Hindi Essay on “Mahatvakanksha ki Purti mein Asafalta ke Karan”, “महत्वाकांक्षा की पूर्ति में असफलता के कारण हिंदी निबंध”, for Class 6, 7, 8, 9, and 10 and Board Examinations.

Hindi Essay on “Mahatvakanksha ki Poorti mein Asafalta ke Karan”, “महत्वाकांक्षा की पूर्ति में असफलता के कारण हिंदी निबंध” जीवित मनुष्य में आकांक्षाएँ न हों, यह संभव नहीं हो सकता। क्योंकि आकांक्षाएँ जीवन के लिए आवश्यक होती हैं और मनुष्य स्वभाव से ही महत्त्वाकांक्षी होता है। महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए सोचे-सुलझे ढंग से लगातार परिश्रम की जरूरत हुआ करती है। महत्त्वाकांक्षा-पूर्ति का एकमात्र साधन निरन्तर प्रयत्न ही है। कुछ व्यक्ति अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति में उसी प्रकार असफल रहते हैं, जिस प्रकार तीव्र वेगवान अश्व पर बिना अभ्यास के सवार होने का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति की आशा की वेगवती तरंग में जिन व्यक्तियों की सुधबुध मारी जाती है जो एकदम छलांग लगाकर करोड़पति या सत्ताधारी बन जाने का प्रयास करते हैं, उनसे कई प्रकार के गलत काम हो जाते हैं।

Hindi Essay on “Mahatvakanksha ki Purti mein Asafalta ke Karan”, “महत्वाकांक्षा की पूर्ति में असफलता के कारण हिंदी निबंध”

जीवित मनुष्य में आकांक्षाएँ न हों, यह संभव नहीं हो सकता। क्योंकि आकांक्षाएँ जीवन के लिए आवश्यक होती हैं और मनुष्य स्वभाव से ही महत्त्वाकांक्षी होता है। महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए सोचे-सुलझे ढंग से लगातार परिश्रम की जरूरत हुआ करती है। क्योंकि “महान व्यक्तियों ने ऊंचा पद प्राप्त किया है, वह अकस्मात् छलांग लगाकर नहीं प्राप्त किया; बल्कि जिस समय उनके साथी सोते रहे उस समय सारी रात जागकर वे ऊँचे जाने-उन्नत होने का निरंतर प्रयत्न करते रहे थे।" महत्त्वाकांक्षा-पूर्ति का एकमात्र साधन निरन्तर प्रयत्न ही है।
Hindi Essay on “Mahatvakanksha ki Poorti mein Asafalta ke Karan”, “महत्वाकांक्षा की पूर्ति में असफलता के कारण हिंदी निबंध”
कुछ व्यक्ति अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति में उसी प्रकार असफल रहते हैं, जिस प्रकार तीव्र वेगवान अश्व पर बिना अभ्यास के सवार होने का प्रयत्न करने वाला व्यक्ति महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति की आशा की वेगवती तरंग में जिन व्यक्तियों की सुधबुध मारी जाती है जो एकदम छलांग लगाकर करोड़पति या सत्ताधारी बन जाने का प्रयास करते हैं, उनसे कई प्रकार के गलत काम हो जाते हैं। महत्त्वाकांक्षा के कारण कई बार व्यक्ति न्याय-अन्याय का विचार भुला देता है, वह विवेक की ओर से आँख मँद लेता है। परिणाम यह होता है।कि वह ठोकर खाकर गिर पड़ता है निराशा के गर्त में, जहाँ से फिर निकल पाना कठिन हुआ करता है।

अविवेकी, स्वार्थी और जिद्दी व्यक्ति, चाहे कुछ भी हो और साधन कैसे ही अपनाने पड़ें, हर प्रकार से अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति का प्रयल करता है। वह एकदम मनचाहा धन या पद पा लेना चाहता है, भले उसका यश हो या अपयश ! इस प्रक्रिया में वह मानवता के ऊँचे सिद्धान्तों की हत्या करने में भी संकोच नहीं करता। समाज का अहितकर आगे बढ़ना घोर अमानवता ही कही जायेगी। आज के आपाधापी वाले युग में इसी प्रवृत्ति की प्रधानता है।

