भारत की प्रमुख राष्ट्रीय समस्या पर हिंदी निबंध भारत की ज्वलंत समस्या पर निबंध Bharat ki Samasya par Nibandh Bharat ki Jwalant Samasya par Nibandh Hamari Pramukh Rashtriya Samasya par Nibandh हमारी प्रमुख राष्ट्रीय समस्या पर हिंदी निबंध भारत की ज्वलंत एस्से इन हिंदी लैंग्वेज Essay on Problems of india in Hindi. प्रगति और विकास के कई चरण पार कर जाने के बाद भी भारत को यदि समस्याओं का देश कह दिया जाये, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। समस्या भी एक नहीं, अनेक हैं, जिनसे यह देश निरन्तर जूझ रहा है। भारत में भाषा संबंधी समस्या पर निबंध
भारत की प्रमुख राष्ट्रीय समस्या पर हिंदी निबंध भारत की ज्वलंत समस्या पर निबंध Bharat ki Samasya par Nibandh Bharat ki Jwalant Samasya par Nibandh Hamari Pramukh Rashtriya Samasya par Nibandh हमारी प्रमुख राष्ट्रीय समस्या पर हिंदी निबंध भारत की ज्वलंत एस्से इन हिंदी लैंग्वेज Essay on Problems of india in Hindi.
भारत की प्रमुख राष्ट्रीय समस्याएँ पर निबंध Bharat ki Samasya par Nibandh
प्रगति और विकास के कई चरण पार कर जाने के बाद भी भारत को यदि समस्याओं का देश कह दिया जाये, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। समस्या भी एक नहीं, अनेक हैं, जिनसे यह देश निरन्तर जूझ रहा है। थोड़े स्थान और समय में उन सब की चर्चा कर पाना तो संभव नहीं, हाँ, कुछ मुख्य समस्याओं की चर्चा इस प्रकार से की जा सकती है:
Read also : Hindi Essay on “Bharat ki Samajik Samasya"
Read also : Hindi Essay on “Bharat ki Samajik Samasya"
जनसंख्या वृद्धि की समस्या - इस समस्या को विकासशील देशों में, विशेषकर भारत में बहुत विस्फोटक माना जा रहा है। सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था, तब इसकी कुल जनसंख्या तीस करोड़ के आस-पास थी। उसमें से माना जाता है कि दस-बारह करोड़ लोग पाकिस्तान में रह गये। लेकिन आज अकेले भारत की जनसंख्या 121 करोड़ के आस-पास पहुँच चुकी है। इस शती के अन्त तक, यदि रोका न गया, तो यह संख्या 1.5 अरब से भी अधिक हो जायेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं। इस कारण आज चिल्ला-चिल्ला कर लोगों को सावधान किया जा रहा है। आज ही जब जीने के लिए, रहने,खान, पीने के लिए कई तरह के अभावों से सामना हो रहा है, तब क्या दशा होगी, आज सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि उस स्थिति से बचने के लिए आवश्यक है कि कठोरता से काम लेकर जनसंख्या-वृद्धि पर नियंत्रण किया जाये। नहीं तो आदमी को आदमी ही खा जायेगा।
Read also : कश्मीर की समस्या पर निबंध
बेकारी की समस्या - जनसंख्या-वद्धि का एक परिणाम तो अभी से सामने आने लगा है। पढ़े-लिखे लोगों और अनपढ़ लोगों, सभी प्रकार के बेकारों की लम्बी कतारें लगती जारही हैं। उत्पादन और कार्यों के स्रोत पहले ही कम हैं, और भी कम होते जा रहे हैं। उधर हर वर्ष लाखों की संख्या में पढ़े-लिखे यवक और अनपढ़, अर्ध-शिक्षित नौकरियां पाने केलिए सामने आ रहे हैं। नौकरियाँ मिलती नहीं। उसी का परिणाम है कि आज अराजकता, हिंसा, आपाधापी, लूट-पाट बढ़ गयी है। काम-धन्धा न होने पर सपनों की दुनिया में जीने वाले लोग पेट पालने की खातिर अनैतिक-अराजक उपाय अपनाने को लगभग विवश हो जाते हैं। बेकारी की समस्या इस शती के दौर में और भी बढ़ जायेगी, यह सभी समझदार मानते हैं। उनका यह भी मानना है कि बेकारी पर काबू पाने के लिए एक तो जनसंख्या-वृद्धि पर नियंत्रण पाना आवश्यक है, दूसरे रोज़गार के साधन और अवसर भी बढ़ाये जाने चाहिये। अन्यथा बेकारों के मन में रहने वाले भूत जीवन और समाज को एकदम तहस-नहस करके रख देंगे।
Read also : भारत में भाषा संबंधी समस्या पर निबंध
अशिक्षा – भारत में जो तरह-तरह की परम्परागत और आधुनिक बुराइयाँ, कुरीतियाँ घर करती जा रही है, उसका एक बहुत बड़ा कारण अशिक्षा और निरक्षरता भी है। साक्षर-शिक्षित व्यक्ति ही अपना तथा सबका भला-बुरा समझकर अनेक प्रकार की बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा सकते हैं उन्हें दूर भी कर सकते हैं। अशिक्षा और निरक्षरता के कारण आज अनेक लोग चुस्त-चालाक लोगों द्वारा लट भी रहे हैं। अपने अधिकारों और कर्तव्यों से परिचित न होने के कारण वे अक्सर भटक जाते हैं। ठगे-लूटे जाने पर भी उपाय कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते। इस दृष्टि से शिक्षा और साक्षरता का प्रचार-प्रसार बहुत जरूरी है। राष्ट्र-विकास और राष्ट्रीयता का सम्मान बनाने-बढ़ाने के लिए भी शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। कहा जा सकता है कि इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। साक्षरों-शिक्षितों का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। उसके प्रकाश में देश कई बुराइयों और समस्याओं से लड़ पाने में समर्थ हो सकेगा, ऐसी आशा करनी चाहिए।
