26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर हिन्दी निबंध In this article you will get Short and Long Essay on Republic Day of India in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12 under 200 words, 300 words, 500 and 1000 words. Short Essay on Republic Day in Hindi 200 words हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र देश बना और फिर 26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान की स्थापना हुई और देश को संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में घोषित किया गया। Essay on Republic Day in Hindi 400 words 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद द्वारा भारतीय संविधान को पास किया गया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। Essay on Republic Day in Hindi 500 words 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र बन गया। संविधान लागू हो गया गवर्नर जनरल पद्धति समाप्त हो गई। डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने। तब से अब तक 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। Long Essay on Republic Day / 26 January in Hindi भारत के राष्ट्रीय पर्वों में 26 जनवरी का विशेष महत्व है। यह तिथि प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी लोकतंत्रात्मक-सत्ता का भान कराकर चली जाती है। यह दिवस हमारा अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व बन गया है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बहुत लंबा है। Essay on Republic Day in Hindi with Headings प्रस्तावना : देश के गणमान्य राजनीतिक नेताओं, मनीषियों तथा देशभक्तों ने मिलकर अखिल भारतीय कांग्रेस के सन् 1929 के लाहौर वाले अधिवेशन में 26 जनवरी को सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया था कि “पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना ही हमारा ध्येय है।"
हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र देश बना और फिर 26 जनवरी 1950 को भारत के संविधान की स्थापना हुई और देश को संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में घोषित किया गया।
गणतंत्र दिवस पूरे देश में पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है और इस दिन को भारत सरकार द्वारा राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया जाता है। इस महत्वपूर्ण दिन को मनाना गौरव और सम्मान की बात है। स्कूलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण, और अन्य प्रतियोगिताओं जैसे प्रश्नोत्तरी, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित निबंध प्रतियोगिता आदि आयोजित किए जाते हैं। पूरे देश में लोग झंडे फहराते हैं और राष्ट्रगान गाते हैं।
भारत-राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में यह समारोह विशेष उत्साह से मनाया जाता है। भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली में भारतीय सशस्त्र बलों की परेड की अध्यक्षता करते हैं। परेड का आयोजन विजय चौक से इंडिया गेट तक राजपथ पर किया जाता है। इस परेड में, सशस्त्र बल हथियार का प्रदर्शन करते हैं। इसके बाद भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति दी जाती है। स्कूलों के छात्र तथा छात्राएं पीटी का प्रदर्शन करते हैं। इसके साथ राष्ट्रगान का गायन भी होता है। सबसे अंत में वायु सेना के जहाज रंगीन गैस छोड़ते हुए विजय चौक के ऊपर से गुजरते हैं।
