विजयादशमी पर निबंध - Vijayadashami par Nibandh

विजयादशमी पर निबंध : दोस्तों आज हमने विजयादशमी या दशहरा पर निबंध लिखा है। विजयादशमी पर लिखे गए सभी छोटे बड़े निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5...

विजयादशमी पर निबंध : दोस्तों आज हमने विजयादशमी या दशहरा पर निबंध लिखा है।विजयादशमी पर लिखे गए सभी छोटे बड़े निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के लिए उपयुक्त है। Here you will find Vijayadashami par nibandh and paragraph in Hindi for students.

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 1, 2 के लिए (100 शब्द)

    विजयादशमी अर्थात दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को समस्त भारतवर्ष में मनाया जाता है। इससे पूर्व नवरात्र में देवी शक्ति की आराधना की जाती है। दशमी को मर्यादा पुरुषोत्तम राम चंद्र जी ने दुराचारी राजा रावण पर विजय प्राप्त करके भारतीय संस्कृति की स्थापना की थी। उनकी स्मृति में भारतवासी इस तिथि को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। बड़े बड़े नगरों में रामलीला की जाती है और दशमी को अंतिम युद्ध का अभिनय करके रावण का पुतला भस्म किया जाता है। उसमें पटाखे और आतिशबाजी भर दी जाती हैं। इस प्रकार यह दिवस बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है इसीलिए इसको विजयादशमी कहते हैं। Read also:- दशहरा पर आसान निबंध

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 3, 4 के लिए (200 शब्द)

    Vijayadashami par nibandh
    भारतीय वर्ण व्यवस्था के अनुसार विजयादशमी मूल रूप से क्षत्रियों का त्यौहार है किंतु सभी वर्ण के लोग समान भाव से मिलकर इसे मनाते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्री रामचंद्र जी ने रावण को इसी दिन मारा था, और इसी दिन उनकी विजय घोषित की गई थी तभी से लोग इस तिथि को विजयादशमी कहने लगे। संभवतः 10 सिर वाले रावण का वध इसी दिन होने से लोग इसे दशहरा भी कहने लगे। विजयादशमी का पर्व अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इस दिन क्षत्रिय तथा राजा लोग शस्त्रों, घोड़ो तथा हाथियों का पूजन करते थे। चतुर्मास व्रत की समाप्ति भी इसी दिन होती है। बंगाली लोग नौ दिन नव दुर्गा का पूजन करके विजयादशमी को उसका विसर्जन करते और बड़ी धूमधाम से प्रतिमा को जल में प्रवाहित करते हैं। कई स्थानों पर रामलीला की पूर्णाहुति विजयादशमी को होती है और इस दिन रावण का वध भी होता है। विजयादशमी के अवसर पर कई स्थानों पर बड़े-बड़े मेले भी लगते हैं। प्रायः सर्वत्र ही इस दिन शमी नामक वृक्ष का पूजन किया जाता है और नगर की सीमा के बाहर नीलकंठ पक्षी का दर्शन मंगल जनक माना जाता है। भारतवर्ष में कलकत्ता प्रयाग हैदराबाद आदि स्थानों का दशहरा उत्सव दर्शनीय होता है। Read also:- 10 lines on Dussehra festival in hindi

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 5, 6 के लिए (250 शब्द)

    दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है, इसे विजयादशमी भी कहते हैं। यह त्योहार अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसका संबंध विशेष रूप से क्षत्रियों से है परंतु प्रत्येक हिंदू घर में इसे मनाया जाता है। इस त्यौहार के दिन क्षत्रिय लोग अपने अस्त्र-शस्त्र का पूजन करते हैं। क्षत्रिय राजा विविध प्रकार के उत्सव करते हैं। इसी दिन उनकी सवारी धूमधाम से निकलती थी और सेना का प्रदर्शन किया जाता था। इस दिन नीलकण्ठ का दर्शन शुभ माना जाता है। बंगाल प्रांत में यह त्यौहार दुर्गा पूजा के नाम से प्रसिद्ध है। वहां पर इस अवसर पर दुर्गा जी की पूजा की जाती है। दशहरे के त्यौहार के दिन वैश्य लोग अपने बहीयों (बही खातों) को पूजते हैं। इस दिन प्रत्येक हिंदू के घर में खुशी का माहौल रहता है और मिठाई तथा पकवान बनाए जाते हैं। विजयादशमी से नौ दिन पूर्व से ही रामलीला का मंचन किया जाता है। दशमी को रात्रि के समय रावण वध का अभिनय किया जाता है। रावण की विशाल पुतला बनाकर उसका राम द्वारा वध किया जाता है। फिर उस मूर्ति में आग लगा दी जाती है इस त्यौहार का संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम राम चंद्र जी की लंका विजय से है। इसलिए यह दिन श्रेष्ठ माना गया है और क्षत्रिय लोग इसे अपना मुख्य त्योहार मानते हैं। विजयादशमी के पावन दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की। इसी दशमी को देवी ने महिषासुर पर विजय पाई थी इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं। इसका विजयदशमी नाम पड़ने का कारण भी यही है। Read also:- दशहरा या विजयादशमी पर संस्कृत में निबंध

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 7, 8 के लिए (300 शब्द)

    दशहरा अथवा विजयादशमी--प्राचीनकाल में दुर्गा के उपासक क्षत्रिय लोग वर्षा बीतने पर अपने कार्य का स्मरण करते थे। दुर्गा की नवरात्रि भर उपासना करते थे तथा नवरात्रि के अन्तिम अश्विन शुक्ल नवमी को दुर्गा-पूजन करते थे, अपने अस्त्रशस्त्र ठीक करते थे। दूसरे दिन दशहरा पड़ता है। उस दिन उत्सव मनाकर अपनी युद्ध यात्रा या आखेट यात्रा पर प्रस्थान करते थे। आज दशहरा का दिन हर दिशा में प्रस्थान करने के लिए शुभ दिन माना जाता है। समय और वातावरण के परिवर्तित हो जाने के कारण आज इसके रूप में भी परिवर्तन अवश्य हो गया है फिर भी त्योहार तो मनाया ही जाता है। आजकल दशहरा के अवसर पर रामलीलाएँ जगहजगह पर होती हैं, जिनमें रामचरित्र का अभिनय दिखाया जाता है। रावण वध तथा रावण-राज्य का अन्त दिखाया जाता है। इस त्यौहार के मानने से आदर्श राज्य रामराज्य तथा आदर्श चरित्र राम की स्मृति जगाई जाती है। वैसे तो यह त्यौहार विशेष कर क्षत्रिय वर्ग का है पर पुरातन काल से सभी वर्ग इसमें सम्मिलित होते हैं, तथा धूम-धाम से त्यौहार मानते हैं । दशहरा के अवसर पर दुर्गा के उपासक बंगाली बहुत सुन्दर ढंग से दुर्गा की मूर्ति बनाते हैं। अनेक प्रकार से पूर्जा-अर्चा करते हैं तथा दशहरा को उसका विसर्जन कर देते हैं। यह त्योहार हिन्दुओं के हृदय में वीरता, दया, सहानुभूति, आदर्श मैत्री, शक्ति-भावना आदि उच्च गुणों की प्रेरणा देता है । हिन्दूमात्र राम के पारिवारिक जीवन से प्रेरणा पाता है। राम का परिवार हिन्दुओं के लिए एक आदर्श परिवार है । वर्षाकाल के समाप्त हो जाने से यात्रा आदि की सुविधा हो | जाती है। इसीलिए गोस्वामीजी ने कहा है कि
    ‘चले हरषि तजि नगर नृप, तापस, वणिक भिखारि ।जिमि हरि-भगतिहि पाई करि, तजे आश्चमी चारि ।।
    वर्षा-ऋतु में भारत में खेती-बारी का काम चलता रहता है, इससे गृहस्थ अपने घरों में रहते हैं, तपस्वी अपने आश्रम पर रहते हैं, राजा अपनी राजधानी में रहते हैं तथा भिक्षुक अपनी कुटिया में रहकर समय काटते हैं।

