इस लेख में पढ़े "लाटरी पर निबंध", "लॉटरी वरदान या शाप पर निबंध", "Essay on Lottery in Hindi"
इस लेख में पढ़े "लाटरी पर निबंध", "लॉटरी वरदान या शाप पर निबंध", "Essay on Lottery in Hindi"
Hindi Essay on "Lottery", "लॉटरी वरदान या शाप पर निबंध", "लाटरी पर निबंध"
लाटरी किसे कहते हैं ?
लाटरी शब्द मूलत: अंग्रेजी का है । इसकी भी व्युत्पत्ति अंग्रेजी के (लाट) शब्द से हुई है। इसका अर्थ भाग्य होता है। सामान्यतः लाटरी का प्रयोग पर्ची निकाल कर अथवा किसी भाग्य के आधार पर किसी बात का फैसला करने से तात्पर्य होता है।
प्राचीन काल में परम्परा यह थी कि जब मनुष्य शक्ति द्वारा अथवा निश्चित उपाय द्वारा किसी बात का फैसला नहीं कर पाता तो उसका फैसला भाग्य के आधार पर कर सकता था। इस प्रकार का फैसला पत्र लिखकर अथवा किसी और चिह्न के आधार पर किया जाता था। इसी प्रवृत्ति को लाटरी डालना अथवा लाटरी कहा जाता था।
आधुनिक युग में लाटरी शब्द का एक और भी अर्थ हो गया है। इसमें किसी निर्धारित वस्तु अथवा राशि को प्राप्त करने के लिए दाँव लगाते हैं। वे उस वस्तु की प्राप्ति के लिए टिकट खरीदते हैं अथवा एक निर्धारित राशि जमा करते हैं। उनमें से जिस व्यक्ति के नाम वह वस्तु निकल आती है वह उसे प्राप्त हो जाती है। लाटरी का वर्तमान रूप किसी निर्धारित राशि की प्राप्ति के लिए ही उपयोग में लाया गया है। अब से २० वर्ष पहले इस प्रकार का कार्य कुछ स्थानों पर अथवा कुछ योजनाओं के लिए होता था।
भारत में लाटरी
लाटरी का वह रूप जिसकी चर्चा प्रत्येक व्यक्ति की जबान पर है, पिछले कुछ ही वर्षों के अन्दर की देन है। कुछ देशों में लाटरी का व्यापार स्वयं सरकार द्वारा धन संग्रह के लिए चलाया है। भारत में भी पूर्व में राज्य सरकारें लाटरी चलाया करती थीं। इसके अन्तर्गत भारत सरकार की स्वीकृति से कुछ राज्यों ने अस्पतालों तथा अन्य समाज-कल्याण और लोक-कल्याण सम्बन्धी कार्यों के लिए धन एकत्रित किया। धन को एकत्र करने के लिए कुछ टिकट छापे गये और उनका एक मूल्य निर्धारित किया गया। यह भी घोषणा की गई कि एक निर्धारित धनराशि का पुरस्कार और कुछ अन्य पुरष्कार कुछ भाग्यशाली टिकट खरीदने वालों को दिए जायेंगे। टिकटों के नम्बरों को निकालने की एक यान्त्रिक योजना तैयार की गई है। इसका निरीक्षण कुछ सम्मानित व्यक्ति और टिकट खरीदने वाले दर्शको में से कुछ चुने हुए लोग करते थे। यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि किसी प्रकार के पक्षपात और बईमानी की सम्भावना न रह जाय। .
विविध राज्यों ने लाखों की धनराशि पुरस्कार के रूप में निर्धारित की । प्रथम पुरस्कार सिर्फ किसी एक का निकलता था। द्वितीय, तृतीय और अन्य पुरस्कार लाखों और हजारों की संख्या में उपलब्ध निकलते थे। इसके बदले में टिकटों की बिक्री करोड़ों रुपयों की होती है। इस प्रकार जिस व्यक्ति को धन उपलब्ध होता है उसे कुछ लाख रुपये प्राप्त होते हैं किन्तु राज्य को, समाज के हित के लिए करोड़ों रुपये की धनराशि उपलब्ध हो जाती थी।
क्या लाटरी नैतिक है ?
