नारी का विनाशकारी रूप पर निबंध! एक युग था जब नारी के विषय में कहा जाता था कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहाँ स्त्री की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। अब युग ने फिर अंगड़ाई ली, नारी का विनाशकारी रूप भी प्रकट हुआ, जो अब न श्रद्धा रही, न ममता रही, न वन्दनीय रही और न अबला रही। आँखों का पानी और आँचल का दूध तो बिल्कुल ही सूख गया। इसलिए यदि नारी बदल गई तो कोई अस्वाभाविक नहीं है। जिस नारी में सृजनात्मक शक्ति थी उसी ने विध्वसांत्मक शक्ति का रूप ले लिया। अब वह मानव बम के रूप में प्रयुक्त होने लगी। भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय राजीव गाँधी के शरीर के चिथड़ों का पता नहीं चला, वे भी ढूंढने पड़े। वह रूप भी नारी का ही था। अब अणु बम, परमाणु बम पीछे रह गये क्योंकि उनके लिए तो आसमान में उड़ना पड़ता था और इसमें प्यार भरे अभिवादन से ही काम चल जाता है। यह आत्मघाती प्रक्रियायें आतंकवाद की संतानें हैं।
युग परिवर्तन के साथ विचारों के मापदण्ड ही नहीं बदलते, अपितु महत्त्व और मान्यतायें, प्रणाली और पद्धतियाँ, रीति और नीतियाँ भी करवट ले जाती हैं। चित्रकार की तूलिका जहाँ सुन्दर और मोहक रंगों की वर्षा करती है वहीं वह भयानक और रौद्र रसों को भी उगलती है। कल्याणमयी गतिविधियाँ विनाशकारी रूप धारण कर लेती हैं।
एक युग था जब नारी के विषय में कहा जाता था कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात् जहाँ स्त्री की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। एक युग आया जब साहित्यकार कह उठे “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पद तल में”। फिर युग ने पलटा खाया और मैथिलीशरण गुप्त कह उठे “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।"
अब युग ने फिर अंगड़ाई ली, नारी का विनाशकारी रूप भी प्रकट हुआ, जो अब न श्रद्धा रही, न ममता रही, न वन्दनीय रही और न अबला रही। आँखों का पानी और आँचल का दूध तो बिल्कुल ही सूख गया। समय एक-सा किसी का नहीं रहा जहाँ ऊँची-ऊँची अट्टालिकायें थीं वहाँ कूड़े के ढेर बन गये और जहाँ कूड़े के ढेर थे वहाँ ऊँचे-ऊँचे महल बन गये। इसलिए यदि नारी बदल गई तो कोई अस्वाभाविक नहीं है। जिस नारी में सृजनात्मक शक्ति थी उसी ने विध्वसांत्मक शक्ति का रूप ले लिया। अब वह मानव बम के रूप में प्रयुक्त होने लगी। भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय राजीव गाँधी के शरीर के चिथड़ों का पता नहीं चला, वे भी ढूंढने पड़े। वह रूप भी नारी का ही था। अब अणु बम, परमाणु बम पीछे रह गये क्योंकि उनके लिए तो आसमान में उड़ना पड़ता था और इसमें प्यार भरे अभिवादन से ही काम चल जाता है। यह आत्मघाती प्रक्रियायें आतंकवाद की संतानें हैं।
आज विश्व के कई देश आतंकवादी संगठन चला रहे हैं और इनके चलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। इन आतंकवादी संगठनों में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। जहाँ कोई और न पहुँच सके वहाँ ये झट से बिना रोक-टोक के आसानी से पहुँच जाती हैं। इन संगठनों में महिला इकाई का अलग और महत्त्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि “जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि” के अनुसार, “जहाँ न पहुँचे पुरुष वहाँ पहुँचे नारी।” भारत में भी 1993 में राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, आतंकवादी एवं तोड़-फोड़ अधिनियम के अन्तर्गत 33 महिलाओं की गिरफ्तारी हुई थी इसके अलावा एक्सप्लोसिव अधिनियम के अन्तर्गत 38 महिलायें पकड़ी गई थीं।
