दोस्तो आज हमने Krishna Janmashtami Hindi Essay लिखा है कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 के विद्य...
दोस्तो आज हमने Krishna Janmashtami Hindi Essay लिखा है कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। इस निबंध की सहायता से स्कूल के सभी विद्यार्थी कृष्ण जन्माष्टमी पर एक अच्छा निबंध लिख सकते हैं जिससे वे परीक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण हो सकते है। इस लेख में जन्माष्टमी पर कई सारे छोटे बड़े निबंध दिए गए हैं। छात्र अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें चुन सकते हैं।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (100
words)
Krishna Janmashtami Hindi Essay (200 words)
यह त्योहार भगवान कृष्ण की जन्मतिथि भाद्रपद कृष्णअष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन सरकारी अवकाश होता है। भगवान कृष्ण का जीवन हमारे लिए आदर्श है। बाल्यकाल से मृत्यु पर्यन्त उनका जीवन परोपकार-साधन में ही बीता। उन्होंने अत्याचारी राजाओं को मार कर भारत में शान्ति और धर्म स्थापित किया। कंस जैसे अत्याचारी को मारना उन्हीं का काम था। मित्र सुदामा का दारिद्रय क्षणभर में दूर कर दिया। वे सेवा भाव की मूर्ति थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उन्होंने लोगों के चरण धोने का कार्य अपने जिम्मे लिया। महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और उसे गीता का अनुपम उपदेश दे उसका मोह दूर किया।
जन्माष्टमी से १५ दिन पूर्व से कृष्ण मंदिर में झांकियां सजना प्रारंभ हो जाती है। गीता की कथा सुनायी जाती है। इस दिन मंदिरों में विशेष रौनक और सजावट होती है। लोग, विशेषतः सनातनधर्मी, अपने घरों में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करते हैं। वे अष्टमी का व्रत रखते हैं। आधी रात को कृष्ण जन्म के पश्चात् व्रत तोड़ा जाता है। आधी रात तक लोग कीर्तन-भजन में संलग्न रहते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी मनाने का तभी कुछ फल हो सकता है यदि हम भगवान कृष्ण को परोपकार-भावना को अपने हृदय में स्थान दें और गीता के आदेशों के अनुसार चलें।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (250 words)
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का भार हरने के उद्देश्य से अपने मामा कंस के कारागार में वसुदेव तथा देवकी के पुत्र रूप में अवतार लिया था। उस समय ठीक अर्धरात्रि का समय था। इस दिन प्रायः प्रत्येक हिन्दू प्रातःकाल ही पवित्र जलाशय में स्नान कर व्रत करता है। घरों तथा मन्दिरों की सफाई आदि होती है। सजावट के लिए फूल-माला, मिट्टी आदि के विविध प्रकार के खिलौने, वन्दनवार आदि जुटाए जाते हैं। पूजा के लिए धूप, दीप, नैवेद्य व पंचामृत आदि तैयार किया जाता है। सायंकाल होते ही यत्र-तत्र प्रकाश की बहुरंगी व्यवस्था दिखाई पड़ने लगती है।
ठीक आधी रात के समय मन्दिरों तथा घरों में बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सब मिलकर विधि-विधान से भगवान् श्रीकृष्ण का श्रद्धा-भक्ति से पूजन-आरती करते और उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। सर्वत्र एक साथ ही शंख-घण्टा आदि पवित्र वाद्यों की ध्वनि गूंज उठती है। लोग इधर-उधर मंदिरों में भगवान् की झांकी देखने निकल पड़ते हैं, रासलीला का आनंद लेते हैं। इसके बाद फलाहार करते तथा प्रसाद, चरणामृत आदि ग्रहण करते हैं।
