Janjati Andolan in Hindi - इस लेख में पढ़िए ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारत में होने वाले प्रमुख जनजातीय आंदोलन तथा इन जनजातीय आंदोलन के क्या परिणाम हुये
- 'खासी विद्रोह' पर टिप्पणी कीजिए।
- 'कोलियार विद्रोह' किन कारणों से हुआ? इसके क्या परिणाम हुये ?
- खोंड विद्रोह पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- "संथाल विद्रोह' क्या था ?
- भीलों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया गया ?
- अण्डमान निकोबार की जनजातियों द्वारा किए गए विद्रोह पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- जनजातीय विद्राहों की असफलता के प्रमुख कारण क्या थे?
- ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हुए जनजातीय विद्रोहों का भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में क्या महत्व रहा?
भारत में प्रमुख जनजातीय आंदोलन की व्याख्या
भारत में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी व्यापारिक उद्देश्यों से आयी थी परन्तु शीघ्र ही कम्पनी ने भारत में शासक की भूमिका प्राप्त कर्रिना प्रारम्भ कर दिया। अत्यन्त अल्प समय में ही कम्पनी ने भारत के बड़े भू-भाग पर अपना शासन स्थापित कर लिया। इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन की नींव पडी. जोकि भारतीय जनता एवं इसके हितों की दृष्टि से पूर्णतया प्रतिकूल सिद्ध हुआ। फलस्वरूप भारतीय जनमानस में ब्रिटिश शासन के प्रति असन्तोष उत्पन्न होने लगा। अंग्रेजों की निरन्तर बढ़ती गलत नीतियों ने भारतीयों में राष्ट्रवादी भावना के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। भारतीय जनता में शासन के प्रति विद्रोह के विचार पनपने लगे।
यह भारतीय राष्ट्रवाद का प्रारम्भिक चरण था। इस चरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में जनजातीय विद्रोहों का उल्लेख किया जा सकता है। इन जनजातीय विद्रोहों का भारतीय राष्ट्रवाद के उदय व प्रसार में महत्वपूर्ण स्थान रहा। अतः भारतीय राष्ट्रवाद के प्रारम्भिक चरण में जनजातीय विद्रोहों की भूमिका का परीक्षण निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत भली प्रकार किया जा सकता है-
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किये गये प्रमुख जनजातीय आंदोलन
18वीं सदी के उत्तरार्द्ध व 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों में अत्यधिक वृद्धि हो चुकी थी। इन नीतियों से सामान्य जनमानस के साथ-साथ दूरस्थ स्थानों पर निवास करने वाली तमाम जनजातियों को भी अत्यधिक उपेक्षा व कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। जनजातियों में विशेष रूप से भारी असन्तोष उत्पन्न हो चुका था क्योंकि ये एकाकी व स्वतंत्र जीवनयापन करने वाली जातियाँ थी और ब्रिटिश शासन की नीतियाँ इनके प्रति हस्तक्षेपवादी व बन्धनकारी थी। फलस्वरूप ब्रिटिश शासन के प्रति जनजातीय विद्रोहों की एक श्रृंखला प्रारम्भ हो गयी, इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोह निम्नलिखित हैं
खासी विद्रोह
खासी जनजाति बंगाल के जयन्तिया व गारो पर्वतों के मध्य निवास करने वाली एकान्तपसन्द जनजाति थी। ब्रिटिश शासन द्वारा इस क्षेत्र को सड़क मार्ग द्वारा असम के सिलहट से जोड़ने की योजना बनाई गयी। इस योजना का क्रियान्वयन भी खासियों की इच्छा के विरुद्ध प्रारम्भ कर दिया गया। सडक निर्माण हेत अनेक अंग्रेज व बंगाली इस क्षेत्र में आये परन्तु सभी का अभिमत सडक निर्माण कार्य बदस्तूर जारी रखने का था। इस प्रकार के उपेक्षापूर्ण व्यवहार ने खासी जनजाति को अत्यधिक क्षुब्ध कर दिया और उन्होंने अंग्रेजों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। धीरे-धीरे यह विरोध हिंसक विद्रोह के रूप में तब्दील हो गया। इस विद्रोह में ब्रिटिश लेफ्टिनेन्ट बडिंगफील्ड की हत्या कर दी गयी। इस घटना ने अंग्रेजों को तिलमिला कर रख दिया। फलस्वरूप अंग्रेजों द्वारा खासियों के गाँवों में आग लगाने का आदेश दे दिया गया। खासियों के गाँव नस्त-नाबूद हो गये और उनका मनोबल टूट गया। अन्ततः विवश होकर खासियों ने ब्रिटिशों के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया।
इस प्रकार के 'खासी विद्रोह' का अंग्रेजों के द्वारा दमन कर दिया गया।
कोलियार विद्रोह
गोलियार जनजाति बंगाल के ही छोटा नागपुर के वनों में निवास करती थी। जब ब्रिटिश शासन द्वारा क्षेत्र में हस्तक्षेप किया गया तो कोलियारों ने भी विद्रोह कर दिया। कोलियार विद्रोह शीघ्र ही राँची, पालामऊ तथा हजारीबाग तक के क्षेत्रों में फैल गया । पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण अंग्रेजों को इस विद्रोह के दमन में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। परन्तु अन्ततः अपनी धूर्ततापूर्ण व कूटनीतिक तथा दमनात्मक नीतियों के द्वारा अंग्रेजों ने 1832 ई. में इस विद्रोह का भी दमन कर दिया।
