भीष्म साहनी का जीवन परिचय तथा रचनाएं : भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के एक महान कथाकार तथा साहित्यकार थे। वे अपने उपन्यास तमस से अत्यधिक सज...
भीष्म साहनी का जीवन परिचय तथा रचनाएं : भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के एक महान कथाकार तथा साहित्यकार थे। वे अपने उपन्यास तमस से अत्यधिक सजाने आए मित्रों इस लेख के माध्यम से Bhisham Sahni ka Jeevan Parichay तथा उनकी रचनाओं तथा भाषा शैली की जानकारी दी जा रही है।
भीष्म साहनी का जीवन परिचय
आधुनिक हिंदी साहित्य में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनेक ऐसे जाने-माने साहित्यकार हुए जिन्होंने हिंदी साहित्य की कई विधाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। साथ-ही-साथ आज़ादी के संग्राम की वैचारिक सच्चाई, देश-विभाजन की पीड़ा और अमानवीयता का जीता-जागता चित्रण करके आजाद होने के लिए चुकाई जाने वाली भारी कीमत का संकेत दिया है। भीष्म साहनी उनमें सबसे पहले दर्जे के लेखक साबित होते हैं।
पाकिस्तान के एक शहर रावलपिंडी में 8 अगस्त सन् 1915 को उनका जन्म हुआ था। घर पर रहकर ही उन्होंने पंजाबी, हिंदी और संस्कृत की आरंभिक शिक्षा पायी थी। पर उर्दू और अंग्रेजी पढ़ने वे स्कूल में गए थे। बड़े होकर अंग्रेजी में एम.ए. और फिर पीएच.डी. भी की।
देश-विभाजन के बाद वे बड़े भाई बलराज साहनी के पास मुम्बई में रहने लगे और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़कर 'इंडियन पीपलस थियेटीकल एसोसिएशन' (इप्टा) नामक सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था के सक्रिय सदस्य बन गए। बाद में वे दिल्ली आ गए। यहाँ उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी योग्यता का प्रसार किया। विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में लम्बे समय तक अंग्रेजी के प्राध्यापक भी रहे। सन् 1965 से लेकर लगभग ढाई वर्ष तक ‘नई कहानियाँ' नामक हिंदी पत्रिका का सम्पादन कार्य भी किया। सन् 1989 में उन्होंने अध्यापन के कार्य से मुक्ति पा ली। सात वर्ष तक रूस के मास्को शहर में रहकर रूसी भाषा का गहन अध्ययन किया तथा रूसी भाषा की अनेक पुस्तकों का अनुवाद किया।
भीष्म साहनी की रचनाएँ
हिन्दी में उन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, बाल-साहित्य आदि लिखकर अनेक रूप में साहित्य की सेवा की। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
उपन्यास-कड़ियाँ, ‘तमस', 'बसन्ती', 'मैयादास की माड़ी', 'कुंतो', 'नीलू नीलिमा नोलोफर' ।
कहानी संग्रह-भाग्य रेखा', 'पटरियाँ', 'वाड्चू', 'शोभायात्रा', 'निशाचर', 'पाली' ।
नाटक-‘हानूश', ' कबिरा खड़ा बाजार में, ‘माधवी', 'मुआवजे' ।
निबन्ध-संग्रह-अपनी बात। आत्म कथा-आज के अतीत।
पुरस्कार तथा सम्मान
भीष्म साहनी को उनकी साहित्यिक और वैचारिक ऊँचाइयों के कारण अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए। जैसे-भाषा विभाग, पंजाब द्वारा 1975 में 'शिरोमणि' लेखक पुरस्कार; ‘अफ्रोऐशियाई लेखक संघ' द्वारा 1980 में ‘लोटस' पुरस्कार, 1980 में 'हिंदी-उर्दू साहित्य पुरस्कार' लखनऊ से तथा सन् 2000 में 'हिन्दी अकादमी', दिल्ली द्वारा 'शलाका सम्मान'। इनके अतिरिक्त 'तमस' उपन्यास को 1976 में साहित्य अकादमी, ‘बसन्ती' उपन्यास को 1985 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और 'मैया दास की माड़ी' को 1990 में हिंदी अकादमी दिल्ली से पुरस्कृत किया गया।
देश के बंटवारे और उसके बाद होने वाले अमानवीय नर-संहार तथा पशुतापूर्ण व्यवहार के आधार पर लिखे गए 'तमस' उपन्यास से वे अत्यधिक चर्चा में आए। रंगमंच, नाटक और फिल्म जगत से जुड़े होने के कारण उनकी अभिनय कला और रंगमंच कला को भी हिंदी जगत ने खूब सराहा। 11 जुलाई, सन् 2003 को उनकी मृत्यु हो गयी।
भीष्म साहनी के साहित्य की विशेषताएं
पीड़ित, उपेक्षित और उच्च समाज द्वारा शोषित व्यक्ति को रचना का केन्द्र बनाकर मानवीय संवेदना जगाना उनका लक्ष्य रहा है।
जाति, धर्म, वर्ग, राज्य व देश की दीवारों को लाँघकर मनुष्य मात्र के अतर्मन में झाँकने और संतुलित अनुभूति प्रदान करने में वे सफल रहे।
समाज में फैली पुरानी गली-सड़ी मान्यताओं, रीतिरिवाजों, धार्मिक कर्मकाण्ड परक रूढ़ियों और पुरुषवादी सत्ता के खोखले अहंकार का पर्दाफाश करने वाले लेखक के रूप में उनकी विशेष पहचान रही है।
उनके उपन्यास, कहानी और नाटकों में वैचारिक नवीनता और चुनौतियाँ तो मिलती ही हैं साथ-ही-साथ चीजों को जीवित चित्रों के रूप में पेश करना उनकी विशेषता है।
उनकी कृतियों में वैचारिक बड़बोलेपन और अहंकार के स्थान पर सहज-सरल, सीधी-सच्ची बौद्धिक क्रांति का प्रसार मिलता है जो भीष्म जी को अनेक लेखकों से अलग करता है।
मध्यम वर्ग की विडम्बनापूर्ण परिस्थितियों की पहचान करके उनके जीवन के तीव्र विरोधाभासों को यथार्थवादी दृष्टि से उभारने में वे सफल रहे हैं। साथ-ही-साथ वे ऊँचे मानव मूल्यों की स्थापना भी करते नज़र आते हैं।
भीष्म साहनी की भाषा शैली
भीष्म जी की भाषा प्रायः आम बोलचाल की खड़ी बोली हिंदी रही है। किंतु रचना की विषयवस्तु के अनुरूप संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों के प्रयोग द्वारा भाषा को लोकप्रिय और समर्थ बनाया गया है।
उनकी शैली में विवेचना, विवरण, व्यंग्य और आक्रोश प्रायः देखा जा सकता है। इससे विषयवस्तु की भीतरी वास्तविकता को समझने में देर नहीं लगती।
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