लाटरी के विषय में सामान्यतः यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्या इस प्रकार सरकारों द्वारा धन संचित करना नैतिक है ? इसके साथ-साथ 'इस सन्दर्भ में यह भी प्रश्न पूछा जाता है कि इस प्रकार धन संचित करना कि योजनाओं के फलस्वरूप लोगों के अन्दर जुआ खेलने की प्रवृत्ति में वृद्धि न हो सके । साथ ही साथ यह भी कहा जाता है कि वह सरकार को जुआ खेलने को नियमत: दण्डनीय मानती है, क्या इस प्रकार लोगों को जुआ खेलने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती न स्वयं उसके लिए सुविधाएं नहीं संजोती । जहाँ तक इस प्रश्न का सम्बन्ध है, बहुत हद तक सही है । किन्तु साथ में यह भी सही है कि मनुष्य में जुआ खेलने और कम से कम परिश्रम करके अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की लालसा निरन्तर विद्यमान रहती है ! लाटरो की योजना इन्हीं दो भावनाओं का लाभ उठाने के लिए तैयार की गई है। यह निश्चित है कि यह प्रश्न समाज-कल्याण और लोक-कल्याण के उद्देश्य के आगे फीका पड जाता है, यद्यपि गाँधीवादी विचारधारा के अनुसार इस प्रकार प्राप्त किया गया धन कदापि शभ कार्य में नहीं लगाया जा सकता। गाँधीजी ने नशेबन्दी का विरोध इसलिए किया था क्योंकि उसमे होने वाली आय कभी-कभी शिक्षा पर भी व्यय की जाती थी, और उनका यह मत था कि इस प्रकार जो शिक्षा दी जायगी वह किसी भी दशा में जनता और देश के लिए कल्याणकारी और अच्छी नहीं होगी।
लाटरी से लाभ
लाटरी से लाभ और हानि दोनों ही हैं । सामान्यतः इसके लाभ निम्नलिखित है :
- लोगों को जुआ खेलने का एक विकल्प मिल जाता है और इस प्रकार जिस धन का उपयोग वह सम्भवः जुआ खेलने के लिए लगाता, उसका वह लाटरी में लगाने का अवसर पा जाता था।
- राज्य सरकारों को कुछ हितकर और जनकल्याणकारी कार्यों के लिए धन संग्रह का अवसर मिल जाता था।
- सरकारें लोगों को कम से कम परिश्रम करके अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की प्रवृत्ति का उचित ढंग से लाभ उठाकर उनकी प्रवृत्ति को किसी पुण्य कार्य के लिए नियोजित करती थीं ।
- लाटरी के धन्धे ने अनेक लोगों को कुछ काम दिला दिया है। विभाग में कुछ लोगों को नौकरी मिली ही है, साथ-साथ बेचने वालों और एजेण्टों को भी इससे धन्धा मिल गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लाटरी ने इस देश में बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान कुछ हद तक किया है ।
- इसके काले धन के उजले बनने की सम्भावना हो गई है । अनेक ऐसे लोग जो लाखों की धनराशि काले धन के रूप में अपने पास संजोये हुए है, सामान्यतः टिकट जीतने वाले से टिकट खरीद लेते हैं और इस धनराशि को स्पष्ट रूप से व्यापार में लगा देते हैं । इससे वह धन जो हमारी अर्थ-व्यवस्था को असंतुलित बनाये हुये हुए है, कुछ उपयोग में आ जाता है।
लाटरी से हानियाँ
यद्यपि लाटरी से कुछ लाभ भी हैं किन्तु इसके साथ-ही साथ यह भी सम्भव है कि इससे अनेक :हानियाँ हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा हैं :
- लाटरी से लोगों में सट्टा खेलने की प्रवृत्तिबढ़ती है।
- लाटरी से लोगों में कम से कम परिश्रम करके अधिक से अधिक धन प्राप्त करने की प्रवृत्ति को भी प्रोत्साहन मिलता है।
- अनेक क्षेत्रों में इसके फलस्वरूप काले धन्धे का बाजार गर्म हो जाता है। एक ओर तो लोग लाटरी के टिकट को बढ़े दाम पर बेचते हैं, दूसरी ओर पुरष्कृत टिकटों का मूल्य खरीदने वालों के लिए बहुत अधिक बढ़ जाता है। सामान्यतः ५ लाख की धनराशि के पुरस्कृत टिकट काले धन से सम्पन्न लोगों के लिए इसके ऊपर ज्यादा धनराशि पर बिकता है । इससे जहाँ एक ओर एक स्थान से काला धन बाहर आता है वहाँ दूसरी ओर जमा भी हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि भी होती है और आर्थिक संतुलन और मुद्रा स्फीति जैसे तत्वों की वृद्धि हो जाती है।
उपसंहार
लाभ और हानियाँ दोनों होते हुए भी इस विषय में दो मत नहीं हो सकते कि लाटरी एक प्रचलित धन्धा है। इसका उपयोग राज्य सरकारें विविध समाज-कल्याण और जन-कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए कर रही हैं। इससे सुलभतापूर्वक धनराशि संचित हो जाती है और उसका उपयोग जनता के कल्याण के लिए किया जा सकता है।
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