जिस समय हम अतिशय महत्त्वाकांक्षी हो जाते हैं. उसकी पूर्ति में जल्दबाजी करनेलगते हैं, तो हमारे लिए कर्त्तव्य तथा अकर्त्तव्य में पहचान करना कठिन हो जाता है। भले-बुरे का विवेक हमें नहीं रहता, न्याय और अन्याय में अन्तर दिखाई देना बंद हो जाता है। जो व्यक्ति इस प्रकार लालसा के शिकार हो जाते हैं, वे किसी प्रकार के पाप-कर्म में भी संकोच नहीं करते। जो स्वार्थ के नशे में मदहोश हो जाते हैं. वे मानवता के स्थायी मल्यों की हत्या करते हुए भी नहीं झिझकते। सबसे ऊँचे बनने की ऐसी इच्छा एक भयंकर शक्ति बन जाती है, जो चरित्र का बलिदान करने से भी नहीं कतराती। अपने साथ-साथ दूसरों का बरा करने में भी नहीं झिझकती। उसका प्रयत्न वास्तव में सर्व नाशकारी बन जाया करता है।

प्रत्येक व्यक्ति में किसी विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण कार्य कर डालने की महत्त्वाकांक्षा अवश्य होनी चाहिए; कुछ मौलिक, नवीन, अद्भुत या सर्वोत्तम निर्माण करने की आकांक्षा होनी चाहिए। कोई ऐसा उज्ज्वल कार्य करने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए, जिससे वह हीन नरहे, जिससे वह महत्त्वाकांक्षाहीन व्यक्तियों की अपेक्षा ऊँचा उठे। महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति केलिए इस प्रकार की कामना करना सर्वथा उचित है कि वह अपने क्षेत्र में उस ऊँचाई तक जा पहुंचे जहाँ तक कोई न पहुँचा हो । परन्तु इस प्रकार की उन्नति करते हुए अपने पड़ोसियों के प्रति उदारता तथा दयालुता में कमी नहीं आनी चाहिए। अपने कर्म और व्यवहार मेंऐसी पवित्रता रहनी चाहिए कि दूसरों का अहित न हो।

आपने जिस व्यक्ति को ऊँचा उठाना है वह स्वयं आप हैं और आपको पूरी छूट है कि आपको जहाँ से प्रेरणा मिले. वहाँ से प्राप्त करें-परन्तु इतना ध्यान अवश्य रखें कि आपकी महत्त्वाकांक्षा से मानव हित की हानि न हो।

कभी-कभी किसी स्त्री या पुरुष से बातचीत करते हुए ही हमें ऊँचा उठने की कोई प्रेरणा मिल जाती है। जिसका हम पर अगाध विश्वास होता है (जबकि औरों को नहीं होता),जो हममें किन्हीं विशेष गुणों या योग्यताओं को परख लेते हैं (जबकि और लोग नहीं परख सकते) - उनसे वार्तालाप करते हए हमारे मन में महत्त्वाकांक्षा अकस्मात् जागृत हो जाती है; क्योंकि वे अपनी बातचीत से हमारे उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत कर देते हैं। उस समय भले हम उनकी बात पर अधिक विचार न करें; परन्तु सम्भव है उन्हीं की बात हमारे जीवन का परिवर्तन-बिंदु बन जाये। अतः प्रत्येक व्यक्ति की बात ध्यान से सुननी और प्रत्येक व्यवहार का गहरा मनन करके ही कोई उचित कदम उठाना चाहिए। चिन्तन के अभाव में असफलता ही हाथ लगा करती है, यह निश्चित है।

अनेक व्यक्तियों को किसी प्रेरणाप्रद पुस्तक के विचारों से अपने भविष्य के निर्माण की प्रेरणा प्राप्त हो जाती है। कई बार किसी उत्साहप्रद लेख को पढ़कर ही व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा जाग उठती है। संभव है, यदि वह व्यक्ति उस पुस्तक या उस लेख को न पढ़ता तो वह अपनी वास्तविक शक्ति को ही न पहचान पाता। जो वस्तु हमें हम उज्ज्वल भविष्य की एक झलक दिखाकर हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व को जगा देती है। हमारी इच्छित संभावनाओं के लिए हमें जागरूक कर देती है वह अमूल्य है। उसका अनुसरण उचित है।

अपने लिए इस प्रकार के मित्र चुन लेने चाहिए जो सफलता के लिए उत्तेजित करें,महत्त्वाकांक्षा की ज्वाला को तीव्रतर करें, मन में आशा-आकांक्षाओं की हलचल-सी मचा दें,तन-मन को आंदोलित कर दें-जिससे संसार में कुछ विशिष्ट, कुछ महान, कुछ मौलिक,कुछ उपयोगी काम करने की प्रेरणा मिले। इस प्रकार का एक ही मित्र, घातक विचारों अथवा उपेक्षावृत्ति वाले एक दर्जन मित्रों से अधिक श्रेयस्कर है। पर ऐसा एक मित्र मिलता बहुत कम है, अतः मित्रों का चुनाव बड़ी सावधानी से करना चाहिए। हमें उन लोगों के पास रहना चाहिए जो महत्त्वाकांक्षा को प्रबल और संयमित बनाते हैं, जो नियंत्रण और अनुशासन रखते हैं, जो सोचने-अनुभव करने के लिए बाध्य करते हैं। उन्हीं लोगों की संगति श्रेष्ठ है जो निरन्तर प्रेरणा के स्रोत बने रहते हैं।