खौंड विद्रोह
खौंड जनजाति उड़ीसा के घने जंगलों में निवास करती थी। इनका समस्त संसार इन्हीं जंगलों में सीमित था और यह बाह्य दुनिया से पूर्णतया अलग-थलग थे। जब ब्रिटिशों का दखल इन जंगलीय क्षेत्रों तक हुआ तो इस जनजाति के लोगों के लिये यह असहनीय सिद्ध हुआ। अपने क्षेत्र में बाहरी व्यक्तियों के निरन्तर बढ़ते हस्तक्षेप से क्रोधित होकर इसने भी विद्रोह का मार्ग चुन लिया। खौंड विद्रोह भी धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। खौंड जनजाति को सर्वाधिक यह भय सता रहा था कि कहीं अंग्रेज उनकी भूमि पर कब्जा न कर लें। अतः यह विद्रोह तेजी से बढ़ता चला गया। 1846 ई. में यह विद्रोह अपने विकराल रूप में ब्रिटिश शासन के समक्ष आ गया। विद्रोह की विकरालता को देखते हुए अंग्रेजों को सेना की सहायता लेनी पड़ी। ब्रिटिश सेना ने अत्यधिक कठोर व नशेस रवैया अपनाते हुए शीघ्र ही इस विद्रोह का दमन कर दिया।
(iv) संथाल विद्रोह - संथाल जनजाति मुर्शिदाबाद के समीप निवास करती थी। संथाल जनजाति के विद्रोह का कारण भी बाह्य लोगों (ब्रिटिशों) का उनके क्षेत्र में हस्तक्षेप व आगमन था। संथाल विद्रोह भी अति व्यापक रूप में प्रकट हुआ और 1856 ई. तक ब्रिटिशों व संथालों में संघर्ष चलता रहा। अन्ततः ब्रिटिश सैन्य बल के आगे संथाल और अधिक समय तक संघर्ष नहीं कर पाये और ब्रिटिश सेना ने बर्बरतापूर्ण तरीके से इस विद्रोह को भी दबा दिया।
(v) भालों द्वारा विद्रोह - मध्य प्रदेश में निवास करने वाली भील जनजाति ने भी अंग्रेजों के विभिन्न कानूनों के विरुद्ध समय-समय पर विद्रोह किया। कभी मालवा तो कभी खान में भीलों द्वारा विद्रोह किया गया। परन्तु अंग्रेजों की सैन्य शक्ति के समक्ष भीलों का विद्रोह भी ज्यादा दिन तक चल न सका और अन्ततः अंग्रेजों द्वारा भीलों के विद्रोह का भी दमन कर दिया गया।
(vi) अण्डमान-निकोबार की जनजातियों द्वारा विद्रोह - अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह के भारतीय क्षेत्र में भी कई जनजातियाँ निवास करती थीं। जब अंग्रेजों ने 'अण्डमान-निकोबार द्वीपों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया तो यहाँ निवास करने वाली जनजातियों ने इसे अपनी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप व प्रतिबन्ध माना। अतः अण्डमान व निकोबार में निवास करने वाली जनजातियों ने अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु ब्रिटिशों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। अंग्रेजों ने यहाँ भी सैन्य बल का प्रयोग करके इन तानियों को भी अपनी सत्ता स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार यह विद्रोह भी समाप्त हो गया।
जातीय विद्रोहों की असफलता के कारण
जनजातीय विद्रोहों की असफलता के निम्नलिखित प्रमुख कारण रहें
विद्रोहों का संगठित रूप स न हो पाना - जनजातियों का विद्रोह संगठित न होकर यत्र-तत्र बिखरा हआ था। अतः अंग्रेजों को इनका दमन करने में कोई अधिक कठिनाई नहीं हुई।
(ii) योजना का अभाव - जनजातियों के पास एक सुनिश्चित योजना का अभाव था। इनके विद्रोह तत्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में ही प्रकट हुए। यदि यह योजनाबद्ध तरीके से किये गये होते तो इनकी सफलता की सम्भावनाएँ अधिक हो सकती थीं।।
(iii) ब्रिटिश सैन्य बल का अधिक शक्तिशाली होना - जनजातियों की तुलना में ब्रिटिश सेना अधिक शक्तिशाली थीं। ब्रिटिश सैनिकों के पास आधुनिक अस्त्र-शस्त्र होने के साथ-साथ इनकी संख्या भी अधिक थी, जबकि जनजातियों के पास संख्या बल कम होने के साथ-साथ आधुनिक शस्त्रों की भी अभाव था।
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय व प्रसार में जनजातीय विद्रोहों का महत्व
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनजातियों द्वारा किए गए विद्रोह यद्यपि सफल न हो सके, तथापि इन विद्रोहों का भारतीय राष्ट्रवाद के उदय व प्रसार की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। इन विद्रोहों ने भारतीय जनमानस को ब्रिटिश शासन के प्रति एकजुटता का सन्देश दिया। इन विद्रोहों के दमन ब्रिटिश सरकार द्वारा जिस बर्बरता से किया गया उसने भी भारतीय जनता को उद्वेलित कर दिया। फलस्वरूप भारतीय राष्ट्रवाद की भावना का समस्त भारत में तेजी से प्रसार होना प्रारम्भ हो गया, जिसका मूर्त रूप 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम में प्रकट भी हुआ।
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