आतंकवादी संगठनों में महिला इकाई चलाने वाले हैं जो अपने कारनामों से कुछ भी कर सकते हैं। एशियाई देशों में फिलहाल स्वतन्त्र रूप से एक ही संगठन ऐसा है जो कि इस समय विश्व स्तर पर अपनी गतिविधियों के कारण चर्चित है। श्रीलंका में लिबरेशन टाईगर ऑफ तमिल ईलम (लि) ने महिलाओं का इस्तेमाल मानव बम के रूप में करके इंसानियत के नाम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है। लिट्टे प्रमुख वी० प्रभाकरण ने महिलाओं को बाकायदा युद्ध-प्रणाली का सघन प्रशिक्षण देकर उन्हें आतंकवाद के लिये इस्तेमाल करने योग्य बनाया है। स्कन्दा, उमा माहेश्वरन, अकीला आदि वे नाम हैं जो लिट्टे की महिला इकाई का नेतृत्व कर रही हैं। लिट्टे का प्रशिक्षण संजाल किस कदर प्रभाव छोड़ता है, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि लिट्टे की महिलाओं को मानव बम के रूप में अपनी जान दे देने के लिये शारीरिक तथा मानसिक रूप से तैयार कर लेने में लगातार सफल हो रहा है। इन महिलाओं को तोड़-फोड़ एवं विशिष्ट व्यक्तियों की हत्या के लिए प्रयुक्त किया जाता है। लिट्टे की इसी महिला इकाई की नेता अकीला के प्रत्यर्पण के लिए भारत सरकार प्रयासरत है लेकिन अकीला की गिरफ्तारी अभी तक सम्भव नहीं हो सकी है।
विश्व के अनेक देशों की भाँति भारत भी इस समय आतंकवाद की चपेट में बुरी तरह त्रस्त है। भारत के अनेक राज्यों में आतंकवाद की जड़े काफी गहरी जमी हुई हैं। फलस्वरूप आतंकवाद के साये में महिलायें भी पल रही हैं। भारत में 1980 के बाद से आतंकवाद में बढ़ोत्तरी हुई है। कश्मीर, बिहार, आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्वोत्तर के कई राज्यों में आतंकवादी काफी अधिक सक्रिय हैं। इन स्थानों में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी है। अगर विश्व भर के आतंकवाद के कारणों पर हम ध्यान दें तो लगेगा कि भारत का आतंकवाद भारत की वजह से कम परन्तु किसी-न-किसी रूप से उसके पड़ौसी देशों के कारण ज्यादा है। इधर कई वर्षों से भारत की सीमा से लगे राज्यों में आतंकवादियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। यह प्रभाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे विभिन्न आतंकवादी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती जा रही है। हर जगह गरीबी व भुखमरी के चलते वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर रहे उग्रवादी संगठनों से महिलाओं का जुड़ाव बना हुआ है।
