मेरे स्कूल में स्वतंत्रता दिवस समारोह पर निबंध। Vidyalaya me Swatantrata Diwas par Nibandh! प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में स्वतंत्रता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यालय के छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बडे उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं। हमारे कॉलिज़ में भी गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस दुगुने उत्साह के साथ मनाया गया। उषा की लालिमा के उदय के साथ ही विद्यार्थी अपने-अपने घरों से निकल पड़े और कॉलेज के प्रांगण में एकत्रित हुए। अध्यापकों ने अपनी-अपनी कक्षाओं की उपस्थिति ली, जिससे यह मालूम हो गया कि कौन-कौन नहीं आया है। बाद में भी विद्यार्थी धीरे-धीरे आते-जाते थे और अपनी-अपनी कक्षाओं की पंक्ति में खड़े हो जाते थे। विद्यार्थियों को 6 बजे का समय दिया गया था। अभी 6 बजने में दस मिनट शेष थे। समस्त कक्षाओं की उपस्थिति पूर्ण हो चुकी थी, जिन विद्यार्थियों को नारे लगाने के लिये एक दिन पहले चुन लिया गया था, वे गगनभेदी ध्वनि से कॉलेज में ही खड़े होकर नारे लगा रहे थे।
स्वतन्त्रता हर
प्राणी की एक स्वाभाविक वृत्ति है। अधम-से-अधम और छोटे-से-छोटा प्राणी भी अपने ऊपर
किसी का नियन्त्रण प्रसन्नता से स्वीकार नहीं करता। अंग्रेज भारत में आये और
भारतीयों को परतन्त्रता के पाश में जकड़ लिया। गुलामी की जंजीरों में बंधे हुए
भारतीय उसी दिन से उस जाल को काटने के लिये अनवरत प्रयास करते रहे। इस पुनीत
संग्राम का श्रीगणेश झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के कर-कमलों से सन् 1857 में हुआ।
तब से लेकर सन् 1947 तक अनन्त माताओं की गोद के लाल स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर चढ़कर अमरगति को प्राप्त हुए।
कितनी माँओं के लाल लुटे लुट गए न कितनों के सुहाग ।।
फिर भी सत्ता से दब न सकी इस बार प्रज्ज्वलित आग ।।।
आंदोलनकारियों का
एक केवल एक लक्ष्य था-
हमको जीना होकर स्वतन्त्र, हमको मरना होकर स्वतन्त्र ।
वे बढे यही लौ लेकर थे घर प्रति-हिंसा का भाव नही ।।
धीरे-धीरे अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिली, कई बार धोखे दिये, परन्तु भारतवासी अपने पूर्ण स्वतन्त्रता-प्राप्ति के निश्चित ध्येय से विचलित न हुए। सत्य और अहिंसा के शस्त्र के सामने अंग्रेजों का कठोर नियन्त्रण प्रकम्पित हो उठा। 90 वर्ष की साधना फलवती हुई और अंग्रेजों ने यहाँ से जाने का निश्चय करना पड़ा।
15 अगस्त, 1947 को अर्धरात्रि को शताब्दियों की खोई स्वतन्त्रता भारत को पुनः प्राप्त हो गई। सारे देश में स्वतन्त्रता की लहर दौड़ गई। भक्त जनता ने मन्दिरों में भगवान की प्रार्थना की, घर-घर में दीप जलाये गये, विद्यालयों में मिष्ठान वितरण हुआ और रात्रि को सहस्त्रों, दीपों की ज्योति जगमगा उठी।