Read also : Hindi Essay on “Bharat mein Bal Shram ki Samasya”
प्रान्तीयता की समस्या – कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक यों तो भारत एक है, एक देश और राष्ट्र है, फिर भी कई बार प्रान्तीयता की समस्या उग्र होकर सामने आती रहती है। आदमी जिस प्रान्त का निवासी है, उसके भले और लाभ की बात सोचना बुरा नहीं,पर तभी तक कि जब तक यह सोच राष्ट्रीय सन्दर्भो को ध्यान में रखकर कार्य करती है। क्योंकि प्रान्त का अस्तित्व राष्ट्र का अस्तित्व बना रहने पर ही स्थिर बना रह सकता है! फिर कोई भी प्रान्त अपने साधनों पर जीवित नहीं रह सकता। आज के युग में मात्र अपने में सीमित होकर देश और राष्ट्र नहीं रह सकते, प्रान्तों की तो बात ही क्या है। राष्ट्रीय सन्दर्भो और हितों से उखड़ कर ही प्रान्तीयता समस्या बना करती है। कभी सीमा-शुल्क को लेकर प्रान्त उलझ जाते हैं, कभी नदियों के पानी को लेकर, कभी बिजली को लेकर तो कभी भाषा को लेकर। पंजाब, कश्मीर, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि में हम घृणित प्रान्तीयता का प्रचार देख चुके हैं। उसका कड़वा फल आज भी भोग रहे हैं। देश और उसके एक प्रान्त की हर वस्तु पर सभी देशवासियों का समान अधिकार है, इस बात या तथ्य को हमेशा मन-मस्तिष्क में रखकर, सहयोग और सहकारिता का भाव जगा कर ही प्रान्तीयता की भयानकता से छुटकारा पाया जा सकता है। अन्य कोई उपाय नहीं!
Read also : राष्ट्रभाषा की समस्या
साम्प्रदायिकता की समस्या – स्वतंत्र भारत के संविधान की मूल भावना के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है। यहां सभी धर्मो, सम्प्रदायों को अपने-अपने विश्वासों के अनुसार पूजा-उपासना करने, रहने, जीने, खाने-पीने, उत्सव-त्योहार मनाने का पूरा अधिकार है। अन्य धार्मिकता, जातीयता और साम्प्रदायिकता के लिए भारतीय संविधान के अनुसार इस देश में कोई स्थान और जगह नहीं है। अपने धर्मों-सम्प्रदायों, विश्वासों को मानते हुएभी राष्ट्रीयता की दृष्टि से हम एक है। फिर भी सभी जानते हैं कि हमें लगभग हर दिन कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता से दो-चार होना ही पड़ता है। पहले केवल जातीय और धार्मिक साम्प्रदायिकता ही झगड़ों का कारण बना करती थी, पर आज तो और भी कई प्रकार की साम्प्रदायिकता का विकास और विस्तार होता जा रहा है।जमींदार, किसान, व्यापारी कारखानेदार, मज़दूर आदि सभी वर्ग वास्तव में समुदाय बनकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय शक्ति, साधनों और समय का अपव्यय होता रहता है। जितनी बरबादी होती है, सदुपयोग करने और शान्ति रहने परउससे कई निर्माण कार्य संभव हो सकते हैं। सहनशीलता, सदभाव, प्रेम, भाईचारा और अहिंसा के भाव जगाकर ही इस भयानक हो गयी समस्या का कोई समाधान संभव हो सकता है।
Read also : मूल्यवृद्धि अथवा महँगाई की समस्या पर निबंध
राष्ट्रीय चरित्र का अभाव–हमारे विचार में इस देश में छोटी-बड़ी जितनी भी समस्याएँ है, उन सबका मूल कारण हमारे एक राष्ट्रीय चरित्र का न बन पाना ही है। वास्तव में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिसकी सबसे पहली और बड़ी आवश्यकता थी, उस चरित्र-निर्माण के प्रश्न की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गयी। समझदार होते हुए भी स्वतंत्रता-संग्राम जीतकर आने वाले राष्ट्रीय नेता बड़े-बड़े बाँध बनाने, कल-कारखाने स्थापित करने जैसे कार्य तो करत रहे; पर जिस राष्ट्रीय चरित्र का विकास करके उनके लाभों को समान रूप से सभीतक पहुंचाया जा सकता था। उसकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया! उसी का परिणाम है कि आज सारी व्यवस्था भ्रष्ट होकर रह गयी है। राष्ट्र की चिन्ता छोड़कर सभी अपने-अपने स्वार्थ-साधन में लगे हुए हैं। यदि अब हम एक राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण और विकास कर लेते हैं, तो हमारी सभी प्रकार की समस्याएँ अपने-आप ही हलहो सकती हैं।
Read also : ग्रामीण समाज की समस्याएं और समाधान पर निबंध
इस प्रकार दहेज की समस्या, काला बाजार, रिश्वत और भ्रष्टाचार की समस्या आदि और कई समस्याओं का उल्लेख भी राष्ट्रीय समस्याओं के रूप में कियाजा सकता है। इन सभी के समाधान का एक ही उपाय है। वह है राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण चाहे वह निर्मम और कठोर बन कर ही क्यों न करना पडे, पर उसके बिना गुजारा नहीं।
Also Read भारतीयों की मुख्य समस्या क्या है? here https://hi.letsdiskuss.com/what-is-the-main-problem-of-indians
ReplyDelete