1929 का वर्ष था, दिसम्बर की 31 तारीख और रात के 12 बजे। लाहौर में रावी के तट पर कांग्रेस-पंडाल में पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने यह घोपणा की थी कि हम स्वतंत्र हो कर रहेंगे और पूर्ण स्वतंत्र हो कर रहेंगे। उसी दिन यह निश्चय किया गया था कि जनवरी महीने के अन्तिम रविवार को, जो उस वर्ष 26 जनवरी को पड़ा था, समस्त देशवासी यह प्रतिज्ञा करें कि पूर्ण स्वाधीनता हमारा अन्तिम लक्ष्य है और हम उसे ले कर रहेंगे। उस दिन से प्रतिवर्ष 26 जनवरी स्वाधीनता-दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। कभी अधिक उत्साह से और कभी कुछ शिथिलता के साथ।
ठीक 20 वर्ष बाद 26 जनवरी 1950 को देश ने पूर्ण स्वाधीनता का उत्सव सच्चे रूप में मनाया। देश स्वाधीन हो गया, औपनिवेशिक राज्य का नाम भी न रहा, देशवासियों द्वारा बनाया गया अपना विधान लागू हो गया और सरकारी भवनों पर केवल तिरंगा झण्डा फहराया जाने लगा । 26 जनवरी 1950 को हम पराधीन थे, केवल एक इच्छा थी स्वाधीन होने की, पूर्ण स्वाधीनता को हमने अपना लक्ष्य बनाया था, और बीस वर्षों के उतार-चढ़ाव देखने के बाद 26 जनवरी 1950 को हम पूर्ण स्वतंत्र हो गये; हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बन गया-ठीक उसी रूप में जिस तरह रूस फ्रांस और अमरीका पूर्ण स्वतन्त्र हैं।
15 अगस्त को अंग्रेज सरकार ने हमें स्वतन्त्रता दी थी, किन्तु वह पूर्ण स्वतन्त्रता न थी। हम अंग्रेजी साम्राज्य के अंग थे, इंगलैंड का राजा हमारे देश का भी राजा था। गवर्नर जनरल और गवर्नरों की नियुक्ति उसी की मुहर से होती थी। मुकदमों की अपील प्रिवी कौंसिल में सुनी जाती थी। किन्तु 26 जनवरी 1950 को भारतीयों द्वारा बनाया हुआ विधान लागू हो गया और हमने पूर्ण स्वतन्त्र गणराज्य बनने की घोषणा कर दी। अब हमारे देश में ऐसा विधान लागू है, जिससे भारत के प्रत्येक वयस्क स्त्री पुरुप को-ब्राह्मण या शूद्र, अमीर या गरीव सभी को-मत देने और शासन में भाग लेने का अधिकार है और यही सच्चा गणराज्य है।
लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी समझना चाहिए कि स्वाधीन होने पर हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गई हैं और हमें अब स्वयं राष्ट्र के एक सच्चे नागरिक की भाँति अपने देश की सर्वांगीण उन्नति करनी है। यदि हम सब अपने व्यक्तिगत या श्रेणीगत हितों की बलि देकर राष्ट्र की उन्नति में लग जायँ, तो हमारा देश फिर संसार का सर्वोन्नत राष्ट्र बन जायगा।
हमारी मातृभूमि भारत लंबे समय तक ब्रिटीश शासन की गुलाम रही जिसके दौरान भारतीय लोग ब्रिटीश शासन द्वारा बनाये गये कानूनों को मानने के लिये मजबूर थे, भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा लंबे संघर्ष के बाद अंतत: 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। लगभग ढाई साल बाद भारत ने अपना संविधान लागू किया और खुद को लोकतांत्रिक गणराज्य के रुप में घोषित किया। लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिनों के बाद 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद द्वारा भारतीय संविधान को पास किया गया। खुद को संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणराज्य घोषित करने के साथ ही भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।
भारत में निवास कर रहे लोगों और विदेश में रह रहे भारतीयों के लिय गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाना सम्मान की बात है। इस दिन की खास महत्वता है और इसमें लोगों द्वारा कई सारे क्रिया-कलापों में भाग लेकर और उसे आयोजित करके पूरे उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है। इसका बार-बार हिस्सा बनने के लिये लोग इस दिन का बहुत उत्सुकता से इंतजार करते है। गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारी एक महीन पहले से ही शुरु हो जाती है और इस दौरान सुरक्षा कारणों से इंडिया गेट पर लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी जाती है जिससे किसी तरह की अपराधिक घटना को होने से पहले रोका जा सके। इससे उस दिन वहाँ मौजूद लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो जाती है।