प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में स्वतंत्रता दिवस बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यालय के छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बडे उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं। हमारे कॉलिज़ में भी गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस दुगुने उत्साह के साथ मनाया गया। उषा की लालिमा के उदय के साथ ही विद्यार्थी अपने-अपने घरों से निकल पड़े और कॉलेज के प्रांगण में एकत्रित हुए। अध्यापकों ने अपनी-अपनी कक्षाओं की उपस्थिति ली, जिससे यह मालूम हो गया कि कौन-कौन नहीं आया है। बाद में भी विद्यार्थी धीरे-धीरे आते-जाते थे और अपनी-अपनी कक्षाओं की पंक्ति में खड़े हो जाते थे। विद्यार्थियों को 6 बजे का समय दिया गया था। अभी 6 बजने में दस मिनट शेष थे। समस्त कक्षाओं की उपस्थिति पूर्ण हो चुकी थी, जिन विद्यार्थियों को नारे लगाने के लिये एक दिन पहले चुन लिया गया था, वे गगनभेदी ध्वनि से कॉलेज में ही खड़े होकर नारे लगा रहे थे। जैसे ही 6 बजे वैसे ही प्रधानाचार्य ने प्रभात फेरी में चलने के लिए विद्यार्थियों को संकेत दिया और हम तीन-तीन की पंक्ति बनाकर सड़क पर चलने लगे। आगे वाले विद्यार्थी के हाथ में तिरंगा झण्डा था, उसके पीछे कॉलेज के विद्यार्थी तीन-तीन की पंक्तियों में चल रहे थे। नारे लगाने वाले विद्यार्थी नेता बड़े जोरों से नारे लगा रहे थे। बीच में एक मधुर मार्चिंग गीत गाया जा रहा था, जिसे सभी छात्र बड़ी प्रसन्नता से दुहराते थे। इस प्रकार हम नगर के प्रमुख चौराहों पर होते हुए जिलाधीश की कोठी के सामने से निकले। रास्ते में कई मन्दिर मिले, जिनमें घण्टे बज रहे थे, शंख ध्वनि हो रही थी। यह प्रार्थना इसलिए हो रही थी कि हमारी स्वतन्त्रता चिर-स्थायी रहे, इस आशय की एक सरकारी सूचना भी जनता में प्रसारित हुई थी। नगर में परिक्रमा लगाते हुए हम लोग कॉलेज पहुँचे, वहाँ कर्मचारी झण्डियाँ लगा रहे थे। कॉलेज के मुख्य भवन पर तिरंगा झण्डा लगाया जा रहा था। झण्डा फहराने का समय 8 बजे का था, क्योंकि सभी सरकारी भवनों पर 8 बजे ध्वजारोहण का समय निश्चित किया गया था। अभी 8 बजने में आधा घण्टा शेष था, इसलिए हमें आधे-घण्टे की छुट्टी मिल गई। जिन लड़कों के घर पास में थे वे अपने-अपने घरों में जल्दी लौट आने की इच्छा से जल्दी-जल्दी जाने लगे। बाजार में स्थान-स्थान पर तोरण द्वार बने हुए थे, जिन पर स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों के नाम अंकित थे—किसी पर गाँधी द्वार तो किसी पर नेहरू द्वार।
ठीक आठ बजे प्रधानाचार्य ने ध्वजारोहण किया, हम सभी छात्रों ने झण्डे को सलामी दी। राज्य के शिक्षामन्त्री तथा शिक्षा-संचालक के संदेश पढ़कर सुनाये गये। कुछ विद्यार्थियों ने अपने मधुर कण्ठ से राष्ट्रीय कविताओं का पाठ किया और अन्त में प्रधानाचार्य का एक सारगर्भित भाषण हुआ। 10 बजे से विद्यार्थियों के खेल शुरू हुए। लम्बी कूद, ऊंची कूद, 100 मीटर से लेकर 800 मीटर तक की दौड़, बाधा दौड़, गोला फेंकना, तश्तरी फेंकना, रस्से पर चढ़ना इत्यादि नाना प्रकार के खेलों में विद्यार्थी अपनी-अपनी रुचि से भाग लेने लगे। इस वर्ष एक और सुन्दर व्यवस्था कर दी गई थी कि विद्यार्थियों को तुरन्त पारितोषिक मिल रहा था। प्रथम आने वाले छात्र को एक बड़ा थाल, द्वितीय स्थान पाने वाले को एक कलई का गिलास और तृतीय आने वाले को एक कटोरी मिल रही थी। थाल के प्रलोभन से मैंने भी दौड़ में भाग लिया। जूनियर्स सीनियर्स के ग्रुप बने हुए थे। मुझे सीनियर्स में रखा गया क्योंकि मेरी आयु 16 साल से अधिक थी और साढे चार फीट से ऊँचाई भी अधिक थी। दौड़ा, बहुत कोशिश की परन्तु वहाँ तो घोड़े को भी मात देने वाले विद्यार्थी मौजूद थे, परिणाम यह हुआ कि प्रथम स्थान तो दूर रहा द्वितीय और तृतीय भी नहीं आया। थाल पाने की आशा मन की मन में ही रह गई।