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 9, 10 के लिए (600 शब्द)

    दशहरा शरद ऋतु के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसको विजयादशमी भी कहते हैं। यद्यपि यह हिंदुओं का जातीय त्यौहार है और इसको सभी हिंदू बड़े उत्साह से मनाते हैं तथापि इसका क्षत्रियों से भी विशेष संबंध है। 

    दशहरा मनाने का कारण : प्राचीन भारत में वर्षा ऋतु यात्रा के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती थी। प्रायः साधु महात्मा धर्म उपदेशक व्यापारी राजा महाराजा वर्षा ऋतु को अपने स्थान पर ही बिताया करते थे। साधु लोगों का कोई विशेष स्थान ना होने के कारण वह किसी अच्छे स्थान पर चतुर्मास करते थे। बुद्धदेव के चतुर्मासों का बौद्ध ग्रंथों में वर्णन मिलता है। अब भी कुछ साधु चतुर्मास मनाते हैं। वर्षा बीत जाने और शरद ऋतु आ जाने पर ही व्यापारी अपना माल लादकर बाहर यात्रा के लिए जाया करते थे। इसी प्रकार क्षत्रिय लोग भी इस शुभ दिवस पर अपनी विजय यात्रा के लिए निकला करते थे। यह दिवस उत्साह का दिवस था। शरद ऋतु में विपत्ति रूपी बादल की काली काली घटाएं विलीन हो जाती हैं और शुभ्र ज्योत्स्नामय स्वच्छ गगन मंडल मनुष्य के हृदय में आशा का संचार करने लगता है। इन्हीं प्राकृतिक कारणों से यह दिन शुभ माना जाता है। इस दिन जो कार्य प्रारंभ किया जाता है वह विजयश्री से विभूषित होता है। श्री रामचंद्र जी ने बाली को मारकर वर्षा ऋतु के 4 मास पर्वत पर बिताए थे। शरद ऋतु में कार्तिक लगने पर उन्होंने हनुमान आदि को सीता की खोज के लिए भेजा था फिर रावण को मारकर चैत्र शुक्ल नवमी को अयोध्या वापस आए थे। परंतु ना जाने कैसे यह मनाने की परंपरा चल पड़ी है कि इसी दशहरे के दिन रामचंद्र ने लंका के राजा रावण पर विजय पाई थी। इसलिए यह त्यौहार विजयादशमी के नाम से प्रख्यात है। 

    दशहरा रामलीला का अंतिम दिन होता है। इस दिन बड़ी धूमधाम के साथ रावण वध का अभिनय किया जाता है। उसमें रावण की विशाल पुतले को जलाया जाता है। उसमें पटाखे और आतिशबाजी भर दी जाती हैं। उनमें आग लग जाने से जोर के धमाके होते हैं और आग की रंग बिरंगी चिंगारियां निकलती हैं। इसके अतिरिक्त आतिशबाजी का भी प्रदर्शन किया जाता है। बड़े शहरों में दशहरे से 15 दिन पहले रामलीला की बड़ी धूमधाम रहती है। कहीं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के जीवन चरित्र का बड़े आकर्षक रूप से अभिनय किया जाता है और उसमें संगीत के साथ रामायण का पाठ होता है। राम लीला देख कर भक्त लोगों के हृदय में भक्ति भावना का संचार होता है और वह बड़े प्रेम और उत्साह के साथ भगवान राम की जय जय कार लगाते हैं। रामचंद्र से दशहरे का संबंध केवल पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्य में ही माना जाता है। राजस्थान में दशहरा शक्ति पूजा का त्योहार माना जाता है। इस दिन शस्त्रों की पूजा होती है। मिथिला और बंगाल में अश्विन शुक्ल पक्ष में दुर्गा की पूजा होती है। पहले 9 दिन नवरात्र कहे जाते हैं। इन दिनों में विविध प्रकार से देवी की पूजा के बाद दशमी को अंतिम पूजा करके प्रतिमा विसर्जित की जाती है। तत्पश्चात लोग एक दूसरे से मिलते हैं इसी दशमी को देवी ने महिषासुर पर विजय पाई थी इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं। 

