आज की बचत, कल का सुख. Aaj ki Bachat, Kal ka Sukh. बचत धन की हो या समय की, वर्तमान के सुखों का कारण तो बना ही करती है,भविष्य के सुख को भी सबके लिए सुरक्षित और आरक्षित कर सकती है.-महापुरुषों की यह बात मानकर हर आदमी को आज और इसी क्षण से ही उस दिशा में कार्यशील हो जाना चाहिए। संसार में जिसे समय या जीवन कहा जाता है, उसके मुख्य तीन भाग माने गये हैं। जो बीत चुका है, समय और जीवन के उस भाग को अतीत या भूतकाल कहा जाता है। क्योंकि यह घट कर बीत चुका है, इस कारण इसके लिखित रूप को इतिहास भी कहा जाता है।
आज की बचत, कल का सुख
Aaj ki Bachat, Kal ka Sukh
बचत धन की हो या समय की, वर्तमान के सुखों का कारण तो बना ही करती है,भविष्य के सुख को भी सबके लिए सुरक्षित और आरक्षित कर सकती है.-महापुरुषों की यह बात मानकर हर आदमी को आज और इसी क्षण से ही उस दिशा में कार्यशील हो जाना चाहिए।
संसार में जिसे समय या जीवन कहा जाता है, उसके मुख्य तीन भाग माने गये हैं। जो बीत चुका है, समय और जीवन के उस भाग को अतीत या भूतकाल कहा जाता है। क्योंकि यह घट कर बीत चुका है, इस कारण इसके लिखित रूप को इतिहास भी कहा जाता है। जो घट और बीत रहा है, समय और जीवन के इस भाग को वर्तमान काल या वर्तमान जीवन कहा जाता है। इसके विपरीत आज के हमारे घट और बीत रहे समय-जीवन के परिणामस्वरूप कल या आने वाले समय में घटेगा, होगा या बीतेगा और जिसके बारे में आज निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, उसे भविष्यत्काल, आने वाला समय या भावी जीवन कहा जाता है! बीते समय या भूतकाल में अपनी परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार मानव-जीवन और समाज ने अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित जो कुछ भी किया, उसी सबका परिणाम या फल हम लोग आज भोग रहे हैं। यह भी निश्चित है कि आज हम अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित जो कुछ भी करेंगे, हमारी आने वाली पीढ़ियों को उसी सब का परिणाम और फल भोगना पड़ेगा! आज का कर्म, कल का परिणाम या फल-भोग है, जीवन और प्रकृति का यही अटल नियम है।
संसार में जिसे समय या जीवन कहा जाता है, उसके मुख्य तीन भाग माने गये हैं। जो बीत चुका है, समय और जीवन के उस भाग को अतीत या भूतकाल कहा जाता है। क्योंकि यह घट कर बीत चुका है, इस कारण इसके लिखित रूप को इतिहास भी कहा जाता है। जो घट और बीत रहा है, समय और जीवन के इस भाग को वर्तमान काल या वर्तमान जीवन कहा जाता है। इसके विपरीत आज के हमारे घट और बीत रहे समय-जीवन के परिणामस्वरूप कल या आने वाले समय में घटेगा, होगा या बीतेगा और जिसके बारे में आज निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, उसे भविष्यत्काल, आने वाला समय या भावी जीवन कहा जाता है! बीते समय या भूतकाल में अपनी परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार मानव-जीवन और समाज ने अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित जो कुछ भी किया, उसी सबका परिणाम या फल हम लोग आज भोग रहे हैं। यह भी निश्चित है कि आज हम अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित जो कुछ भी करेंगे, हमारी आने वाली पीढ़ियों को उसी सब का परिणाम और फल भोगना पड़ेगा! आज का कर्म, कल का परिणाम या फल-भोग है, जीवन और प्रकृति का यही अटल नियम है।