पूरे भारत में इस दिन सभी राज्यों की राजधानीयों और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भी इस उत्सव पर खास प्रबंध किया जाता है। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रपति दवारा झंडा रोहण और राष्ट्रगान के साथ होता है। इसके बाद तीनों सेनाओं द्वारा परेड, राज्यों की झाकियोँ की प्रदर्शनी, पुरस्कार वितरण, मार्च पास्ट आदि क्रियाएँ होती है। और अंत में पूरा वातावरण “जन गण मन गण” से गूँज उठता है।
इस पर्व को मनाने के लिये स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी बेहद उत्साहित रहते है और इसकी तैयारी एक महीने पहले से ही शरु कर देते है। इस दिन विद्यार्थीयों अकादमी में, खेल या शिक्षा के दूसरे क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिये पुरस्कार, इनाम, तथा प्रमाण पत्र आदि से सम्मान किया जाता है। पारिवारिक लोग इस दिन अपने दोस्त, परिवार,और बच्चों के साथ सामाजिक स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर मनाते है। सभी सुबह 8 बजे से पहले राजपथ पर होने वाले कार्यक्रम को टी.वी पर देखने के लिये तैयार हो जाते है। इस दिन सभी को ये वादा करना चाहिये कि वो अपने देश के संविधान की सुरक्षा करेंगे, देश की समरसता और शांति को बनाए रखेंगे साथ ही देश के विकास में सहयोग करेंगे।
प्रस्तावना : अंग्रेज भारत में व्यापार करने आए थे किंतु शासन बन बैठे। उन्होंने भारतवासियों पर अत्याचार ही नहीं किए अपितु उन्हें लूटा भी। भारत वासियों ने गुलामी की जंजीरें काटने का निर्णय किया। स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों ने एकता तथा स्वतंत्रता की आवश्यकता पर बल दिया। परिणाम स्वरुप एकता का प्रदर्शन करते हुए सभी भारतीयों ने 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है। इस युद्ध में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर, तात्या टोपे, कुंवर सिंह और नाना साहब जैसे वीरों ने भाग लिया। इसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का एक निरंतर सिलसिला चलता रहा। एक ओर तिलक, गोखले, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी तथा मोतीलाल जैसे नेताओं ने आंदोलन छोड़ दिया दूसरी ओर रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रांतिकारी उठ खड़े हुए और अंग्रेजों को आतंकित करने लगे। हजारों स्वतंत्रता सेनानी स्वतंत्रता की बलि चढ़ गए।
संविधान का अंगीकार : 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। अंग्रेज भारत को छोड़कर चले गए। भारत के लोगों ने स्वतंत्रता की खुली हवा में सांस ली। भारत में विभिन्न धर्म जातियों तथा उप जातियों के लोग रहते थे। उनको इकट्ठा करने के लिए यह आवश्यक था कि भारत का शासन उनकी इच्छाओं के अनुरूप चलाया जाए। दूसरे शब्दों में भारत के सभी वर्गों को देश की शासन व्यवस्था में सम्मिलित करना जरूरी था। परिणाम स्वरुप संविधान सभा की स्थापना की गई। 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र बन गया। संविधान लागू हो गया गवर्नर जनरल पद्धति समाप्त हो गई। डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने। तब से अब तक 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