    उपयोगिता : इस त्यौहार का बड़ा ही महत्व है। यह दिवस उस समय की याद दिलाता है जब आर्य जाति अपनी सभ्यता का अन्य देशों में प्रसार कर रही थी और जिस दिन एक आर्य राजा ने सबसे प्रबल अनार्य राजा पर विजय प्राप्त कर आर्य साम्राज्य की नींव रखी थी। वह भारत की समृद्धि के दिन थे। उन दिनों की पुण्य स्मृति से हममें जातीय गौरव बढ़ता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी की पवित्र लीलाओं का अनुकरण करने से हमारे हृदय में उनकी सी पितृ भक्ति और त्याग की भावना पैदा होती है। लक्ष्मण और भरत के से भाई प्रेम, सती सीता के से पतिव्रत धर्म और वीर हनुमान का जैसा उत्साह और सेवा भाव से हमें प्रोत्साहन मिलता है। इस त्यौहार के मनाने से हमारे हृदय में वीर पूजा की भावना दृढ़ होती है और हमारा जातीय जीवन संगठित होता है। 

    विजयादशमी पर निबंध कक्षा 11, 12 के लिए (800 शब्द)

    विजयादशमी शक्ति पर्व है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नव स्वरूपों की नवरात्र पूजन के पश्चात् आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन 'मधुरेण समापयेत्' के कारण 'दशहरा' नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार नव-रात्र पाप-पक्षालन और आत्म-शक्ति संचय कर आत्म-विजय प्राप्त्यर्थ शक्ति-पूजन का पर्व है। दशमी, उस अनुष्ठान की सफलतापूर्वक समाप्ति की उपासना का प्रतीक है, आत्म-विजय का द्योतक है।

    डॉ. सीताराम झा 'श्याम' का मानना है, जैसे वैदिक अनुष्ठान में 'तीन' (त्रिक) की प्रधानता है, वैसे ही आदि शक्ति की उपासना में दस' संख्याओं का महत्त्व अधिक है। इसी से 'दशहरा' नाम से यह अनुष्ठान विख्यात हैं। निम्न विवरण से यह बात और अधिक स्पष्ट हो जायेगी ।

    तत्त्वतः, दसों दिशाओं ऊर्ध्व, अधः, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अग्निकोण, ईशानकोण, वायुकोण और नैऋत्यकोण में आदिशक्ति का ही प्राबल्य है। इसके अतिरिक्त, शक्ति-उपासना के क्रम में दस महाविद्याओं-काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका का ध्यान सिद्धि में परम सहायक होता है। इनमें से किसी एक रूप की आराधना से ही दसों प्रकार के पाप-- कायरता, भीरुता, दारिद्रय, शैथिल्य, स्वार्थपरता, परमुखापेक्षता, निष्क्रियता, असावधानी, असमर्थता एवं वंचकता का नाश तत्काल हो जाता है। दस मस्तक वाले रावण का संहार भगवान् राम ने शक्ति की महती साधना से ही किया था। इसी प्रकार, दस इन्द्रियों--आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा (ज्ञानेन्द्रियाँ), हाथ, पैर, जिह्वा, गुदा, उपस्थ (कर्मेन्द्रियाँ) को वश में करना भी शक्ति-अर्चना से ही संभव होता है। दशमी की विजय-यात्रा दुर्गा के जिन | नौ रूपों-शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की आराधना के पश्चात् आयोजित की जाती है, उनमें महान् संकटों को दूर करने के अमोघ उपायों का शाश्वत निर्देश है।' 

    विजयादशमी के पावन दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने राक्षस संस्कृति के प्रतीक लंका नरेश से युद्ध के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था।( श्रीराम ने इस दिन रावण पर विजय प्राप्त की थीं,यह धारणा अब समाप्त हो रही है, क्योंकि वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं उल्लेख नहीं है।) इसी दिन पांडवों | ने अपने प्रथम अज्ञातवास (एक चक्रानगरी में ब्राह्मण वेश में रहने के उपरांत) की अवधि । समाप्त कर द्रौपदी का वरण किया था। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था।