विभिन्न आतंकवादी संगठनों में कार्यरत अनेक महिलायें 18 से 40 वर्ष आयु समूह की हैं। पश्चिमी देशों के संगठन जहाँ महिलाओं की भर्ती में शैक्षिक योग्यता का विशेष ध्यान रखते हैं, वहीं भारत में शैक्षिक योग्यता पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता। आमतौर पर आतंकवादी संगठनों के लिये कार्यरत महिलाओं के जिम्मे आतंकियों को सुरक्षा देना, जासूसी करना, सूचनायें एकत्रित करना, हथियारों को छिपाना एवं एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना, संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित आश्रय की व्यवस्था करना, घात लगाकर गोली दागना, बम फेंकना, रॉकेट प्रेक्षपकों से प्रहार करना, पत्र बमों व पार्सल बर्मों का इस्तेमाल करना आदि कार्य आते हैं। और महिलायें इन कार्यों को पुरुषों की अपेक्षा अधिक बेहतर ढंग से अंजाम दे पा रही हैं। प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार एक जीवन देने वाली नारी शक्ति क्या स्वेच्छा से किसी की जान लेने एवं तोड़-फोड़ तथा अराजकता पूर्ण वातावरण को फैलाने के लिये तैयार हो सकती है।
प्रायः आतंकवाद के पीछे अनेक ऐसी समस्यायें जुड़ी होती हैं, जिनका उचित समाधान न हो पाना लोगों को हथियार उठाने के लिये प्रेरित करता है और ऐसा भी नहीं है कि सभी महिलायें अपनी इग या मणी से वादी संगठनों में शामिल हो जाती हैं। अक्सर आतंकवादी संगठन जोरजबरदस्ती, ब्लैकमेलिंग, शारीरिक प्रताड़ना, धन का प्रलोभन, ममत्व एवं अन्य कई तरीकों का सहारा लेते हैं, जिनके कारण महिलाओं को इनकी मदद करनी पड़ती है। खासतौर से भारत के कुछ हिस्सों में देखा गया है कि वहाँ पर कार्यरत विभिन्न आतंकवादी संगठनों की आपसी वर्चस्व एवं लड़ाई का शिकार अब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महिलायें होती हैं, तो उनमें एक प्रतिहिंसा की भावना पैदा हो जाती है जो कि उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करती है। धर्म, जाति एवं व्यवस्था के विरुद्ध छिडे आतंकवाद में जहाँ धार्मिक मनोवृत्तियों को उकसाकर आतंकवाद को बढ़ाया जाता है, वहीं महिलाओं के भीतर नैसर्गिक रूप से विद्यमान भावनाओं को भड़काकर आतंकवादी उन्हें अपने कार्यों के लिये इस्तेमाल करते हैं।
इसके अलावा आज हमारी बदलती भौतिक व आर्थिक परिस्थितियाँ भी महिलाओं को आतंकवाद की ओर खीचने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। आज की महिला एक ओर जहाँ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाक’ चलने का दावा करती है, वहीं वह सभी कार्य करने के लिए तैयार हो जाती है जिन पर पुरुषों का आधिपत्य है। एक ओर तो वह अपनी आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों को सुधारने की चेष्टा में लगी हुई है, वहीं उसके अन्दर की बढ़ती लिप्सायें उसे इंसानी खून बहाने के लिये प्रेरित करती हैं। विश्व स्तर पर तमाम ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जिनसे यह पता चलता है कि महिलाओं का आतंकवाद से जुड़ाव महज क्षणिक आनन्द एवं रोमांच के लिए हुआ।
बदलते आर्थिक परिदृश्यों के अनुरूप जहाँ महिलाओं के भीतर अधिक-से-अधिक धन-लिप्सा (धन पैदा करने की प्रवृत्ति) बढ़ी है, वहीं विभिन्न आतंकवादी संगठन महिलाओं की इसी प्रवृत्ति का लाभ उठा रहे हैं। छोटे से कार्य के लिए वे इतना अधिक धन देते हैं कि जिसके चलते कुछ। महिलायें बड़ी खुशी से उनके लिए कार्य करने को तैयार हो जाती हैं। उन्हें इस बात का कोई परहेज नहीं होता कि वह क्या कर रही हैं और स्वेच्छा से उनके लिए मरने को भी तैयार हो जाती हैं। खासतौर पर यूरोपीय देशों की महिलाओं के भीतर जिन आधुनिक प्रवृत्तियों ने जन्म लिया है। उसके चलते विभिन्न आतंकवादी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और जब कोई खास महिला आतंकवादियों के इरादों की पूर्ति का साधन नहीं बनती है तो वे परिवार के किसी सदस्य को बन्दी बनाने, जान से मारने की धमकी देकर या फिर वे सभी कार्य जिनके चलते किसी भी महिला को इस बात के लिए मजबूर किया जा सके कि वे उनकी मदद करे, आतंकवादियों के अमोघ अस्त्र होते हैं।
