारतीय प्रान्त सीधे अंग्रेजों के कब्जे में थे, भारतीय रियासतें भी इनके कब्जे में न होकर इन्हीं की ही थीं। अंग्रेजी शक्ति ने भारत पर एक राजनीतिक एकता लाद दी थी। एक सी अधीनता, एक सी समस्याएँ, एक से कानूनों ने भारत को एक ढांचे में ढालना आरम्भ कर दिया। साम्राज्यवादी शक्तियों के देश में साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीय तथा भाजपाई तथा भाषाई विरोध के बीज बोने के बावजूद अखिल भारतीय भावना पनपी।
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