मनाने का तरीका : इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है। सभी कार्यालय और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। सरकार द्वारा कई योजनाओं की घोषणा की जाती है। सरकारी समारोह होते हैं। गणतंत्र दिवस का मुख्य समारोह दिल्ली में होता है। यह बड़ा ही भव्य समारोह होता है। सेना पुलिस तथा बलों के दस्तों के द्वारा परेड निकाली जाती है। राष्ट्रपति सलामी लेते हैं। रंगारंग कार्यक्रम काफी समय चलता रहता है। बैंड की मधुर धुनों पर परेड होती है। स्कूलों के छात्र तथा छात्राएं पीटी का प्रदर्शन करते हैं। सभी राज्यों द्वारा उनके राज्यों से संबंधित झांकियां निकाली जाती हैं।भारत के विभिन्न राज्यों से आए नर्तक तथा नर्तकियां अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसी अवसर पर वीर बालक तथा बालिकाओं को सम्मानित किया जाता है।
उपसंहार : गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत की राजधानी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया जाता है गणतंत्र दिवस पर उपरोक्त समारोह देखने लोग बहुत ही सुबह पहुंचने शुरू हो जाते हैं। दिन होते होते राजपथ पर अनंत भीड़ इकट्ठी हो जाती है। सारा दिन राजधानी में चहल पहल रहती है रा.त को राष्ट्रपति भवन जैसे महत्वपूर्ण भवनों पर रोशनी होती है। इस अवसर पर आतिशबाजी का कार्यक्रम भी होता है। 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट जैसे कार्यक्रम के साथ गणतंत्र दिवस समारोह समाप्त होता है।
भारत के राष्ट्रीय पर्वों में 26 जनवरी का विशेष महत्व है। यह तिथि प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी लोकतंत्रात्मक-सत्ता का भान कराकर चली जाती है। यह दिवस हमारा अत्यंत लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व बन गया है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास बहुत लंबा है। 26 जनवरी का दिन इस संघर्ष में नया मोड़ देने वाला बिंदु है। सन 1929 तक स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग कर रहे थे किंतु जब अंग्रेज किसी भी तरह इसके लिए तैयार नहीं हुए तब अखिल भारतीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए 1929 को लाहौर के समीप रावी नदी के तट पर घोषणा कि यदि ब्रिटिश सरकार औपनिवेशिक स्वराज्य देना चाहे तो 31 दिसंबर 1929 से लागू होने की स्पष्ट घोषणा करें अन्यथा 1 जनवरी 1930 से हमारी मांग पूर्ण स्वाधीनता होगी। इस घोषणा के बाद 26 जनवरी 1930 को कांग्रेस द्वारा तैयार किया हुआ प्रतिज्ञा पत्र पढ़ा गया। इसमें सविनय अवज्ञा और करबंदी की बात कही गई।
इस पूर्ण स्वाधीनता के समर्थन में 26 जनवरी 1930 को सारे देश में तिरंगे (राष्ट्रीय ध्वज) के नीचे जुलूस निकाले गए। सभाएं की गई। प्रस्ताव पास करके प्रतिज्ञा की गई कि जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र ना हो जाएंगे तब तक हमारा स्वतंत्रता युद्ध चलता रहेगा। लाठी और डंडों, तोपों, बंदूकों और पिस्तौलों से सजी हुई फौज और पुलिस चौकी से घिरे हुए भी हमने प्रतिवर्ष इस दिवस को अपनी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रतिज्ञा दोहराते हुए मनाया।
अब स्वतंत्रता दिवस का महत्व 15 अगस्त को प्राप्त हो गया किंतु 26 जनवरी दिन भी अपना महत्व रखती है। भारतीयों ने इसके गौरव को स्थिर रखने के लिए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गणमान्य नेताओं द्वारा निर्मित विधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया। इस दिन भारत में प्रजातांत्रिक शासन की घोषणा की गई। भारतीय संविधान में देश के समस्त नागरिकों को समान अधिकार दिए गए। भारत को गणराज्य घोषित किया गया। इसलिए 26 जनवरी को ‘गणतंत्र दिवस’ कहा जाता है।