हममें से बहुत-से व्यक्ति ऐसे मूढ़ होते हैं कि उनकी भावनाओं में कभी कुछ कर डालने की लहर ही नहीं उठती। वे जीवन में कभी भी अपनी महत्त्वाकांक्षा अर्थात् तमन्ना को नहीं जान सकते, जब तक कि बिल्कुल बढ़े और शक्तिहीन न हो जाएं। उस समय वे हाथ मलते रह जाते हैं; क्योंकि उनकी ताकत जबाव दे चुकी होती है। अतएव यह आवश्यक है कि यौवनावस्था में ही हम अपनी वास्तविक महत्त्वाकांक्षा को पहचान, अन्तर्मन से उसकी प्रेरणा पाकर आंदोलित हों, उसे पूर्ण करने में जुट जाएँ। जवानी में ही हमारे मन में हलचल मच जाये कि हमें क्या करना और क्या बनना है। हम अपने भविष्य को देख लें कि किस ऊँचाई तक हमें पहुंचना है और समझ लें कि अपने जीवन में वह सर्वोच्च प्रकार की योग्यता तथा कार्यकुशलता अवश्य प्राप्त कर लेनी है, जिसके बल पर हमारी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति हो सकती है।

बहुत-से लोग सोचते तो हैं; पर अपने ऊँचे लक्ष्य तक पहँचे बिना मर जाते हैं। कारण,वे अपनी योग्यता तथा कार्यकुशलता का विकास उसी अनुपात में करने का कभी प्रयत्न नहीं करते, जिस अनुपात से कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। वे अपनी योग्यता तो बढ़ाते है; परन्तु उसे इतनी ऊंची कोटि या स्तर तक नहीं ले जा पाते जहाँ तक सफलता के लिए आवश्यक है। उनके जीवन-क्षेत्र का बहुत-सा भाग बिना हल चलाए रह जाता है, फिर भारी उपज कहाँसे हो ? जीवन के सच्चे रलों की खानों से उनका स्पर्श भी नहीं हो पाता।

हम उस वस्तु का प्रयोग कभी नहीं कर सकते, जिसकी हमने पहले खोज न कर ली हो; अत: यदि हम अपनी सभी शक्तियों का सम्पूर्ण विनियोग अपने कार्य में करना चाहते हैं, यदि काम को सफल बनाने के लिए अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य लगा देना चाहते हैं, तो अपनी शक्तियों और योग्यताओं को हमें जानना होगा। उन्हें जान-समझ उचित ढंग से जगाकर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में लगाना होगा। बैठे रहने से न तो किसी का कोई काम कभी बना है और न ही बना करता है।

राष्ट्र में लाखों व्यक्ति ऐसे हैं, जो जीवन-भर कठोर मेहनत करते रहते हैं। यदि उनकी महत्त्वाकांक्षा कभी जागृत हो जाती, तो वे भी आज साधारण मज़दूर न होते-जीवन-भर श्रमिक ही न बने रहते, बल्कि किसी संस्थान के स्वामी होते, शक्तिशाली मनुष्य होते, अपनी जाति में ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित होते, परन्तु उनके अज्ञान ने उन्हें नीचे ही दबाए रखा औरवे अपनी छिपी शक्तियों तथा योग्यताओं को पहचान न सके। उन्होंने कभी भी अपना अन्वेषण एवं अध्ययन नहीं किया और जीवन-भर वे 'लकड़ी काटने वाले या पानी भरने वाले' बने रहे। इस तरह के लोगों को हम हर जगह देख सकते हैं। जो विराट् मनुष्य हैं;जिनमें महान बनने के लिए सभी गुण मौजूद थे, किन्तु उन्होंने अपने गुणों का विकास नहीं किया, उनकी सारी शक्तियाँ और तमाम योग्यताएँ सुस्ती और लापरवाह अवस्था में ही उनके भीतर दबी रह गयीं। उनके साथ ही समाप्त हो गयी। इन उदाहरणों से कुछ सीखो अपने महत्त्वपूर्ण जीवन में ऐसा अवसर मत आने दें!