ऊपर जो कहा गया है, उसे एक उदाहरण से स्पष्ट समझा जा सकता है। भूतकाल में मनुष्य जंगलों, पहाडी गुफाओं में रहकर शिकार के सहारे जीवन गुज़ारा करता था। धीरे-धीरे जब प्रकृति के खुले या गुफाओं के अँधेरे वातावरण की परिस्थितियाँ मनुष्य के लिए असहनीय होती गयीं, तब उसने सोच-समझ कर उनसे बाहर निकलने का प्रयत्न किया। उसने झोपड़ियाँ, फिर कच्चे मकान, फिर ईट-गारे के सामान्य मकान बनाने शुरु किये। यही प्रक्रिया निरन्तर आगे बढ़ती रहकर किलों, राजमहलों और आज के कई-कई मंज़िलों वाले लिफ्ट लगे भवनों के रूप में हमारे सामने आयी है। आज का जो स्वरुप है, उसके आधार पर आने वाले कल या भविष्य का निर्धारण इस आधार पर होगा कि हमारी वर्तमान की क्रिया-प्रक्रिया और गति-विधियाँ किस प्रकार की रहती हैं। स्पष्ट है कि बीते कल की सोच, परिश्रम और प्रक्रिया का फल हम आज भोग रहे हैं। आज हम जो कुछ कर रहे हैं, उसका फल आने वाले कल या भविष्य की हमारी पीढ़ियाँ भोगेंगी। इसी आधार पर यह भी स्पष्ट कहा और समझा जा सकता है कि आज की बचत ही कल या भविष्य के हमारे जीवन का सुख बन सकती है !
मनुष्य एक सोच-विचार कर सकने में समर्थ सामाजिक प्राणी है। वह जानता है कि सब दिन एक जैसे नहीं बीता करते । समय स्वभाव से ही गतिशील और बदलने वाला है। आज हमारे नयन-प्राण, हमारे हाथ-पैर सही सलामत है। उनमें देखभाल या सोच-विचार कर ठीक ढंग से परिश्रम करने की शक्ति है ! समय और स्थितियों का क्या पता? कल का
यह शक्ति, यह स्थिति नहीं भी रह सकती । तब यदि मनुष्य ने अपनी कमाई से कुछ बचाकर नहीं रखा होगा, तो बहुत संभव है कि कोई भी उसकी सहायता करने न आए। उसे लाचारी में भूखा मर जाना पड़े ! यही सोच-समझकर ही बद्धिमान लोग तरह-तरह से बचत करने, अपने कमाए धन में से एक अच्छा भाग सुरक्षित रखने का प्रयास किया करते हैं। आज क्या, किसी भी युग में दूसरों के यहाँ तक कि अपनी सन्तानों के भरोसे रहकर जीवन जिया नहीं जा सकता। ऐसे उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहते है कि जब वृद्ध मां-बाप को कई-कई समर्थ सन्तानों के रहते हए भी दर-दर भटकना पड़ा। अनाथालयों में आश्रय लेना पड़ा, या फिर भीख मांगते हए फुटपाथों पर अन्तिम साँस लेनी पड़ी। इस प्रकार की स्थिति किसी भी प्राणी पर आ सकती है। यदि इनकी सम्भावना पर विचारकर वह पहले से ही बचत आरम्भ कर देता है, तो भाग्य या दर्भाग्य से बेसहारा होने पर वह अपना कल यानी भविष्य का जीवन सुखपूर्वक काट सकता है। अतः बद्धिमत्ता यही है कि कल के सुख के लिए आज से ही बचत शुरू कर दे।
सरकारी नौकरियों में जो भविष्य निधि काटने और देने का प्रावधान रहता है,आदि देने की व्यवस्था की जाती है, उसका वास्तविक उद्देश्य बचत करके कल के जीवन के सुख और सुरक्षा की व्यवस्था करना ही है। जीवन में, विशेषकर आज के महानगरों के तरह-तरह के वाहनों से भरे भीड़-भाड़ वाले जीवन में कभी भी कोई दुर्घटना घट सकतीहै। कुछ भी बुरा-भला हो सकता है। यदि घर का कमाऊ सदस्य ही न रहे, तो बाकीपरिवार का तो फिर भगवान ही मालिक हुआ करता है। इसी प्रकार की दुखदायक स्थितियोंसे भविष्य को बचाये रखने के लिए कई प्रकार की बचतों को बढ़ावा दिया जाता है। बीमाकम्पनियाँ इसी उद्देश्य से आरम्भ की गयीं। जीवन सरक्षित रहना चाहिए। केवल सुरक्षित ही नहीं, सुखी और सुविधापूर्वक भी बीतना चाहिए। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब'आज की बचत कल का सुख' जैसे वाक्यों का अर्थ समझकर तत्काल उस पर आचरण भी आरम्भ कर दिया जाये ! बुद्धिमानी इसी बात और प्रयास में है!