भारत-राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में यह समारोह विशेष उत्साह से मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या को राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हैं। यह कार्यक्रम दूरदर्शन पर देखा तथा आकाशवाणी से सुना जा सकता है।
गणतंत्र दिवस का प्रातः कालीन कार्यक्रम आरंभ होता है, ‘शहीद ज्योति’ के अभिवादन से। प्रधानमंत्री प्रातः ही इंडिया गेट पर प्रज्वलित ‘शहीद ज्योति’ जाकर उसका अभिनंदन करके राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
कुछ ही क्षण पश्चात राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी चलती है। 6 घोड़ों की बग्घी पर यह सवारी दर्शनीय होती है। इसी शाही बग्घी पर राष्ट्रपति अपने अंग रक्षकों सहित जुलूस के रुप में विजय चौक तक आते हैं। सुरक्षात्मक कारणों से सन 1999 से गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परंपरा अनुसार किसी एक अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि के रुप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेना अध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।
इसके बाद आरंभ होती है गणतंत्र दिवस की परेड। परेड का प्रारंभ सेना के तीनों अंगों के सैनिक करते हैं। बैंड की धुन पर अपने शानदार गणवेश में सैनिकों का पथ संचलन देखते ही बनता है। ऊंटों, घोड़ों तथा हाथियों पर सवार दस्तों के वाहनों की टापों की एकरूपता मनमोहक होती है।
अब भारत की विविधता में एकता प्रदर्शित करती हुई आती है विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियां, तत्पश्चात लोक नाटक मंडलियां। राज्यों की ये झांकियां दर्शनीय होती हैं। ये अपने राज्य की किसी विशिष्टता का प्रतीक होती हैं। लोक नर्तक मंडलियों में लोकनृत्य के साथ उस राज्य की वेशभूषा का सौंदर्य दर्शनीय होता है।
युवा एवं बाल छात्र-छात्राओं की बहुरंगी पोशाकों वाली टोलियां परेड का विशेष आकर्षण होती हैं। NCC के कैडिटों का मार्च पास्ट, रंगीन पताकाओं को फहराती, बैंड बजाती एवं डम्बल आदि की स्कूलों की टोलियां ह्रदय को गुदगुदा देती हैं। लाखों दर्शक ताली बजाकर उनका स्वागत करते हैं।
सबसे अंत में वायु सेना के जहाज रंगीन गैस छोड़ते हुए विजय चौक के ऊपर से गुजरते हैं। जहाजों की आवाज सुनकर दर्शकों का ध्यान उड़ते हुए जहाजों की ओर बरबस खिंच जाता है।
विजय चौक से लेकर लाल किले तक अपार जनसमूह इस कार्यक्रम को देखने के लिए जनवरी की शीत में भी सूर्योदय से पहले ही इकट्ठा होना शुरू हो जाता है। विजय चौक पर जहां राष्ट्रपति सैनिकों की सलामी लेते हैं, बच्चों, युवकों तथा वृद्ध नर-नारियों की अपार भीड़ होती है।
सायं काल सरकारी भवनों पर बिजली की जगमगाहट होती है। रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। सांसदों, राजनीतिज्ञों, राजदूतों तथा गणमान्य व्यक्तियों को राष्ट्रपति भोज देते हैं।
भारत के विविध क्षेत्रों के विशिष्ट जनों को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण तथा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया जाता है। वीरता तथा पराक्रम दिखाने वाले वीर सैनिकों को इस अवसर पर सम्मानित तथा अलंकृत किया जाता है। साहसी और विशिष्ट शौर्य प्रदर्शन करने वाले पुलिस जनों को भी विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया जाता है। यह सम्मान तथा अलंकरण लोगों में उत्साह उत्पन्न करता है। देशहित और अधिक निष्ठा व्यक्त करने की प्रेरणा जागृत करता है।