इसके पश्चात् मिष्ठान वितरण हुआ। प्रत्येक विद्यार्थी को थैले में रखे हुए चार-चार लड्डू मिले। इस कार्य के सम्पन्न होने में लगभग एक घण्टा लग गया। कुछ छात्र लड्डू खा रहे थे और कुछ खाकर पानी पी रहे थे और कुछ ने घर जाने के लिए बस्तों में मिठाई के थैले रख लिए थे, जिन पर दूसरे विद्यार्थी घात लगाये हुए थे, चारों ओर स्वतन्त्रता दिवस की प्रसन्नता में विद्यार्थी फूले नहीं समा रहे थे। जो खेलते-खेलते थक गये थे, वे कुर्सियों पर बैठकर सुस्ता रहे थे।
तीन बजे से जुलूस निकलने वाला था। सभी नागरिकों और कॉलेज के छात्रों को पहले जिलाधीश की कोठी पर एकत्रित होने की आज्ञा थी, वहीं से जुलूस प्रारम्भ होगा, ऐसी व्यवस्था की गई थी। प्रत्येक स्कूल को एक झाँकी तैयार करने का आदेश था। हमारे कॉलिज की एक झाँकी ठेले पर सजाई जा रही थी। पौने तीन बजे ही समस्त विद्यार्थी और अध्यापक जुलूस में भाग लेने के लिए चले दिये। यद्यपि मेरा जाने का मन नहीं था, क्योंकि सुबह से अब तक मैं थक चुका था, परन्तु क्या करता, यदि किसी और स्कूल में होता तो भाग भी जाता, परन्तु यह था गवर्नमेण्ट कॉलेज जहाँ कठोर अनुशासन रखा जाता है, आज्ञा-पालन प्रत्येक विद्यार्थी का परम कर्तव्य होता है, अतः विवश होकर जाना पड़ा।
जिलाधीश की कोठी पर अपार जन-समूह उमड़ रहा था। कई हाथी थे, ऊँट और बैल ठेलों पर झाँकियाँ सजाई गई थीं, एन. सी. सी. और प्रान्तीय रक्षा दल के सैनिकों की कई टुकड़ियाँ थीं, बाजे बज रहे थे। जुलूस बढ़ने लगा, नगर के लोग अपनी-अपनी दुकानों से उठकर जुलूस में शामिल होने लगे। लगभग एक मील लम्बा जुलूस था। नगर के प्रमुख भागों में कहीं-कहीं ऊपर से फूल बरसाये जाते और कहीं गुलाब जल छिड़का जाता। बाजारों की परिक्रमा लगाते हुए जुलूस का अवसान स्टेडियम ग्राउण्ड पर हुआ, जहाँ पहले से ही लोगों के बैठने तथा मंच इत्यादि का प्रबन्ध हो चुका था। जनता वहाँ बैठने लगी और सभा की कार्यवाही शुरू हुई। नगर के प्रमुख नेताओं के भाषण हुए, कवितायें पढ़ी गई और स्वतन्त्रता के महत्त्व को समझाया गया। हमारे कॉलेज में एक एकांकी नाटक होने वाला था। के सभी छात्र धीरे-धीरे खिसकने लगे क्योंकि रात्रि को 8 बजे कॉलेज में स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष में एक एकांकी नाटक होने वाला था।
हम लोग घर पहुँचे, खाना खाया, फिर कॉलेज की ओर चल दिये। मंच तैयार था। चारों ओर बिजली के बल्बों से हॉल जगमगा रहा था। एक ओर महिलायें कुर्सियों पर बैठी हुई थीं। दूसरी ओर आमंत्रित महमान। पृथ्वी पर बिछे हुए फर्शों पर छात्रों के बैठने का प्रबन्ध था। ‘चौराहा’ नामक एकांकी नाटक अभिनीत हुआ। दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देख रहे थे, बीच-बीच में किसी कलाकार का अभिनय अधिक पसन्द आ जाने पर तालियों की भी गड़गड़ाहट होती थी। अन्त में प्रधानाचार्य ने सभी आगन्तुकों को धन्यवाद देकर कार्यक्रम समाप्त किया।
यह हमारा सौभाग्य है कि वर्षों की साधना के पश्चात् हमने स्वर्णिम अवसर प्राप्त किया है। हमारा कर्तव्य है कि हम इस राष्ट्रीय पर्व को उल्लास और उत्साह के साथ सदैव मनायें और देश की समृद्धि और देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये सदैव प्रयत्नशील रहे।
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