राजा राममोहन राय पर निबंध। Essay on Raja Ram Mohan Roy in Hindi. राजा राममोहन राय ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ के रूप में जाने जाते हें। वह भारत के पहले सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में से ब्रह्मसमाज के संस्थापक थे। उन्होंने सती-प्रथा समाप्त करवाने के महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वे एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। राजा मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल की हुगली तहरसी के राधारनगर गांव में हुआ था। उनके पिता रामाकांत राय और मां तारिणी थीं। वे मूर्ति पूजा व रुढि़वादी हिंदू परंपराओं के विरोधी थे, लेकिन उनके पिता एक रूढि़वादी हिंदू ब्राह्मण थे। यही पिता-पुत्र के बीच मतभेद का कारण बना। इसी कारण उन्होंने घर छोड़ दिया। वह हिमालय के आसपास भटकते रहे और और तिब्बत पहुंच गये। घर वापस लौटने से पहले उन्होंने बहुत यात्राएं कीं। वापस आने पर राममोहन का विवाह इस आशा के साथ कर दिया कि उसमें परिवर्तन आ जाएगा, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह वाराणसी चले गये और उपनिषदों और हिंदू दर्शन का गहराई से अध्ययन किया। 1803 में जब उनके पिता की मृत्यु हुई, वह मुर्शिदाबाद वापस आ गए। उन्होंने 1809 से 1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में अपनी सेवाएं दीं।
राजा राममोहन राय ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ के रूप
में जाने जाते हें। वह भारत के पहले सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में से
ब्रह्मसमाज के संस्थापक थे। उन्होंने सती-प्रथा समाप्त करवाने के महत्वपूर्ण
भूमिका निभायी। वे एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे।
राजा मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल की हुगली तहरसी के राधारनगर गांव
में हुआ था। उनके पिता रामाकांत राय और मां तारिणी थीं।
वे मूर्ति पूजा व रुढि़वादी हिंदू परंपराओं के
विरोधी थे, लेकिन उनके पिता एक रूढि़वादी हिंदू ब्राह्मण थे। यही पिता-पुत्र के
बीच मतभेद का कारण बना। इसी कारण उन्होंने घर छोड़ दिया। वह हिमालय के आसपास
भटकते रहे और और तिब्बत पहुंच गये। घर वापस लौटने से पहले उन्होंने बहुत
यात्राएं कीं। वापस आने पर राममोहन का विवाह इस आशा के साथ कर दिया कि उसमें
परिवर्तन आ जाएगा, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह वाराणसी चले
गये और उपनिषदों और हिंदू दर्शन का गहराई से अध्ययन किया। 1803 में जब उनके पिता
की मृत्यु हुई, वह मुर्शिदाबाद वापस आ गए। उन्होंने 1809 से
1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में अपनी सेवाएं दीं।
1814 में राजा राममोहन ने आत्मीय सभा गठन किया।
सभा ने सामाजिक और धार्मिक सुधार करने की शुरूआत की। महिलाओं के अधिकारों के लिये
अभियान चलाया, जिसमें विधवाओं के पुनर्विवाह और महिलाओं को
संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार था। उन्होंने बहुविवाह का भी विरोध किया।
उनका मानना था कि अंग्रेजी भाषा की शिक्षा
पारंपरिक भारतीय शिक्षा व्यवस्था से बेहतर है। उन्होंने संस्कृत स्कूलों को
सहायता देने के लिये सरकारी फंड के उपयोग का विरोध किया। उन्होंने एक स्कूल की
स्थापना भी की, जो अंग्रेजी शिक्षा पद्धति पर आधारित था।
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