इस दिन प्रायः सभी विद्यालयों, संस्थाओं आदि में अवकाश रहता है तथा समाचार-पत्रों में श्रीकृष्णजी के जीवन से संबंधित लेख लिखे जाते हैं। दिन-भर जहाँ-तहाँ विद्वानों के प्रवचन, श्रीमद्भागवत की कथा और कीर्तन-भजन व उपदेश आदि सुनने को मिलते हैं।
इस प्रकार वर्ष में एक बार पावन ऋतु में आकर यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हम सब के मन में सदाचार की स्थापना तथा अत्याचार-पापाचार के विनाश के लिए हम सभी को प्रेरित करती है।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (300 words)
जन्माष्टमी का पावन पर्व भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की पवित्र स्मृति में, उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का सम्बन्ध समग्र हिन्दू समाज के साथ है। जन्माष्टमी का त्यौहार भाद्रपद के महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आधी रात के समय मथुरा के रजा कंस के कारगर में हुआ था। तभी से यह धार्मिक त्यौहार मनाया जाता रहा है।
इस धार्मिक पर्व को मनाने के लिए आस्थावान लोग काफी पहले से ही तैयारी आरम्भ कर देते हैं। ये लोग बड़े ही प्रेम व श्रद्धा से व्रत रखते हैं। रात्रि को भगवान के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। आधी रात के समय जब श्रीकृष्ण का जन्म होता है, तो मन्दिरों में शंख, घंटे-घड़ियाल आदि बजाकर हर्ष प्रकट किया जाता है और प्रसाद बाँटा जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करके भक्तजन अपना व्रत तोड़ते हैं।
जन्माष्टमी के कई दिन पूर्व से ही विविध प्रकार के मिष्ठान्न आदि बनाये जाने प्रारम्भ हो जाते हैं। इस दिन मन्दिरों की शोभा तो देखते ही बनती है। मन्दिरों में रंगीन बल्बों की झालरें सजायी जाती है। मन्दिरों की शोभा विशेष रूप से श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा तथा वृन्दावन में देखने योग्य होती है। अनेक देवालयों एवं धार्मिक स्थानों पर इस दिन गीता का अखण्ड पाठ चलता है।
भारतवर्ष के हिन्दू समाज में इस महान पर्व का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों तरह का विशिष्ट महत्त्व है। यह त्यौहार हमें आध्यात्मिक एवं लौकिक संदेश देता है। यह त्यौहार हर वर्ष नई प्रेरणा, नए उत्साह और नए-नए संकल्पों के लिए हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।
यह त्यौहार हमें जहाँ एक ओर श्रीकृष्ण के बाल रूप का स्मरण कराता है वहीं दूसरी ओर अपना उचित अधिकार पाने के लिए कठोर संघर्ष और निष्काम कर्म के महत्त्व की शिक्षा भी प्रदान करता है।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (400 Words)
जन्माष्टमी जन्माष्टमी श्रीकृष्ण की जन्मतिथि है। श्रीकृष्ण का जन्म आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अप्टमी की आधी रात के समय बन्दीगृह में हुआ था। इनकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। देवकी माथुरा के अत्याचारी राजा कंस की बहन थी। जब ज्योतिषियों ने बतलाया कि इसी देवकी का आठवाँ बालक उसका संहार करेगा तो कंस ने बहन और बहनोई को बन्दीगृह में डाल दिया। वहाँ देवकी के जो भी बालक उत्पन्न होता, कंस उसे तुरन्त मरवा देता था।
क्रमश: आठवें बालक श्रीकृष्ण की उत्पत्ति हई। इस वार वसुदेव ने आधी रात के समय किसी प्रकार श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दिया और उसी रात नन्द की पत्नी यशोदा के यहाँ उत्पन्न हुई बालिका को लाकर देवकी के पास लिटा दिया। प्रातःकाल लड़की उत्पन्न होने का समाचार पाकर निर्दय कंस ने उस कन्या का भी प्राणान्त कर दिया। बाद में श्रीकृष्ण-बलराम ने कंस को भरी सभा में मारकर पृथ्वी का बोझ हल्का किया।