प्रस्तावना : देश के गणमान्य राजनीतिक नेताओं, मनीषियों तथा देशभक्तों ने मिलकर अखिल भारतीय कांग्रेस के सन् 1929 के लाहौर वाले अधिवेशन में 26 जनवरी को सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया था कि “पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना ही हमारा ध्येय है।" पवित्र सलिला रावी के पुनीत तट पर समस्त देशभक्तों ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक हम पूर्ण स्वराज्य प्राप्त नहीं कर लेंगे तब तक न शान्ति से बैठेंगे और न शत्रु को बैठने देंगे। तभी से निरन्तर होना। यह दिन स्वराज्य दिवस के नाम से देश के कोने-कोने में मनाया जा रहा था। इस दिन सभायें होती थीं, जुलूस निकाले जाते थे, राष्ट्रीय ध्वजवन्दन होता था, देशभक्तिपूर्ण वीरों के भाषण होते थे, और वही पुरातन प्रतिज्ञा फिर से दोहराई जाती थी। इस दिन शताब्दियों की दासता की श्रृंखला से दुःखी भारतीय एक स्वर से बलिदान की प्रतिज्ञा करते तथा उत्साह से उनके वक्ष फूल उठते थे। यह वही दिन है, जिस दिन देशभक्तों की धर-पकड़ होती, डण्डे पड़ते और वे जेलों में भर दिये जाते थे, केवल इसीलिए कि वे अपने देश की स्वतन्त्रता चाहते थे। परन्तु गौरांग शासकों को यह सब कुछ सह्य नहीं था, वे इस पवित्र दिवस को मनाने पर प्रतिबन्ध लगाते, जुलूस व सभाओं को अवैध घोषित करते, प्रतिबन्ध तोड़ने पर स्वतन्त्रता के दीवानों को अनन्त यातनायें सहनी पड़ती थीं। परन्तु भारतीय अपने कर्तव्य-पथ पर अडिग रहे, भयानक से भयानक प्रभंजन उन्हें अपने पथ से विचलित न कर सके। उसी अविचल देशभक्ति का परिणाम है कि हम आज स्वतन्त्र हैं, हमारी भाषा, हमारी संस्कृति, हमारा धर्म और सभ्यता देश के उन्मुक्त स्वतन्त्र वातावरण में श्वाँस ले रही है। जिस स्वतन्त्रता रूपी वृक्ष का बीजारोपण आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व लोकमान्य तिलक और गोखले आदि महापुरुषों ने किया था, आज वही वृक्ष अपने अनुपम सौरभ से दिग्दिगन्तों को सुरभित करते हुए पल्लवित पुष्पित होता हुआ फलभारावनत हो रहा है।
26 जनवरी का महत्व : सन् 1950 में जब भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया, तब यह विचार किया गया कि किस तिथि से इसे भारतवर्ष में लागू किया जाये। अनेक विचार-विमर्श के पश्चात् 26 जनवरी ही उसके लिये अधिक उपयुक्त तिथि समझी गई क्योंकि वर्ष 1930 में 26 जनवरी को ही कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त करने की घोषणा की गई थी। अतः 26 जनवरी, 1950 को भारतवर्ष सम्पूर्ण प्रभुता-सम्पन्न गणतन्त्र घोषित कर दिया गया। देश का शासन पूर्ण रूप से देशवासियों के हाथों में आया। प्रत्येक नागरिक अपने देश के प्रति उत्तरदायित्व का अनुभव करने लगा। देश के अभ्युत्थान और उसकी मान-मर्यादा की रक्षा को प्रत्येक व्यक्ति अपनी मान-मर्यादा और अभ्युत्थान समझने लगा। देश के इतिहास में वास्तव में यह दिन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आज ही तो विदेशी मेघ-मालाओं को विदीर्ण करता हुआ भारत का सूर्य अपने पूर्ण शौर्य के साथ दैदीप्यमान हुआ था।
भारतीय संविधान : भारतीय संविधान में 22 भाग, 7 अनुसूचियाँ तथा 295 अनुच्छेद हैं। संविधान में यह स्पष्ट है कि भारत समस्त राज्यों का एक संघ होगा, जिसके अन्तर्गत चार प्रकार के राज्य होंगे। इनमें प्रथम प्रकार के वे राज्य हैं, जो अब तक ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत प्रान्तों के नाम से प्रसिद्ध थे, जैसे—मुम्बई, संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध (उत्तर प्रदेश), चेन्नई, बिहार आदि। दूसरे प्रकार के वे राज्य हैं, जो देशी राज्यों के विलीनीकरण से बने