विश्व के अधिकांश देशों में जहाँ भी आतंकवादी गतिविधियाँ व्याप्त हैं कुछ कमसिन लड़कियों से लेकर उम्रदराज महिलायें तक अनेक आतंकवादी संगठनों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं। ये महिला आतंकी विभिन्न तरीकों से इन संगठनों के लिए कार्य करती हैं। कहीं पर स्वेच्छा से, तो कहीं दबाव के चलते, तो कहीं जबरदस्ती एवं मजबूरी के कारण। बहरहाल कुछ महिलायें नित्य प्रति रक्तपात एवं आगजनी व तोड़-फोड़ की घटनाओं से तेजी से जुड़ती जा रही है।
विश्व के तमाम देशों के हवाई अड्डों एवं मुख्य रेलवे स्टेशनों में तमाम ऐसे सूचनापट्ट दिखाई देते हैं जिनमें ऐसे कट्टर आतंकवादियों की तस्वीरें लगी होती हैं जिनकी सुरक्षाकर्मियों को तलाश होती है और सबसे अहम् बिन्दु तो यह है कि इनमें अधिकांश तस्वीरें ऐसी महिलाओं को होती हैं जो कि आतंकवादी गतिविधियों में पूरी तरह लिप्त हैं।
अगर हम विश्व के तमाम उग्रवादी संगठनों पर दृष्टि डालें और उनकी शुरूआत के तत्कालीन कारणों पर विचार करें तो एक ऐसा तथ्य है कि प्रत्येक आतंकवादी संगठन बनने के पीछे किसी-न-किसी रूप में छात्र एवम् युवा आन्दोलन जुड़ा होता है। सम्पूर्ण विश्व में जाति, धर्म, भाषा, प्रान्त, साम्प्रदायिकता, नस्ल, युवा विक्षोभ, बेकारी एवं भ्रष्ट व्यवस्था के विरोध में होने वाले छात्र एवं युवा आन्दोलनों के गर्भ से आतंकवादी संगठन निकला है। शुरूआती दौर में यह संगठन सकारात्मक मनोवृत्ति के चलते लोकप्रिय हुए, लेकिन बाद में नकारात्मक मनोवृत्तियों के कारण इनका प्रभाव आम जनमानस में कम होता गया। चूंकि शुरूआत मुद्दों को लेकर ही होती है इसलिए भावुक महिलाओं की भागीदारी आतंकवादी संगठनों में प्रारम्भिक चरण में आसानी से हो जाती।
आतंकवाद के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी का प्रथम उदाहरण 60 के दशक में देखने को मिला था। 2 अप्रैल, 1968 को जर्मनी के फ्रेंकफुर्त नगर में स्थित अमरीका सेन्य विभाग के भण्डार में एक भयानक बम विस्फोट हुआ। आग लगाने वाले इस बम का विस्फोट करने के अपराध में जब चार युवक व युवतियों को गिरफ्तार किया गया तब यह पता चला कि चारों जर्मनी के रेड आर्मी फेक्सन' नामक आतंकवादी संगठन के प्रथम पंक्ति के नेता हैं। इस घटना में पकड़ी गई एक युवती गुडून एन्सिलिन एक मध्यम वर्ग में उत्पन्न सुशिक्षित युवती थी। ‘रेड आर्मी फेक्शन' से ही जुड़ी एक अन्य युवती यूलिक मंन्हिॉफ की भी अनेक घटनाओं में सक्रिय भागीदारी रही। बचपन से अनाथ मीन्हॉफ एक प्रसिद्ध पत्रकार थी। छात्र राजनीति में दखलंदाजी रखने वाली मीन्हॉफ सोशलिस्ट यूनियन ऑफ स्टूडेन्ट्स के नेता की निर्मम हत्या से व्यथित होकर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो गयी थी।