श्रीकृष्ण संसार से पालनहार भगवान विष्णु के अवतार थे। उन्हें कान्हा, बाल-गोपाल, लड्डू-गोपाल, किशन कन्हैया, ठाकुर जी और माखन चोर इत्यादि नामों से जाना जाता है। श्रीकृष्ण चतुर राजनीतिज्ञ, विद्वान्, योगिराज, त्यागी, शूरवीर, योद्धा, देश का उद्धार करने वाले, सच्चे मित्र, अनुपम दानी और सेवाभाव के आदर्श उदाहरण थे। दुर्योधन की पराजय, कंस, शिशुपाल, जरासन्ध आदि का नाश, अर्जुन को गीता का उपदेश, सुदामा की सहायता और युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में अतिथियों के पाँव धोना आदि कार्य श्रीकृष्ण की महत्ता को प्रकट करते थे।
श्रीकृष्ण न होते तो भारतवर्ष आज से पाँच हजार साल पहले ही पराधीन हो गया होता। वे धर्म प्रवर्तक थे, उन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय कर भागवत-धर्म का प्रवर्तन किया। श्रीकृष्ण के इन उपकारों को स्मरण करने के लिए और जाति में नया जीवन फूंकने के लिए जन्माष्टमी मनायी जाती है।
जन्माष्टमी के दिन लोग उपवास रखते हैं। मन्दिरों को सजाते हैं। राग-रंग करते हैं। श्रीकृष्ण की मूर्तियों की स्थापना करते हैं। उन्हें वस्त्रों और आभूषणों से सजाते हैं । अवतारभावना से उनकी पूजा करते हैं। विजली की चकचौंध करने वाला प्रकाश करते हैं। आधी रात के समय जब श्रीकृष्ण के जन्म का समय होता है तो आरती-भजन करते हैं तत्पश्चात प्रसाद वितरित करते हैं। सम्पूर्ण भारत कृष्णमय हो जाता है। श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा के फूल चढ़ाने का यह रोचक ढंग है। लोगों में श्रीकृष्ण के गुणों को जानने, अपनाने और उन पर अमल करने की भावना उत्पन्न होती है।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (500 Words)
जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की स्मृति में उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के भाद्रपद (भादों) माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्य रात्रि के समय हुआ था। इस पर्व के दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं और रात्रि को मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं। मध्य रात्रि के समय श्रीकृष्ण जन्म के उपलक्ष्य में भक्तजन शंख, घंटे-घड़ियाल आदि बजाकर अपना हर्ष प्रकट करते हैं।
जन्माष्टमी के दिन गांवों व नगरों में अनेक स्थानों पर मंदिरों में कृष्ण के जीवन से संबंधित झाकियों का प्रदर्शन किया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ज्यादा व्यापक स्तर पर मनाने के कई कारण रहे हैं। कृष्ण का अवतार राम की अपेक्षा ज्यादा नवीन है। कृष्ण सामान्य स्तर के परिवारों के साथ रहे तथा उनके नित्य नैमित्तिक कामों में स्वयं भागीदार बने, जैसे गोचारण, गोदोहन, गोरस का विक्रय और उपयोग, यमुना पुलिन की सफाई, साज-सज्जा एवं मनोविनोद स्थली के रूप में उसका विकास, यमुना में जल कन्दुक क्रीड़ा (जमत चवसव), गोप बालाओं को विवेकी तथा आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य सखाओं, मित्रों एवं समवयस्कों के साथ आत्मीयतापूर्ण बरताव। दीन-दुखी, असहाय तथा संकटग्रस्त लोगों की हमेशा मदद करना और अपने ‘सांकरे (संकट) के साथी' नाम को सफल बनाना।
श्रीराम साहित्य की अपेक्षा संस्कृत तथा हिन्दी में श्रीकृष्ण साहित्य की रचना ज्यादा हुई जिसके कारण कृष्णभक्ति का प्रचार भी काफी हुआ। कृष्णभक्ति के प्रचार के रूप में वल्लभाचार्य जैसे महान् आचार्य और उनके अनुयायी चैतन्य महाप्रभु जैसे अनेक कृष्णभक्त, कवि एवं अष्टछाप के कवियों की रचनाओं के कारण भी कृष्णभक्ति का व्यापक प्रचार हुआ।
