Hindi Essay on “Sanch Barabar tap nahi Jhoot Barabar Paap”, “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप पर हिंदी निबंध” यह पंक्ति कबीर जी के एक दोहे की पंक्ति का एक चरण है। पूरा दोहा इस प्रकार है: "साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै सांच है ताके हिरदै आप" अर्थात् सत्य ही वह तपस्या है, जिसके बल से अपने-आप में ही प्रभ और सभी प्रकार की सफलता को पाया जा सकता है। एक उदाहरण से इसे यों समझा जा सकता है। एक बालक था। कुसंगति के कारण वह अनेक व्यसनों का शिकार हो गया। व्यसनों की पूर्ति के लिए धन चाहिए। अतः वह चोरी करने लगा। चोर के भला पाव कहाँ ? वह घर से भागा-भागा फिरने लगा।
Hindi Essay on “Sanch Barabar tap nahi Jhoot Barabar Paap”, “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप पर हिंदी निबंध”
यह पंक्ति कबीर जी के एक दोहे की पंक्ति का एक चरण है। पूरा दोहा इस प्रकार है:
"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सांच है ताके हिरदै आप॥"
अर्थात् सत्य ही वह तपस्या है, जिसके बल से अपने-आप में ही प्रभ और सभी प्रकार की सफलता को पाया जा सकता है। एक उदाहरण से इसे यों समझा जा सकता है। एक बालक था। कुसंगति के कारण वह अनेक व्यसनों का शिकार हो गया। व्यसनों की पूर्ति के लिए धन चाहिए। अतः वह चोरी करने लगा। चोर के भला पाव कहाँ ? वह घर से भागा-भागा फिरने लगा। उसने हत्याएँ की, लहू बहाये, धन लूटा, किन्तु उसे शान्ति न मिली। इस नारकीय जीवन से उबरने के लिए वह लालायित हो उठा; किन्तु अब वह तो कम्बल को छोड़ता था, कम्बल उसे नहीं छोड़ता था। बेचारा तंग आकर एक साधु की शरण में पहुंचा। साधु ने कहा-“भलेमानस, तुझे क्या कष्ट है ?" वह बोला-"मैं इतने पापों और व्यसनों में फँस गया हूँ कि अब अपने जीवन से निराश हो गया हूँ।" साधु ने कहा-"तुम अन्य सभी प्रकार के पाप चाहे करते रहो, केवल झूठ बोलना छोड़ दो और सत्य बोला करो।" उस व्यक्ति ने साधु की यह बात स्वीकार कर ली। अगले दिन वह व्यक्ति चोरी करने जा रहा था। मार्ग में उसका एक परिचित मिल गया और पूछने लगा-"कहाँ चले?" भला इसका उत्तर वह क्या देता? चप होकर बापस लौट आया। इस प्रकार सत्य बोलने का निश्चय करने से धीरे-धीरे उसके सभी पाप और व्यसन छूट गये। सत्य बोलने की प्रबल इच्छा ने ही उसके मन के सारे मैल धो दिये। उसे अच्छा मनुष्य बना दिया।
सत्य क्या है? जो मन में है वही वचन में हो और वही कर्म में भी हो। यह नहीं कि मन में कुछ, वचन में कुछ तथा कर्म में उन दोनों से उलटा। अर्थात जैसा देखो, वैसा समझो जैसा समझो. वैसा कहो; जैसा कहो.वैसा करो । यही परम सत्य है। जो आचरण-व्यवहार सर्वस्वीकृत है, उसका उचित ढंग से पालन करना ही सत्य है।
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संसार में सत्य की उसी प्रकार आवश्यकता है. जिस प्रकार अंधकार में दीपक की जब तक सत्य छिपा रहता है, तब तक झूठ, पाखण्ड, छल-कपट, धोखा, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि दुर्गुण फैलते हैं। सत्य के प्रकट होने पर झूठ के पाँव उखड़ जाते हैं। पाखण्ड का भण्डा फूट जाता है। छल-कपट का बादल फट जाता है। धोखा धुलकर बह जाता है। रिश्वत आदि भ्रष्टाचार समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप जीवन और समाज का सारा वातावरण उज्ज्वल हो जाता है।