हैं, जैसे हैदराबाद, मैसूर आदि। तीसरे प्रकार के वे राज्य हैं, जो परिस्थिति विशेष से बने थे जैसे—दिल्ली, हिमाचल प्रदेश आदि। चौथे प्रकार के राज्य अण्डमान और निकोबार द्वीप हैं। यद्यपि विगत में राज्यों की संख्या और श्रेणी में अनेक परिवर्तन हुए हैं तथा समय की आवश्यकता के अनुसार संशोधन होते रहे हैं किन्तु संविधान की मूल भावना अक्षुण्ण रही है। धर्म-निरपेक्षता हमारे राष्ट्र का मूल आधार है। भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों के अधिकार और स्वत्व की रक्षा का वचन दिया गया है। लोकतन्त्रात्मक परम्पराओं के निर्वाह की पूर्ण रूप से व्यवस्था की गई है और इस प्रकार भारतीय संविधान धर्म-निरपेक्षता की अडिग शिला पर दृढ़ता से आधारित है।
मनाने का तरीका : 26 जनवरी अपने राष्ट्र का एक पुनीत पर्व है। अनन्त बलिदानों की पावन स्मृति लेकर यह दिन हमारे समक्ष उपस्थित होता है। कितने वीर भारतीयों ने देश की बलिवेदी पर अपने प्राणों को हंसते-हंसते चढ़ा दिया। कितनी माताओं ने अपनी गोदी की शोभा, कितनी पत्नियों ने अपनी मॉग का सिन्दूर और कितनी बहिनों ने अपना रक्षाबन्धन का त्यौहार हँसते-हंसते स्वतन्त्रता-संग्राम की भेंट कर दिया, वह सहज में ही हमें इस पवित्र पर्व पर स्मरण हो जाता है। आज के दिन हम उन अमर शहीदों को अपनी श्रद्धाजंलियाँ अर्पित करते हैं।
कितनी माँओं के लाल लुटे, लुट गए न कितनों के सुहाग।
फिर भी सत्ता से दब न सकी, इस बार प्रज्ज्वलित हुई आग।।
गणतन्त्र दिवस समस्त देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। देश की राजधानी दिल्ली में इस दिन की शोभा अनुपम होती है। देश के भिन्न-भिन्न अंचलों से इस दिन शोभा देखने के लिये लोग उमड़ पड़ते हैं। हर वर्ष विश्व का कोई-न-कोई महान् व्यक्ति इस अनुपम दृश्य को देखने के लिए दिल्ली पधारता है । 26 जनवरी को इण्डिया गेट के मैदान में जल, थल और वाय सेना की टुकड़ियाँ राष्ट्रपति को सलामी देती हैं। 31 तोपें दागी जाती हैं। सैनिक वाद्य बजते हैं। और राष्ट्रपति अपने भाषण में राष्ट्र को कल्याणकारी संदेश देते हैं। भिन्न-भिन्न राज्यों की मनोहारी। झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। रात्रि को समस्त राजधानी विद्युत् दीपों के प्रकाश से जगमगा उठती है। देश के अन्य समस्त अंचलों में भी इस प्रकार इस पावन समारोह का आयोजन किया जाता है। खेल-तमाशे, सजावट, सभायें, भाषण, रोशनी, कवि सम्मेलन, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि। अनेक प्रकार के आयोजन सर्वत्र सम्पन्न होते हैं। जनता तथा सरकार दोनों ही मंगल पर्व को मनाते हैं। सम्पूर्ण देश में प्रसन्नता और आनन्द की लहर दौड़ जाती है।
उपसंहार : वास्तव में 26 जनवरी एक महिमामयी तिथि है। इसके पीछे भारतीय जनता के त्याग, तपस्या और बलिदानों की अमर कहानी निहित है, जो सदैव भावी सन्तति के लिए एक अमर संदेश देकर प्रेरणा का अक्षुण्ण स्रोत बहाती रहेगी। भारतीय इतिहास में यह दिन स्वर्ण अक्षरों में उल्लिखित होगा। प्रत्येक भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि वह इस पर्व को अधिकाधिक उल्लास और आह्लाद के साथ मनाये और अनन्त प्रयास के फलस्वरूप प्राप्त स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए कटिबद्ध रहे । परन्तु स्वतन्त्रता की अक्षुण्णता के लिये यह आवश्यक होगा कि हम पारस्परिक भेद-भाव को छोड़कर सहयोग और एकता में विश्वास करें, अज्ञानान्धकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण मार्ग पर अग्रसर हों, तभी हम इस महिमामयी तिथि की मान-मर्यादा की रक्षा कर सकेंगे।
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