कविवर व्यास, शुकदेव, श्रीचरणदास, मीरा, सहजो, दयाबाई, रसखान, रहीम, सूरदास तथा रीति काल के कवियों में चिन्तामणि, मतिराम, देव, बिहारी, घनानन्द आदि ने कृष्णभक्ति और उनकी लीलाओं को जन-जन तक पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान किया था। मुसलमान सन्तों में नजीर, अनीस आदि कई ऐसे कवि हुए, जिन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं पर रीझकर मनभावन छन्द लिखे हैं। 'ताज' नाम की मुसलमान कवयित्री ने तो यहां तक लिखा
सांवरा सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिए, तेरे नेह दाघ में निदाघ है दहूंगी मैं।
नन्द के कुमार कुरबान तेरी सूरत पै, हौं तो मुगलानी हिन्दुआनी है रहूंगी मैं।
भगवान कृष्ण का संदेश कर्म का संदेश था। उन्होंने युद्धक्षेत्र में निराश, हताश अर्जुन को जो संदेश दिया, वह सदा-सदा केवल भारत को ही नहीं, अपितु सारे संसार को अपने कर्तव्य पर अडिग रहने की प्रेरणा देता रहेगा। आधुनिक युग के महान विचारक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गीता पर अपना कर्मयोग भाष्य लिखा। इस प्रकार वे जन मानस को आन्दोलित करने में कामयाब रहे हैं। भारत की स्वाधीनता उनकी प्रेरणा का परिणाम है।
गांधीजी भी भगवन श्रीराम और श्रीकृष्ण से बहुत प्रभावित थे। राम का आदर्श राजत्व जहां उनकी राजनैतिक साधना का लक्ष्य और रामराज्य की स्थापना उनका संकल्प था। वहीं वे अपने सभी कार्यों का निष्पादन अनासत्त भाव से करते थे। गीता पर उनके द्वारा ‘अनासक्ति योग' नाम से लिखी गई व्याख्या 'तिलक जी' के कर्मयोग शास्त्र का उत्तर भाग मानी जा सकती है।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (600 words)
सभी अवतरित शक्तियों में जो महत्वपूर्ण स्थान भगवान श्री कृष्ण जी को प्राप्त है, उस पर अधिक प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं। जन्माष्टमी उन्हीं का जन्म दिन है, और यह त्यौहार "जन्माष्टमी" के नाम से हिन्दू जगत में विख्यात है। इस त्यौहार के उद्भव की कथा इस प्रकार है:
मथुरा के शासक कंस को अपनी शान पर बड़ा अभिमान हो गया। वह स्वयं को ईश्वरतुल्य मानने लगा। यहाँ तक कि एक दिन उसने इस बात का नगर भर में दिढोरा पिटवा दिया ईश्वर कोई चोज नहीं जो कुछ हूँ मैं हूँ, मेरी पूजा होनी चाहिये। संध्या के समय दरबार लगने पर एक ज्योतिषी ने आकर कंस से कहा कि हे राजन् ! आपकी बहन देवकी से एक ऐसा बालक जन्म लेगा, जिसके हाथो आपकी मृत्यु होने का भय है।
इतना सुनना था कि कंस आग बगूला हो गया और यह निश्चय कर लिया उस वर्ष कोई नवजात बच्चा बचने न पायेगा। उसी समय कंस की बहन देवकी जी, गर्भवती थीं। कंस ने देवकी और उनके पति बसूदेव दोनों को कारागार में डाल दिया। दैवीय चमत्कार देखिये, जिस क्षण श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ, उसी क्षण कारागार की सभी दरवाजों के ताले अपने-आप खुल गये और बसुदेव ने अपने नवजात बालक को ब्रज के एक निवासी नन्द के यहाँ पहुँचा दिया। मित्रता का सुन्दर नमूना देखिये कि नन्द अपनी नवजात पुत्री बसुदेव को दे देता है और वह उसे कृष्ण के स्थान पर रख देते हैं।
बालक का जन्म सुनते ही कंस डरता, काँपता तेजी से बहिन के पास पहुँचता है और झपट कर बच्चे को बहिन की गोद से छीन कर अपनी बलिष्ट भुजाओं में लेकर धरती पर पटक देना चाहता है, कि नवजात पुत्री मुस्कराती हुई आकाश पर पहुँच जाती है, और कंस को एक गुप्त सन्देश से धमकी देती है, "अभिमानी, निरकुंश कंश । तेरा शत्रु, पैदा हो कर जहाँ जाना था चला गया और मीठी नींद के मजे ले रहा है लेकिन उसका तुझे क्या पता......."
