Bharat mein Madhyam Varg ka Uday : भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही
Bharat mein Madhyam Varg ka Uday : भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिए। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की क्या भूमिका रही? भारत में मध्यम वर्ग का उदय किन परिस्थितियों में हुआ ? भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की दृष्टि से मध्यम वर्ग का क्या महत्व रहा ?
भारत में मध्यम वर्ग के उदय पर प्रकाश डालिए
उत्तर - भारत में मध्यम वर्ग का उदय भारत में मध्यमवर्गीय चेतना का विधिवत् शुभारम्भ सन् 1825 ई. के आस-पास बंगालं में राजा राममोहन राय द्वारा किया गया। यह मध्यम वर्ग बड़े-बड़े नगरों में रहने वाला अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त एक बुद्धिजीवी वर्ग था। इसका उद्देश्य शासन-प्रशासन में सहभागिता करना था। इस नवोदित मध्यम वर्ग ने भारतीय राष्ट्रवादी भावना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। अंग्रेजी शासन के प्रसार के फलस्वरूप में मध्यकालीन अनेक राजे-रजवाड़े और उनकी सामन्तवादी शासन प्रणालियाँ समाप्त हो चकी थीं। इसी के परिणामस्वरूप तत्कालीन शासन व्यवस्था में मध्यम वर्ग का उदय हुआ। मध्यम वर्ग के उदय के इसी के साथ कई अन्य कारण भी रहे जिनका कि उल्लेख अग्रलिखित शीर्षकों के अर्न्तगत किया जा सकता है .
भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारण
मध्यम वर्ग के उदय के निम्नलिखित प्रमुख कारण रहें -
(i) 1857 ई. जैसा स्वतन्त्रता संग्राम पुनः न हो पाना - 1870 ई. तक आते-आते यह बात स्पष्ट हो चुकी थी नवीन परिस्थितियों में सार्थक व प्रगतिशील नेतृत्व कर पाने के मामले में ब्राह्मणों व . मौलवियों का प्रभाव कम हो गया था। अतः ऐसे में 1857 ई. जैसे किसी सशस्त्र स्वतन्त्रता संग्राम की आशा क्षीण प्रतीत होने लगी थी और इसी निराशा ने मध्यम वर्ग के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(ii) भारतीय राजे-महाराजों व नवाबों की प्रशासकीय दुर्बलता - तत्कालीन परिस्थितियों में मध्यम वर्ग के उदय का एक प्रमुख कारण भारतीय राजे-महाराजों और नवाबों की दुर्बलता भी थी। यह प्रशासन व्यवस्था के कुशल संचालन एवं सशक्त नेतृत्व करने के मामले में असमर्थ हो चुके थे।
(iii) कृषकों तथा श्रमिकों की दयनीय स्थिति - भारत में तत्कालीन स्थितियाँ अत्यन्त चिन्तनीय थी और उनमें भी भारतीय 'कृषकों' तथा 'श्रमिकों की स्थिति तो अत्यन्त ही दयनीय थी। वे असहाय और असंगठित थे और उनसे किसी प्रकार के नेतृत्व की आशा भी नहीं की जा सकती थी। अतः इन स्थितियों में मध्यम वर्ग का उदय होना स्वाभाविक ही था।
(iv) नेतृत्वकर्ता विकासशील वर्ग की आवश्यकता - तत्कालीन स्थितियों में एक ऐसे वर्ग की आवश्यकता थी जो कुशल नेतृत्व प्रदान कर सके। प्रारम्भ में मध्यम वर्ग छोटा था परन्तु फिर भी यह विकासशील था। इसने शीघ्र ही पाश्चात्य शिक्षा व ज्ञान का अर्जन करके स्वयं में नेतृत्व की क्षमता का विकास कर लिया। तत्कालीन परिस्थितियों में ऐसे नेतृत्वकर्ता वर्ग की अत्यधिक आवश्यकता थी और उस वर्ग के उदय व विकास में इस आवश्यकता का भी प्रमुख योगदान रहा।
भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की भूमिका - भारत में उदित मध्यमवर्गीय चेतना की प्रमुख उद्देश्य ब्रिटिश शासन व प्रशासन की समझ प्राप्त करके इसमें अपेक्षित सुधारों को लागू करना था। इस वर्ग ने भारत में अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीतियों तथा इंग्लैण्ड में उनकी प्रजातान्त्रिक संस्थाओं के मध्य व्याप्त अन्तर को भली प्रकार समझा। इस समझ के आधार पर मध्यम वर्ग ने राष्ट्रीय आन्दोलन और भारतीय राष्ट्रवाद की भावना को जाग्रत करने में भारतवासियों को कुशल नेतृत्व प्रदान किया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए मध्यम वर्ग ने सर्वप्रथम राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार पर बल दिया। इस हेत इनके द्वारा कुछ उद्देश्यों का भी निर्धारण किया गया जोकि निम्नलिखित थे.
- भारत में ब्रिटिश शासन की खामियों और भारतीय जनता की समस्याओं के प्रति ब्रिटिश सरकार का ध्यान केन्द्रित कराना व अपेक्षित सुधारों को लागू करवाना।
- महारानी 'विक्टोरिया के घोषणा पत्र' के प्रावधानों को यथार्थ रूप में लागू कराने हेतु प्रयास करना।
- ब्रिटिश न्याय के प्रति आस्था रखते हए नियमों व कानूनों का पालन करना तथा इनके द्वारा व्यवस्था में सुधार करवाना।
इस प्रकार उपर्युक्त उद्देश्यों के द्वारा मध्यम वर्ग अहिंसात्मक तरीके से सर्वप्रथम भारत को राष्ट्रीयता के धागे में पिरोना चाहता था। इनका यह मानना था कि जब तक भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार न हो जाए तब तक स्वतन्त्रता के विषय में सोचना जल्दबाजी होगी। मध्यम वर्ग ने समाज सेवा व समाज-सुधार को प्राथमिक लक्ष्य माना तथा इनके द्वारा राष्ट्रवाद की भावना के प्रसार का बीड़ा उठाया। मध्यमवर्गीय चेतना के अग्रदूतों के रूप में बंकिम चन्द्र चटर्जी, रानाडे, बाल गंगाधर तिलक, दादा भाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले इत्यादि के नामों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। इन महापुरुषों द्वारा अहिंसात्मक रूप से एवं न्यूनतम हानि का मार्ग अपनाकर भारत में राष्ट्रीयता के प्रसार का कार्य किया गया, जोकि अत्यधिक उल्लेखनीय है।
अतः अन्ततः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि भारतीय राष्ट्रवाद के प्रसार में मध्यम वर्ग की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण रही। मध्यम वर्ग के प्रयासों के फलस्वरूप भारतीय जनमानस में चेतना आयी और राष्ट्रवाद की स्थायित्व प्राप्त हुआ।
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