शेर और खरगोश की कहानी संस्कृत में। Lion and Rabbit Story in Sanskrit. एकस्मिन् अरण्ये हिंसातुरः नाम सिंहः अवसत्। सः प्रतिदिनं अनेकानां पशूनां वधं करोति स्म। परम् एकमेव खादति स्म। सः अतिदुष्टः आसीत्। तस्य ईदृशेन व्यवहारेण सर्वे पशवः दुःखिताः आसन्। अनुवाद : एक वन में हिंसातुर नाम का शेर रहता था। वह प्रतिदिन अनेक पशुओं को मारता था। किंतु एक को ही खाता था। वह बहुत दुष्ट था। उसके इस व्यवहार से सभी पशु दुखी थे। एकदा सर्वाः पशवः मिलित्वा एकम् उपायम् अचिन्तयत्। ततः ते सर्वे सिंहम् उपागच्छन् अवदन् च - " हे राजन्! त्वम् महान् असि। त्वं किमर्थं प्रतिदिनं अनेकानां मृगान् मारयसि ? एवं तु अस्माकं सर्वेषां विनाशं शीघ्रं भविष्यति। अतएव एवं न कुरू ! तदा त्वमपि क्षुदापीडितः भूत्वा नक्ष्यसी। तव भोजनाय प्रतिदिनं एकः-एकः मृगः तव समीपं स्वमेव आगमिष्यति तं खादित्वा प्रसन्नः भव। " इदं श्रुत्वा सिंहः प्रत्यवदत् - "एवमस्तु। "तं खादित्वा अहम् क्षुधापूर्तिम् अकरोत्। तदा प्रतिदिन एकः पशुः तस्य भोजनार्थं तत्रागच्छ्त्।
एकस्मिन् अरण्ये हिंसातुरः नाम सिंहः अवसत्। सः प्रतिदिनं अनेकानां पशूनां वधं करोति स्म। परम् एकमेव खादति स्म। सः अतिदुष्टः आसीत्। तस्य ईदृशेन व्यवहारेण सर्वे पशवः दुःखिताः आसन्।
अनुवाद : एक वन में हिंसातुर नाम का शेर रहता था। वह प्रतिदिन अनेक पशुओं को मारता था। किंतु एक को ही खाता था। वह बहुत दुष्ट था। उसके इस व्यवहार से सभी पशु दुखी थे।
एकदा सर्वाः पशवः मिलित्वा एकम् उपायम् अचिन्तयत्। ततः ते सर्वे सिंहम् उपागच्छन् अवदन् च - " हे राजन्! त्वम् महान् असि। त्वं किमर्थं प्रतिदिनं अनेकानां मृगान् मारयसि ? एवं तु अस्माकं सर्वेषां विनाशं शीघ्रं भविष्यति। अतएव एवं न कुरू ! तदा त्वमपि क्षुदापीडितः भूत्वा नक्ष्यसी। तव भोजनाय प्रतिदिनं एकः-एकः मृगः तव समीपं स्वमेव आगमिष्यति तं खादित्वा प्रसन्नः भव। " इदं श्रुत्वा सिंहः प्रत्यवदत् - "एवमस्तु। "तं खादित्वा अहम् क्षुधापूर्तिम् अकरोत्। तदा प्रतिदिन एकः पशुः तस्य भोजनार्थं तत्रागच्छ्त्। एकदा एकस्य शशकस्य वारम् आगच्छत्। सः चिंतयन् मंदम-मंदम चलयित्वा सिहस्य समीपं चिरम् अगच्छात्सिं। अनेन सिंहः क्रुद्धः अभवत्। किन्तु शशकः अवोचत् - " हे वनराज! क्रोधं न कुरु, मार्गे एकः अन्यः सिंहः अमिलत्। सः अकथयत्- अहम् युष्मान् नृपः अस्मि अतः त्वम् मम भोजनं भव। " तदा सः शशकः तं सिंहम् एकं कूपं अनयत्।
अनुवाद : एक बार सभी पशुओं ने मिलकर एक उपाय सोचा। उसके बाद वह सभी शेर के पास गए और बोले - "हे राजन!तुम महान हो। तुम क्यों प्रतिदिन अनेक हिरणों को मारते हो ? ऐसे तो हम सभी का विनाश शीघ्र ही हो जाएगा। इसलिए ऐसा मत करो। तब तुम भी भूख से व्याकुल होकर मर जाओगे। तुम्हारे भोजन के लिए प्रतिदिन एक-एक हिरण तुम्हारे पास स्वयं ही आ जाएगा। उसे तुम खाकर प्रसन्न हो जाना। यह सुनकर शेर ने उत्तर दिया - "ऐसा ही होगा। "उसे खाकर मैं भूख की पूर्ति करूंगा। तब से प्रतिदिन एक पशु उसके भोजन के लिए वहां आ जाता। एक बार एक खरगोश की बारी थी। वह सोचते हुए धीरे-धीरे चलकर शेर के समीप देर से गया। इससे शेर बहुत गुस्सा हुआ। किंतु खरगोश बोला - "हे वनराज! गुस्सा मत करो, रास्ते में एक दूसरा शेर मिल गया। उसने कहा - "मैं ही तुम्हारा राजा हूं इसलिए तुम मेरा भोजन हो। तब वह खरगोश उस शेर को एक कुएं के पास ले गया।
तस्य वार्तालापं श्रुत्वा सः हिंसातुरः अति अक्रुद्धयत् च - " कुत्र सः दुष्टः ?" कूपे हिंसातुरः स्वप्रतिबिम्बं अपश्यत्। तं प्रतिबिम्बं अन्यं सिंहम् मत्वा तं मारयितुं कूपे अकूर्दत् अनश्यत् च। एवं क्षुद्रः शशकः बुद्धिबलेन् बलवन्तः सिंहम् अपि मारयितुं समर्थः जातः।
अनुवाद : उसकी बात सुनकर वह हिंसातुरः बहुत अधिक गुस्सा हुआ और कहा - "कहां है वह दुष्ट ?" कुएं में हिंसातुर ने अपनी परछाई देखी। उस परछाई को दूसरा शेर मानकर उसे मारने के लिए कुएं में कूद गया और नष्ट हो गया। इस प्रकार छोटा खरगोश अपनी बुद्धि के बल से बलवान शेर को भी मारने में समर्थ हो गया।
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