कंस सिर पीट कर रह जाता है और उसका परिणाम वही होता है, जो आज से हजारों वर्ष ऐसे निरकुंश शासकों का हुआ; मिश्र प्रदेश में जो फिरसौर का, सिरिया में जो हामान का। श्री कृष्ण ने अवतारी के रूप में भारत वासियों के लिए श्री मद्भागवत जैसी स्वर्ण पुस्तक छोड़ी।
सावन का महीना बीतते-बीतते प्रत्येक हिन्दू के मन में जन्माष्टमी की भावनायें हिलोरें लेने लगती है। छोटे-छोटे बालक मक्का और बाजरे के खेतों की रखवाली करते-करते खीरे के लहलहाते खेतों की ओर ललचाई निगाहों से देखते हैं..., पर धर्मात्मा पिता के नेक बच्चे होने के कारण कृष्ण जन्माष्टमी के पहले उसे हाथ लगाना उचित नहीं समझते । अहीर और गड़रिये सावन की मूसलाधार वर्षा में मल्हार राग गा-गाकर आनन्द ले रहे हैं; घरों में दही की कमी नहीं, फिर भी "सावन दूध न भादौं दही" पर विश्वास रखने के नाते दही की ओर निगाह नहीं उठाते।
इस दिन मंदिरों में झांकियां सजायी जाती हैं। यद्यपि यह उत्सव भारत के प्रत्येक छोटे-बड़े नगर व गांवों में मनाया जाता है, किन्तु मथुरा और वृन्दावन में इसका विशेष महत्त्व है। प्रसाद, पञ्चामृत, दही और माखन का रस जिस प्रेम से इस दिन तैयार किया जाता है, वैसा किसी दूसरे अवसर पर नहीं बनाया जाता, जो स्वाद और पवित्रता इन चीजों में उस दिन जान पड़ती है, वैसा दूसरे दिनों में नहीं होता। नाटक मण्डलियाँ नाटक अभिनय करती हैं रासलीला के कार्यक्रम होते हैं; भजन होते हैं, और कृष्णभक्त मीरा का जीता जागता चित्र एक बार फिर सामने आ जाता है।
सारी रात पूजा, भजन, गान, और श्रद्धा में बिता दी जाती है। जब कीर्तन की झनकार से छितिज गूंज उठता है, उस समय प्रभात के धुंधले प्रकाश में कृष्ण का जन्म होता है और कृष्णजन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है।
Krishna Janmashtami Hindi Essay (900 Words)
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी 'जन्माष्टमी के नाम से जानी-पहचानी जाती है।इस दिन चतुःषष्टि (चौसठ) कलासम्पन्न तथा भगवद्गीता के गायक योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उनका जीवन, कर्म, आचरण और उपदेश हिन्दू समाज के आदर्श बने और वे हिन्दुओं के पूज्य देवता बने। इसीलिए उनका जन्म-दिन जन्माष्टमी नाम से विख्यात हुआ।
यद्यपि ईश्वर सर्वव्यापी हैं, सर्वदा और सर्वत्र वर्तमान हैं तथापि जनहितार्थ स्वेच्छा से साकार रूप में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। इसी परम्परा में भगवान् विष्णु का आठवाँ अवतरण कृष्ण रूप में पहचाना जाता है, जो देवकी-वसुदेव के आत्मज थे। इस अवतरण में प्रभु का उद्देश्य था परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्' तथा 'धर्मसंस्थापनार्थाय' अर्थात् दुराचारियों का विनाश साधुओं का परित्राण और धर्म की स्थापना।