1960 से लेकर 1980 तक विश्व के तमाम देश जिस तरह से आतंकवाद की चपेट में आये उसी तरह से महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ती गई। छात्र युवा आन्दोलनों से शुरू होने वाले आतंकवाद की ओर गरीबी, उपनिवेशवाद, भ्रष्ट व्यवस्था, अत्याचार व अनेक समस्याओं से पीडित युवाओं के अलावा महिलायें एवं युवतियाँ भी आकर्षित हुई। जापान में 1969 में गठित उग्रवादी संगठन ‘जापानी लाल सेना में महिलाओं की जबरदस्त भागीदारी रही। जापानी लाल ओ मे अलग हुए एक गुट ‘संयुक्त रेड आर्मी ने तो बाकायदा महिलाओं की एक अलग शाखा बना रखी है।
जर्मनी, इटली, फ्रांस, जापान, फिलीस्तीन, आर्मीनिया, स्पेन, आयरलैण्ड, इजराइल आदि अनेक देशों के आतंकवादी संगठन तो महिलाओं को विधिवत् ट्रेनिंग देकर आतंकवादी घटनाओं के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं। फ्रांस के एक आतंकवादी संगठन 'डायरेक्ट एक्शन ग्रुप' की एक सक्रिय महिला उग्रवादी नाथलई मैनिग्नॉन काफी समय तक फ्रांसीसी सरकार के लिए सिरदर्द बनी रही। इजराइली संगठन मोसाद की महिला शाखा की प्रमुख लीला खालिद अनेक रक्तरंजित घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराई गयीं। आयरलैण्ड की ‘अस्थाई आइरिश रिपब्लिक आर्मी' नामक संगठन में महिलायें खुलेआम अपने पुरुष सहयोगियों के साथ कार्य कर रही हैं। इंग्लैण्ड में स्थित रेड ब्रिगेड' अक्सर अपने महिला कार्यकर्ताओं के द्वारा की गयी वारदातों के लिये चर्चित रहा है।
जो नारी ममतामयी थी, श्रद्धामयी थी आज वह हिंसामयी कैसे हो गयी। आज का यह ज्वलन्त प्रश्न विचारणीय है। महिला संगठनों और समाज-सुधारक संगठनों को इस बात पर विचार करना चाहिये कि समाज ने उन पर कौन-से अत्याचार किये जिनका बदला लेने के लिये उन्हें आतंकवाद की शरण में जाना पड़ा। दस्यु सुन्दरी फूलन देवी ने भी सामाजिक अत्याचार के विरुद्ध आवाज और बंदूक उठायी थी । हमारे सामाजिक दोषों के फलस्वरूप चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक हो राजनैतिक हों, स्वैच्छिक हों, महिलायें आतंकवाद से जुड़ती जा रही हैं। जिसे अपना जीवन बोबिल और भार मालूम पड़ रहा है और जिन्दगी से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं दीख रहा वर पहिला तो आसानी से मानव बम बन हो सकती है। हमारे सामाजिक अपराधों से कितनों को विधर्मी नहीं बना दिया, कितनों को वैश्यालयों में नहीं भेजा, कितनों को आत्महत्या के लिये प्रेरित नहीं किया।
प्रतिशोध की धधकती आग में या किसी अपरिहार्य प्रलोभन में यदि नारी विध्वसंक बन गई तो समाज को अपने गिरेबाँ में झाँकना पड़ेगा और उन दोषों को दूर करना पड़ेगा। महिलाओं के “आत्मघाती दस्ता” महिला ने शरीर पर विस्फोटक बाँधकर राजनयिक को उड़ाया, कश्मीर में 45 आतंकवादी महिलायें गिरफ्तार आदि शरीर को थर्रा देने वाली खबरें नागरिकों को अखबारों के माध्यम से रोज मिलती रहेंगी और हम चुप बैठे पढ़ते रहेंगे। 70 से 80 के दशक में महिलाओं का यह प्रतिशत 5 था। पिछले 12 वर्षों में यह प्रतिशत आधे से बढ़कर तीन हो गया। यह 6 गुनी बढ़ोत्तरी चौंका देने वाली है। यद्यपि विश्व के इतिहास में राजे-महाराजे विष कन्याओं तथा नगर वधुओं को अपनी हिंसक और राजनीतिक क्षुधा की पूर्ति के लिये प्रयुक्त करते थे परन्तु आधुनिक बदलते परिवेश में जीवनदायिनी नारी का आतंकवाद की ओर झुकाव विनाश की अशुभ सूचना और संकेत दे रहा है। इसलिए समय रहते ही चेत जाना चाहिये।
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