भारत सरकार अधिनियम 1858 ई. के दोष: 1858 ई. का अधिनियम एक महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेज था, किन्तु इसमें अनेक दोष थे। अतः इस अधिनियम की विचारकों द्वारा
1858 Adhiniyam ke Dosh : इस लेख में भारत सरकार अधिनियम 1858 के दोष तथा प्रमुख प्रावधानों का वर्णन किया गया है।
भारत सरकार अधिनियम (1858 ई.) के प्रमुख दोष बताते हुए इसके प्रावधानों के आलोचनात्मक बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
भारत सरकार अधिनियम 1858 ई - भारत में 1859 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम को देखने के उपरान्त ब्रिटिश सरकार ने शासन के क्षेत्र में सुधारवादी नीति को अपनाना आवश्यक समझा। अतः एक नवीन अधिनियम की आवश्यकता महसूस की गयी। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा 1858 ई. में भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम द्वारा भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन का अंत कर दिया गया और भारतीय शासन की बागडोर ब्रिटिश सम्राट के हाथों में दे दी गयी।
1858 भारत सरकार अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधान
- इस अधिनियम के द्वारा भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया तथा भारतीय प्रशासन सम्बन्धी सभी अधिकार पूर्णतः अंग्रेजी ताज को सौंप दिए गए। कम्पनी की सेना को भी इंग्लैण्ड के प्रशासन के अधीन कर दिया गया तथा इस बात की स्पष्ट घोषणा की गई कि अब रत पर शासन ब्रिटिश साम्राज्ञी के नाम से किया जायेगा।
- भारत में सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी 'गवर्नर जनरल' होता था उसका पदनाम अब गवर्नर जनरल तथा वायसराय कर दिया गया क्योंकि अब वह भारत में अंग्रेजी ताज के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था।
- पण मण्डल तथा निदेशकों के पदों को समाप्त कर दिया गया तथा उसके स्थान पर 'भारत सचिव के पद का सृजन किया गया। भारत सचिव कैबिनेट स्तर का मन्त्री होता था जोकि संसद . के प्रति उत्तरदायी होगी।
- भारत सचिव की सहायतार्थ एक परिषद की स्थापना की गई, जिसमें 15 सदस्य थे जिनमें से आठ सदस्य साम्राज्ञी के द्वारा नियुक्त किए जाते थे।
- भारत में शासन के निरीक्षण, निर्देशन का उत्तरदायित्व भारत सचिव पर ही था।
- भारत सचिव तथा उसके कार्यालय का समस्त खर्चा भारतीय राजस्व से वसूल किया जाता था अर्थात् उसका खर्चा भारतीयों को वहन करना था।
- भारत सचिव द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय प्रगति का लेखा-जोखा इंग्लैण्ड की संसद में प्रस्तुत किया जाएगा।
- भारत में लोकसेवाओं में नियुक्ति हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं का प्रारम्भ किया गया।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा स्वीकार की गयी सभी सन्धियाँ ब्रिटिश ताज को मान्य होंगी।
इस प्रकार भारत सरकार अधिनियम 1858 द्वारा भारत में व्यापक प्रशासनिक फेरबदल किया गया।
भारत सरकार अधिनियम 1858 ई. के दोष
1858 ई. का अधिनियम एक महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेज था, किन्तु इसमें अनेक दोष थे। अतः इस अधिनियम की विचारकों द्वारा कटु आलोचनाएँ की गयी हैं। इस सन्दर्भ में 'कनिघम' ने लिखा है कि - "इस अधिनियम से कोई ठोस परिवर्तनों के स्थान पर नाम मात्र के ही परिवर्तन हुए। इस अधिनियम की आलोचना के कई महत्वपूर्ण बिन्दु रहे, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं -
- भारत सचिव तथा उसके कार्यालय का खर्चा भारतीय राजस्व से लिया जाना पूर्णतः अनुचित था. क्योंकि वह भी ब्रिटिश मंत्रियों की भाँति कैबिनेट स्तर का एक मन्त्री था।
- इस अधिनियम के द्वारा प्रशासन में भारतीयों को भागीदार नहीं बनाया गया।
- भारत सचिव में अत्यधिक शक्तियाँ एवं अधिकार निहित थे जिनका शीघ्र ही दुरुपयोग होने लगा।
- इंग्लैण्ड की संसद भारत सचिव पर पूर्ण विश्वास करती थी तथा भारतीय मामलों में कोई रुचि नहीं लेती थी।
इस प्रकार अन्ततः कहा जा सकता है कि 1858 ई. के अधिनियम से न तो कोई महत्वपर्ण परिवर्तन किये गए और न ही भारतीयों को इससे कोई लाभ हआ था। रैम्जे म्योर ने इस सन्दर्भ में ठीक ही लिखा है "एक राजनीतिक शक्ति के रूप में 1858 ई. से बहुत पहले ही कम्पनी समाप्त हो चुकी थी। 1858 ई. के अधिनियम ने कम्पनी के शवको केवल भली भाँति दफनाने का कार्य किया।
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