आत्म-विजेता, भक्त वत्सल श्रीकृष्ण बहुमुखी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे महान् योद्धा थे, किन्तु उनकी वीरता सर्व-परित्राण में थी। वे महान् राजनीतिज्ञ थे, उनका ध्येय था 'सुनीति और श्रेय पर आधारित राजधर्म की प्रतिष्ठा। वे महान् ज्ञानी थे। उन्होंने ज्ञान का उपयोग 'सनातन जन-जीवन' को सुगम और श्रेयोन्मुख स्वधर्म सिखाने में किया। वे योगेश्वर थे। उनके योगबल और सिद्धि की सार्थकता 'लोकधर्म के परिमार्जन एवं संवर्धन में ही थी।' यह ध्यान रहे कि वे योगीश्वर नहीं; अपितु योगेश्वर थे। योग के ईश्वर अर्थात् योग के श्रेष्ठतम ज्ञाता, व्याख्याता, परिपालक तथा प्रेरक थे।
कृष्ण महान् दार्शनिक और तत्त्ववेत्ता थे। उन्होंने कुलक्षय की आशंका से महाभारत के युद्ध में अर्जुन के व्यामोह को भंग कर 'हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोतिष्ठ परतंप' का उपदेश दिया। वे महान् राजनीतिज्ञ थे, महाभारत में पाण्डव-पक्ष की विजय का श्रेय उनकी कूटनीतिज्ञता को ही है। वे धर्म के पंडित थे, इसलिए 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' का धर्म- नवनीत उन्होंने जन-जन के लिए सुलभ किया। वे धर्म प्रवर्तक थे, उन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय कर भागवत-धर्म का प्रवर्तन किया।
श्रीकृष्ण ईश्वर के पूर्णावतार थे। भागवत पुराण में पूर्वावतार का साँगोपांग रूपक वर्णित है। वे भागवत धर्म के प्रवर्तक.थे। आगे चलकर वे स्वयं उपास्य मान लिए गए। दर्शन में इतिहास का उदात्तीकरण हुआ।परिमाणतः कृष्ण के ईश्वरत्व और ब्रह्मपद की प्रतिष्ठा हुई। वे जगद्गुरु रूप में प्रतिष्ठित हुए। कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्' द्वारा उनका अभिषेक हुआ।
कृष्ण के पूर्णावतार के संबंध में सूर्यकांत बाली की धारणा है-'कृष्ण के जीवन की दो बातें हम अक्सर भुला देते हैं, जो उन्हें वास्तव में अवतारी सिद्ध करती हैं। एक विशेषता है, उनके जीवन में कर्म की निरन्तरता। कृष्ण कभी निष्क्रिय नहीं रहे। वे हमेशा कुछ न कुछ करते रहे। उनकी निरन्तर कर्मशीलता के नमूने उनके जन्म और स्तनंधय (दूध पीते) शैशव से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। इसे प्रतीक मान लें (कभी-कभी कुछ प्रतीकों को स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं होता) कि पैदा होते ही जब कृष्ण खुद कुछ करने में असमर्थ थे तो उन्होंने अपनी खातिर पिता वसुदेव को मथुरा से गोकुल तक की यात्रा करवा डाली। दूध पीना शुरू हुए तो पूतना के स्तनों को और उसके माध्यम से उसके प्राणों को चूस डाला। घिसटना शुरू हुए तो छकड़ा पलट दिया और ऊखल को फंसाकर वृक्ष उखाड़ डाले।