    कृषि प्रधान भारत में खेत में नवधान्य प्राप्ति रूपी विजय के रूप में भी मनाया जाता है। कारण, क्वारी या आश्विनी की फसल इन्हीं दिनों काटी जाती है। उत्तर भारत में विजयदशमी 'नौरते' टाँगने का पर्व भी है। बहिनें भाइयों के टीका कर कानों में नौरते टाँगती हैं।'नौरते' टाँगने की प्रथा कब शुरू हुई, यह कहना कठिन है, परन्तु इसकी पृष्ठभूमि में नवरात्र पूजन की सफलता और कृषि की उपज की विजय-श्री का भाव लगता है। बहनें नवरात्र-पूजन को विधिविधान से सम्पन्न करने के उपलक्ष्य में अपने भाइयों | को बधाई रूप में नवरात्र में बोए'जौ' (अन्न) के अंकुरित रूप नौरतों को कानों में टाँगती हैं। कुमकुम का तिलक करती हैं। दुर्गा-पूजा की प्रसादी रूप में पाती हैं मुद्रा।।

    शक्ति के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय-विधि से पूजन विजयदशमी का अंग है। प्राचीन काल में वर्षा काल में युद्ध का निषेध था। अत: वर्षा के चतुर्मास में शस्त्र शस्त्रागारों में सुरक्षित रख दिए जाते थे। विजयादशमी पर उन्हें शस्त्रागारों से निकालकर उनका पूजन होता था। ‘शस्त्र पूजन' के पश्चात् शत्रु पर आक्रमण और युद्ध किया जाता था। इसी दिन क्षत्रिय राजा सीमोल्लंघन भी करते थे।

    कालांतर में सीमोल्लंघन का रूप बदल गया।महाराष्ट्र में विजयादशमी' सिलंगन' अर्थात् | सीमोल्लंघन रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नव-वस्त्रों से सुसज्जित होकर | गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में 'सोना' लुटकर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं। शो वृक्ष में ऋषियों का तपस्तेज माना जाता है।

    बंगाल में विजयादशमी का रूप दुर्गा-पृजा का है। वहाँ अनास्थावादी, नास्तिक तथा नक्सलवादी भी माँ दुर्गा की कृपा और आशीष चाहते हैं ।बंगालियों की धारणा है कि आसुरी शक्तियों का संहार कर दशमी के दिन माँ दुर्गा कैलास पर्वत को प्रस्थान करती है अत: वे दशहरे के दिन दुर्गा की प्रतिमा की बड़ी धूमधाम से शोभायात्रा निकालते हुए पवित्र नदी, सरोवर अथवा किसी महानद में विसर्जित कर देते हैं। | हिन्दी भाषी प्रांतों में नवरात्रों में रामलीला मंचन की प्रथा है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से मंचन आरम्भ कर दशमी के दिन रावण-वध दर्शाकर विजयपर्व मनाया जाता है। भव्य शोभायात्रा रामलीला मंचन का विशिष्ट आकर्षण होता है। लाखों लोग श्रद्धा व भक्तिभाव से 'रामलीला' को आनन्द लेते हैं।

    विजयादशमी के दिन ही सन् १९२५ में भारत राष्ट्र की हिन्दू राष्ट्रीय अस्मिता, उसके अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके गौरवशाली अतीत से प्रेरित एक परम वैभवशाली राष्ट्र के पुनर्निमाण हेतु परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

    विजयादशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। पूजा, अर्चना, आराधना और तपोमय जीवन-साधना उसके अंग हैं। राष्ट्रीय दृष्टि से सैन्य-शक्ति संवर्द्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की सुसज्जा, लेखा-जोखा तथा परीक्षण का त्यौहार है। आत्मा को आराधना और तप से उन्नत करें, राष्ट्र को शस्त्र और सैन्यबल से सुदृढ़ करें, वहीं विजयादशमी का संदेश है।

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