हज़ारों लड़कियाँ ऐसी हैं, जो साधारण क्लर्क, टेलीफोन ऑपरेटर अथवा अन्य मामूली नौकरियाँ करके ही जीवन की सफलता मानकर आगे पढ़ने और बढ़ने का प्रयत्न नहीं करतीं। यदि वे प्रयत्न करके अपनी छिपी योग्यताओं को पहचान लें. अपनी शक्तियों से परिचित हो जाएं तो क्या वे आगे नहीं बढ़ सकतीं ? केवल पेट भरना ही तो काफी नहीं, जीवन में निरन्तर प्रगति करते जाना, एक से एक ऊँचा पद प्राप्त करते जाना ही जीवन की सफलता कहा जा सकता है। इसके लिए आवश्यकता होती है सुदृढ़ आस्था और मानसिक शक्ति की। जागरूक व्यक्ति उसे जगाकर अपना इच्छित अवश्य पा सकता है। आवश्यकता है वास्तविक जागृति और निरन्तर सक्रियता की।

शान्तचित्त बैठकर अपनी शक्तियों एवं विशिष्ट योग्यताओं की एक सूची बनानी चाहिए। जो अपने वर्तमान पद से असन्तुष्ट हैं, उन्हें लिखना चाहिए कि वे इससे बेहतर और कोन-सा काम कर सकते हैं? खोज करने की कोशिश कीजिए कि आपके उन्नत न होने का कारण क्या हैं? किन बातों के कारण आप पिछड़े हुए हैं? क्यों आपकी मनचाही तरक्की नहीं होती? अपने अन्तर्मन से बातचीत कीजिए और जानने का प्रयल कीजिए कि किन दोषों ने आपको आगे बढ़ने से रोक रखा है? अपने मन की गहराइयों में उतरकरअपनी त्रुटियों, भूलों और कमजोरियों को जानने का प्रयत्न कीजिए, जिनके कारण आपके जीवन का सही रूप से विकास नहीं हो रहा। बारम्बार इस पर विचार कीजिए कि अन्य लोग कैसे आगे बढ़ गए ? किन गुणों के कारण उनकी यात्रा प्रगति पथ पर अबाध गति से जारी रही। जबकि आप 'जहाँ के तहाँ' रुके रहे। यह सब जान-समझकर अपने आपको उचित मार्ग पर सक्रिय बनाइए। यदि अन्य लोग उन्नति कर गये तो आप क्यों नहीं कर सकते ? विश्वास जगाइये, अवश्य कर सकते हैं!

आत्मनिरीक्षण के क्षणों में सम्भव है, आपके अपने भीतर सोने की खान-हीरे-मोतियों का भण्डार दिखाई दे जाए, जिसे आपने कभी स्वप्न में भी नहीं देखा था। आपने अपने उन्नति के जिन छिपे गुणों को अभी तक नहीं खोज निकाला था, संभव है आत्मनिरीक्षण करते हुए आप उन्हें खोज पाएँ, जिनका विकास करके आप अपने जीवन के साथ-साथ पूरे समाज के जीवन में भी क्रान्ति ला सकते हैं।

हम अपनी जिस शक्ति को या जिस अंग को प्रयोग में लाते हैं, जिसका हम अभ्यास अथवा व्यायाम करते हैं, उसी को बलशाली होता देख सकते हैं। जिनको प्रयोग में लाना छोड़ देते हैं, हमारा वही अंग दुर्बल रह जाता है। हमें सोचना चाहिए कि कहीं हम अपनी शक्तियों का मूल्य कम तो नहीं ऑकते ? कहीं हम अपनी योग्यताओं का स्वयं अवमूल्यन करके अपने-आपको ही धोखा तो नहीं दे रहे ? यदि ऐसा लगे, तो झट से संभल जाइये।

किसी तुच्छ या हीन लक्ष्य को यदि हम अपना जीवनोद्देश्य बना लेते हैं, तो वह हमारी समस्त कार्य-शक्तियों को हीन बना देता है। इससे हमारी शासन करने की योग्यता लुप्त हो जाती है और व्यक्ति शासित बनकर रह जाता है। फिर मनुष्य उन्हीं इच्छाओं की पूर्ति में जीवन की इतिश्री समझने लगता है। हमें हीन भावना को कुचलकर आगे बढ़ना है,उन्नति की सीढ़ियों पर चढ़ते जाना है। हम रुक नहीं सकते. हमारी आकांक्षा महान है। उसकी पूर्ति लगन, परिश्रम और एकाग्रता से ही हमें करनी है। अपनी कुदाली से अपना रास्ता आप खोदकर बनाने वाला ही पूर्ण सफल हआ करता है, जो यह सत्य जान सक्रिय नहीं होता, वह कभी भी सफल नहीं हो सकता. यह परम सत्य है। 
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