खेलना शुरू हुए तो बक, अघ और कालिय का दमन कर डाला। किशोर हुए दो गोप-गोपियों से मैत्री कर ली। कंस को मार डाला। युवा होने पर देश में जहाँ भी महत्वपूर्ण घटा, वहाँ कृष्ण मौजूद नजर आए, कहीं भी चुप नहीं बैठे। वाणी और कर्म से सक्रिय और दो-टूक भूमिका निभाई और जैसा ठीक समझा, घटनाचक्र को अपने हिसाब से मोड़ने की पुरजोर कोशिश की। कभी असफल हुए तो भी अगली सक्रियता से पीछे नहीं हटे। महाभारत संग्राम हुआ तो उस योद्धा के रथ की बागडोर संभाली, जो उस वक्त का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था। विचारों का प्रतिपादन ठीक युद्ध-क्षेत्र में किया। यानी कृष्ण हमेशा सक्रिय रहे, प्रभावशाली रहे, छाए रहे।'
इस दिन प्रायः हिन्दू व्रत (उपवास) रखते हैं। दिन में तो प्रायः प्रत्येक घर में नाना प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। सायंकाल को नए-नए वस्त्र पहनकर मन्दिरों में भगवान् के दर्शन करने निकल पड़ते हैं। रात्रि के बारह बजे मन्दिरों में होने वाली आरती में भाग लेते हैं और प्रसाद प्राप्त कर लौटते हैं। चन्द्रमा के दर्शन कर सब लोग बड़ी प्रसन्नता से व्रत का पारायण करते हैं।
इस दिन मन्दिरों की शोभा अनिर्वचनीय होती है। चार-पाँच दिन पहले से उन्हें सजाया जाने लगता है। कहीं भगवान् कृष्ण की अलंकृत भव्य प्रतिमा दर्शनीय है, तो कहीं उन्हें हिण्डोले पर झुलाया जा रहा है। कहीं-कहीं तो उनके सम्पूर्ण जीवन की झाँकी प्रस्तुत की जाती है। बिजली की चकाचौंध मन्दिर की शोभा को द्विगुणित कर रही है। उनमें होने वाले कृष्ण-चरित्र-गान द्वारा अमृत वर्षा हो रही है और कहीं-कहीं मन्दिरों में होने वाली रासलीला में जनता भगवान् कृष्ण के दर्शन कर अपने को धन्य समझती है।
यद्यपि यह उत्सव भारत के प्रत्येक ग्राम और नगर में बड़े समारोहपूर्वक मनाया जाता है, किन्तु मथुरा और वृन्दावन में इसका विशेष महत्त्व है। भगवान् कृष्ण की जन्म-भूमि और क्रीडा-स्थली होने के कारण यहाँ के मन्दिरों की सजावट, उनमें होने वाली रासलीला, कीर्तन एवं कृष्ण-चरित्र-गान बड़े ही सुन्दर होते हैं। भारत के कोने-कोने से हजारों लोग इस दिन मथुरा और वृन्दावन के मन्दिरों में भगवान् के दर्शनों के लिए आते हैं।
जन्माष्टमी प्रति वर्ष आती है। आकर कृष्ण की पुनीत स्मृति करवा जाती है। गीता के उपदेशों की याद ताजा कर जाती है। श्रीकृष्ण के जीवन-चरित्र की झांकियों की कलात्मकता और भव्यता से मन के सुप्त धार्मिक भावों को झकझोर जाती है। एक दिन के व्रत से आत्म-शुद्धि का अनुष्ठान करवा जाती है।
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