मेरी दिनचर्या पर निबंध। Essay on My daily routine in hindi-प्रातः काल उठने से लेकर रात्रि में निद्रा की गोद में खो जाने तक के दैनिक कार्य व्यवहार को दिनचर्या कहते हैं। दूसरे शब्दों में नित्य प्रति किए जाने वाले संपूर्ण कार्य व्यवहार दिनचर्या कहलाते हैं। मेरे दैनिक कार्यों का विवरण इस प्रकार है- मैं एक विद्यार्थी हूं। मेरी दिनचर्या मेरे विद्यालय पर निर्भर है, यह मेरी विवशता है और इस विवशता में खिन्नता नहीं है। उसी में आनंद और उत्साह लेने की मेरी प्रवृत्ति है। प्रातः 7:30 बजे मेरी पाठशाला प्रारंभ होती है। इसलिए मैं प्रातः 5:00 बजे उठता हूं, सैया पर बैठ कर दो मिनट के लिए परमपिता परमात्मा का ध्यान करता हूं। पृथ्वी की तीन बार वंदना करते हुए पृथ्वी माता से उस पर अपने चरण रखने के लिए क्षमा मांगता हूं। दोनों हथेलियों का दर्शन करते हुए श्लोक बोलता हूं-
प्रातः काल उठने से लेकर रात्रि में निद्रा की गोद में खो जाने तक के दैनिक कार्य व्यवहार को दिनचर्या कहते हैं। दूसरे शब्दों में नित्य प्रति किए जाने वाले संपूर्ण कार्य व्यवहार दिनचर्या कहलाते हैं। मेरे दैनिक कार्यों का विवरण इस प्रकार है- मैं एक विद्यार्थी हूं। मेरी दिनचर्या मेरे विद्यालय पर निर्भर है, यह मेरी विवशता है और इस विवशता में खिन्नता नहीं है। उसी में आनंद और उत्साह लेने की मेरी प्रवृत्ति है।
प्रातः 7:30 बजे मेरी पाठशाला प्रारंभ होती है। इसलिए मैं प्रातः 5:00 बजे उठता हूं, सैया पर बैठ कर दो मिनट के लिए परमपिता परमात्मा का ध्यान करता हूं। पृथ्वी की तीन बार वंदना करते हुए पृथ्वी माता से उस पर अपने चरण रखने के लिए क्षमा मांगता हूं। दोनों हथेलियों का दर्शन करते हुए श्लोक बोलता हूं-
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविंदा प्रभाते कर दर्शनम्।।
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडले।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व में।।
तदंतर उठ कर मुंह हाथ धोया। एक गिलास स्वच्छ पिया और 5-7 मिनट घर के प्रांगण में टहल लिया। तत्पश्चात शौच गया, दांतों को ब्रश करके स्नान किया। प्रभु प्रतिमा के समक्ष साष्टांग प्रणाम हुआ। निकल पड़ा प्रातः कालीन व्यायाम को।
घर के समीप ही एक उपवन है। घास का हरा भरा मैदान और विभिन्न प्रकार के खिले फूल प्रातः कालीन सैलानियों का अपनी मुस्कुराहट से स्वागत करते हैं। थोड़ी दौड़ थोड़ी देर पीटी और दो-तीन आसन करना मेरा दैनिक व्यायाम है। व्यायाम करने के बाद 15 मिनट बाद की हरी हरी घास पर बैठकर विश्राम करता हूं।
घर लौटा, कलेवा किया। विद्यालय के पीरियड के अनुसार बस्ता तैयार किया। जूतों को बुरूश किया। साइकिल पर बस्ता रखा और चल पड़ा विद्यालय के लिए। निर्धारित समय से 5 मिनट पूर्व विद्यालय पहुंचना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। इस कर्तव्य पूर्ति के गर्व का अनुभव भी करता हूं । 12:40 पर विद्यालय का अवकाश होता है। छुट्टी की घंटी बजने पर हम सब ऐसे प्रसन्न होते हैं मानो जेल से छूट रहे हों।
घर लौट कर अपने बसते को यथास्थान रखता हूं। विद्यालय के वेश को उतारकर टांग देता हूं। घरेलू वस्त्र पहनता हूं। हाथ मुंह धो कर भोजन के लिए तैयार हो जाता हूं। भोजन उपरांत विश्राम करता हूं।
लगभग 3:30 बजे उठता हूं। मुंह हाथ धोता हूं और पढ़ने की मेज पर बैठ जाता हूं। इस समय विद्यालय से मिले गृह कार्य को करता हूं साथ ही विद्यालय में पढ़ाई के पाठों की आवृत्ति भी करता हूं। पढ़ने की मेज पर ही 4:00 बजे माताजी चाय और बिस्कुट दे जाती है।
लगभग 6:30 बजे पढ़ाई बंद कर देता हूं। सायं काल का समय खेलने के लिए निश्चित है। विद्यालय के ग्राउंड में जाता हूं। हॉकी मेरा प्रिय खेल है एक घंटा साथियों के साथ खेल भावना से ही खेलता हूं। खेल समाप्ति पर सब साथी मिलकर 20 मिनट कुछ मतलब की बातें करते हैं कुछ गप्पें हाँकते हैं।
रात्रि 8:00 बजे के लगभग मुंह हाथ धोकर TV के आगे बैठ जाता हूं। इधर TV देखता हूं उधर गरम भोजन आ जाता है। 8:30 के समाचार सुनकर प्रतिदिन के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटना चक्र से स्वयं को भिज्ञ रखता हूँ। 9:00 बजे से 9:30 बजे तक के प्रायोजित कार्यक्रम का आनंद लूटता है।
9:30 बजे के बाद मुझे जागना अच्छा नहीं लगता क्योंकि मेरी सैया मेरी प्रतीक्षा कर रही होती है। अतः चारपाई पर बैठ कर दो मिनट अपनी दिनचर्या का सिंहावलोकन किया, दिन के भले बुरे कार्यों का चिंतन किया और लेट गया। लेटने के बाद आंखों में दवाई डालना नहीं भूलता।
यह मेरी मेरी नित्य की दिनचर्या है। इसमें नियमितता है। नियमितता में स्फूर्ति है दक्षता है और है तेजस्विता। नियमित व्यायाम और विश्राम से मेरा स्वास्थ्य ठीक रहता है और नियमित अध्ययन में पढ़ाई कि निपुणता बनी रहती है।
रविवार और विद्यालय अवकाश दिवस पर मेरी उक्त दिनचर्या में परिवर्तन एक शाश्वत नियम है। उक्त दिनचर्या में बदलाव आता है। उन दिनों को कुछ नए उत्साह और उल्लास और उमंग के कार्यक्रम प्रस्तुत रहते हैं। इस प्रकार मैं कोल्हू का बैल भी नहीं बनता और जीवन में समरस भी रहता हूं।
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