मनुष्यों के लिए आपसी व्यवहार में सत्य की बड़ी आवश्यकता हुआ करती है। जो झूठ बोलता है, उस व्यक्ति का कोई विश्वास नहीं करता। कहानी प्रसिद्ध है. एक गड़रिया अपने गांव वालों को सताने के लिए प्रतिदिन चिल्लाया करता था-"शेर आया, बचाओ-बचाओ।" गाँव वाले आते तो वह ठठा कर कह देता–“मैंने तो तुम्हारे साथ हंसी की थी।" कहते हैं. एक दिन सचमुच शेर आ गया। वह चिल्लाया-"शेर आया, बचाओ-बचाओ।" किन्तु उस पर किसी ने विश्वास न किया और शेर उसे मारकर खा गया। असत्यवादी की सर्वत्र यही दशा हुआ करती है। सत्य का महत्त्व स्पष्ट है।
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पारस्परिक व्यवहार और सभी प्रकार के व्यापार का तो आधार ही सत्य है। राष्ट्रों का व्यवहार भी सत्य के सहारे चलता है। सभी धर्मों, जातियों और देशों के सभी धर्म-ग्रन्थ सत्य का प्रचार करते हैं। यहाँ तक कि बुरे से बुरा व्यक्ति भी यही चाहता है कि उसके सामने कोई झूठ न बोले। यदि किसी चोर का पुत्र उसके सामने झूठ कहे, तो चोर उसे अवश्य दंड देगा। जब बुरे लोग भी झूठ को बुरा मानते हैं, तो भले लोग उससे कोसों दूर क्यों न रहें। सत्यवादी के सामने कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं। उनको सहकर सत्य-मार्ग पर डटे रहना वस्तुतः तपस्या ही है। इससे बड़ा अन्य कोई तप नहीं है।
कभी-कभी यह देखा जाता है कि झूठ बोलने वाले छूट जाते है और सत्य बोलने का बन्दी बना दिये जाते हैं। इससे दूसरे लोगों का सत्य के प्रति विश्वास हिल जाता है। पारन्तु अन्त में विजय झूठ की नहीं होती। हाँ, जब तक सत्य छिपा रहता है, तब तक झटके दाल गल सकती है। ढोल की पोल खुलते ही लोग दूध को दूध और पानी को पार कहने लगते हैं। सत्य को अधिक देर तक दबाया या झुठलाया नहीं जा सकता। वह बाटले को फाड़कर प्रगट होने वाली सूर्य-किरणों के समान एक न एक दिन उजागर होकर अपने प्रकाश से सभी को चमत्कृत कर दिया करता है।
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जो व्यापारी सत्य-नीति पर चलते हैं, लोग उन पर विश्वास करते हैं। उनका माल बहुत बिकता है। लोगों को मोल-तोल नहीं करना पड़ता और धोखा खाने का भय भी नहीं रहता। लोग ऐसे व्यापारी के पास अबोध बालक को भी खरीद करने के लिए भेज देते हैं। जो दकानदार झूठ बोलता है, वह बदनाम हो जाता है। वह ग्राहकों को एक बार धोखा देगा, तो दुबारा उसकी दुकान पर कानी चिडिया तक न फटकेगी। कहावत भी प्रसिद्ध है कि काठ की हाण्डी दुबारा नहीं चढ़ा करती। झूठ का व्यापार बार-बार नहीं चलता। झूठ द्वारा की गयी उन्नति बहुत दिन तक नहीं रह पाती। अपना झूठ ही उसकी जड़ें खोखली कर अन्त में उसे नष्ट कर देता है।
सत्य का आचरण करना निश्चय ही कठिन होता है, किन्तु दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से सत्य की सफल साधना कर पाना कठिन और असंभव नहीं। जीवन उन्हीं का महान बनता है, जो सत्य का आश्रय लेकर सब काम करते हैं। सत्य को जीवन का दृढ़ आधार बनाने वाले ही अन्त में इतिहास-पुरुष बनते हैं, यह एक अटल सत्य है। इतिहास ऐसे ही पुरुषों को मान्यता और अमरत्व प्रदान किया करता है। अत: सत्य पर अटल रहने का भरसक अभ्यास करना और आदत डालनी चाहिए। अन्तिम विजय निश्चित है।
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