विचार क्या है ? What is Thought in Hindi : “विचार” किसी भी व्यक्तिके व्यक्तित्व को जानने की कुंजी होते हैं”। विचारों के ही बल पर कोई साधारण सा व्यक्ति “महात्मा” बन सकता है और कोई अति विशिष्ट व्यक्ति दरिद्रता के खडडे में भी जा गिर सकता है। विचार व्यक्ति को समाज, राष्ट्र, विश्व, संस्था तथा परिवेश से जुड़ी सभी वस्तुओं, क्रियाओं एवं प्रक्रियाओं के बारे में अपनी धारणा बनाने में सहयोग देते हैं। अत: यह भी कहा जा सकता है स्वयं के नजरियों को साक्षात् रूप से प्रस्तुत करना ही “विचार” है, विचार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाको प्रस्तुत करता है और उसे सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही पलड़ों में तौल कर देखता है तथा निर्णय करता है कि वास्तव में उस वस्तु विशेष के प्रति उसे किस प्रकार की विचाराधारा रखनी चाहिए।
विचार क्या है ? What is Thought in Hindi
“विचार” किसी भी व्यक्तिके
व्यक्तित्व को जानने की कुंजी होते हैं”। विचारों के ही बल पर कोई साधारण सा व्यक्ति
“महात्मा” बन सकता है और कोई अति विशिष्ट व्यक्ति दरिद्रता के खडडे में भी जा
गिर सकता है। विचार व्यक्ति को समाज, राष्ट्र, विश्व, संस्था तथा परिवेश से जुड़ी सभी वस्तुओं,
क्रियाओं एवं प्रक्रियाओं के बारे में अपनी धारणा बनाने में सहयोग देते हैं। अत:
यह भी कहा जा सकता है स्वयं के नजरियों को साक्षात् रूप से प्रस्तुत करना ही
“विचार” है, विचार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी
प्रतिक्रियाको प्रस्तुत करता है और उसे सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही पलड़ों
में तौल कर देखता है तथा निर्णय करता है कि वास्तव में उस वस्तु विशेष के प्रति
उसे किस प्रकार की विचाराधारा रखनी चाहिए।
“विचार” प्राय: व्यक्ति
के जीवन में घटित हुई सभी घटनाओं, दृष्टांतों एवं अनुभव के आधार पर बनते हैं,
अत: यह बात पूर्णत: सत्य है कि मात्र विचार ही किसी वस्तु विशेष के बार में उसे
क्या अवधारणा बनातेहैं। सामान्यत: जो घटना किसी व्यक्ति के लिए हानिकारक होती
है वह किसी अन्य के लिए लाभदायक हो सकती है इस आधार पर वे दोनों ही व्यक्ति
अपनी-अपनी घटनाओं पर अलग-अलग विचार बनाते हैं। उदाहरणस्वरूप यदि कोई कुरूप बालक किसी अपरिचित व्यक्ति के संपर्क में आता है तो वह अपरिचित उसके
अभिवादन को स्वीकृत नहीं करेगा किन्तु यदि वही कुरूप बालक अपनी मां अथवा अपने
संबंधियों का अभिवादन करे तो उसे सम्मानपूर्वक स्वीकृति देने की प्रत्याशा अधिक
होगी। इसी प्रकार जन मानस में प्रचलित धारणा कि “किसी बिल्ली के रास्ता काटने पर
निश्चित कोई दुर्घटना घटित होती है” जबकि वास्तविकता ऐसा नहीं है,
यह मात्र विचारों पर निर्भर करता है, इसका परीक्षण एवं उसकी पुष्टि कई ऐसी घटनाओं
के आधार पर हुई जब कई व्यक्तियों ने इसके विपरीत कार्य किया वे बिल्ली के रास्ता
काटने पर किसी अन्य के द्वारा पहले निकल जाने के इंतजार के स्थानपर स्वयं ही
आगे बढ़ गये और वे जिस भी कार्य के लिए जा रहे थे उनमें उन्हें उनकी योग्यता व