कुछ लोग 'खाओ पिओ और मौज करो' का सिद्धान्त मानकर चलने वाले हुआ करते हैं। कुछ लोग 'अरे, आज खा-पीकर मौज कर लो, कल किसने देखा है', जैसे सिद्धान्तों की बातें किया करते हैं। कुछ लोग 'कल देखा जायेगा' जैसी बातें भी कहा करते हैं। इस प्रकार की बातें करने-कहने वाले लोग दूरदर्शी न होकर प्रायः आलसी किस्म के या बुद्धिहीन ही हुआ करते हैं। ऐसे ही लोगों को हारी-बीमारी में दूसरों के सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाते हुए सहायता मांगते हुए देखा जा सकता है। वक्त पड़ने पर वे लोग भविष्य में निरन्तर परिश्रम और बचत करने की बातें कह तो देते हैं, पर समय बीत जाने पर सब भूल, फिरअपनी गलत धारणाओं का शिकार होकर दुख पाते रहते हैं। ध्यान देने और याद रखने वाली बात है कि भूख-प्यास तो लगती ही है। अच्छा इसी में है कि इनसे छुटकारा पाने की व्यवस्था पहले ही से कर रखें। प्यास लगने पर कुआँ खोदने की कोशिश में प्यासे की मृत्यु भी हो सकती है। भूख लगी होने पर इच्छा करके भी काम कर पाना संभव नहीं हुआ करता। यही सब सोच-समझ बुद्धिमान लोग समय का सदुपयोग करते हुए, अपनी कमाई का भाग बचाना आरम्भ कर देते हैं।
परिश्रम और बचत करना जहाँ एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, लाभदायक है, भविष्य की सुख-सुविधा और सुरक्षा की गारण्टी है, वहाँ सारे समाज, देशों और जातियों के बारे में भी यह सत्य है। सामूहिक रूप से परिश्रम और बचत करना ही पूरे समाज, जाति और राष्ट्र की सुख-सुविधा और सुरक्षा की गारण्टी हो सकता है। इसलिए हमें देश-रूपी विशाल समाज का एक अंग होने के नाते अपने भविष्य की चिन्ता तो करनी ही चाहिए. सारे समाज और राष्ट्र के भविष्य की चिन्ता करना भी हमारा कर्तव्य हो जाता है। कहावत भी है कि बूंद-बूंद से ही घडा भरा करता है, जल की बूंद-बूंद से ही विशाल समुद्र का स्वरूप बना करता है। सो हर आदमी का कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने व्यक्ति-रूप बूंद को समाज-देश रूपी घडे या समुद्र में मिला दे। अपने से भी पहले वह समाज और राष्ट्र के कल के सुख की सोचे। उसके लिए लगातार परिश्रम करे ! उसके परिश्रम से अर्जित एक-एक पैसा उसके अपने लिए सारे समाज के लिए सुख की कल्पना साकार कर सकेगा,ऐसा हमारा विश्वास है।
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