असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए। असहयोग आंदोलन के दो कार्यक्रम बताइये। असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त - कांग्रेस और भारतीय जन
असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए। असहयोग आंदोलन के दो कार्यक्रम बताइये।
असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त
असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त - कांग्रेस और भारतीय जनता इस उम्मीद में थी कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार शासन व्यवस्था में उनके अधिकारों का विस्तार करेगी पर 1919 के माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों और रोलेट ऐक्ट जैसे छलाओं ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अंततः गाँधीजी ने 22 जून, 1920 को वायसराय को चेतावनी देते हुये एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि कुशासन करने वालों शासक को सहयोग देने से इन्कार करने का अधिकार हर आदमी को है। उन्होंने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया कि यदि सरकार भारतीयों को स्वशासन देने के अपने वादे से पीछे कदम हटाती है तो वे असहयोग आंदोलन छेड़ने के लिए बाध्य होगें।
सरकार के तरफ से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के कारण गाँधी जी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। सारे देश में हड़ताले आयोजित की गई, प्रदर्शन हुये और सभाओं का आयोजन हुआ। सितंबर 1920 में, कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में कांग्रेस ने आंदोलन को मंजूरी दी। दिसंबर 1920 के नागपुर के वार्षिक अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव को विधिवत पास किया गया। इस प्रस्ताव में आंदोलन से सबधित कार्यक्रम के अलावा अन्य बातों पर विस्तार से चर्चा की गई।
असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम
नकारात्मक कार्यक्रम
- सरकारी या अद्धसरकारी स्कूलों, कालेजों न्यायालयों तथा 1919 ई. के सुधारों पर आधारित परिषदों के चुनाव का बहिष्कार।
- सरकारी उपमाओं तथा (रायबहादुर आदि) स्थानीय संस्थाओं की मानोनीत सीटों से त्यागपत्र देना।
- सरकारी या अर्द्धसरकारी कार्यक्रमों में शामिल होने से इंकार करना।
- सैनिक, लिपिक पदों पर भारतीय द्वारा अंग्रेजों को प्रशासन तथा अपनी मातृभूमि के शोषण सहायता करने से इंकार करना।
- अंग्रेजी वस्त्रों एवं उत्पादों का बहिष्कार करना।
सकारात्मक कार्यक्रम - यह निम्न प्रकार हैं
- हाथ से सूत कताई एवं बुनाई को पुनर्जीवित कर स्वदेशी तथा खादी को लोकप्रिय बनाना।
- हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के बीच एकता का विकास करना।
- हरिजन कल्याण के लिए अस्पृश्यता समाप्त कर अन्य सुधार करना।
- महिलाओं का उत्थान तथा उनके विकास के लिए प्रयत्न करना।
- पहली अगस्त, 1920 को जिस दिन असहयोग आंदोलन शुरू हुआ उसी दिन प्रातः तिलक का निधन हो गया। गाँधी जी ने असहयोग के प्रस्ताव का विरोध करते हुए ऐनी बेसेन्ट ने कहा कि यह प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता का सबसे बड़ा धक्का है। एक मूर्खतापूर्ण विरोध तथा समाज और सभ्य जीवन के विरुद्ध संहर्ष की घोषणा है।'
- सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मदनमोहन मालवीय, सी.आर.दास, विपिन चन्द्रपाल, मुहम्मद अली जिन्ना, शंकरन नायर तथा सर नारायण चन्द्रावरकर ने प्रारंभ में इस प्रस्ताव का विरोध किया। फिर भी अली बंधुओं तथा मोतीलाल नेहरू के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
- ऐनी बेसेंट, मुहम्मद अली जिन्ना, विपिन चन्द्र पाल, जी.एस खापर्डे जैसे नेताओं ने गाँधी जी के प्रस्ताव से असंतुष्ट होकर कांग्रेस को त्याग दिया।
- नागपुर अधिवेशन का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसलिए महत्व है क्योकि वहाँ पर वैधानिक साधनों के अन्तर्गत स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को त्यागकर सरकार का सक्रिय विराध करने की बात स्वीकार की गई।
- आंदोलन शुरू होते ही गाँधी जी ने "कैसर-ए-हिन्द'' की उपाधि वापस कर दी। जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर' की उपाधि वापस कर दी।
- नागपुर प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि बाद में जनता को सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने और कर की अदायगी न करने के लिए भी कहा जा सकता है।
- केरल के मालाबार में असहयोग आंदोलन और खिलाफ आंदोलन ने खेतिहर मुसलमानों को उनके भूस्वामियों के खिलाफ संहर्ष छेड़ने के लिए उकसाया, लेकिन दुर्भाग्य से आंदोलन ने यहाँ कहीं-कहीं साम्प्रदायिकता का रूख अख्तियार कर लिया।
- अवध में एक आंदोलन चला यह जमींदारों को उखाड़ फेंकने के लिए था। असहयोग आंदोलन, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देशव्यापी जनसंहर्ष का प्रथम प्रयास था।
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