क्षमता के आधार पर परिणाम मिले न कि किसी बिल्ली के रास्ता काट देने के आधार पर।
कई परीक्षार्थीयों ने परीक्षाएं दी तो उनमें उन्हें उनकी अभिक्षमता व योग्रूता
के अनुकूल अंक मिलें एवं नौकरी के साक्षात्कार हेतु जा रहे व्यक्ति को उसके
साक्षात्कार में किए गये प्रस्तुतीकरण के आधार पर नौकरी मिली। इस प्रकार,
यह सिद्ध हुआ कि किसी भी कार्य का परिणाम, मात्र विचाराधारा की आधारशिला पर निर्भर है न
कि उसी घटना अथवा कार्य पर, एक और उदाहरण इसी क्रम में सम्मिलिति किया जा
सकता है “जिसमें किसी विवाहिता को उसके पति की मृत्यु का दोष उसे “कुलनाशिनी” की
संज्ञा देना जबकि किसी की मृत्यु का कारण उसके स्वयं की मानसिक अथवा शारीरिक
विक्षप्त पर निर्भर करता है न कि किसी भी अन्य कारण पर,
इस प्रकार यह स्पष्ट किया जा सकता कि मात्र विचार ही किसी भी संदर्भ में उचित या
अनुचित की पुष्टि कराते हैं यह उस “विशिष्ट घटना” अथवा “कार्य पर” निर्भर नहीं करता क्योंकि विचार
अनुभव द्वारा बनाये जाते हैं और अनुभव सदैव प्रत्येक परिस्थिति के अनुसार ही विभिन्न
व्यक्तियों के अनुकूल या प्रतिकूल हो सकते हैं।
आधुनिक समय में व्यक्ति
का विकास उसके विचारों पर पूर्णत: आश्रित है। यदि कोई व्यक्ति आज वैज्ञानिक युग
में यह मान बैठे कि वह अपने जीवन में कभी काई परिश्रम न करे और उसे स्वत: ही उसकी
इच्छानुकूल सफलता प्राप्त होगी तो यह मात्र एक भ्रांति का विचार ही होगा क्योंकि
यदि बिना कर्म के फल की इच्छा रखी तो सफलता असंभव है। “श्रीमद्भागवत” में
हिंदुओंके अत्यंत लोकप्रिय देवता “श्रीकृष्ण” ने भी इसे पूर्णत: अस्वीकृत करके
इसकी आलोचना की है, अत: विचार ही व्यक्ति को किसी कर्म को करने
की प्रेरणा देते हैं और सर्वोच्च निष्पादन के लिए आश्वस्त करते हैं। विचारों
की प्रत्येक मदर टेरेसा, विवेकानन्द जैसे महान आत्माओं में सम्मिलित
हो जाता है और यदि निकृष्ठ होते हैं तो उनका दयनीय पतन भी निश्चित होता है।
विचारों के बल ही दो सौ वर्षों तक ब्रिटिश शासनें अधीन रहने के पश्चात भारत ने स्वतंत्रता
प्राप्त की। विचारों के परिणामस्वरूप बड़े-बड़े आंदोलन एवं क्रांतियां हो जाती
हैं और मिस्त्र एवं लीबिया की क्रांतियां ये क्रांतियां पूर्व में घटित किसी भी
घोर विरोध के परिणाम में “रक्तपात” का केंद्र नहीं रहीं बल्कि विचारों द्वारा
संगठित होकर अपने उत्पीड़न के विरोध में थी और विचारों द्वारा विचारों से ही थी।
भारतीय संविधान में
अनुच्छेद संख्या 12 से 22 तक एक देश के नागरिक होने के नाते बहुत-सी स्वतंत्रता
दी गयी हैं जिनमें अनु. 19ग से विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी।
अत: विचारों की भूमिका बहुत ही बड़ी एवं अत्यंत महत्वपूर्ण होती है एवं विचारों
के द्वारा ही किसी, व्यक्ति, समाज,
राज्य अथवा राष्ट्र का समग्र विकास निर्भर होता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि
विचारों की गहनता और गंभीरता से चिंतन, मनन द्वारा परिष्कृत की गयी व्यवस्थाएं एवं
अवधारणाएं विकसित हो और वाले समाज को भेंटस्वरूप प्राप्त हो।
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